सीएनएन सूची में नर्गिस शामिल
न्यूयॉर्क से जारी 25 सर्वश्रेष्ठ एशियाई अदाकारों की सूची में नर्गिस का नाम भी शामिल है। ऑस्कर के लिए नामांकित जिस फिल्म 'मदर इंडिया' के लिए उनका जिक्र है वह उनकी जिंदगी में मील का पत्थर साबित हुई। 'तकदीर' (1943) से 'रात और दिन' (1967) तक नर्गिस ने कई फिल्मों में काम किया। लेकिन इस किरदार के बगैर उनका अभिनय सफर अधूरा ही रहेगा।
नई पीढ़ी की कई अभिनेत्रियाँ आज भी जिंदगी में ऐसे किरदार को अदा करने की ख्वाहिश जाहिर करती हैं। इतना जबर्दस्त असर आज भी इस किरदार का रहा है। लेकिन केवल एक शख्स ऐसा रहा जिसे लगता रहा कि नर्गिस यह किरदार अदा न करें।
'मदर इंडिया' में अदा नर्गिस का किरदार जवानी से बुढ़ापे का रहा। जब उनकी उम्र महज 28 साल रही जो बुढ़ापे के साकार करने की तो कतई नहीं थी लेकिन महबूब सा. ने उनके बुढ़ापे को इसके भी कई साल पहले खोज लिया था। जब नर्गिस केवल 20 साल की थीं। 'अंदाज' (1949) में वे बॉबकट में घूमने वाली आजाद ख्याल युवती रहीं और 'अंदाज' के सेट पर इस आधुनिक नर्गिस में महबूब ने 'मदर इंडिया' को पहचान लिया और कहा भी था- 'आज या कल जब भी मैं 'औरत' (1940) का रीमेक बनाऊँगा तब 'राधा' तुम ही करो यह मेरी ख्वाहिश है।'
आरके की फिल्मों की रोमांटिक नायिका की इमेज का 'मदर इंडिया' के चलते तड़कना तय था। इस डर के चलते राजकपूर ने उन्हें इस किरदार को स्वीकार न करने की सलाह दी लेकिन उसे नकारते 'आग' (1947) से आरके के अलावा किसी और निर्देशक के लिए काम करने की सोच से भी परहेज करने वाली नर्गिस ने महबूब साहब की 'आन' से मुँह फेर लिया था। इसके बावजूद 'मदर इंडिया' से वे इंकार न कर सकीं। जिसके लिए फिल्म फेयर के साथ अंतरराष्ट्रीय फिल्मोत्सव में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का सम्मान हासिल होने पर राज उन्हें फूलों का गुलदस्ता भेज अभिनदंन करना नहीं भूले।
आरके के साथ नजदीकी के चलते नर्गिस राजी होने पर महबूब को शक रहा। सो दूसरी नायिका के बतौर जिस नाम की सोची वह रहा- वीणा। वीणा नर्गिस से वरिष्ठ होने के बावजूद 'हुमायूँ' में उनकी सहनायिका रही क्योंकि वे महबूब सा. के अहसान को नहीं भूलीं जो उन्हें लाहौर की फिल्मी दुनिया से मुंबई लाए थे।
'मदर इंडिया' में वीणा का नाम तय होने के साथ किरदार की कॉस्टयूम भी तैयार हो गई और तब फिल्म के नायक रहे दिलीप कुमार। इस सारी तैयारी के बीच नर्गिस के रंजामदी जाहिर करते ही वीणा के साथ दिलीपकुमार का नाम भी कट गया। क्योंकि दिलीप के साथ 'अनोखा प्यार', 'अंदाज', 'बाबुल', 'दीदार', 'जोगन' और 'हलचल' सात कामयाब फिल्मों की नायिका उनकी माँ बनेगी इस बात में महबूब सा. को शक था। वीणा के साथ जिन दो और नामों पर विचार किया गया उनमें निरुपा रॉय और दूसरी रहीं मराठी फिल्मों की सुलोचना।
ऑस्कर के लिए नामांकित पहली हिन्दुस्तानी फिल्म जो मात्र एक वोट की वजह से ऑस्कर तक नहीं पहुँच सकी। 'औरत' का रीमेक होने से रंग संगति के चलते कहानी को पुरानी पार्श्वभूमि देते फ्लॅशबॅक से शुरू किया गया। 'औरत' के बाद तकनीकी तरक्की के चलते 'मदर इंडिया' को फिल्म फेयर के सर्वश्रेष्ठ छाया लेखक (फरदून ईरानी) और ध्वनि लेखक (कौशिक) सम्मान से नवाजा गया। जबकि सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नर्गिस और निर्देशक महबूब के कारण फिल्म भी सर्वश्रेष्ठ रही। यही नहीं 'औरत' के दौरान महबूब और सरदार अख्तर के बीच की नजदीकियाँ निकाह में तब्दील हो गईं और 'मदर इंडिया' के वक्त भी इतिहास ने इसे दुहरा दिया। सेट पर लगी आग के दौरान जान की बाजी लगा नर्गिस को मौत के मुँह से बचाने वाले सुनील दत्त 11 मार्च 1958 को विवाह के बंधन में बँध गए।
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