बुधवार, 31 मार्च 2010

चिट्ठी-पत्री

खुशी बाहर नहीं, हमारे मन में होती है
जो खुशी हम बाहरी साधनों में ढूँढ़ते हैं वह हम में ही छुपी होती है। हम हमारी खुशी या दुख का कारण दूसरों को बताते हैं, लेकिन वास्तविक कारण हमारा दिमाग होता है, जो तमाम कार्यों को संचालित करता है।
यह बात ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन ने जाल सभागृह में कही। यहाँ नेशनल मैनेजमेंट डे के मौके पर इंदौर मैनेजमेंट एसोसिएशन (आईएमए) द्वारा कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इसमें ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन ने "कॉपिंग द चैलेंजेस ऑफ अनसर्टेनिटी" विषय पर अपने विचार रखे। उन्होंने कहा कि हमें दिमाग को नियंत्रित करना आना चाहिए, जो मेडिटेशन से ही संभव है। व्यक्तिगत जिम्मेदारियों के कारण हम जीवनभर मेडिटेशन को समय नहीं देते और जब बुढ़ापे में करते हैं तो महसूस होता है कि यही काम पहले किया होता तो जीवन की यात्रा और भी सुखद होती। मेडिटेशन हमें हमारे दिमाग को नियंत्रित कर सुखद और खुशहाल जीवन जीने का तरीका सिखाता है।
माँग, अपेक्षा और नाराजी के कारण हम खुद हमारे दुखों का कारण बन जाते हैं और दुखी होने लगते हैं। लेकिन हमें सोचना चाहिए कि जैसे मैं सही हूँ वैसे ही सामने वाला भी सही हो सकता है और हमें उससे माफी की अपेक्षा नहीं होना चाहिए। अगर हम दूसरों को बदलने की भावना के साथ थोड़ा खुद को भी बदलें तो अपने आप दुख और चिंता कम हो जाएगी।
सवालों के जरिए बेहतर जीवन का पाठ
ब्रह्माकुमारी शिवानी बहन ने कार्यक्रम के दौरान श्रोताओं से कई तरह के सवाल पूछे और खुश रहने के तरीके बताए। व्यवसाय और रिश्तों में अंतर बताते हुए उन्होंने बताया कि आप खुद से पूछें कि मेरे मन या दिमाग पर किसका नियंत्रण है? मेरा मूड दूसरों के कारण खराब क्यों हो जाता है? मेरा मन मेरा नहीं है तो किसका है? इसी तरह के कई सवालों से उन्होंने बताया कि खुश होना हमारे सकारात्मक विचारों पर निर्भर करता है। हम किसी और से खुद की तुलना कर दुखी होते हैं, लिहाजा खुश होना हमारे हाथों में होता है।

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