प्रकृति का धनी गरीब बस्तर
प्रकृति ने बस्तर को छप्पर फाड़कर प्राकृतिक सौंदर्य दिया है। धार्मिक पर्यटन, बस्तर हाट, मुर्गा लड़ाई, घोटुल यहाँ के आकर्षण हैं जो अन्य किसी पर्यटन स्थल पर नहीं देखे जा सकते।
अगर आप महानगरों की तेज रफ्तार जिंदगी और चकाचौंध भरी दुनिया से ऊब चुके हो और शांति एवं सुकून के कुछ दिन प्रकृति की गोद में बिताना चाहते हों तो छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में आपका स्वागत है। कम से कम बजट में अच्छी से अच्छी सुविधा प्राप्त कर पर्यटन के लिहाज से रोमांचक अनुभव पाया जा सकता है, बशर्ते कि आपके पास प्रकृति को सहेजने का धीरज हो।
आपको बता दें कि भौगोलिक दृष्टि से केरल जैसे राज्य से बड़े बस्तर नामक इस भू-भाग को प्रकृति ने छप्पर फाड़कर प्राकृतिक सौंदर्य दिया है। इतना कि इसे निहारने-भोगने के लिए आपके महीनों की अवधि कम पड़ जाए। प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा लोक-संस्कृति भी ऐसी कि उसमें ही रम जाएँ।
यहाँ लोक संस्कृति, परंपरा, धार्मिक पर्यटन, बस्तर हाट (बाजार), मुर्गा लड़ाई, घोटुल पर्यटन के आकर्षण हैं जो देश के अन्य किसी पर्यटन स्थल पर नहीं देखे जा सकते। बस्तर से अलहदा यदि छत्तीसगढ़ का खजुराहो आपको देखना हो तो कवर्धा जिले के भोरमदेव चले आइए। मिनी तिब्बत यदि देखना हो तो सरगुजा जिले के मैनपाट चले आइए। वन अभयारण्यों में बारनवापारा, अचानकमार और उदंति ऐसे अभयारण्य हैं, जहाँ दुर्लभ वन्यजीव आज भी देखे जा सकते हैं।
राज्य के पर्यटन और संस्कृति मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की यदि मानें तो राज्य को पर्यटन के नक्शे पर अंतर्राष्ट्रीय पहचान दिलाना उनका मुख्य उद्देश्य है। हाल ही में स्विट्जरलैंड से राज्य के पर्यटन की जमकर मार्केटिंग करके लौटे अग्रवाल ने कहा कि आने वाले समय में छत्तीसगढ़ का पर्यटन सौंदर्य विदेशी पर्यटकों को लुभाने में कामयाब होगा।
छत्तीसगढ़ का भू-भाग, पुरातात्विक, सांस्कृतिक और धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से अत्यंत संपन्न है फिर चाहे वह कांकेर घाटी हो, विश्व प्रसिद्ध चित्रकोट का जलप्रपात हो या फिर कुटुंबसर की गुफाएं ही क्यों न हों। प्राकृतिक सौंदर्य से सराबोर सदाबहार लहलहाते सुरम्य वन, जनजातियों का नृत्य-संगीत और घोटुल जैसी परंपरा यहाँ का मुख्य आकर्षण हैं।
त्रेतायुग में राम के वनगमन का रास्ता भी इसी भू-भाग से गुजरता है। जिस दंडक वन से राम गुजरे थे उसे अब दंडकारण्य कहा जाता है। वैसे भी खूबसूरती प्रायः दुर्गम स्थानों पर ही अपने सर्वाधिक नैसर्गिक रूप में पाई जाती है। कारण बड़ा साफ है, ये दुर्गम स्थान प्रकृति के आगोश में होते हैं। प्रकृति के रचयिता रंगों को मनमाफिक रंग से भर खूबसूरती की मिसाल गढ़ते हैं। यह खूबसूरती बस्तर की घाटियों में देखी जा सकती है जो हिमाचल की भांति हैं।
चित्रकोट जलप्रपात की खूबसूरती को निहारने के लिए राज्य के पर्यटन विभाग ने जबरदस्त इंतजाम किए हैं। जलप्रपात का नजारा चूँकि रात में ज्यादा आकर्षक होता है इसलिए रुकने के लिए विभाग ने 'हट' भी बनाए हैं, जिनका न्यूनतम किराया 24 घंटे का एक हजार रुपए है। इन हाटों में पर्यटकों के लिए तरह-तरह की आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
यह स्थान जगदलपुर जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर की दूरी पर है। जगदलपुर में ठहरने के लिए विश्राम गृह, होटल और गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं। रायपुर से तीन सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मनोरम स्थल तक पहुँचने के लिए लक्जरी बसें उपलब्ध हैं। यहाँ पर देश के सभी प्रमुख हवाई मार्गों से हवाई सेवा उपलब्ध हैं। बस्तर के आसपास के 50 किलोमीटर की दूरी तक के दर्शनीय स्थलों को देखने के लिए जगदलपुर जिला मुख्यालय में रुकना ही बेहतर है। चित्रकोट को छोड़ किसी भी स्थान पर रुकने की कोई व्यवस्था नहीं है। वैसे तो बस्तर में जलप्रपात की लंबी श्रृंखला है। इस प्रपात की ठीक दूसरी दिशा में जगदलपुर जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तीरथगढ़ जलप्रपात में सफेद पानी की धार पर्यटकों को आकर्षित करती है। जगदलपुर से 30 किलोमीटर दूर प्राकृतिक गुफाओं की काफी लंबी श्रृंखला है।
विश्वप्रसिद्ध कोटमसर गुफा के भीतर जलकुंड तथा जलप्रवाह से बनी पत्थर की संरचनाएँ रहस्य और रोमांच से भर देती हैं। पूरा बस्तर घाटियों से घिरा हुआ है। उत्तर में केशकाल तथा चारामा घाटी तो दक्षिण में दरबा की झीरम घाटी, पूर्व में अरकू तथा पश्चिम में बंजारा घाटी पर्यटकों को अलग-अलग रंग-रूप की प्राकृतिक सुरम्यता से आकर्षित करती हैं।
देश के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में बसा छत्तीसगढ़ राज्य चकाचौंध भरी दुनिया के लोगों की नजर में भले ही सबसे पिछड़ा इलाका हो लेकिन प्रकृति, पर्यटन व सौंदर्य प्रेमियों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं है। वैसे तो पिछड़ेपन का ही परिणाम है कि यहाँ नक्सलवाद अपने चरम पर है लेकिन प्रकृति की गोद में बसे दर्शनीय स्थल नक्सल गतिविधियों से मुक्त है। राज्य के उत्तरी छोर पर सरगुजा जिले के मैनपाट में आप मिनी तिब्बत का नजारा देख सकते हैं।
पिछले चालीस साल से मैनपाट में तिब्बती शरणार्थियों ने अपना स्थायी ठिकाना बनाया हुआ है। राज्य में धार्मिक पर्यटन का भी अच्छा-खासा बाजार है। रायपुर से बस्तर तक का तीन सौ किलोमीटर का सफर दर्शनीय स्थलों से भरपूर है। 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहा जाता है। यहाँ 11 वीं शताब्दी में निर्मित कुलेश्वर महादेव, राजीव लोचन मंदिर, राजेश्वर मंदिरों का एक समूह है।
राजिम में हर साल फरवरी में लगने वाला कुंभ देश का पाँचवाँ कुंभ स्थल बनने जा रहा है। इस कुंभ में देश भर से साधु-संतों के अखाड़े तो आते ही हैं, राज्य और राज्य के बाहर से लाखों लोग यहाँ आते हैं। यहाँ भी तीन नदियों का संगम है। बस्तर के ही रास्ते में पड़ने वाले धमतरी और गंगरेल और मॉडम सिल्ली डेम आकर्षण का केंद्र हैं। यहाँ भी रूकने के लिए सिचाई विभाग के रेस्ट हाउस न्यूनतम किराए पर उपलब्ध है।
धमतरी के बाद कांकेर जिला मुख्यालय को बस्तर के पर्यटन का द्वार कहा जाता हैं। कांकेर के राजमहल को हेरिटेज का दर्जा दिया गया है। यहाँ से पूरे बस्तर के पर्यटन का पैकेज टूर बनता है। विदेशी पर्यटकों को लुभाने के लिए कवर्धा, कांकेर और बस्तर के राजमहलों को हेरिटेज इमारतों में तब्दील कर दिया गया है।
यूँ तो बस्तर देश के सबसे पिछड़े इलाकों में शुमार है लेकिन एक जनजातीय संस्कृति घोटुल के बारे में जानने के लिए विदेशी पर्यटक भी उत्सुक रहते हैं। घोटुल दरअसल सामूहिक तौर पर अविवाहित युवक-युवतियों का सामूहिक मिलन संस्कार है। यहीं जोडि़याँ बनती हैं, विवाह होते हैं और गृहस्थ जीवन में उनका प्रवेश होता है। यह संस्कार इतना गोपनीय होता है कि इन स्थलों पर इन अविवाहित जोड़ों के अलावा गाँव या शहर का कोई भी अन्य व्यक्ति नहीं रह सकता।
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