हँसने का प्रारम्भ कब और कैसे?
हँसने का प्रारंभ कब और कैसे हुआ था? वैज्ञानिकों ने अब इस प्रश्न का जवाब खोज निकाला है। उनके अनुसार अब से चालीस लाख साल पहले जब व्यक्ति ने चार के बजाए दो पैरों पर चलने का प्रयास किया तो वह लड़खड़ाया और गिरा। उसके इस लड़खड़ाने एवं गिरने पर उसके साथी हँसे। यही हँसने की शुरुआत है।
इस थ्योरी के अनुसार जब वे अपने ग्रुप के किसी व्यक्ति को लड़खड़ाते हुए देखते थे, तो हँसते थे। उनका हँसना इस बात का संकेत होता था कि चलने के प्रयास में कुछ कमी है। इस थ्योरी से यह भी ज्ञात होता है कि किसी के फिसलने या लड़खड़ाने पर हम आज भी क्यों हँसते हैं एवं यह फिल्मों में स्लैपस्टिक हास्य का चिरस्थायी हिस्सा क्यों बन गया है।
प्राचीन युग में दो पैरों पर चलने का अर्थ यह होता था कि लड़खड़ाने व गिरने की आशंका अधिक थी। वास्तव में तात्पर्य यह है कि स्लैपस्टिक हास्य का विकास उसी समय से हुआ। ऐसा मैथ्यू गर्वेस का कहना है। वे अमेरिका में एवोल्यूशनरी बायोलॉजिस्ट हैं। उन्हीं के नेतृत्व में यह अध्ययन हुआ था। वे कहते हैं, 'जब हम स्लैपस्टिक पर हँसते हैं, तो हम उसी चीज पर हँस रहे होते हैं, जिस पर हमारे प्रारंभिक पूर्वज हँसे थे। तभी हमें यह बात मजेदार एवं हास्य से भरी लगती है।
भाषा का विकास पहली हँसी के बीस लाख वर्ष पश्चात हुआ। इसके पश्चात ही शब्दों एवं हास्य के विभिन्न तरीकों को जोड़ा जाने लगा ताकि चुटकुले बनाए जा सकें या किसी का मजाक उड़ाया जा सके। गर्वेस एवं उनके साथी डेविड स्लोन विलसन ने अपने अध्ययन का विकास हास्य पर 100 से अधिक थ्योरियों की समीक्षा करने के पश्चात किया।
इन शोधकर्ताओं का मानना है कि हँसने से पहले व्यक्ति वैसी आवाजें निकलता था, जैसी वानर चिम्पांजी गुदगुदी किए जाने पर निकालते हैं। इन आवाजों के बारे में वैज्ञानिकों का मानना है कि यह परिवार या ग्रुप में अच्छे संबंधों को बनाए रखने हेतु निकाली जाती है। इसके अनुसार किसी व्यक्ति को अचानक फिसलते हुए देखकर और साथ ही यह अहसास करते हुए कि इससे उस व्यक्ति को कोई चोट नहीं आएगी; आज भी मानव को हँसी आ जाती है।
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