बाबुल को चाहिए सरकारी जमाई
'दहेज दे के किनले बानी तोहरा के सजनवा' जैसे गीतों से अब राजधानी की गलियां गुलजार होने लगी है। वैवाहिक मौसम में यह कोई नई बात नहीं है। कुछ नया है तो यह कि मंदी के बाद विवाह बाजार में 'लेन-देन' का गणित ही बदल गया है। दुनिया भर के वित्तीय बाजारों को झकझोर देने वाली मंदी भले चली गई हो, लेकिन इसके असर से दूल्हा बाजार का चेहरा बदल गया है।
यह मंदी का ही असर है कि निजी क्षेत्र के पेशेवरों का 'भाव' घटकर आधा हो गया है। वहीं, सरकारी नौकरी करने वाले कुवांरों के कद्रदान बढ़ गए है। एक बदलाव यह भी कि 'सेम प्रोफेशन' में कार्यरत लड़की मिल जाने पर बिना दहेज भी खूब शादियां हो रही है।
मंदी का असर कई क्षेत्र पर पड़ा। इनमें से एक दूल्हा बाजार भी है। मंदी से पूर्व निजी क्षेत्र में कार्यरत पेशेवरों का भाव परवान पर था। मोटी पगार पाने वाले प्रतिष्ठित कंपनियों के पेशेवरों की कीमत 10 लाख रुपये तक पहुंच चुकी थी, लेकिन अब इस तरह के पेशेवरों की कीमत घटकर आधी या इससे भी कम हो गई है।
एक मैरिज ब्यूरो के मुताबिक मंदी से पूर्व एक ब्राह्मण फैमिली का लड़का मुंबई की एक कंपनी में 70 हजार मासिक पगार पर नौकरी करता था। डिमांड थी 15 लाख। देनेवाले दे भी रहे थे, लेकिन वे लोग कई लड़की देख छोड़ दिए थे। 'सौंदर्य' की तलाश जारी ही थी कि मंदी के कारण लड़के की छंटनी हो गई। मंदी के बाद दूसरी नौकरी मिली, लेकिन मात्र पांच लाख रुपये में ही शादी तय हुई। हालत यहां तक बदल गई है कि कन्या पक्ष शादी के लिए निजी के बजाय सरकारी नौकरी करने वालों को और अधिक तरजीह देने लगे हैं।
हालांकि, जमाई के रूप में सरकारी नौकरी करने वाले हमेशा से प्राथमिकता में रहे है, लेकिन मंदी के बाद इनके कद्रदानों की संख्या में 25 फीसदी का ग्रोथ आ गया है। पटना स्थित एक मैरिज ब्यूरो के संचालक के मुताबिक मंदी से पूर्व 50-50 का रेशियो था। 50 फीसदी लोग निजी क्षेत्र को तो इतने ही सरकारी क्षेत्र को प्राथमिकता देते थे, लेकिन अब यह आंकड़ा 25-75 में बदल गया है। 25 फीसदी लोग निजी क्षेत्र के दूल्हों को तो 75 फीसदी लोग अपनी पुत्री के लिए सरकारी वर को प्राथमिकता देने लगे है।
मैरिज ब्यूरो के साथ ही विवाह कराने वाले पंडितों की राय भी इससे अलग नहीं है। अशोक नगर स्थित पंडित ओंकार नाथ पांडेय के मुताबिक मंदी के कारण कन्या पक्ष की सोच ही बदल गई है। निजी क्षेत्र को अब वे ही लोग प्राथमिकता दे रहे है जो खुद भी प्राइवेट कंपनियों से जुड़े है। हालांकि मंदी से पूर्व निजी क्षेत्र के जिस दूल्हे का रेट 10 लाख था अब पांच लाख पर सिमट गया है।
मैरिज ब्यूरो के मुताबिक अगड़ी जातियों में दहेजप्रथा कुछ अधिक ही है। इनमें भी भूमिहार वर्ग सबसे आगे है। भूमिहार वर्ग में तृतीय श्रेणी में कार्यरत सरकारी दूल्हे का रेट पांच लाख से नीचे तो है ही नही। ब्राह्मण, राजपूत और कायस्थ परिवार में ऐसे ही दूल्हों का रेट तीन लाख रुपये चल रहा है।
मैरिज ब्यूरो के मुताबिक बिना दहेज शादियों का चलन भी बढ़ा है। बिना दहेज शादी करने वालों की संख्या में करीब 25 फीसदी की वृद्धि आई है। हालांकि उनकी एक शर्त भी होती है-लड़की सेम प्रोफेशन में होनी चाहिए। मसलन, जिनका बेटा डाक्टर है अगर उन्हे डाक्टर बहू मिल जाती है तो वे बिना दहेज शादी करने को तैयार हो जाते है।
वैसे मध्यमवर्गीय परिवार जिनके घरों में शिक्षा की ज्योति जल चुकी है, वे भी इस श्रेणी में तेजी से शामिल हो रहे है। बरूणा के सियाराम चौबे केंद्रीय विद्यालय से सेवानिवृत्त है। उनकी पत्नी भी शिक्षिका है। पटना के कंकड़बाग में अपना मकान भी है, लेकिन फिर भी वे अपने बेटे की शादी जहानाबाद के अखिलेश्वर द्विवेदी की पुत्री से बगैर दहेज तय किए है। उनका कहना है कि दुल्हन ही दहेज है। दहेज न लेकर ही इस कुरीति का विरोध किया जा सकता है।
nice
जवाब देंहटाएं