सोमवार, 31 मई 2010

काव्य-संसार

अमलतास : तीन बिंब

1 अच्छा लगता है
अमलतास
फूला-फूला इन दिनों
पके नींबू जैसे रंग के
फूलों के झूमर
कुछ इस कदर
औंधे लटकाए
मानो रोशनी के हंडे
उड़ेल रहा हो कोई
अँधेरे में खोई धरती को
उजियाले में लाने के लिए...।

2 अमलतास!
अनोखे हो तुम-अजूबे भी
तब फूलते हो जब
अँखुआना नहीं चाहती धरती
और जब पानी के बदले
आग बरस रही होती है धरती पर
फूलकर भी क्या कर लोगे
गंध तो तुममें है ही नहीं
और गुलदस्तों के लायक
तुम्हारे फूलों की उम्र होती भी नहीं।
3 तब ही अच्छा लगता है
अमलतास,
जब वह फूला-फूला हो
वरना उपयोगी होकर भी
फल उसके
डंडों की तरह औंधे मुँह
लटकते रहते हैं
मानो धरती पर तने हों
और कह रहे हों
खबरदार! जो मुझे बुरी
नजर से देखा तो!

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