दुर्लभ फल है जीवन
ईश्वर ने हर जीव की रचना उन्हीं अवयवों से की है। उनकी दृष्टि में न कोई छोटा है न बडा। उन्होंने प्रत्येक को जन्म से जहान पैदा किया है। वही इस जीव जगत में मनुष्य बन पाता है जो संपूर्ण जीव योनियों में श्रेष्ठतम् हो। किंतु भौतिक संलिप्तताके बाद इस श्रेष्ठतम् व महानतम् के संरक्षण के कर्म को गुप्त रूप से उसके उत्तरदायित्वोंमें सम्मिलित कर दिया है। इसके पश्चात ईश्वर के महानतम् व श्रेष्ठतम् रूपी कवच का आदर व संरक्षण कर अस्तित्व बनाए रखना मनुष्य के हाथ में है। सामान्य शब्दों में समझा जा सकता है कि एक समृद्ध पिता ने अपने पुत्र को बडी जागीर सौंप दी, जो किसी रजवाडे से कम नहीं है। पिता यह सब सौंप संसार से विदा कह गए। अब यह पुत्र के बुद्धि कौशल पर निर्भर करेगा कि वह उस संपदा का सदुपयोग करता है या दुरुपयोग। कुसंगति के चलते वही पुत्र कंगाली के कगार पर भी पहुंच सकता है। जबकि दूसरी ओर एक कंगाल पिता का पुत्र अपनी श्रमशीलता,निष्ठा, ईमानदारी व पौरुष से एक नए साम्राज्य का निर्माण कर सकता है। पूत सपूत सो का धन संचै,पूत कपूत सो क्या धन संचै?अत:व्यक्ति की योग्यता व अयोग्यता ही ईश्वर द्वारा प्रदत्तउस श्रेष्ठतम् को बचाए रखने अथवा मिटाने के लिए सक्षम है।
प्रभु ने मनुष्यों को जीने, रहने, खाने-पीने, सोचने-विचारने हेतु रात-दिन के रूप में 24घंटे का समय दिया है। अब उसमें जिधर तन व मन का रुझान होगा व्यक्तित्व के निर्माण का भवन आकार लेता जाएगा। इन 24घंटों में जो तप व त्याग करेगा जगत में प्रसिद्धि पाएगा। जो भोग व सांसारिकता के योग में चिंतन व देह की ऊर्जा का अपव्यय करेगा ईश कृपा के चार्ट में उसके चरित्र व व्यक्तित्व का ग्राफ नीचे होता जाएगा। ईश्वर प्रदत्त इस मानव जन्म के दुर्लभ फल का उपयोग जो जिस निष्ठा व लगन से करेगा वह उसी के अनुरूप फल पाने का हकदार होगा। यदि इसका सदुपयोग होगा तो वह आदर्श, मूल्य, मर्यादा के ऐसे हरियाले वन महकाएगा। यदि उसका कोई उपयोग नहीं होगा तो वह दुर्लभ फल सड जाएगा। उसके निकट से गुजरने वाला समूह उसके जीवन को कोसता रहेगा। अब यह निश्चित करें कि ईश की छत्रछाया में हम उस फल का उपयोग कैसे करें?
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