शनिवार, 13 मार्च 2010

कविता

नमन तुमको देश मेरा
सूर्य चंदा और तारे
के सुखद मनहर नजारे
हैं सजाते देश को नित
स्वर्ण किरणों के सहारे,
गोधुली जिसकी सुहानी
सुखद है जिसका सवेरा
नमन तुमको देश मेरा।
अहा! पर्वत और घाटी
धन्य अपनी धूल माटी
अर्चना में लिप्त जिसकी
वेद मंत्रों के सुपाठी,
देवताओं की धरा यह
साधु-संतों का बसेरा
नमन तुमको देश मेरा
हम चले सबको जगाने
जागरण का गीत गाने
विश्वगुरु फिर स बनाने,
उठ गए हैं हम धरा से
अब मिटाने को अँधेरा
नमन तुमको देश मेरा

सौजन्य से - देवपुत्र

बड़े सबेरे उठती चिड़िया
बड़े सबेरे चिड़िया चटपट उठ जाती, ले अंगड़ाई,
नवचेतन हो नवऊर्जा से भर जाती,
भुन्सारे में, नवप्रभात के गीत सुनाती,
कलरव कर, शोर मचा, गहरी नींद से मुर्गे को उठाती,
गुलाबी सूरज को टेर लगा बुलाती,
शाखों पर फुदकती, चहकती, चहचहाती,
नव कोपल-पत्तियों, नव-पुष्पित फूलों फलों से बतियाती,
गुनगुनाती धूप में चिरौटें से चुहल कर फुदकती,
चूजों को दाना मिला, ममतामयी हो जाती,
पंख फड़फड़ा, पंख सुखाती,
निहार दर्पण में जुल्फें झटकाती,
फिर चोंच सँवारती अपने पंख,
चूँ-चूँ चहकती चहचहाती
जाने क्या-क्या गीत गुनगुनाती,
हो तरोताजा, सुंदर गुड़िया सी,
सज सौन चिरैया सी हो जाती।
चूँ-चूँ, चीं-चूँ कर दिनभर,
चौकन्ना रहने का चूजों को पाठ पढ़ाती,
फिर झुंडों में उड़, स्वच्‍छंद गगन में उड़ दूर देश को जाती,
सुरम्य वादियों में विचरण कर अनंत नभ की उड़ानें भरती,
पहाड़ों, झीलों, नदियों, तालतलैया की सैर करती,
कहीं शाखें गुल देख झूला डाल जी भर झूला झूलती
कहीं देख गुल चमन हरे भरे खेत खलिहान बसेरा करती,
खेतों में जी भर मीठे-मीठे दाने चुगती,
भाँपती जो खतरा, फुर्र उड़ जाती,
जब सूरज करता पहाड़ों के पीछे आँख मिचौनी
साँझ ढले, कुछ दाने मुँह में दबा, घर को चलती,
कुछ घर जाने का उत्साह,
कुछ चूजों से मिल जाने की जल्दी,
ऊँची-ऊँची उड़ानें भरती,
दूर से आता देख चूजे किलकारी भरते,
चूँ-चूँ, चीं-चूँ कर खुशियों से भरते,
नीड़ से निकल चिड़िया से लिपटते,
चिड़िया ममतामयी वात्सल्य से भर दुलारती पुचकारती,
चोंच से चूजों को दाना खिला, निहाल हो बलैया भरती,
इस टहनी से उस टहनी,
फुदकती चहकती कलरव करती।

सौजन्य से - देवपुत्र

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