सोमवार, 3 मई 2010

फिल्में


कुछ कहती हैं मेरी फिल्में
पहले गंगाजल, फिर अपहरण और अब राजनीति। प्रकाश झा अपनी फिल्मों के जरिये उत्तर भारत के सामाजिक-राजनीतिक पहलुओं को बखूबी पेश कर रहे हैं। उनकी सिनेमाई भाषा अलग और आकर्षक है। हिंदी फिल्मों के ढांचे में रहते हुए उन्होंने नई शैली खोज ली है। वे प्रभावशाली और मनोरंजक तरीके से गंभीर मुद्दों को चित्रित करते हैं। उनकी फिल्मों में तीव्र नाटकीय दृश्य होते हैं और किरदारों का टकराव रोचक होता है। राजनीति में रणबीर कपूर और कट्रीना कैफ की लोकप्रिय जोड़ी के साथ नसीरुद्दीन शाह, नाना पाटेकर, मनोज बाजपेयी और अर्जुन रामपाल भी हैं।

प्रकाश झा मानते हैं कि बदलते जमाने के साथ उन्हें अपनी शैली बदलनी पड़ी। वे बताते हैं, फिल्म परिणति के बाद ही समझ में आ गया था कि पॉपुलर ऐक्टर और पॉपुलर भाषा में फिल्म नहीं बनाएंगे, तो यहां टिकना मुश्किल है। बीच में कुछ साल के लिए मैं बिहार लौट गया था। लौटकर आया, तो पहले बंदिश बनाई। उससे मैंने यह सीखा कि आगे से अपने मन का ही काम करना है। फिर मैंने मृत्युदंड में अपनी जमीन और भाषा की तलाश की। वह गंगाजल और अपहरण में विकसित हुई। मुझे लगता है कि राजनीति मेरा अगला कदम है। इस बार मैंने ज्यादा किरदारों के साथ एक बड़ी कहानी पेश की है।

प्रकाश झा की फिल्मों में उत्तर भारतीय समाज की विसंगतियां और ट्रेंड दिखाई पड़ते हैं। वे फिल्मों को इंटरेस्टिंग अंदाज में पेश करते हैं। अपनी खास शैली के बारे में वे स्पष्ट करते हैं, मेरे लिए जरूरी है कि जब कुछ कहूं या फिल्म बनाऊं, तो उसका कोई मतलब हो। मेरे लिए एंटरटेनमेंट इन्फॉर्मेशन और नॉलेज है। अपनी बात कहने के लिए मैंने पॉपुलर फिल्मों की भाषा सीखी, लेकिन लहजा अपना रखा। यही कारण है कि मेरी फिल्मों में मनोरंजक हिंदी फिल्मों के सारे तत्वों के साथ कुछ नया और अलग भी होता है। दर्शक पहले से तैयार रहते हैं कि हम सिर्फ नाच-गाने की फिल्म नहीं देखने जा रहे हैं। राजनीति का शीर्षक ही इतना स्ट्रांग है कि अभी से दर्शकों की जिज्ञासाएं बढ़ गई हैं और उनका मूड बन रहा है।

चर्चा है कि राजनीति फिल्म का ढांचा प्रसिद्ध महाकाव्य महाभारत से प्रेरित है। प्रकाश झा बेहिचक बताते हैं, आपको महाभारत के पात्र तो हर जगह मिल सकते हैं। यह एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें सभी तरह के पात्र हैं। उसमें सभी तरह की मंशाएं और प्रवृत्तियां हैं। सभी प्रकार की मानसिकता और घटनाएं वहां मिल जाती हैं। परस्पर संबंधों की जटिलताएं भी महाभारत में हैं। आपको राजनीति में महाभारत के पात्रों के शेड्स मिल सकते हैं। किरदारों के बीच के संघर्ष में भी समानताएं मिलेंगी। इस तरह के एपिक से आप स्वाभाविक रूप से प्रभावित होते हैं। मेरी कोशिश है कि दर्शकों को राजनीति के सारे पात्र आसपास के लगें। ऐसी चर्चा है कि कट्रीना का चरित्र सोनिया गांधी से प्रेरित है? प्रकाश झा इस धारणा से इंकार करते हैं, कट्रीना का स्वतंत्र किरदार है। वह किसी से प्रभावित नहीं है। मेरी फिल्म के दूसरे किरदारों में भी कुछ नेताओं की झलकियां मिल सकती हैं। यह आज की कहानी है, इसलिए वैसी झलक नेचुरल है। मैंने किसी पार्टी विशेष या व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर फिल्म नहीं लिखी है। मैंने ऐक्टरों को कभी नहीं कहा कि आपकी एक्टिंग में फलां नेता की झलक आ जाए। उन्होंने अपने किरदारों को अलग और खास रंग दिए हैं।

राजनीति की पूरी शूटिंग भोपाल और उसके आसपास के इलाकों में हुई है। इसके पहले प्रकाश झा महाराष्ट्र के वाई को बिहार बनाकर फिल्में शूट करते रहे हैं। इस बार भोपाल चुनने की वजह वे बताते हैं, मुझे अपनी फिल्म किसी प्रांतीय राजधानी का बैकग्राउंड रखना था। इस लिहाज से भोपाल सही लगा। भोपाल के लोग फ्रेंडली और सहयोगी मिजाज के हैं। साथ ही हमें प्रशासन का भी पूरा सहयोग मिला। हमने राजनीति के लिए मध्यप्रदेश के विभिन्न शहरों के रंगकर्मी और अभिनेताओं को प्रशिक्षित किया और उन्हें अपनी फिल्म के लिए तैयार किया। इस फिल्म के कुछ दृश्यों में हजारों व्यक्ति हैं और वे सभी प्रशिक्षित कलाकार हैं। मेरी प्रोडक्शन टीम की मेहनत रंग लाई है। इस स्केल की फिल्म सही प्लानिंग के बगैर नहीं बनाई जा सकती थी। फिल्म के सभी स्टारों को भोपाल लाना और वहां की सीमित सुविधाओं में उनसे काम लेना, उनकी मदद से ही संभव हो सकता। राजनीति मेरे करियर के सबसे बड़ी और महत्वाकांक्षी फिल्म है। मैंने इसे पूरे मनोयोग से लिखा और फिल्माया है।

इस फिल्म में उनके पुराने प्रिय अभिनेताओं नाना पाटेकर और अजय देवगन तो हैं ही, उन्होंने पहली बार मनोज बाजपेयी को चुना है। मनोज के बारे में प्रकाश झा कहते हैं, मनोज की भूख और चाहत कम नहीं होती। वे आपकी उम्मीद से ज्यादा मेहनत करते हैं और चौकस रहते हैं। इस फिल्म के किरदार को उन्होंने अच्छी तरह आत्मसात किया और उसे इंटरेस्टिंग बना दिया। वे और रणबीर दर्शकों को चौंकाएंगे। रणबीर को दर्शक पहली बार बिल्कुल नए रूप में देखेंगे। इसी प्रकार कट्रीना की लगन देख कर मैं दंग रह गया। इन सभी में सीखने और कुछ नया करने का मनोबल है। बाकी कलाकारों के बारे में अलग से कहने की जरूरत नहीं है।


झुका मगर आकाश से ऊंचा
बस पांच मिनट! कोई काम करने या टाल देने के लिए इससे ज्यादा प्रचलित वाक्यांश हिंदुस्तान में दूसरा नही है, लेकिन इस छोटी सी समयावधि की असली कीमत मालूम पड़ी द्वीप देश मलेशिया में। जब इस देश की राजधानी में स्थित क्वालालंपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर लैंड करने के लिए हमारी फ्लाइट दक्षिण-चीन समुद्र पर मंडरा रही थी, मुंबई के रास्ते बंगाल की खाड़ी को चीरता एक हवाईजहाज हमसे कुछ ही मिनट की दूरी पर था। थैंक गॉड, हम उस हवाईजहाज के रनवे पर उतरने से बस पांच मिनट पहले एयरपोर्ट लाउंज में पहुंच चुके थे..ऐसा न होता तो अमिताभ बच्चन को हम नहीं, वो हमें रिसीव कर रहे होते!

जी हां, वे हमारे सम्मानित मुख्य अतिथि थे और अवसर था आपके इस प्रिय समाचारपत्र के प्रकाशक जागरण प्रकाशन लि. की एनुअल बिजनेस कांफ्रेस का। इससे बेहतर और हो भी क्या सकता था कि विश्व के इस शीर्षस्थ समाचारपत्र की बैठक को वह व्यक्ति संबोधित करे, जो शिखर पर पहुंचने की जगह स्वयं ही शिखर बन चुका हो।

अमित जी जैसे महानायक के बारे में लिखते समय आपके सामने पहली और सबसे बड़ी दिक्कत यह होती है कि अब क्या लिखूं? जिनके बारे में दुनिया जानती है, खुली किताब की तर्ज पर जिनकी जिंदगी एक खुला ब्लॉग है, जिनका हर कदम फिल्म इंडस्ट्री की मोडस आपरेंडी बन जाता है; उन पर कुछ भी लिखते समय आप नि:शब्द हो जाते हैं। तो मन ने कहा, साक्षात्कार मत करो, बस साक्षी बनो।

मन की बात सुमन बन गई और डेढ़ दिनों तक जिस अमिताभ को सामने पाया, वह हीरो नही-हीरा था। 24 कैरेट का खरा इंसान। इसकी पहली कौंध तो इंटरनेशनल एयरपोर्ट के इमिग्रेशन काउंटर पर ही दिख गई थी, जहां वे हमसे पीछे कतार में थे। जागरण परिवार की ओर से निवेदन किया गया कि कृपया वे आगे आ जाएं, तो अमित जी के होठों पर विनम्र मुस्कान तैर गई, नहीं, सीरियल से ही आगे बढ़ेंगे। काउंटर पर भी कोई गुरूर नही, कोई ठसक नही, पर वहां मौजूद लोगों में खुद-ब-खुद हड़कंप मच चुका था। हवाईअड्डा कर्मचारियों के हाथों में तो जैसे हवाईजहाज की स्पीड उतर आई थी। उनके पासपोर्ट-वीजा पर फटाफट मुहर लगाकर काउंटर ऑफिसर ने हाथ बढ़ा दिया, वंडरफुल टू हैव यू हेयर। बिग फैन, मिस्टर बच्चन!

बॉलीवुड स्टार की इतनी शानदार एंट्री दिखाने के लिए निर्देशकों को बड़ी संख्या में जूनियर आर्टिस्ट दिखाने पड़ते होंगे, लेकिन यहां तो सब कुछ अपनेआप हो रहा था। एयरलाइन्स के क्रू मेंबर्स, एयरपोर्ट का स्टाफ, सफर के लिए आए यात्रियों से लेकर सिक्योरिटी स्टॉफ तक उनकी एक झलक को दीवाने हो रहे थे। उन्होंने भी किसी को..वाकई किसी को भी, निराश नहीं किया।

अब तक दुनिया भर से जागरण समूह के प्रतिनिधि इस बैठक में हिस्सा लेने के लिए क्वालालंपुर पहुंच चुके थे और उनसे भरा हुआ बोइंग 737 उड़ चला बाजों की धरती लंका वी की ओर। क्वालालंपुर से 45 मिनट की हवाई दूरी पर स्थित 99 द्वीपों का यह समूह यूनेस्को की व‌र्ल्ड जियो पार्क स्टेटस लिस्ट में शामिल है। एनुअल मीट के लिए तय रिजार्ट वेस्टिन पुलाउ लंकावी में स्थित था। फिल्मों में तो रीटेक बहुत सुना है, अब हम यहां असल जिंदगी में रीटेक देखने जा रहे थे। जी हां, रिजार्ट में अमित जी के पहुंचते ही एयरपोर्ट का नजारा फिर से दोहराया गया..एंड आई गेस..सीईओ से लेकर शेफ तक उनके स्वागत में द्वार पर थे।

मेरे बचपन का बड़ा हिस्सा मलेशिया में बीता और 34 साल बाद यहां वापसी पर मेरे लिए एक ही दिन में भारत पर दो बार गर्व करने की अलग-अलग वजहें सामने थी। पहली, यहां हुआ अभूतपूर्व विकास, जिसके प्रेरक थे पूर्व मलेशियाई राष्ट्राध्यक्ष महाथिर मुहम्मद और दूसरी, यहां मिला अभूतपूर्व सम्मान, जिसकी वजह बने अमित जी। भारतीय मूल के महाथिर मुहम्मद ने मेनलैंड मलेशिया को ही नहीं, छोटे से पेनांग को भी न्यूयार्क सरीखी गगनचुंबी इमारतों का गढ़ बना दिया, तो वहीं अमित जी भारतीय सिनेमा और भारत के अनऑफिशियल ग्लोबल एंबेसडर बन चुके हैं।

इस छोटे से नेशनल नॉस्टैल्जिया ब्रेक के बाद फिर लौटते हैं लंकावी और देखते हैं कि तीन तरफ समुद्र से घिरे अपने 5 बेडरूम सुईट में अमित जी कर क्या रहे हैं? ओह, वे तो एनुअल मीट का ड्रेसकोड फॉलो करने की कोशिश कर रहे हैं, पर शायद टी-शर्ट उन्हें फिट नहीं आ रही। लीजिए, वे सबको चौंधियाते हुए एक शानदार सूट पहन कर आ गए हैं कांफ्रेस हॉल में।

एनुअल मीट में अमित जी के संबोधन से पूर्व उनके सम्मान में एक बढि़या मल्टीमीडिया प्रजेंटेशन दिखाई जा रही थी। हर तरफ से प्रशंसा के स्वर उठें तो फूल जाना मानव स्वभाव है, लेकिन वे किस मिट्टी के बने हैं? वे सकुचाते हुए मंच पर आए और माफी मांगी कि ड्रेस कोड के मुताबिक हरी कॉलर वाली काली टी-शर्ट और काली पैंट नही पहन पाए, आई एम वेरी सॉरी, मैंने बहुत कोशिश की पर शायद मेरा शरीर ही ऐसा है कि रूम में भेजी गई टी-शर्ट में फिट नही हो पाया। यह संकोच, यह शालीनता, यह मिठास.. बच्चन जी के बेटे में ही हो सकती थी।

पिता स्व. हरिवंशराय बच्चन का जिक्र छिड़ते ही बिगबी तब्दील हो जाते हैं बाबूजी के भावुक बेटे में। डिटरमिनेशन के टॉपिक पर दो घंटे तक धाराप्रवाह संबोधन में बच्चन जी की मधुशाला भी आई, और इस कदर झूम कर आई कि कह सकती हूं कि मधुशाला केवल बच्चन जी लिख सकते थे और इसका पाठ केवल अमित जी ही कर सकते हैं। वे कही भी जाएं, बच्चन जी की रचनाएं उनके साथ सफर करती हैं। पिता के वाक्य मन का हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा को जीवन सूत्र मानने वाले अमित जी से जब यह पूछा गया कि उनकी आत्मकथा कब तकआएगी, तो उत्तर था, कभी नही। बाबूजी की रचनाओं के आगे मैं क्या लिख सकता हूं। समय के साथ मेरी हस्ती मिट जायेगी लेकिन अपनी कृतियो से वे अजर-अमर रहेंगे। अगर वे इस कांफ्रेसइ में जागरण की तीन पीढि़यों को एक समान सहजता से संबोधित कर रहे थे तो वजह भी साफ थी। जीवन में इतना कुछ हासिल करने के बाद भी वे रुके नही है और आज भी युवाओं की तरह चपल और उत्सुक हैं। युवा पीढ़ी को वे कूल मानते है, प्रतिकूल नहीं।

भाषण का दौर खत्म हुआ और अब बारी थी रात के भोजन की। फिल्म शराबी में उनके अभिनय पर मत जाइए, सादा भोजन करने और मिठाई-चावल से परहेज रखने वाले अमित जी सौ फीसदी टी टोटलर हैं। कुछ स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद उनकी फिटनेस का राज केवल इतना ही नही, 68 की उम्र में भी वे अलसुबह जिमनेजियम में मौजूद होते हैं। लंकावी में भी डिनर से पूर्व उनका पहला प्रश्न यही था कि जिमनेजियम किधर है और रात का आखिरी सवाल? वे प्रिय संजय की तरफ झुके और बहुत ही संकोच से पूछा, अगर अब मैं अपने रूम में चला जाऊं, तो किसी को दिक्कत तो नही होगी?

उनकी यह सदास्यता केवल मेजबान के लिए नहीं थी। सुईट की तरफ जाने से पहले वे उठे, डिनर पार्टी में संगीत कार्यक्रम पेश कर रही दो गुमनाम सी युवा गायिकाओं के पास गए और तालियां बजाकर उनका उत्साहवर्धन किया। शायद अमित जी के लिए यह एक स्वाभाविक सी बात थी, पर हममें से कितने हैं जो बड़प्पन के खोल से निकलने का यह विनम्र साहस कर पाते हैं?

..बड़ा होने के लिए छोटों को उठाना पड़ता है। थैंक्स बिग बी फॉर दिस लैसन। वी ऑल आर लकी टू लिव विद ए लीजेंड इन द सेम इरा!

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