गुरुवार, 13 मई 2010

फाल्गुनी

सिर्फ तुम्हारे कारण
कल जब
निरंतर कोशिशों के बाद,
नहीं जा सकी
मैं तुम्हारी याद,
तब
गुलमोहर की सिंदूरी छाँव तले
गहराती
श्यामल साँझ के
पन्नों पर
लिखी मैंने
प्रेम-कविता,
शब्दों की नाजुक कलियाँ समेट
सजाया उसे
आसमान में उड़ते
हंसों की
श्वेत-पंक्तियों के परों पर,
चाँद की तिकोनी हँसी ने
देर तक निहारा मेरे इस पागलपन को,
नन्हे सितारों ने
अपनी दूधिया रोशनी में
खूब नहलाया मेरी प्रेम कविता को,
कभी-कभी लगता है कितने अभागे हो तुम
जो ना कभी मेरे प्रेम के
विलक्षण अहसास के साक्षी होते हो
ना जान पाते हो कि
कैसे जन्म लेती है कविता।
फिर लगता है कितने भाग्यशाली हो तुम
कि मेरे साथ तुम्हें समूची साँवल‍ी कायनात प्रेम करती है,
और एक खूबसूरत कविता जन्म लेती है
सिर्फ तुम्हारे कारण।

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