गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

कहानी

ऐसे आई समझ
एक था बूढ़ा पाला - बड़ा समझदार और अनुभवी! उसका नौजवान बेटा जाड़ा एकदम नासमझ और बड़बोला था, एक दिन उसने पिता से डींग मारी - 'मैं जिसे चाहूँ, मिनटों में ठंड से अकड़ा सकता हूँ।'
'ऐसा समझना कोरा भ्रम है बेटा''
बूढ़े पाला ने समझाया। मैं अभी प्रमाण देता हूँ। नौजवान जाड़ा ने उत्तेजित होकर कहा और चारों तरफ निगाह दौड़ाई... सामने एक मोटा-ताजा सेठ दिखा गरम कपड़ों और कीमती शाल से लदा-फदा! जाड़े ने उसे जा घेरा। सेठ देखते-देखते ठंड से काँपने लगा। देख लीजिए पिताजी! जाड़े ने शेखी बघारी 'पहलवान जैसे सेठ पर मैंने कैसी बुरी गुजार दी। अब तो मान गए न मेरी बात?'

नहीं, बूढ़ा पाला हँसा, फिर बैलगाड़ी लेकर जंगल की तरफ जाते एक फटेहाल किसान को दिखाकर बोला - 'बेटा, तेरी बात मैं तब मान सकता हूँ, जब तू उसे छका दे।'
जाड़े ने बाप की तरफ देखा और बड़े घमंड से कहा - 'अभी चित करता हूँ। वह तुरंत उड़कर किसान के पास पहुँच गया और उसे दबोचना शुरू किया। उसने कमजोर बैल के जूए से कंधा भिड़ाया और बैलगाड़ी खींचने में मदद देने लगा।

जाड़ा उसकी कन‍पटियाँ, हाथ-पैर, और गर्दन पर चुटकियाँ काटता रहा, लेकिन किसान पर असर नहीं पड़ रहा था। क्योंकि गाड़ी में जोर लगाने से उसके शरीर से गरमी छिटक रही थी। जाड़ा हैरान था - कितना मजबूत है यह पिद्दी भर का आदमी! मगर उसने हिम्मत न हारी, किसान के पीछे पड़ा रहा। मन में सोच रहा था, यहाँ न सही, जंगल में तो अकड़ा ही दूँगा। कितनी देर झेल पाएगा मुझे? जंगल पहुँच कर किसान ने बैलगाड़ी रोक दी।

अब वह कुल्हाड़ी उठाकर सूखी लकड़ियाँ काटने लगा। जाड़ा जैसे-जैसे उस पर हमला करता, उसकी कुल्हाड़ी चलाने की गति बढ़ती गई। देखते-देखते उसने गाडी भर लकडी काट डाली। देह में ऐसी गर्मी आई कि पसीना चूने लगा। उसने सिर की पगड़ी उतारकर जमीन पर रख दी।

जाड़े का कोई वश न चला, तो पगड़ी में जा बैठा। लकड़ी लाद चुकने के बाद किसान ने पगड़ी उठाई। उसे बरफ सा ठंडा पाकर वह गरम हथेलियों से मसल-मसल कर पगड़ी को गरमाने लगा। जाड़ा ज्यादा समय तक किसान के हाथों की रगड़ न झेल पाया। वह पिटा सा मुँह लेकर पिता के पास लौट आया। बूढ़ा पाला उसकी दशा देखकर हँस पड़ा। बोला 'बेटा! आरामतलब लोगों को तुम छका सकते हो। मगर मेहनती लोगों के आगे तुम्हारी तो क्या, किसी भी मुसीबत की नहीं चल पाती।'
सौजन्य से - देवपुत्र


चिड़िया से दोस्ती

ओमप्रकाश बंछोर
मैं अपने घर में चिड़ियों का आना पसंद नहीं करता था। चिड़िया आती और इधर उधर गंदा करती थी। मैं पूरा दिन झाडू लेकर उनके पीछे भागता रहता था कि कहीं वे पंखे के उपर अपना घोंसला न बना लें। चिड़िया मेरे घर में बैठी होती और मैं बाहर कहीं से भी आता तो मुझे देखकर उड़ जाती।

मैं खुश हो जाता था कि देखा मुझसे डरती है। स्कूल से आने के बाद मेरा सबसे पहला काम यही होता था कि मैं देखूँ कि चिड़िया कहीं से कचरा उठाकर घर में तो नहीं ला रही है।

स्कूल की परीक्षा के दिन जब चालू हुए थे तो पेड़ों से पत्तियाँ और बारीक लकड़ियाँ टूटकर गिर जाती थी। चिड़िया सारा कचरा उठाकर घर में ले आती और घोंसला बनाने लगती। मुझे देखती तो कचरा बाहर फेंक देती। परीक्षा जब खत्म हुई तो पापा ने मुझसे कहा कि इस बार वे मुझे घुमाने के लिए राजीव अंकल के यहाँ अल्मोड़ा ले जाने वाले हैं। मैं सुनकर बहुत खुश हुआ।

राजीव अंकल का बेटा सतीश मेरा बहुत अच्छा दोस्त था और पहले हम इकट्ठा पढ़ते थे। दो कक्षा तक साथ पढ़ने के बाद सतीश अल्मोड़ा चला गया। खैर मुझे सतीश से मिलने की खुशी हो रही थी। मैंने अल्मोड़ा के लिए निकलने से पहले घर की हर खिड़की खुद बंद की ताकि चिड़िया गंदा न करें। हम ट्रेन से अल्मोड़ा के लिए निकले। अल्मोड़ा पहुँचकर मैं सतीश से मिलकर बहुत खुश हुआ। हम दोनों ने ढेर सारी बातें की। सतीश ने मुझे कहा कि शाम को वह मुझे कुछ खास दिखाने वाला है।

शाम को हम दोनों उसके घर की छत पर थे। मैंने देखा सतीश ने छत पर एक शेड लगा रखा है। छोटे छोटे कटोरों में बहुत सी जगहों पर पानी भरा रखा है और कुछ रंग बिरंगे पंख बिखरे पड़े हैं। सतीश के हाथ में एक छोटी थैली भी थी जिसमें कुछ अनाज के दाने थे। उसने कहा यह देखो और दाने जमीन पर डालकर डब्बा बजाया। थोड़ी ही देर में छत तरह तरह के रंग बिरंगे पक्षियों से भर गई। पक्षियों और खासकर चिड़ियों से मैं बहुत चिढ़ता था।

पहली बार इतने पक्षी देखकर मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने देखा चिड़िया सतीश के हाथों से दाने खा रही है। सतीश ने कुछ दाने मेरे हाथ में भी दिए और चिड़िया ने आकर वे दाने खाए। मुझे बहुत अच्छा लगा। मैंने सतीश से पूछा कि उसने यह सब कैसे किया। सतीश बोला पहले एक चिड़िया ने घर में घोंसला बनाया और जब उसने इस तरह की व्यवस्था की तो शाम को बहुत सी चिड़िया आने लगी। दाने पानी का इंतजाम पक्षियों को खूब भाया। मैंने पूछा और गंदगी। सतीश बोला बस एक बार झाडू लगाना पड़ती है और क्या।

मेरे समझ में आ गया था कि झाड़ू लेकर दिन भर चिड़िया के पीछे दौड़ने से अच्छा था कि छत पर ऐसी व्यवस्था करके एक बार झाडू लगा दी जाए। महीने भर बाद घर आकर मैंने भी ऐसा ही किया और अब मेरे घर भी बहुत सी सुंदर चिड़िया आती है। उनके साथ वक्त गुजारना मुझे अच्छा लगता है।


मन का राजा
शेष नारायन बंछोर
एक राजा और फकीर बहुत सँकरी पगडंडी पर आमने-सामने टकरा गए। अब दोनों रास्ते को कैसे पार करें? जब एक झुककर रास्ते से हटता तो दूसरे को रास्ता मिलता। राजा अपने अहं में था- उसने फकीर से कहा- ऐ फकीर चल हट मुझे रास्ता दे, क्योंकि मैं राजा हूँ।

फकीर ने कहा- आप भूमि के राजा हैं, मैं तो मन का राजा हूँ- पहले आप मुझे रास्ते दें। इस पर राजा ने कहा कि यदि तुम राजा हो तो हथियार कहाँ है? फकीर ने कहा कि मेरे विचार मेरे हथियार हैं।

राजा ने पूछा तुम्हारी सेना कहाँ है? फकीर ने कहा मेरी किसी से दुश्मनी नहीं है, जो सेना रखूँ। फकीर के उत्तर से राजा हैरान हो गया। राजा ने फिर कहा कि यदि तुम राजा हो तो तुम्हारे पास धन कहाँ है। फकीर ने कहा कि मेरा ज्ञान ही मेरा धन है।

राजा ने कहा कि तुम्हारे नौकर-चाकर कहाँ हैं- फकीर ने कहा कि मेरी इंद्रियाँ ही मेरी नौकर-चाकर हैं। यह सब सुनकर राजा समझ गया कि यह कोई साधारण मनुष्य नहीं हैं। राजा फकीर के उत्तर सुनकर विचारवान हो गया और फकीर को रास्ता दे दिया। लौकिक सुख-सुविधाएँ क्षणिक हैं। पल भर में व्यक्ति राजा से रंक हो जाता है। रंक से राजा हो जाता है। संत फकीर अपनी मस्ती में शाश्वत मन के राजा होते हैं।


बंदर और मगरमच्‍छ


शिप्रा नदी के किनारे एक बड़ा-सा जामुन का पेड़ था। उस पेड पर एक बंदर रहता था। नीचे नदी में एक मगरमच्‍छ अपनी बीवी के साथ रहता था। धीरे-धीरे मगरमच्‍छ और बंदर में दोस्‍ती हो गई।
बंदर पेड़ से मीठे-मीठे रसीले जामुन‍ गिराता था और मगरमच्‍छ उन जामुनों को खाया करता था। एक बार कुछ जामुन मगरमच्‍छ अपनी बीवी के लिए ले गया।
मीठे और रसीले जामुन खाने के बाद मगरमच्‍छ की पत्नि ने सोचा कि जब जामुन इतने मीठे हैं तो इन जामुनों को रोज खाने वाले बंदर का कलेजा कितना मीठा होगा?
उसने मगरमच्‍छ से कहा कि तुम अपने दोस्‍त बंदर को घर लेकर आना। मैं उसका कलेजा खाना चाहती हूँ।
अगले दिन जब नदी किनारे मगरमच्‍छ और बंदर मिले तो मगरमच्‍छ ने बंदर को अपने घर चलने के लिए कहा। बंदर ने कहा कि मैं तुम्‍हारे घर कैसे चल सकता हूँ? मुझे तो तैरना नहीं आता।
तब मगर ने कहा कि मैं तुम्‍हे अपनी पीठ पर बैठा कर ले चलूँगा। मगरमच्‍छ की पीठ पर बैठकर नदी में घुमने और उसके घर जाने के लिए बंदर ने तुरंत हाँ कर दी।
बंदर झट से मगर की पीठ पर बैठ गया। मगरमच्‍छ नदी में उतरा और तैरने लगा। बंदर पहली बार नदी में सैर कर रहा था। उसे बहुत मजा आ रहा था। दोनों दोस्‍तों ने आपस में बातचीत करना शुरू कर दी।

आपस में बात करते हुए वो दोनों नदी के बीच में पहुँच गए। बातों-बातों में मगर ने बंदर को बताया कि उसकी पत्‍नी ने बंदर का कलेजा खाने के लिए उसे बुलाया है।
मगरमच्‍छ के मुँह से ऐसी बात सुनकर बंदर को झटका लग गया। उसने खुद को संभालते हुए कहा कि दोस्‍त ऐसी बात तो तुझे पहले ही बताना थी। हम बंदर अपना कलेजा पेड़ पर ही रखते हैं। अगर तुम्‍हें मेरा कलेजा खाना है तो मुझे वापस ले जाना होगा।
मैं पेड़ से अपना कलेजा लेकर फिर तुम्‍हारी पीठ पर सवार हो जाऊँगा। हम वापस तुम्‍हारे घर चलेंगे। तब भाभीजी मेरा कलेजा खा लेंगी।
मगर ने बंदर की बात मान ली और वह पलटकर वापस नदी के किनारे की ओर चल दिया। नदी के किनारे पर आने के बाद मगर की पीठ से बंदर उतरा। उसने मगर से कहा कि वो अपना कलेजा लेकर अभी वापस आ रहा है।
बंदर पेड़ पर चढ़ गया। पेड़ पर चढ़ने के बाद बंदर ने मगर से कहा कि आज से तेरी- मेरी दोस्‍ती खत्‍म। बंदर अपना कलेजा पेड़ पर रखेंगे तो जिंदा कैसे रहेंगे?
इस तरह अपनी चतुराई और मोनू ने अपनी जान बचा ली और मूर्ख सोनू मुँह लटकाकर लौट गया।

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