सोमवार, 29 मार्च 2010

विविध

लामा-एक अनोखा ऊँट
यूँ तो ऊँट रेगिस्तान का जहाज कहलाता है क्योंकि यह दूर-दूर तक बिछी रेत पर आसानी से चल व दौड़ सकता है, संसार में इसकी कुछ अनोखी प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं। दक्षिणी अमेरिका के एण्डीज वन प्रांतों में पाया जाने वाला जीव 'लामा' की पूँछ भी बहुत छोटी होती है तथा शरीर बालों से ढँका रहता है। लामा के लिए टेढ़े-मेढ़े चट्‍टानी या पहाड़ी इलाके बाधक नहीं होते, हर स्थिति में ये बखूबी चल सकते हैं।
'लामा' सफेद और काले दोनों रंग का होता है। पहाड़ों और जंगलों में इनके झुंड के झुंड घूमा करते हैं। झुंड के कुछ 'लामा' रखवाली भी करते हैं, जो चीख कर खतरे या संकट की सूचना अपने साथियों को तुरंत देते हैं।
पालतू लामा पशुओं में नर भार ढोने के काम आते हैं व मादा से दूध प्राप्त किया जाता है। लामा पशुओं की तीन प्रमुख श्रेणियाँ हैं - ग्वानको, विक्यूना तथा अल्पका। ग्वानको दक्षिणी अफ्रीका के दक्षिणी मैदानों में मिलता है। अल्पका, लामा की एक पालतू जाति है इसका शरीर मुलायम रोओं से ढँका रहता है, जिससे रेशम तैयार किया जाता है। ग्वानको और अल्पका के अतिरिक्त लामाओं की जाति है - विक्यूना, जो एण्डीज पर्वत पर काफी ऊँचाई पर पाया जाता है। ये वहाँ के मूल निवासियों के लिए बड़े महत्वपूर्ण रहे हैं, और वे इसे राजसी 'लामा' मानते हैं।
मरने के बाद भी लामा उपयोग में आते हैं। इसकी खाल से जूते बनते हैं। बाल मजबूत रस्सी बनाने के काम आते हैं। इसकी चर्बी से मोमबत्तियाँ बनाई जाती हैं। सन 1953 में फ्रांसिस्को पिजारो के सेनापतित्व में स्पेन के सैनिक ने जब दक्षिणी अमेरिका के पेरू प्रदेश पर कब्जा किया तो ठिगने कद काठी के बिना कूबड़ वाले ऊँटों को देखकर वे आश्चर्य में पड़ गए थे और तभी से 'लामा' संपूर्ण दुनिया में ‍चर्चित हो गए।
सौजन्य से - देवपुत्र
डबलरोटी पर फफूँद क्यों जमी?
वनस्पति जगत के अंतर्गत एक विशाल वर्ग वाली ऐसी किस्म भी है जो क्लोरोफिल के अभाव में चूँकि अपने लिए भोजन बनाने में असमर्थ होती है अत: यह या तो परजीवी के रूप में दूसरे जीवधारियों पर आश्रित रहती है या फिर मृतजीवी के रूप में अन्य पदार्थों पर। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसका वृहद परिवार दस बीस नहीं बल्कि 80 हजार से भरा पड़ा मिलेगा। इसमें बहुत से ऐसे हैं जो आपके द्वारा तैयार अचार, मुरब्बे जैसे जैली, पनीर और डबलरोटी जैसे खाद्य पदार्थों के सहारे विकसित होते रहते हैं।
हुत बारीक-बारीक कणों से जिन्हें स्पोर्स कहते हैं। मिलकर बनने वाला यह समूह जैसे ही अपने उपयुक्त नमी वाले खाद्य पदार्थ पर आकर जमता है तो वहाँ बड़ी तेजी के साथ यह हरे या भूरे रंग की अपनी पूरी एक बस्ती बसा लेते हैं। फिर भोजन के उसी आधार पर अपनी पूर्ण विकसित अवस्था प्राप्त करने के पश्चात इनसे निकलने वाले बारीक कण हवा के साथ उड़कर दूसरी नई बस्तियाँ बसाने के लिए निकल पड़ते हैं।
अब तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि डबलरोटी पर जमने वाली फफूँद वास्तव में उन परिस्थितियों का परिणाम है जिनके कारण हवा में तैरते इनके कण डबलरोटी के ऊपर जमकर अपने विकास की प्रक्रिया पूरी कर लेते हैं।
सौजन्य से - देवपुत्र

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें