शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

काव्य-संसार

अब कभी मत लौटना साथी NDदेर रात जब
सितारों की झिलमिलाती बूँदें
फिसलती है आसमानी आँगन में
और मैं लौट आती हूँ
अपने ही मन-मासूम के पास,
तब मुस्कुराता-खिलता
तुम्हारा
गुलाबी चेहरा
खूब आता है याद।

जब मैं रोती हूँ अपने ही मन के
उदास खाली कोने में बैठ अकेली,
तब तुम्हारी आँखों के
कोमल उजाले में
दमक उठती है मेरी रात अँधेरी।

अब कभी मत लौटना साथी, मेरे दुश्मन,
तुमसे बेहतर है
तुम्हारी यादों का सर्द मौसम।

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