गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

काव्य-संसार

इस बार होली पर
रंगों से दिल सजा ही लूँ इस बार होली पर
रूठों को अब मना ही लूँ इस बार होली पर।

इक स्नेह रंग घोलूँ आँसू की धार में
पानी ज़रा बचा लूँ इस बार होली पर।

अपनों की बेवफाई से मन है हुआ उदास
इक मस्त फाग गा लूँ इस बार होली पर।

रिश्तों में आजकल तो है आ गई खटास
मीठा तो कुछ बना ही लूँ इस बार होली पर

उम्मीद की कमी से फीकी हुई जो आँखें
उनमें उजास ला दूँ इस बार होली पर।

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