सोमवार, 15 मार्च 2010

भगवती दुर्गा

मनोवांछित फल देती है भगवती दुर्गा
भारत के कर्म भूमि के सपूतों के लिए ‘माँ दुर्गा' की पूजा व आराधना ठीक उसी प्रकार कल्याणकारी है जिस प्रकार घने तिमिर अर्थात्‌ अंधेरे में घिरे हुए संसार के लिए भगवान सूर्य की एक किरण। जिस व्यक्ति को बार-बार कर्म करने पर भी सफलता न मिलती हो, उचित आचार-विचार के बाद भी रोग पीछा न छोड़ते हो, अविद्या, दरिद्रता, (धनहीनता) प्रयासों के बाद भी आक्रांत करती हो या किसी नशीले पदार्थ भाँग, अफीम, धतूरे का विष व सर्प, बिच्छू आदि का विष जीवन को तबाह कर रहा हो।

मारण-मोहन अभिचार के प्रयोग अर्थात्‌ (मंत्र-यंत्र), कुलदेवी-देवता, डाकिनी-शाकिनी, ग्रह, भूत-प्रेत बाधा, राक्षस-ब्रह्मराक्षस आदि से जीना दुर्भर हो गया हो। चोर, लुटेरे, अग्नि, जल, शत्रु भय उत्पन्न कर रहे हों या स्त्री, पुत्र, बांधव, राजा आदि अनीतिपूर्ण तरीकों से उसे देश या राज्य से बाहर कर दिए हो, सारा धन राज्यादि हड़प लिए हो। उसे दृढ़ निश्चिय होकर श्रद्धा व विश्वासपूर्वक माँ भगवती की शरण में जाकर स्वयं व वैदिक मंत्रों में निपुण विद्वान ब्राह्मण की सहायता से माँ भगवती देवी की आराधना तन, मन, धन से करना चाहिए।

माँ से प्रार्थना करते हुए- हे विश्वेश्वरी! हे परमेश्वरी! हे जगदेश्वरी,! हे नारायणी! हे शिवे! हे दुर्गा! मेरी रक्षा करो, मेरा कल्याण करो। मैं अनाथ हूँ, आपकी शरण में हूँ आदि। इस प्रकार भक्तिपूर्वक समर्पित होने पर जहाँ नाना प्रकार के कष्ट मिट जाते हैं वहीं जीवन में अनेक प्रकार से रक्षा प्राप्त होती है। अर्थात्‌ माँ दुर्गा की आराधना से व्यक्ति एक सद्गृहस्थ जीवन के अनेक शुभ लक्षणों धन, ऐश्वर्य, पत्नी, पुत्र, पौत्र व स्वास्थ्य से युक्त हो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है। इतना ही नहीं बीमारी, महामारी, बाढ़, सूखा, प्राकृतिक उपद्रव व शत्रु से घिरे हुए किसी राज्य, देश व सम्पूर्ण विश्व के लिए भी माँ भगवती की आराधना परम कल्याणकारी है।
नवरात्रि में माँ भगवती की आराधना अनेक विद्वानों एवं साधकों ने बताई है। किन्तु सबसे प्रामाणिक व श्रेष्ठ आधार 'दुर्गा सप्तशती' है। जिसमें सात सौ श्लोकों के द्वारा भगवती दुर्गा की अर्चना व वंदना की गई है। नवरात्रि में श्रद्धा एवं विश्वास के साथ दुर्गा सप्तशती के श्लोकों द्वारा माँ-दुर्गा देवी की पूजा नियमित शुद्वता व पवित्रता से की या कराई जाय तो निश्चित रूप से माँ प्रसन्न हो इष्ट फल प्रदान करती हैं।

इस पूजा में पवित्रता, नियम व संयम तथा ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व है। कलश स्थापना राहु काल, यमघण्ट काल में नहीं करना चाहिए। इस पूजा के समय घर व देवालय को तोरण व विविध प्रकार के मांगलिक पत्र, पुष्पों से सजा सुन्दर सर्वतोभद्र मण्डल, स्वस्तिक, नवग्रहादि, ओंकार आदि की स्थापना विधिवत शास्त्रोक्त विधि से करने या कराने तथा स्थापित समस्त देवी-देवताओं का आवाह्‌न उनके 'नाम मंत्रों' द्वारा उच्चारण कर षोडषोपचार पूजा करनी चाहिए जो विशेष फलदायी है।

ज्योति जो साक्षात्‌ शक्ति का प्रतिरूप है उसे अखण्ड ज्योति के रूप में शुद्ध देसी घी या गाय का घी हो तो सर्वोत्तम है से प्रज्ज्वलित करना चाहिए। इस अखण्ड ज्योति को सर्वतोभद्र मण्डल के अग्निकोण में स्थापित करना चाहिए। ज्योति से ही आर्थिक समृद्धि के द्वार खुलते हैं। अखण्ड ज्योति का विशेष महत्व है जो जीवन के हर रास्ते को सुखद व प्रकाशमय बना देती है।

नवरात्रि में व्रत का विधान भी है जिसमें पहले, अंतिम और पूरे नौ दिनों तक का व्रत रखा जा सकता है। इस पर्व में सभी स्वस्थ्य व्यक्तियों को समर्थ व श्रद्धा अनुसार व्रत रखना चाहिए। व्रत में शुद्ध शाकाहारी व शुद्ध व्यंजनों का ही प्रयोग करना चाहिए। सर्वसाधारण व्रती व्यक्तियों को प्याज, लहसुन आदि तामसिक व माँसाहारी पदार्थों का उपयोग नहीं करना चाहिए। व्रत में फलाहार अति उत्तम तथा श्रेष्ठ माना गया है।

भगवती जगदम्बा नवग्रहों, नव अंकोंसहित समस्त ब्रह्माण्ड की दृश्य व अदृश्य वस्तुओं, विद्याओं व कलाओं को शक्ति दे संचालित कर रही हैं। नवरात्रि में नव कन्याओं का पूजन कर उन्हें श्रद्धा के साथ, सामर्थ्य अनुसार भोजन व दक्षिणा देना अत्यंत शुभ व श्रेष्ठ माना गया है। इस कलिकाल में सर्वबाधाओं, विघ्नों से मुक्त होकर सुखद जीवन के पथ पर अग्रसर होने का सबसे सरल उपाय शक्ति रूपा जगदंबा का विधि-विधान द्वारा पूजा-अर्चना ही एक साधन है।

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