शुक्रवार, 5 मार्च 2010

कहानी

भैयादूज

एक थी बहन। उसके सात भाई थे। सबसे छोटा भाई बहन से बहुत स्नेह करता था। भैयादूज के दिन जब तक बहन से टीका न लगा ले, खाता नहीं था। एक दिन उसकी पत्नी बोली कि यदि तुम्हारी बहन की शादी कहीं दूर हो गई तो तुम क्या करोगे? वह बोला कि मैं बहन की शादी दूर करूँगा ही नहीं।
उसने माता-पिता से कहकर बहन की शादी निकट के गाँव में करा दी। भाग्य की बात, बहनोई बड़े खराब स्वभाव का निकला। वह अपनी ससुराल वालों को देखना भी न चाहे। उसने अपनी दुल्हन से साफ-साफ कह दिया कि मेरे घर में तुम्हारे मायके वाले नहीं आ सकते। मुझे अपना घर बिगाड़ना नहीं है।
अब बेचारी ने रो-धोकर संतोष किया और मायके यह संदेश भेज दिया कि कोई यहाँ न आए। अब आया भाईदूज का त्योहार। भाई का जी नहीं माना। वह नहा-धोकर टीका कराने बहन की ससुराल पहुँचा। उसके बहनोई ने देखते ही उसे पकड़कर सात तालों के भीतर बंद कर दिया और स्वयं काम पर चला गया।
बहन का छोटा भाई वेश बदलना जानता था। वह कुत्ते का छोटा पिल्ला बनकर नाली के रास्ते-रास्ते उसके पास पहुँच गया। बहन रो-रोकर हल्दी पीस रही थी और सोच रही थी कि हल्दी तो पीस रही हूँ पर भइया को टीका कैसे कर पाऊँगी। इतने में कुत्ते का पिल्ला कूँ-कूँ करता हुआ उसके पास पहुँच गया। बहन दुःखी तो थी ही, उसे क्रोध आ गया। उसने हल्दी सने हाथ से पिल्ले के सिर में मार दिया। पिल्ले ने मार खाते ही सोने का सिक्का अपने मुँह से उगल दिया और नाली के रास्ते फिर वापस चला गया। सोने का सिक्का देखकर बहन सोच में पड़ गई।
बहनोई लौटकर आया तो ताला खोलकर भीतर गया। वहाँ क्या देखता है कि भाई के माथे पर पाँच टीका लगा हुआ है।
उसे निकालकर बाहर लाया और दालान में बैठाकर भीतर अपनी पत्नी के पास पहुँचकर उससे पूछने लगा, 'तुमने अपने भाई को पाँच टीका कैसे लगाया?'
वह बोली, 'मैंने तो अपने भाई की सूरत ही नहीं देखी। एक टीका की कौन कहे, पाँच कैसे लगाती?
हाँ, एक आश्चर्य की बात अवश्य हुई है कि नाली के रास्ते एक कुत्ते का पिल्ला आया था। मैं हल्दी पीस रही थी। गुस्से में आकर मैंने हल्दी के हाथ से उसे मार दिया, तो वह सोने का सिक्का उगलकर फिर नाली के रास्ते वापस लौट गया।'
सोने का सिक्का देखकर और सारी बात देख-सुनकर बहनोई को अपनी भूल का भान हुआ। उसने माफी माँगते हुए कहा, 'मुझे बहुत दुःख है। मैं भाई-बहन के सच्चे प्रेम के बीच रुकावट बना। सच्चा प्यार कभी नहीं टूटता।' वह अपने साले को भीतर ले गया। जैसे उस भाई-बहन के दिन फिरे, वैसे सबके फिरें।
जादूगर चाचा...

पंडित जवाहरलाल नेहरू मजेदार बातों के एक ऐसे जादूगर भी थे, जो एक मिनट के भीतर क्या से क्या कर सकते थे? नेहरूजी को भाषा पर अधिकार था। वे बहुत अच्छा बोलते थे।
जीवन भर तुनकते-तपते नेहरूजी, संसार में अपनी, भारत की और अहिंसा की नीति का आदर पाकर अपनी सारी गर्मी, उत्तेजना और झुँझलाहट को अपने भीतर से निकाल चुके थे।
एक बार कांग्रेस महासमिति के अधिवेशन के समय बड़ी भीड़ हुई। भीड़ इतनी बढ़ी कि महिलाओं के बैठने के स्थान के पीछे पुरुषों की भारी भीड़ जमा होकर उमड़ पड़ी।
नेहरूजी से देखा न गया। वे माइक पर आए, भीड़ की ओर देखा और बोले, आप पुरुष होकर महिलाओं में आ रहे हैं? जिनको आना हो वे सानंद आ सकते हैं, हमारी मुबारकबाद।
उफनते हुए दूध पर जैसे पानी के ठंडे छींटे पड़ गए, भीड़ पीछे खिसक गई! नेहरूजी को इतिहास के पन्नों में 'मजेदार बातों का जादूगर' भी कहा जाता है।

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