सोमवार, 29 मार्च 2010

माधव राष्ट्रीय उद्यान की सैर

पहाड़ियों के बीच झील के किनारे-किनारेदोस्तो, हममें से ज्यादातर लोग उन जंगलों में जाते हैं जो प्रसिद्ध होते हैं और जहाँ सैलानियों का ताँता लगा रहता है। लेकिन उन जगहों पर भी देखने को बहुत कुछ होता है जहाँ पर्यटकों की भीड़ अपेक्षाकृत कम होती है। वहाँ आप प्रकृति के साथ ज्यादा नजदीक और शांति से वार्तालाप कर सकते हैं। कुछ ऐसे ही जंगलों में शुमार है शिवपुरी का माधव राष्ट्रीय उद्यान। यह जंगल अपनी झील साख्या सागर की वजह से बहुत खूबसूरत लगता है। झील के किनारे धूप सेंकते और रेंगते मगरमच्छ आपको रोमांचित भी करते हैं। मैं जब ग्वालियर में रहता था, उन दिनों मैंने शिवपुरी जाने की योजना बनाई थी।
शिवपुरी पहुँचना बहुत आसान है क्योंकि यह आगरा-बॉम्बे राष्ट्रीय राजमार्ग-3 पर स्थित है और ग्वालियर से सिर्फ 100 किमी दूर है। यह जगह ग्वालियर के सिंधिया राजघराने की ग्रीष्मकालीन राजधानी थी। मैं बहुत आसानी से सड़क मार्ग द्वारा शिवपुरी पहुँच गया और इस खूबसूरत जंगल में प्रवेश किया। दृश्य अद्‍भुत था। इस खूबसूरत जंगल में छोटी-छोटी पहाड़ियाँ हैं और उनके आसपास घास के मैदान (ग्रासलैंड)। इन सबके बीच में यहाँ खूबसूरत झील साख्या सागर है। 354 वर्ग किमी में फैले इस राष्ट्रीय उद्यान में कई प्रकार के पेड़, पशु और पक्षी पाए जाते हैं। जंगल खैर, धावड़ा, तेंदु और पलाश के पेड़ों से आच्छादित है।
मैंने जंगल को एक चौपहिया वाहन से घूमा। कई जगह पैदल भी चला। सबसे अधिक मजा तो झील के किनारे-किनारे चलने में आया क्योंकि वहाँ मुझे धरती के सबसे पुराने सरीसृपों में शामिल मगरमच्छों से रूबरू होने का मौका मिला। मैं हिम्मत जुटाकर उनके काफी नजदीक तक गया, हालाँकि ऐसा करना खतरनाक है।
मगरमच्छ वहाँ बिना हिले-डुले धूप सेंक रहे थे। साख्या सागर के आसपास मगरमच्छों के अलावा अजगर और मोनीटर लिजार्ड भी विहार करते हुए आसानी से मिल जाते हैं। इनको देखने के लिए झील का किनारा छोड़कर जंगल के थोड़ा-सा अंदर जाना पड़ता है। जंगल के बीचों-बीच कुछ खंडहर थे और मंदिरों के अवशेष भी थे जो बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे। आगे जाने पर मुझे कई हिरण इधर-उधर भागते हुए मिले। हिरणों की यहाँ काफी अच्छी संख्‍या है।
यहाँ चिंकारा, चीतल, नीलगाय, सांभर, चौसिंगा, काला हिरण रहते हैं। इनका शिकार करने वाले तेंदुओं की संख्‍या भी यहाँ अच्‍छी है। यहाँ भालुओं और लंगूरों का भी बसेरा है। लंगूरों की हू-हू से पूरा जंगल गुंजायमान हो रहा था। एक समय यहाँ बाघों की भी अच्छी संख्‍या थी लेकिन अब ये यहाँ नहीं हैं। हालाँ‍कि जब मैं जंगल में गया था तब वहाँ एक बाघ को बड़े से 'एनक्लोजर' में रखा गया था लेकिन बाघ को देखने का असली मजा जो खुले जंगल में है, वह बंद बाड़े में नहीं।
उद्यान के बीच से बहने वाली साख्‍या सागर झील की वजह से यहाँ कई प्रजातियों के पक्षी देखने को मिलते हैं। इनमें माइग्रेटरी गीज, पोचार्ड, पिनटेल, टील, मलार्ड आदि प्रमुख हैं। इसके अलावा यहाँ रेड-वाटल्ड लेपविंग, लार्ज पाइड वैगटेल, इंडियन पॉन्ड हिरोन, वाइड ब्रेस्टेड किंगफिशर, कॉरमोरेंट, पेंटेड स्टोर्क, वाइट इबिस, फॉल्कन, परपल सनबर्ड, एशियन पैराडाइज फ्लाईकैचर भी मिलते हैं।
साख्‍या के किनारों पर उद्यान का बोट क्लब भी चलता है जिसका नाम 'सेलिंग क्लब' है।
राष्ट्रीय उद्यान के ही अंदर बना 'जार्ज कैसल' भी देखने लायक जगह है। ये महल 1911 में सिंधिया शासकों द्वारा बनवाया गया था। यह उद्यान के सबसे ऊँचे स्थान पर स्थित है। इस महल के बारे में कहा जाता है कि सिंधिया द्वारा इसे सिर्फ इसलिए बनवाया गया था क्योंकि ब्रिटेन के तत्कालीन राजा जॉर्ज पंचम वहाँ शिकार के लिए एक रात ठहरने वाले थे। हालाँकि वे यहाँ किसी कारणवश रुक नहीं पाए थे। मैंने इस महल की छत पर चढ़कर राष्ट्रीय उद्यान के उस खूबसूरत 'लैंडस्केप' को निहारा। ढलती शाम का वह खूबसूरत नजारा आज भी मेरी आँखों के सामने रहता है।

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