बुधवार, 26 मई 2010

एक टीन की महारत

पियानो का जादूगर
जो साज से निकली है धुन, वो सबने सुनी है,
जो साज पे गुजरी है, वो किसको पता है..

जी हां, एक हाथ से पियानो जैसा साज बजाने में एक टीन की महारत की गवाही तो लिम्का बुक ऑफ रिकॉ‌र्ड्स दे देता है, लेकिन ऐसी महारत पाने के लिए उस पर क्या-क्या गुजरी है, इसे कौन बताएगा? 17 साल का यह टीन है दिल्ली का करनजीत सिंह, जो सिविल इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष का छात्र है। पियानो की औपचारिक शिक्षा के बगैर ही करन ऐसी-ऐसी धुनें ईजाद करता है कि बडे-बडे उस्तादों की बाजीगरी मात खा जाए।
इतना ही नहीं, वह घंटों एक ही हाथ से इस साज पर बेहतरीन धुनें बजा सकता है। पियानो बजाने के साथ-साथ वह दूसरे हाथ की एक उंगली से उतनी ही देर तक लगातार परात नचाता है। अपने इसी जुनून के चलते उसने एक हाथ से लगातार 2 घंटे 40 मिनट तक पियानो बजाकर लिम्का बुक ऑफ रिकॉ‌र्ड्स में अपना नाम दर्ज करा लिया है।

अब उसका अगला लक्ष्य है गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स में दर्ज होना। क्या यह सब आसानी से हो जाएगा? करन पूरे जोश और आत्मविश्वास से कहता है, इसकी तैयारी मैंने सफल होने के लिए ही शुरू की है।

करनजीत अपनी हर कामयाबी का सेहरा अपने डैडी के सिर बांधता है। उसके डैडी एक शो ऑर्गनाइजर हैं। वह कहता है, म्यूजिक, म्यूजिक और म्यूजिक-बस यही धुन है मुझे। इसके आगे मैं कुछ भी नहीं सोच पाता। जो कुछ करते हैं, वह डैडी ही करते हैं, मैं तो बस उनका साथ देता हूं। यह कहते-कहते वह चंद पल के लिए ठहर कर बोल पडता है थैंक्स डैडी।

उसके मुताबिक, जब मुझे पता चला कि गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकॉ‌र्ड्स में दाखिल होने के लिए हमें अपने खर्चे पर लंदन जाना होगा, तो एकबारगी मुझे थोडी निराशा जरूर हुई, पर जब डैडी के जोश और हौसले को देखता हूं, तो यह चिंता बहुत छोटी लगती है।

करनजीत उस दिन को खास तौर पर याद करता है, जब पहली बार उसने पियानो देखा था। वह कहता है, उस समय मेरी उम्र तकरीबन चार साल की रही होगी। मेरे बडे भैया को किसी ने गिफ्ट में पियानो दिया था। भैया सारेगामा बजाना जानते थे, इसलिए पडोस की एक दीदी उनसे पियानो सीखने आने लगीं। भैया तो उन्हें नहीं सिखा पाए, पर मैं उनका गुरु जरूर बन गया। यह कहकर वह जोर से ठहाका लगाता है।

करनजीत ने पियानो पर यह महारत यूं ही हासिल नहीं की। उसकी लगन, कडी मेहनत और कुछ कर दिखाने के जज्बे ने उसे इस मुकाम तक पहुंचाया है। म्यूजिक मेरी लाइफ का वह हिस्सा है, जिसे मैं कभी भी अलग नहीं कर सकता। मैं पियानो का रियाज बचपन से कर रहा हूं। चूंकि प्रैक्टिस का कोई तय वक्त नहीं है, इसलिएकभी-कभी घर में थोडी कहा-सुनी भी हो जाती है, लेकिन धीरे-धीरे सब ठीक हो जाता है। हां, जब पेपर खत्म हो जाते हैं, तो मैं पूरी तरह पियानो को समय देता हूं। जब पेपर नहीं होते, तब हर वक्त पियानो मेरे साथ होता है, वह चाहे दिन हो या रात।

आखिर करनजीत को रिकॉ‌र्ड्स बनाने का विचार कहां से आया? इस सवाल के जवाब में वह एक और रोचक वाकया सुनाता है, मैंने अपने चाचा के घर लिम्का रिकॉर्ड बुक देखी थी। उसे पढकर बेहद प्रभावित हुआ। मेरे अंदर कुछ अलग कर दिखाने की कुलबुलाहट जोर मारने लगी। डैडी के कहने पर किताब में दिए गए फोन नंबर पर फोन घुमाया और लिम्का बुक ऑफ रिकॉ‌र्ड्स वाले ने बुलाया और बन गई बात!

वह बडा होकर पियानो मास्टर नहीं, म्यूजिक डायरेक्टर बनना चाहता है। करन इंजीनियरिंग की पढाई जरूर कर रहा है, लेकिन उसकी पहली प्राथमिकता म्यूजिक है। फिर उसने क्यों सिविल इंजीनियरिंग सब्जेक्ट को चुना? इस सवाल पर वह थोडा मजाकिया होकर कहता है, क्योंकि इसमें ड्रॉइंग भी बनानी पडती है।

रिकॉर्ड होल्डर है करनजीत.., यह सोचकर कैसा लगता है? करन कहता है, कुछ खास नहीं। हां, जब टीचर्स और बडे-बुजुर्ग प्रोत्साहित करते हैं, मुझ पर भरोसा जताते हैं, तो मेरा उत्साह दोगुना हो जाता है। लेकिन क्या कॉलेज के दोस्त भी उसे खास मानते हैं? करनजीत कहता है, नहीं, उन्हें लगता है कि ऐसे रिकॉ‌र्ड्स तो सभी बना सकते हैं। मैं भी ऐसा ही मानता हूं। हां, स्ट्रांग विल पॉवर और मोटिवेशन होनी चाहिए।

उम्मीद है करनजीत का विल पॉवर यूं ही ऊंचाइयों पर रहेगा और गिनीज बुक में दर्ज होने की उसकी ख्वाहिश जल्द ही पूरी होगी। ऑल द बेस्ट!

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