बुधवार, 3 फ़रवरी 2010

काव्य-संसार

औरत की लड़ाई
NDऔरत की लड़ाई
किसी एक से नहीं
पूरी दुनिया से होती है बेटा
कहा करती थी माँ
जब मैं था छोटा बच्चा,
तब इस बात का अर्थ
मैं समझ नहीं पाता था
और यह सोचकर चुप रह जाता था
कि माँ की तो आदत ही है
बात-बेबात बोलते रहने की

अब माँ नहीं है
और मैं हो गया हूँ बहुत बड़ा
अब कहीं जाकर समझ पाया हूँ
कि वास्तव में ही
औरत की लड़ाई
किसी एक से नहीं
पूरी दुनिया से होती है।
और लड़ने वालों का कमाल देखिए
कि वे सब एकजुट होकर
लड़ते हैं उसके खिलाफ
जैसे एकमात्र वही शत्रु हो
पूरी दुनिया में उनकी,
जबकि औरत इस लड़ाई में
बिखरी होती है अपने आप में

कभी उसकी आँख
लड़ रही होती है किसी एक से
तो कभी उसके हाथ
लड़ रहे होते हैं किसी दूसरे से
साथ ही उसका पेट लड़ रहा होता है
किसी तीसरे से
उसकी पीठ लड़ रही होती है
किसी चौथे से।
NDउसके खिलाफ लड़ने वालों में
पुरुष ही नहीं होते
होती हैं औरतें भी
पति के साथ-साथ लड़ता है
उसके खिलाफ
उसका पिता और भाई भी
उसका पिता और भाई
उसका बेटा ही नहीं
उसके खिलाफ लड़ती है
उसकी बेटियाँ भी।

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