सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

कहानी

चुन्‍नी का एक रुपया


NDNDदीपावली का दिन था। सभी लोग प्रसन्न थे। चुन्नी के छोटे से मोहल्ले में रहने वाले सभी लोग बाजार से कुछ न कुछ खरीददारी करके लौट रहे थे। चुन्नी उदास थी क्योंकि उसके पास खरीददारी करने के लिए पैसा नहीं था। पिछले दिनों से चुन्नी के घर की हालत जो ठीक नहीं थी। पड़ोस में रहने वाला कोई भी बाजार से कुछ खरीदकर लाता तो चुन्नी उससे पूछती कि बाजार में क्या-क्या मिल रहा है। किसी ने उसे बताया कि आज तो बाजार में रौनक है। सबकुछ मिल रहा है। लोग आवाजें लगा-लगाकर बुला रहे हैं और बहुत सस्ते में सामान मिल रहा है।

एक रुपया भी हो तो बहुत सी चीजें खरीदी जा सकती है। चुन्नी ने सोचा कि काश उसके पास भी एक रुपया होता। यह सोचकर वह उदास सी बैठ गई। मन ही मन वह बाजार के बारे में सोचती जा रही थी और पर उसके चेहरे पर खुशी के बजाय उदासी थी क्योंकि घर की हालत उसे मालूम थी।

जब चुन्नी इस तरह से बैठी थी तभी उसके घर के सामने से एक अम्मा निकली। अम्मा का नाम था लक्ष्मी। नाम भी लक्ष्मी और दिखने में भी बिलकुल लक्ष्मीजी। सुंदर चेहरा और माथे पर गोल बिंदी। उन्होंने चुन्नी को देखा तो पूछा- अरे बेटी, आज तो दिवाली का दिन है। सभी लोग कितने खुश हैं और तुम उदास क्यों बैठी हो। चुन्नी ने कहा- कि मेरे पास पैसे नहीं है ना। आज बाजार में कितनी अच्छी-अच्छी चीजें मिल रही है पर मैं कुछ भी नहीं खरीद सकती हूँ।

लक्ष्मी अम्मा ने कहा- बस इतनी सी बात। कितने पैसे चाहिए तुम्हें? बस मुझे एक रुपिया चाहिए। चुन्नी ने कहा। बस एक रुपिया? हाँ, मैंने अभी सुना है कि एक रुपिए में तो बाजार से सबकुछ खरीदा जा सकता है। लक्ष्मी अम्मा ने अपने पल्लू से एक रु. का सिक्का छुड़ाया और चुन्नी के हाथ में रख दिया। जाते-जाते उन्होंने कहा कि लो इस एक रुपिए में तुम्हें बाजार में सारी चीजें मिल जाएँगी। अब चुन्नी खुश हो गई। उसके पास रुपिया था। और वह बाजार चली।

बाजार में सबसे पहले वह फूल वाले के पास गई। उसने पूछा फूल कैसे दिए हैं? फूल वाले ने कहा कि दो रुपये में टोकनी भर। चुन्नी ने कहा पर मेरे पास तो एक ही रुपिया है। मैंने तो सुना है कि आज बाजार में एक ही रुपिए में सबकुछ मिल रहा है। चुन्नी की बात सुनकर फूल वाले ने कहा तुम तो खुद ही फूल जैसी हो, तो तुम बिना कुछ दिए ही फूल ले सकती हो। चुन्नी ने फटाफट फूल चुन लिए और आगे बढ़ी।

रुपिया अब भी उसके पास था और उसे विश्वास था कि अभी भी बहुत सी चीजें खरीदी जा सकती है। फिर चुन्नी ने रांगोली वाले से रंगों के बारे में पूछा। रांगोली वाले ने कहा कि चार रंगों की पुड़िया दो रुपए की है। चुन्नी ने कहा कि उसके पास तो एक ही रुपिया है, रांगोली वाले कहा कि आज मेरी बिक्री अच्छी हुई है तो तुम कुछ रंग मेरी तरफ से रखो। भई चुन्नी तो खुश ही खुश। एक रुपिए में ही उसने दो चीजें खरीद ली और रुपिया अभी भी उसके हाथ में था।

इसके बाद वह दीपक बेचने वाली कुम्हारिन माई के पास पहुँची। कुम्हारिन माई अपनी दुकान समेट ही रही थी। चुन्नी ने कहा कि उसे चार दीपक चाहिए। कुम्हारिन के कहा कि उसका तो सब सामान बिक गया है। पर तभी कुम्हारिन ने अपने पड़ोस में बैठे शंकरया से पूछा- क्यों रे शंकरया तेरे पास चार दीए हैं क्या? शंकरया ने कहा ये लो माई। माई ने कहा कितने पैसे? शंकरया ने कहा माई तुझसे क्या पैसे लूँ।

माई ने चुन्नी को दीए दे दिए। चुन्नी ने पूछा-कितने पैसे दूँ? माई ने कहा दीए शंकरया के दीए हैं और जब उसे पैसे नहीं चाहिए तो मैं क्यों लूँ? तुम खुश रहो। चुन्नी को जो कुछ चाहि‍ए था सब मि‍ल गया। वह बाजार से लौट आई सचमुच एक रुपए में उसे सारी चीजें मि‍ल गई थी। और उसके हाथ में रुपया अभी भी जगमगा रहा था। चुन्‍नी ने शाम को घर के बाहर रंगोली बनाई। घर के द्वार पर फूलों का वंदनवार लगाया और दि‍ए जलाए। चुन्‍नी ने आँखें बंद कर लक्ष्‍मी जी को याद कि‍या तो उसे लक्ष्‍मी अम्‍मा का चेहरा ध्‍यान आया।

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