रविवार, 21 फ़रवरी 2010

चिट्ठी-पत्री

परीक्षा की जंग

प्यारे बच्चों,

अभी तो तुम परीक्षाओं में जमकर लगे होगे। कुछ भी सूझ नहीं रहा होगा। है न! सही बात। तुम कहोगे कि अब परीक्षा में नहीं पढ़ेंगे तो कब पढ़ेंगे भला? हाँ सही है पर मम्मी को तंग तो नहीं कर रहे हो न?

अब पूछोगे कि यह क्या बात कह दी? परीक्षाओं का मम्मी को तंग करने से क्या लेना-देना? हाँ तुम्हारी बात सही है पर कभी-कभी यह भी होता है कि मम्मी बहुत तंग हो जाती हैं। अभी चिंटूजी तो समझदार हो गए हैं लेकिन उनके छोटे भाई को कुछ भी समझ में नहीं आया है।

अब दोनों भाइयों की परीक्षाएँ हैं और छुटकूजी तो पढ़ने में ऐसे लगे कि कुछ भी खाना-पीना ही भूल गए हैं। बेचारी मम्मी कह-कहकर परेशान हो गई कि छुटकू समय पर खाना और नाश्ता कर लिया करो, पर वो हैं कि सुनते ही नहीं।

फिर ऐनवक्त पर तबियत खराब हो गई तो नुकसान किसका होगा भला? अपना ही न! और मम्मी-पापा को भी तकलीफ होगी। तो समझ लो परीक्षाओं की तैयारी करना है तो अच्छी तरह से खाना-पीना खाकर, ताकत हासिल करके करना होगी, वरना परीक्षा की जंग कैसे जीत पाओगे। आई बात समझ में।
तुम्हारा भैय्या
शेष नारायण

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