अंटार्कटिका पर सात बहादुर महिलाएँ
रूसी सॉफ्टवेयर फर्म कैस्परस्काई के प्रायोजकत्व में सात महिलाओं का एक दल अंटार्कटिका पर स्कीइंग करने गया। कॉमनवेल्थ देशों के सदस्यों वाले इस दल में एक भारतीय महिला रीना कौशल धर्मशक्तु भी थीं। रीना ऐसी पहली भारतीय महिला है, जिन्होंने अंटार्कटिका जाकर स्कीइंग की। वे बताती हैं कि स्कीइंग बहुत सारे मामलों में पर्वतारोहण से मिलती-जुलती है तो कई सारे मामलों में अलग भी। इससे पहले वे हिमालय पर कई बार पर्वतारोहण कर चुकी थीं लेकिन वे बताती हैं कि अंटार्कटिका का मामला अलग है।
अंटार्कटिका में हवा आपकी सबसे बड़ी दुश्मन हैं- यह कहना है रीना कौशल धर्मशक्तु का। वहाँ के अपने आनंदमय अनुभव ग्रहण कर वे अपने घर दिल्ली पहुँची। रीना इससे पहले हिमालय पर कई अभियानों में हिस्सा ले चुकी हैं और साउथ पोल पर यह उनका पहला अनुभव है। वे दोनों के बीच का अंतर बताते हुए कहतीं हैं 'हिमालय और अंटार्कटिका के मौसम और दशा में बहुत अंतर है। हिमालय पर जब सूर्य निकलता है, तब सर्दी उतनी नहीं लगती है। वहाँ बहुत तेज हवाओं के दौर में भी सूर्य हमें गर्मी देता है। लेकिन अंटार्कटिका में यह सुविधा नहीं है। यहाँ सूर्य के निकलने या नहीं निकलने से कुछ फर्क नहीं पड़ता है। यहाँ तो इस बात से अंतर पड़ता है कि हवा चल रही है या नहीं। हवा ही आपके लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
वे मुस्कुराते हुए बताती हैं कि स्कीइंग के दौरान शरीर को किस तरह से गर्म रखा जाता है : 'स्कीइंग के दौरान हमारे चेहरे पूरी तरह से ढँके हुए रहते थे, हमारे स्नो गॉगल्स के नीचे हम गॉरिल्ला मास्क पहनते थे, जो हमारी नाक, मुँह और गालों को ढँक कर रखे। साँसें तक जम जाती थीं क्योंकि मास्क पर बर्फ जमी रहती थी। जब हम अपने नाश्ते के लिए रुकते थे, तब पहले हमें उस बर्फ को तोड़ना होता था फिर हम नाश्ता करने के लिए मास्क हटा पाते थे।
'द कैस्परस्काई लैब कॉमनवेल्थ अंटार्कटिका एक्सपीडिशन' ने ब्रिटिश पोलर एक्सपर्ट फेलिसिटी एस्टोन के नेतृत्व में आठ महिलाओं के सपनों को पूरा किया। यह मूलतः एस्टोन का अपना प्रोजेक्ट था। महिला सशक्तिकरण, मौसम परिवर्तन और पर्यावरण विनाश के खिलाफ संदेश के साथ ही 1 जनवरी को कॉमनवेल्थ की 60वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में यह आयोजन किया गया। 2008 में एस्टोन अपने भारतीय आवेदकों के इंटरव्यू के सिलसिले में दिल्ली में मीडिया से मिलीं। उन्होंने 130 आवेदकों को छाँटा, उनमें से शार्टलिस्टिंग कर 10 का इंटरव्यू लिया।
दूसरी बार सभी फिर सितंबर 2009 में न्यूजीलैंड में ट्रेनिंग के लिए इकट्ठा हुईं। अभियान से पहले घाना की सदस्य को मलेरिया हो गया। हालाँकि वह तेजी से ठीक हो रहीं थी, फिर भी बीमारी के दौरान उनकी तैयारी का समय निकल गया और यह तय किया गया कि उन्हें अभियान में नहीं ले जाया जाए। उनकी जगह ब्रिटेन की एक महिला ने ली, जो पहले भी साउथ पोल पर एडवेंचर अभियान कर चुकी थीं और वहाँ के उनके अनुभव बहुत काम के थे। जमैका की सदस्य को भी छोड़ा गया, क्योंकि अंटार्कटिका में ही अनुकूलन ट्रेनिंग के दौरान उनकी उँगली फ्रॉस्टबाईट की शिकार हुई थी।
इसके बावजूद कि वहाँ गर्मी का मौसम था और यहाँ हर समय दिन की रोशनी हुआ करती थीं लेकिन यहाँ महाद्वीप के किनारे से 900 किलोमीटर तक की स्कीइंग के दौरान तापमान माइनस 30 डिग्री सेल्सियस और 80 नॉट की गति से हवा चलती थी। टीम अपने साथ स्लैज पर रखकर 55 किलो सामान जिसमें टैंट, स्टोव, राशन, मेडिकल किट, नेविगेशन और संचार के उपकरण खींचकर ले गईं।
रीना बताती हैं, 'दक्षिण अमेरिका के सामने 82 डिग्री अक्षांश पर अंटार्कटिका की बर्फ की चट्टान मैसनर स्टार्ट से अभियान प्रारंभ हुआ। 38 दिनों तक हर दिन हमने 10 या उससे भी ज्यादा घंटे स्कीइंग की। इस बर्फीले बीहड़ में बर्फ की चादर, पहाड़ और आसमान के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। मात्र हम लोग ही जीवित प्राणी थे, यहाँ तक कि वहाँ मकड़ी तक नहीं थी। इतना होने के बाद भी हम सारे लोग ऊर्जा से भरे हुए रहते थे। यदि हम अपना लक्ष्य पा सकते हैं, तो कोई भी ऐसा कर सकता है। अभियान का जोर इसी संदेश पर था।'अपनी यादों को खंगालते हुए वे अपने बचपन के बारे में बात करती हैं। वे बताती हैं कि जब वे बच्ची थीं, तब वे सेना में काम कर रहे अपने पिता के साथ दार्जिलिंग में रहती थीं और रोज कंजनजंगा को देखते हुए सोचती थीं कि पास से देखने पर यह कैसा लगता होगा? वे नेपाली और पंजाबी दोनों में धाराप्रवाह बोलती हैं। जहाँ एक समय तेनजिंग की बेटी पढ़ी थी, उसी लॉरैटो कॉन्वेंट स्कूल के अपने दिनों को भी वे याद करती हैं। वे बताती हैं कि उनके पिता उन्हें उनके भाई-बहन के साथ अक्सर दार्जिलिंग के आसपास पर्वतारोहण के लिए ले जाते थे और तभी से उनकी रुचि इस दिशा में जागृत हुई।
वे बताती हैं कि वे अपने पति उत्तराखंड के पर्वतारोही लवराजसिंह धर्मशक्तु की भी कर्जदार हैं। लवराज ने तीन बार एवरेस्ट और कंजनजंगा की डरावनी यात्रा भी की। वे कभी भी मनसियारी में अपनी जड़ों को नहीं भूले, जहाँ वे अक्सर स्कूल से भागकर अकेले ही हिमालय फुटहिल्स पर जाते थे। उन्होंने घर की देखरेख की और रीना को अपने सपने को पूरा करने के लिए जाने दिया।
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