पूजा किसे कहें!
नीना अग्रवाल
उन्होंने स्कार्पियो से उतर मंदिर में प्रवेश किया, शिव जी को जल चढ़ाया, फिर बारी-बारी से सभी देवी-देवताओं के सामने नतमस्तक होती रही। हम भी वहीं विधिवत पूजा अर्चना कर रहे थे। हमने सभी मूर्तियों के सामने दस-दस के नोट चढ़ाए, दान-पात्र में पचास रुपए का करारा नोट डाला। इन सौ-सवा सौ रुपए के बदले प्रभु से अनगिनत बार मिन्नतें कीं। पति की कमाई में दोगुनी बढ़ोतरी करें, बेटे की नौकरी लग जाए, बेटी की शादी किसी धनाढ्य खानदान में हो जाए। उधर हमारा ध्यान उन प्रौढ़ भक्त पर भी था जिन्होंने अभी तक प्रभु के चरणों में एक रुपया भी नहीं चढ़ाया था।
हमने सगर्व एक पचास रुपए का नोट पंडितजी को चरण स्पर्श करके दिया और प्रदर्शित किया, पूजा इसे कहते हैं। हम दोनों पूजा के बाद साथ ही मंदिर के बाहर निकले, हमें मंदिर के द्वार पर एक परिचित मिल गईं। हम उनसे बातें करने लगे मगर हमारा ध्यान उन्हीं कंजूस भक्तों पर रहा।
उधर उन्होंने अपनी गाड़ी से एक बड़ी सी डलिया निकाली, जिसमें से ताजा बने भोजन की भीनी-भीनी महक आ रही थी। वो मंदिर के बगल में बने आदिवासी आश्रम में गईं। तब तक हमारी परिचित जा चुकी थीं। अब वो प्रौढ़ा हमारे लिए जिज्ञासा का विषय बन गईं। हम आगे बढ़कर उनकी जासूसी करने लगे।
उन्होंने स्वयं अपने हाथों से पत्तलें बिछानी शुरू कीं, बच्चे हाथ धोकर टाट-पट्टी पर बैठने लगे। वो बड़े चाव से आलू-गोभी की सब्जी व गरमागरम पराठे उन मनुष्यमात्र में विद्यमान ईश्वर को परोस रही थीं। वाह रे मेरा अहंकार! हम इस भोली पवित्र मानसिकता में भक्ति को पनपी देख सोचने लगे, पूजा किसे कहते हैं।
मंगलवार, 29 जून 2010
प्रेरक व्यक्तित्व
उन्हें एक राष्ट्र के दो झंडे स्वीकार नहीं थे
बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है। स्व. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी इसी पावन बंगभूमि से पैदा हुए थे। 6 जुलाई, 1901 को उनका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे।
अभी केवल जीवन के आधे ही क्षण व्यतीत हो पाए थे कि हमारी भारतीय संस्कृति के नक्षत्र अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ. मुखर्जी की 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। यह क्या वास्तविक मौत थी या कोई साजिश? बरसों बाद भी ये राज, राज ही रहा। डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को चमत्कृत कर दिया था। महानता के सभी गुण उन्हें विरासत में मिले थे।
22 वर्ष की आयु में आपने एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष आपका विवाह भी सुधादेवी से हुआ। बाद में उनसे आपको दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं। आप 24 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। आपका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहाँ पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने आपको सम्मानित सदस्य बनाया। वहाँ से लौटने के बाद आप वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।
आपने कर्मक्षेत्र के रूप में 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। आपने गाँधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। एक बार आपने कहा-"वह दिन दूर नहीं जब गाँधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।" आपने नेहरूजी और गाँधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। यही कारण था कि आपको संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा।
अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में आपने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। आपने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। आपके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।
1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे आपके मन को गहरा आघात लगा। आपसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी आपको स्वीकार नहीं थे। अतः काश्मीर का भारत में विलय के लिए आपने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए आपने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।
अटलबिहारी वाजपेयी (तत्कालीन विदेश मंत्री), वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर आपने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद आपको जम्मू-काश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक आप जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में आपकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।
बंगाल ने कितने ही क्रांतिकारियों को जन्म दिया है। स्व. डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी भी इसी पावन बंगभूमि से पैदा हुए थे। 6 जुलाई, 1901 को उनका जन्म एक संभ्रांत परिवार में हुआ था। उनके पिता आशुतोष बाबू अपने जमाने ख्यात शिक्षाविद् थे।
अभी केवल जीवन के आधे ही क्षण व्यतीत हो पाए थे कि हमारी भारतीय संस्कृति के नक्षत्र अखिल भारतीय जनसंघ के संस्थापक तथा राजनीति व शिक्षा के क्षेत्र में सुविख्यात डॉ. मुखर्जी की 23 जून, 1953 को मृत्यु की घोषणा की गईं। यह क्या वास्तविक मौत थी या कोई साजिश? बरसों बाद भी ये राज, राज ही रहा। डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रतिभा से समाज को चमत्कृत कर दिया था। महानता के सभी गुण उन्हें विरासत में मिले थे।
22 वर्ष की आयु में आपने एमए की परीक्षा उत्तीर्ण की तथा उसी वर्ष आपका विवाह भी सुधादेवी से हुआ। बाद में उनसे आपको दो पुत्र और दो पुत्रियाँ हुईं। आप 24 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय सीनेट के सदस्य बने। आपका ध्यान गणित की ओर विशेष था। इसके अध्ययन के लिए वे विदेश गए तथा वहाँ पर लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी ने आपको सम्मानित सदस्य बनाया। वहाँ से लौटने के बाद आप वकालत तथा विश्वविद्यालय की सेवा में कार्यरत हो गए।
आपने कर्मक्षेत्र के रूप में 1939 से राजनीति में भाग लिया और आजीवन इसी में लगे रहे। आपने गाँधीजी व कांग्रेस की नीति का विरोध किया, जिससे हिन्दुओं को हानि उठानी पड़ी थी। एक बार आपने कहा-"वह दिन दूर नहीं जब गाँधीजी की अहिंसावादी नीति के अंधानुसरण के फलस्वरूप समूचा बंगाल पाकिस्तान का अधिकार क्षेत्र बन जाएगा।" आपने नेहरूजी और गाँधीजी की तुष्टिकरण की नीति का सदैव खुलकर विरोध किया। यही कारण था कि आपको संकुचित सांप्रदायिक विचार का द्योतक समझा जाने लगा।
अगस्त 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम मंत्रिमंडल में एक गैर-कांग्रेसी मंत्री के रूप में आपने वित्त मंत्रालय का काम संभाला। आपने चितरंजन में रेल इंजन का कारखाना, विशाखापट्टनम में जहाज बनाने का कारखाना एवं बिहार में खाद का कारखाने स्थापित करवाए। आपके सहयोग से ही हैदराबाद निजाम को भारत में विलीन होना पड़ा।
1950 में भारत की दशा दयनीय थी। इससे आपके मन को गहरा आघात लगा। आपसे यह देखा न गया और भारत सरकार की अहिंसावादी नीति के फलस्वरूप मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर संसद में विरोधी पक्ष की भूमिका का निर्वाह करने लगे। एक ही देश में दो झंडे और दो निशान भी आपको स्वीकार नहीं थे। अतः काश्मीर का भारत में विलय के लिए आपने प्रयत्न प्रारंभ कर दिए। इसके लिए आपने जम्मू की प्रजा परिषद पार्टी के साथ मिलकर आंदोलन छेड़ दिया।
अटलबिहारी वाजपेयी (तत्कालीन विदेश मंत्री), वैद्य गुरुदत्त, डॉ. बर्मन और टेकचंद आदि को लेकर आपने 8 मई 1953 को जम्मू के लिए कूच किया। सीमा प्रवेश के बाद आपको जम्मू-काश्मीर सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया। 40 दिन तक आप जेल में बंद रहे और 23 जून 1953 को जेल में आपकी रहस्यमय ढंग से मृत्यु हो गई।
क्या तुम जानते हो?
सलाम, टा-टा, बाय-बाय
विश्व की सभी सभ्यताओं में शिष्टाचार और विनम्र व्यवहार को बहुत महत्व दिया गया है। हर देश के प्राचीन इतिहास में 'छोटों द्वारा बड़ों को सलाम' करने की परंपरा रही है। प्राचीन राजाओं के दरबारों में 'सलाम पेश' करने के अलग-अलग तरीके थे। एक तरीका था - दूर से ही कमर झुकाकर दाहिने हाथ से बार-बार सलाम करते हुए बादशाह के साने आने का था।
एक तरीका घुटनों के बल चलकर या सामने बैठकर सलाम पेश करने का था। कई दरबारों में खासकर अँगरेजों के यहाँ टोपी, पगड़ी या साफा उतारकर सलाम पेश किया जाता था। गरीब जनता, हिंदुस्तान में हाथों को जोड़कर विनम्र भाव से सलाम करती है। जब समान हस्ती वाले बादशाह या राजा मिलते थे तो वे अपने देश में प्रचलित सलाम या अभिवादन का वह तरीका अपनाते थे जो उनकी गरिमा वाले लोगों के लिए उस देश में संवैधानिक रूप से स्वीकृत होता था।
आजकल एक देश का राज्याध्यक्ष दूसरे राज्याध्यक्ष से मिलने जाता है तो उसके लिए दोनों देश के अधिकार पहले से मिलकर अभिवादन से लेकर विदा तक के शिष्टाचार संबंधी प्रचलित नियमों की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं और फिर राज्याध्यक्ष के दौरे के दौरान दोनों देश उनके अनुसार व्यवहार करते हैं। आज शिष्टाचार सामाजिक-राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गया है।
विश्व की सभी सभ्यताओं में शिष्टाचार का एक अन्य शब्द है - थैंक यू या धन्यवाद। अँगरेजी में थैंक्स शब्द उसी स्रोत से निकला है जिससे जर्मन का शब्द 'डॉके' निकला है और दोनों शब्दों का एक ही स्रोत खोजा जाए तो अंतत: दोनों ही प्रोटोमर्जिक शब्द 'थैंकोजान' से निकलते हैं। वास्तव में 'थैंक' करना 'थिंक' शब्द से जुड़ा है। ऐसा लगता है कि इसका स्रोत भी सरलतम तरीका है। जब भी हम किसी से सेवा, मदद या सहायता लेते हैं तो हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम उसका 'थैंक्स' अदा करें। सभ्यता का यह नियम इतना अच्छा माना गया है कि विश्व का शायद ही ऐसा कोई देश हो जहाँ इसका वहाँ की भाषा में 'पर्यायवाची' शब्द का प्रयोग न होता हो। यह भी उल्लेखनीय है कि 'आभार न मानना' किसी भी सभ्यता में धृष्टता माना जाता है। उर्दू में 'शुक्रिया', 'शुक्र गुजार, कृतज्ञ का विलोम है 'नाशुक्रा' (शुक्रिया अदा न करने वाला)। 'शुक्राने की नमाज' पढ़ने का इस्लाम में बड़ा महत्व माना गया है। खञदा से माँगी दुआ जब पूरी होती है तो शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ी गई विशेष नमाज को 'शुक्राने' की नमाज कहते हैं।
'टा-टा' और 'बाय-बाय' या 'गुड बाय' एक ही क्रिया की अलग-अलग अभिव्यक्तियों वाले शब्द हैं। यह क्रिया ह 'गुड-बाय' या 'अलविदा'। जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह आपस में विदा लेता है तो वे संक्षिप्त में 'गुड नाइट' न कहकर 'गुड बाय' कहते हैं। ऐसा कहकर वे एक-दूसरे के प्रति शुभकामना प्रकट करते हैं कि आपकी रात सुखद बीते या 'गुड डे' दिन सुखद बीते।
'बाय-बाय' का प्रयोग पहली बार 1823 में एक शिशु द्वारा रिकॉर्ड की गई रेडियो वार्ता में किया गया। इसके बाद 'टा-टा-फॉर-नाउ' (अभी के लिए विदा दीजिए) का प्रयोग बीबीसी ने 1941 में अपने एक प्रोग्राम 'इटमा' में किया। इस कार्यक्रम में क्रॉकरी धोने वाली चरित्र मिसेज मौपप द्वारा बोले गए डायलॉग को स्वर दिया था डोरोथी समर्स ने। 'बाय-बाय' को जापानी 'सायोनारा' कहते हैं। दरअसल, यह (हैप्पी जर्नी) यात्रा शुभ हो कहना का एक अंदाज है। इन दो शब्दों में शुभकामना और अभिलाषाओं का भंडार भरा है, इसलिए उस भंडार की अभिव्यक्ति केवल शब्दों से की जाती है।
(लेखक 'पराग' के पूर्व संपादक और प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं।)
विश्व की सभी सभ्यताओं में शिष्टाचार और विनम्र व्यवहार को बहुत महत्व दिया गया है। हर देश के प्राचीन इतिहास में 'छोटों द्वारा बड़ों को सलाम' करने की परंपरा रही है। प्राचीन राजाओं के दरबारों में 'सलाम पेश' करने के अलग-अलग तरीके थे। एक तरीका था - दूर से ही कमर झुकाकर दाहिने हाथ से बार-बार सलाम करते हुए बादशाह के साने आने का था।
एक तरीका घुटनों के बल चलकर या सामने बैठकर सलाम पेश करने का था। कई दरबारों में खासकर अँगरेजों के यहाँ टोपी, पगड़ी या साफा उतारकर सलाम पेश किया जाता था। गरीब जनता, हिंदुस्तान में हाथों को जोड़कर विनम्र भाव से सलाम करती है। जब समान हस्ती वाले बादशाह या राजा मिलते थे तो वे अपने देश में प्रचलित सलाम या अभिवादन का वह तरीका अपनाते थे जो उनकी गरिमा वाले लोगों के लिए उस देश में संवैधानिक रूप से स्वीकृत होता था।
आजकल एक देश का राज्याध्यक्ष दूसरे राज्याध्यक्ष से मिलने जाता है तो उसके लिए दोनों देश के अधिकार पहले से मिलकर अभिवादन से लेकर विदा तक के शिष्टाचार संबंधी प्रचलित नियमों की जानकारी प्राप्त कर लेते हैं और फिर राज्याध्यक्ष के दौरे के दौरान दोनों देश उनके अनुसार व्यवहार करते हैं। आज शिष्टाचार सामाजिक-राजनीतिक जीवन का महत्वपूर्ण अंग बन गया है।
विश्व की सभी सभ्यताओं में शिष्टाचार का एक अन्य शब्द है - थैंक यू या धन्यवाद। अँगरेजी में थैंक्स शब्द उसी स्रोत से निकला है जिससे जर्मन का शब्द 'डॉके' निकला है और दोनों शब्दों का एक ही स्रोत खोजा जाए तो अंतत: दोनों ही प्रोटोमर्जिक शब्द 'थैंकोजान' से निकलते हैं। वास्तव में 'थैंक' करना 'थिंक' शब्द से जुड़ा है। ऐसा लगता है कि इसका स्रोत भी सरलतम तरीका है। जब भी हम किसी से सेवा, मदद या सहायता लेते हैं तो हमसे अपेक्षा की जाती है कि हम उसका 'थैंक्स' अदा करें। सभ्यता का यह नियम इतना अच्छा माना गया है कि विश्व का शायद ही ऐसा कोई देश हो जहाँ इसका वहाँ की भाषा में 'पर्यायवाची' शब्द का प्रयोग न होता हो। यह भी उल्लेखनीय है कि 'आभार न मानना' किसी भी सभ्यता में धृष्टता माना जाता है। उर्दू में 'शुक्रिया', 'शुक्र गुजार, कृतज्ञ का विलोम है 'नाशुक्रा' (शुक्रिया अदा न करने वाला)। 'शुक्राने की नमाज' पढ़ने का इस्लाम में बड़ा महत्व माना गया है। खञदा से माँगी दुआ जब पूरी होती है तो शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ी गई विशेष नमाज को 'शुक्राने' की नमाज कहते हैं।
'टा-टा' और 'बाय-बाय' या 'गुड बाय' एक ही क्रिया की अलग-अलग अभिव्यक्तियों वाले शब्द हैं। यह क्रिया ह 'गुड-बाय' या 'अलविदा'। जब दो या दो से अधिक व्यक्तियों का समूह आपस में विदा लेता है तो वे संक्षिप्त में 'गुड नाइट' न कहकर 'गुड बाय' कहते हैं। ऐसा कहकर वे एक-दूसरे के प्रति शुभकामना प्रकट करते हैं कि आपकी रात सुखद बीते या 'गुड डे' दिन सुखद बीते।
'बाय-बाय' का प्रयोग पहली बार 1823 में एक शिशु द्वारा रिकॉर्ड की गई रेडियो वार्ता में किया गया। इसके बाद 'टा-टा-फॉर-नाउ' (अभी के लिए विदा दीजिए) का प्रयोग बीबीसी ने 1941 में अपने एक प्रोग्राम 'इटमा' में किया। इस कार्यक्रम में क्रॉकरी धोने वाली चरित्र मिसेज मौपप द्वारा बोले गए डायलॉग को स्वर दिया था डोरोथी समर्स ने। 'बाय-बाय' को जापानी 'सायोनारा' कहते हैं। दरअसल, यह (हैप्पी जर्नी) यात्रा शुभ हो कहना का एक अंदाज है। इन दो शब्दों में शुभकामना और अभिलाषाओं का भंडार भरा है, इसलिए उस भंडार की अभिव्यक्ति केवल शब्दों से की जाती है।
(लेखक 'पराग' के पूर्व संपादक और प्रसिद्ध बाल साहित्यकार हैं।)
कुख्यात से मिसाल बना गाँव
काठेवाडी गाँव का कायाकल्प
महाराष्ट्र के नांदेड जिले का एक छोटा सा गाँव है काठेवाडी। गाँव की आबादी मात्र ७०० है। तहसील डेगलुर के इस छोटे से गाँव का आज दूर-दूर तक नाम है। नाम है अच्छाई है लिए। इस गाँव को लोग पहले भी जानते थे पर बदमाशी के लिए। गाँव का नाम लेते ही लोगों में डर भर जाता था। गाँव की ज्यादातर आबादी पियक्कड़ थी। लोग पूरे दिन जमकर दारू पीते और बीड़ी फूँकते थे।
गाँव में किसी तरह की कोई सुविधा नहीं थी। लोग पक्के पियक्कड़ थे सो लड़ाई-झगड़े में आगे रहते थे। जिसने टोका, उसी को ठोक दिया। आसपास के लोग गाँव के नजदीक आने-जाने से भी डरते थे। लोग खूब पीते थे, इस कारण कोई दूसरे को कुछ समझता भी नहीं था। गाँव की हालत यह हो गई कि ज्यादातर लोग बीमार पड़ने लगे। ऐसे में आर्ट ऑफ लिविंग ने गाँव को सुधारने का बीड़ा उठाया।
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने यह काम सौंपा एक अध्यापक को। आज यह गाँव पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है। गाँव में कोई दारू-बीड़ी नहीं पीता। लगता है जैसे गाँव में रामराज्य है। लोग दुकान से सामान खरीदते हैं, तिजोरी में पैसा डालते हैं और चल देते हैं। यह गाँव में सबसे बड़ा बदलाव है। रोजाना की जरूरत की हर चीज दुकान पर मिल जाती है।
श्री श्री रविशंकर ने बताया कि गाँव में रामराज्य लाने का यह विचार उन्हें जर्मनी के एक गाँव की व्यवस्था से आया। जर्मनी में आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम के पास एक गाँव है। इस गाँव में फलों के एक बगीचे में बिना दुकानदार फल बेचे जाते हैं। एक बोर्ड पर फलों के दाम लिखे होते हैं। खरीदार आते हैं, फलों की थैली उठाते हैं और तय दाम एक डिब्बे में डाल देते हैं। उन्होंने बताया कि जब काठेवाडी गाँव की समस्या उनके सामने आई तो, इस विचार को यहां साकार करने के बारे में सोचा गया।
कमाल की बात यह रही है कि दो साल में ही गाँव की काया पलट हो गई। आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों ने गाँव में पहला नवचेतना शिविर लगाया। संस्था ने अपने फाइव एच (हेल्थ, होम, हाइजीन, ह्यूमन वैल्यूस, ह्यूमनिटी इन डाइवर्सिटी) कार्यक्रम के तहत गाँववालों को बदलने का काम शुरू किया। आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों ने गाँव के स्वास्थ्य, घर, स्वच्छता, मानवीय मूल्यों और मानवीय विविधता (फाइव एच) कार्यक्रम के तहत गाँववालों पर अच्छा असर हुआ। शुरुआत में कम लोग उनके अभियान में शामिल हुए।
गाँव को सबसे पहले दारू और धूम्रपान मुक्तकराने की पहल हुई। इस काम में गाँव के युवकों ने सबसे ज्यादा साथ दिया। सारे गाँववालों से तंबाकू और बीड़ी लेकर जमा की गई। बाद में इसे जला दिया गया। लगभग १३ हजार रुपए का तंबाकू का सामान जलाया गया। छोटे से गाँव के लोगों के लिए यह बड़ी रकम थी। स्वस्थ रहने के लिए उन्होंने तंबाकू के साथ ही दारू पीने से तौबा कर ली। आज हालत यह है कि गाँव पूरी तरह दारू और धूम्रपान से मुक्त है।
लिविंग ऑफ आर्ट के स्वयंसेवकों ने बताया कि शुरुआत में गाँववालों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। कुछ दिन बाद कुछ गाँव वाले कार्यक्रम में शामिल होने लगे। आज २०० से ज्यादा गाँव वाले कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं। लगभग ५०० लोग विभिन्न कार्यक्रमों में शरीक होते हैं। इसके साथ ही आसपास के गाँवों के लोगों को भी अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरणा देते हैं। गाँव में सुविधाएँ जुटाने के लिए भी गाँववाले ही पैसा इकट्ठा करते हैं। इसके लिए एक दान पेटी बनाई गई है। सुबह-सुबह दान पेटी पूरे गाँव में घुमाई जाती है। जिसकी जितनी इच्छा होती है दान पेटी में धन डालता है। स्वच्छता अभियान के तहत गाँव के लोग सड़कों, मंदिर, समुदाय भवन और अन्य इलाकों की सफाई करते हैं।
गाँव में दो साल पहले किसी भी घर में शौचालय नहीं था। महिलाओं को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता था। दिन में शौच न जाने के कारण महिलाओं का स्वास्थ्य खराब रहता था। आज गाँव में हर घर में शौचालय है। आर्ट ऑफ लिविंग ने अभियान के तहत 110 शौचायलों का निर्माण कराया। बिना किसी सरकारी सहायता के हर घर में शौचालय के निर्माण को बड़े पैमाने पर प्रशंसा मिली। गाँव को राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने निर्मल गाँव पुरस्कार से सम्मानित किया। केंद्र सरकार की तरफ से गाँव में विकास कार्य के लिए 50 हजार रुपए का अनुदान दिया गया। गाँव को पूरी तरह से दारू और तंबाकू से मुक्त होने पर महाराष्ट्र सरकार ने टंटा मुक्ति अभियान से सम्मानित किया। इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने सवा लाख रुपए भेंट किए।
पियक्कड़ों का गाँव पूरी तरह शराब और तंबाकू से मुक्त, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सम्मानित किया, केंद्र सरकार ने ५० हजार रुपए दिए, अब हर घर में है शौचालय, महाराष्ट्र सरकार ने भी सम्मानित किया। गाँव में एक और बड़ा बदलाव आया। यह है सूदखोरों से मुक्ति। इसके लिए गाँव में स्वयं सहायता समूह बनाया गया। महिला और पुरुष अलग-अलग समूह में काम करते हैं। हर महीने एक तय राशि बैंक में जमा करते हैं। जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की सहायता करते हैं। हालत यह है कि गाँव में सूद पर पैसा देने वालों का आना ही बंद कर दिया गया है।
गाँव की कायापलट की प्रशंसा करते हुए रविशंकर कहते हैं कि अगर आप समाज के प्रति समर्पित हो तो समाज का पूरा समर्थन आपको मिलता है। समर्पण से लंबे समय के बाद फायदा मिलता है। अपनी प्रतिबद्धता से इस दुनिया को जीने के लिए अच्छा स्थान बनाओ। सफलता मिलेगी।
महाराष्ट्र के नांदेड जिले का एक छोटा सा गाँव है काठेवाडी। गाँव की आबादी मात्र ७०० है। तहसील डेगलुर के इस छोटे से गाँव का आज दूर-दूर तक नाम है। नाम है अच्छाई है लिए। इस गाँव को लोग पहले भी जानते थे पर बदमाशी के लिए। गाँव का नाम लेते ही लोगों में डर भर जाता था। गाँव की ज्यादातर आबादी पियक्कड़ थी। लोग पूरे दिन जमकर दारू पीते और बीड़ी फूँकते थे।
गाँव में किसी तरह की कोई सुविधा नहीं थी। लोग पक्के पियक्कड़ थे सो लड़ाई-झगड़े में आगे रहते थे। जिसने टोका, उसी को ठोक दिया। आसपास के लोग गाँव के नजदीक आने-जाने से भी डरते थे। लोग खूब पीते थे, इस कारण कोई दूसरे को कुछ समझता भी नहीं था। गाँव की हालत यह हो गई कि ज्यादातर लोग बीमार पड़ने लगे। ऐसे में आर्ट ऑफ लिविंग ने गाँव को सुधारने का बीड़ा उठाया।
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर ने यह काम सौंपा एक अध्यापक को। आज यह गाँव पूरे देश के लिए एक मिसाल बन गया है। गाँव में कोई दारू-बीड़ी नहीं पीता। लगता है जैसे गाँव में रामराज्य है। लोग दुकान से सामान खरीदते हैं, तिजोरी में पैसा डालते हैं और चल देते हैं। यह गाँव में सबसे बड़ा बदलाव है। रोजाना की जरूरत की हर चीज दुकान पर मिल जाती है।
श्री श्री रविशंकर ने बताया कि गाँव में रामराज्य लाने का यह विचार उन्हें जर्मनी के एक गाँव की व्यवस्था से आया। जर्मनी में आर्ट ऑफ लिविंग आश्रम के पास एक गाँव है। इस गाँव में फलों के एक बगीचे में बिना दुकानदार फल बेचे जाते हैं। एक बोर्ड पर फलों के दाम लिखे होते हैं। खरीदार आते हैं, फलों की थैली उठाते हैं और तय दाम एक डिब्बे में डाल देते हैं। उन्होंने बताया कि जब काठेवाडी गाँव की समस्या उनके सामने आई तो, इस विचार को यहां साकार करने के बारे में सोचा गया।
कमाल की बात यह रही है कि दो साल में ही गाँव की काया पलट हो गई। आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों ने गाँव में पहला नवचेतना शिविर लगाया। संस्था ने अपने फाइव एच (हेल्थ, होम, हाइजीन, ह्यूमन वैल्यूस, ह्यूमनिटी इन डाइवर्सिटी) कार्यक्रम के तहत गाँववालों को बदलने का काम शुरू किया। आर्ट ऑफ लिविंग के स्वयंसेवकों ने गाँव के स्वास्थ्य, घर, स्वच्छता, मानवीय मूल्यों और मानवीय विविधता (फाइव एच) कार्यक्रम के तहत गाँववालों पर अच्छा असर हुआ। शुरुआत में कम लोग उनके अभियान में शामिल हुए।
गाँव को सबसे पहले दारू और धूम्रपान मुक्तकराने की पहल हुई। इस काम में गाँव के युवकों ने सबसे ज्यादा साथ दिया। सारे गाँववालों से तंबाकू और बीड़ी लेकर जमा की गई। बाद में इसे जला दिया गया। लगभग १३ हजार रुपए का तंबाकू का सामान जलाया गया। छोटे से गाँव के लोगों के लिए यह बड़ी रकम थी। स्वस्थ रहने के लिए उन्होंने तंबाकू के साथ ही दारू पीने से तौबा कर ली। आज हालत यह है कि गाँव पूरी तरह दारू और धूम्रपान से मुक्त है।
लिविंग ऑफ आर्ट के स्वयंसेवकों ने बताया कि शुरुआत में गाँववालों ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। कुछ दिन बाद कुछ गाँव वाले कार्यक्रम में शामिल होने लगे। आज २०० से ज्यादा गाँव वाले कार्यक्रमों से जुड़े हुए हैं। लगभग ५०० लोग विभिन्न कार्यक्रमों में शरीक होते हैं। इसके साथ ही आसपास के गाँवों के लोगों को भी अच्छा जीवन जीने के लिए प्रेरणा देते हैं। गाँव में सुविधाएँ जुटाने के लिए भी गाँववाले ही पैसा इकट्ठा करते हैं। इसके लिए एक दान पेटी बनाई गई है। सुबह-सुबह दान पेटी पूरे गाँव में घुमाई जाती है। जिसकी जितनी इच्छा होती है दान पेटी में धन डालता है। स्वच्छता अभियान के तहत गाँव के लोग सड़कों, मंदिर, समुदाय भवन और अन्य इलाकों की सफाई करते हैं।
गाँव में दो साल पहले किसी भी घर में शौचालय नहीं था। महिलाओं को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता था। दिन में शौच न जाने के कारण महिलाओं का स्वास्थ्य खराब रहता था। आज गाँव में हर घर में शौचालय है। आर्ट ऑफ लिविंग ने अभियान के तहत 110 शौचायलों का निर्माण कराया। बिना किसी सरकारी सहायता के हर घर में शौचालय के निर्माण को बड़े पैमाने पर प्रशंसा मिली। गाँव को राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने निर्मल गाँव पुरस्कार से सम्मानित किया। केंद्र सरकार की तरफ से गाँव में विकास कार्य के लिए 50 हजार रुपए का अनुदान दिया गया। गाँव को पूरी तरह से दारू और तंबाकू से मुक्त होने पर महाराष्ट्र सरकार ने टंटा मुक्ति अभियान से सम्मानित किया। इसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने सवा लाख रुपए भेंट किए।
पियक्कड़ों का गाँव पूरी तरह शराब और तंबाकू से मुक्त, राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने सम्मानित किया, केंद्र सरकार ने ५० हजार रुपए दिए, अब हर घर में है शौचालय, महाराष्ट्र सरकार ने भी सम्मानित किया। गाँव में एक और बड़ा बदलाव आया। यह है सूदखोरों से मुक्ति। इसके लिए गाँव में स्वयं सहायता समूह बनाया गया। महिला और पुरुष अलग-अलग समूह में काम करते हैं। हर महीने एक तय राशि बैंक में जमा करते हैं। जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे की सहायता करते हैं। हालत यह है कि गाँव में सूद पर पैसा देने वालों का आना ही बंद कर दिया गया है।
गाँव की कायापलट की प्रशंसा करते हुए रविशंकर कहते हैं कि अगर आप समाज के प्रति समर्पित हो तो समाज का पूरा समर्थन आपको मिलता है। समर्पण से लंबे समय के बाद फायदा मिलता है। अपनी प्रतिबद्धता से इस दुनिया को जीने के लिए अच्छा स्थान बनाओ। सफलता मिलेगी।
रविवार, 27 जून 2010
क्या तुम जानते हो?
पेले बनना चाहते थे पायलट
एडीसन एरनटेस डो नासाअमेंटो का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ। इतने बड़े नाम से बुलाने में दिक्कत होती थी तो इस बालक का प्यार का नाम रखा गया "डिको"। डिको ने अभी स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया था कि परिवार की गरीबी दूर करने के लिए उसे जूते पॉलिश का काम करना पड़ा।
डिको के पिता एक साधारण फुटबॉल खिलाड़ी थे और उन्हें देखकर छोटी उम्र में डिको को फुटबॉल का शौक लगा। हालाँकि पिता का फुटबॉल खेलना हमेशा घर में माँ की चिढ़ और झगड़े का कारण बना रहता था क्योंकि इस शौक ने घर को तंगहाली में ला पटका था। नन्हे डिको ने महसूसा कि गरीबी बहुत बुरी चीज है और यह सपने छीन लेती है।
कुछ समय बाद डिको की स्कूली पढ़ाई शुरू हुई। वह स्कूल गया तो उसके दोस्तों ने एक गोलकीपर बिले के नाम पर चिढ़ाते हुए उसे पेले नाम दिया। डिको को अपने इस नए नाम से चिढ़ थी पर वह जितना चिढ़ता गया यह नया नाम उतना उसके साथ चिपकता गया। डिको अब पेले बन गया। स्कूल के दिनों में वह अपने घर की गरीबी दूर करने के लिए पायलट बनने का सपना देखता था। खाली समय में फुटबॉल भी खेलता था।
फुटबॉल खेलना सीखने के लिए वह किसी क्लब में भर्ती होना तो चाहता था पर वह ऐसा कर नहीं सकता था क्योंकि घर की माली हालत इसकी इजाजत नहीं देती थी। पेले ने पिता से ही फुटबॉल सीखना शुरू किया। उसके पास फुटबॉल खरीदने के भी पैसे नहीं होते थे तो पेले के दोस्त गली में कागज से और कपड़े की गेंद बनाकर फुटबॉल खेलते। इन्हीं दोस्तों के साथ मिलकर पेले ने पहला फुटबॉल क्लब बनाया था।
जब पेले १२ साल का था तब उसने एक क्लब से जुड़कर फुटबॉल प्रतियोगिता में भाग लिया और सबसे ज्यादा गोल मारकर अपनी टीम को जिता ले गया। इसी समय हवाई जहाज उड़ाने का विचार छूट गया और उसके दिमाग में फुटबॉल धमाचौकड़ी मचाने लगी। मगर परीक्षा अभी खत्म नहीं हुई थी। कुछ समय बाद क्लब बंद हो गया और पेले का स्कूल जाना भी। पुराने दोस्तों ने मदद की और पेले एक जूनियर क्लब से जुड़ा। उसकी जिंदगी में निर्णायक मोड़ तब आया जब पता चला कि इस नए क्लब में उसे ब्राजील के स्टार फुटबॉलर व्लादेमर डी ब्रिटो कोचिंग देंगे।
एक साल तक ब्रिटो ने पेले को फुटबॉल खेलना सिखाया और फिर किन्हीं कारणों से क्लब से अलग हो गए। पेले के करियर पर फिर से प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया। तब सीनियर टिम नाम के खिलाड़ी ने पेले और उसके दोस्तों को कोचिंग देना शुरू किया। टिम ने ही पेले को एक बड़े क्लब से जुड़ने में मदद की। पेले के परिवार के लिए यह खुशी का बड़ा मौका बना, क्योंकि उसके पिता जीवनभर जिस बात के लिए तरसते रहे वह उनके बेटे को मिल रही थी।
पेले जब अपने शहर से बड़ी जगह खेलने जा रहा था तो उसकी माँ को चिंता भीहुई कि उसके बेटे की उम्र अभी 14 साल ही है और वह घर से दूर कैसे रहेगा। पेले भी घर से ज्यादा जुड़ाव रखता था। यहाँ ब्रिटो एक बार फिर पहले के लिए ईश्वर का अवतार बनकर आए।
उन्होंने पेले की सेंटोज क्लब से जुड़ने में मदद की। यह उन दिनों बहुत ही जाना माना फुटबॉल क्लब था। पेले शुरुआत में शरीर से कमजोर था, क्योंकि उसका बचपन रूखा-सूखा खाकर गुजरा था।
शारीरिक रूप से मजबूत नहीं होने के कारण उसका चयन सीनियर टीम में नहीं हो सका। पर यहाँ पेले को रोजाना अच्छा खानपान मिलने लगा ताकि वह मजबूत खिलाड़ी बन सके। पेले को यहाँ अपने घर की बहुत याद आती थी और एक बार तो वह अपना सामान लेकर भी आ गया था। पर लक्ष्य को याद करके वह अभ्यास पर लौट आया।
पेले को 15 साल की उम्र में पहला बड़ा अवसर मिला जब एक शीर्ष खिलाड़ी चोटिल हो गया। अपने दूसरे मैच में पेले ने अपने करियर का पहला गोल मारा। पेले को मालूम नहीं हुआ पर यहाँ से उसकी उड़ान शुरू हो गई। क्लब फुटबॉल खेलते हुए पेले ने सभी को अपने खेल से चकित कर दिया और फिर एक दिन रेडियो पर 1958 में स्वीडन में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए ब्राजील टीम में चुने जाने की सूचना पाकर पेले की आँख से आँसू आ गए।
1958 से पहले ब्राजील ने कोई वर्ल्ड कप नहीं जीता था। पेले टीम में चुना गया पर स्वीडन के वर्ल्ड कप में क्वार्टर फाइनल तक वह एक भी गोल नहीं कर पाया। वेल्स के विरुद्ध क्वार्टर फाइनल में उसने यादगार गोल किया। इसी गोल से ब्राजील जीता। पूरा स्वीडन पेले के खेल कौशल का दीवाना हो गया। सेमीफाइनल में ब्राजील ने फ्रांस को 5-2 से हराया। पेले ने हैट्रिक लगाई।
पेले ने अद्भुत खेल से ब्राजील को पहला विश्वकप जितवा दिया। घर लौटी ब्राजील टीम का लोगों ने बहुत स्वागत किया। लोगों की जुबान पर एक ही नाम था पेले... पेले...। पेले के मन में अपने पिता और दोस्तों की स्मृति ताजा थी।
एडीसन एरनटेस डो नासाअमेंटो का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ। इतने बड़े नाम से बुलाने में दिक्कत होती थी तो इस बालक का प्यार का नाम रखा गया "डिको"। डिको ने अभी स्कूल जाना भी शुरू नहीं किया था कि परिवार की गरीबी दूर करने के लिए उसे जूते पॉलिश का काम करना पड़ा।
डिको के पिता एक साधारण फुटबॉल खिलाड़ी थे और उन्हें देखकर छोटी उम्र में डिको को फुटबॉल का शौक लगा। हालाँकि पिता का फुटबॉल खेलना हमेशा घर में माँ की चिढ़ और झगड़े का कारण बना रहता था क्योंकि इस शौक ने घर को तंगहाली में ला पटका था। नन्हे डिको ने महसूसा कि गरीबी बहुत बुरी चीज है और यह सपने छीन लेती है।
कुछ समय बाद डिको की स्कूली पढ़ाई शुरू हुई। वह स्कूल गया तो उसके दोस्तों ने एक गोलकीपर बिले के नाम पर चिढ़ाते हुए उसे पेले नाम दिया। डिको को अपने इस नए नाम से चिढ़ थी पर वह जितना चिढ़ता गया यह नया नाम उतना उसके साथ चिपकता गया। डिको अब पेले बन गया। स्कूल के दिनों में वह अपने घर की गरीबी दूर करने के लिए पायलट बनने का सपना देखता था। खाली समय में फुटबॉल भी खेलता था।
फुटबॉल खेलना सीखने के लिए वह किसी क्लब में भर्ती होना तो चाहता था पर वह ऐसा कर नहीं सकता था क्योंकि घर की माली हालत इसकी इजाजत नहीं देती थी। पेले ने पिता से ही फुटबॉल सीखना शुरू किया। उसके पास फुटबॉल खरीदने के भी पैसे नहीं होते थे तो पेले के दोस्त गली में कागज से और कपड़े की गेंद बनाकर फुटबॉल खेलते। इन्हीं दोस्तों के साथ मिलकर पेले ने पहला फुटबॉल क्लब बनाया था।
जब पेले १२ साल का था तब उसने एक क्लब से जुड़कर फुटबॉल प्रतियोगिता में भाग लिया और सबसे ज्यादा गोल मारकर अपनी टीम को जिता ले गया। इसी समय हवाई जहाज उड़ाने का विचार छूट गया और उसके दिमाग में फुटबॉल धमाचौकड़ी मचाने लगी। मगर परीक्षा अभी खत्म नहीं हुई थी। कुछ समय बाद क्लब बंद हो गया और पेले का स्कूल जाना भी। पुराने दोस्तों ने मदद की और पेले एक जूनियर क्लब से जुड़ा। उसकी जिंदगी में निर्णायक मोड़ तब आया जब पता चला कि इस नए क्लब में उसे ब्राजील के स्टार फुटबॉलर व्लादेमर डी ब्रिटो कोचिंग देंगे।
एक साल तक ब्रिटो ने पेले को फुटबॉल खेलना सिखाया और फिर किन्हीं कारणों से क्लब से अलग हो गए। पेले के करियर पर फिर से प्रश्नचिह्न खड़ा हो गया। तब सीनियर टिम नाम के खिलाड़ी ने पेले और उसके दोस्तों को कोचिंग देना शुरू किया। टिम ने ही पेले को एक बड़े क्लब से जुड़ने में मदद की। पेले के परिवार के लिए यह खुशी का बड़ा मौका बना, क्योंकि उसके पिता जीवनभर जिस बात के लिए तरसते रहे वह उनके बेटे को मिल रही थी।
पेले जब अपने शहर से बड़ी जगह खेलने जा रहा था तो उसकी माँ को चिंता भीहुई कि उसके बेटे की उम्र अभी 14 साल ही है और वह घर से दूर कैसे रहेगा। पेले भी घर से ज्यादा जुड़ाव रखता था। यहाँ ब्रिटो एक बार फिर पहले के लिए ईश्वर का अवतार बनकर आए।
उन्होंने पेले की सेंटोज क्लब से जुड़ने में मदद की। यह उन दिनों बहुत ही जाना माना फुटबॉल क्लब था। पेले शुरुआत में शरीर से कमजोर था, क्योंकि उसका बचपन रूखा-सूखा खाकर गुजरा था।
शारीरिक रूप से मजबूत नहीं होने के कारण उसका चयन सीनियर टीम में नहीं हो सका। पर यहाँ पेले को रोजाना अच्छा खानपान मिलने लगा ताकि वह मजबूत खिलाड़ी बन सके। पेले को यहाँ अपने घर की बहुत याद आती थी और एक बार तो वह अपना सामान लेकर भी आ गया था। पर लक्ष्य को याद करके वह अभ्यास पर लौट आया।
पेले को 15 साल की उम्र में पहला बड़ा अवसर मिला जब एक शीर्ष खिलाड़ी चोटिल हो गया। अपने दूसरे मैच में पेले ने अपने करियर का पहला गोल मारा। पेले को मालूम नहीं हुआ पर यहाँ से उसकी उड़ान शुरू हो गई। क्लब फुटबॉल खेलते हुए पेले ने सभी को अपने खेल से चकित कर दिया और फिर एक दिन रेडियो पर 1958 में स्वीडन में होने वाले वर्ल्ड कप के लिए ब्राजील टीम में चुने जाने की सूचना पाकर पेले की आँख से आँसू आ गए।
1958 से पहले ब्राजील ने कोई वर्ल्ड कप नहीं जीता था। पेले टीम में चुना गया पर स्वीडन के वर्ल्ड कप में क्वार्टर फाइनल तक वह एक भी गोल नहीं कर पाया। वेल्स के विरुद्ध क्वार्टर फाइनल में उसने यादगार गोल किया। इसी गोल से ब्राजील जीता। पूरा स्वीडन पेले के खेल कौशल का दीवाना हो गया। सेमीफाइनल में ब्राजील ने फ्रांस को 5-2 से हराया। पेले ने हैट्रिक लगाई।
पेले ने अद्भुत खेल से ब्राजील को पहला विश्वकप जितवा दिया। घर लौटी ब्राजील टीम का लोगों ने बहुत स्वागत किया। लोगों की जुबान पर एक ही नाम था पेले... पेले...। पेले के मन में अपने पिता और दोस्तों की स्मृति ताजा थी।
कहानी
'अतिथि भगवान होता है'
रेगिस्तान को पार करते हुए दो यात्रियों ने एक खानाबदोश बेदुइन की झोपड़ी को देखा और ठहरने की इजाजत माँगी। जैसे सभी बंजारा जातियाँ करती हैं, बेदुइन ने बहुत हर्षोल्लास से उनका स्वागत किया और उनकी दावत के लिए एक ऊँट को जिबह करके बेहतरीन भोजन परोसा।
अगले दिन दोनों यात्री तड़के ही उठ गए और उन्होंने यात्रा जारी रखने का निश्चय किया। बेदुइन उस वक्त घर पर नहीं था इसलिए उन्होंने उसकी पत्नी को सौ दीनार दिए और अलसुबह चलने के लिए इजाजत माँगी। उन्होंने कहा कि ज्यादा देर करने पर सूरज चढ़ जाएगा और उन्हें यात्रा करने में असुविधा होगी।
वे लगभग चार घंटे तक रेगिस्तान में चलते रहे। उन्होंने पीछे से किसी को पुकार लगाते सुना। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, बेदुइन आ रहा था। पास आने पर बेदुइन ने दीनारों की पोटली रेत पर फेंक दी। बेदुइन ने कहा- 'क्या तुम लोगों को यह सोचकर शर्म नहीं आती कि मैंने कितनी खुशी से तुम दोनों का अपनी झोपड़ी में स्वागत किया था!'
यात्री आश्चर्यचकित थे। उनमें से एक ने कहा- 'हमें जितना ठीक लगा उतना हमने दे दिया। इतने दीनारों में तो तुम तीन ऊँट खरीद सकते हो।'
'मैं ऊँट और दीनारों की बात नहीं कर रहा हूँ!' बेदुइन ने कहा, 'यह रेगिस्तान हमारा सब कुछ है। यह हमें हर कहीं जाने देता है और हमसे बदले में कुछ नहीं माँगता। हमने अपने प्यारे रेगिस्तान से यही सीखा है कि अतिथि भगवान का रूप होता है। अतिथि की सेवा-सत्कार करना ही हमारा धर्म है। अतिथि से हम कुछ ले नहीं सकते और आप मुझे ये दीनार देकर जा रहे हैं। आपने मेरे आतिथ्य का अपमान किया है।' तभी दोनों यात्रियों ने बेदुइन को दिव्य रूप के दर्शन कराए और कहा- 'हम आपकी परीक्षा ले रहे थे।'
पूजा किसे कहें!
नीना अग्रवाल
उन्होंने स्कार्पियो से उतर मंदिर में प्रवेश किया, शिव जी को जल चढ़ाया, फिर बारी-बारी से सभी देवी-देवताओं के सामने नतमस्तक होती रही। हम भी वहीं विधिवत पूजा अर्चना कर रहे थे। हमने सभी मूर्तियों के सामने दस-दस के नोट चढ़ाए, दान-पात्र में पचास रुपए का करारा नोट डाला। इन सौ-सवा सौ रुपए के बदले प्रभु से अनगिनत बार मिन्नतें कीं। पति की कमाई में दोगुनी बढ़ोतरी करें, बेटे की नौकरी लग जाए, बेटी की शादी किसी धनाढ्य खानदान में हो जाए। उधर हमारा ध्यान उन प्रौढ़ भक्त पर भी था जिन्होंने अभी तक प्रभु के चरणों में एक रुपया भी नहीं चढ़ाया था।
हमने सगर्व एक पचास रुपए का नोट पंडितजी को चरण स्पर्श करके दिया और प्रदर्शित किया, पूजा इसे कहते हैं। हम दोनों पूजा के बाद साथ ही मंदिर के बाहर निकले, हमें मंदिर के द्वार पर एक परिचित मिल गईं। हम उनसे बातें करने लगे मगर हमारा ध्यान उन्हीं कंजूस भक्तों पर रहा।
उधर उन्होंने अपनी गाड़ी से एक बड़ी सी डलिया निकाली, जिसमें से ताजा बने भोजन की भीनी-भीनी महक आ रही थी। वो मंदिर के बगल में बने आदिवासी आश्रम में गईं। तब तक हमारी परिचित जा चुकी थीं। अब वो प्रौढ़ा हमारे लिए जिज्ञासा का विषय बन गईं। हम आगे बढ़कर उनकी जासूसी करने लगे।
उन्होंने स्वयं अपने हाथों से पत्तलें बिछानी शुरू कीं, बच्चे हाथ धोकर टाट-पट्टी पर बैठने लगे। वो बड़े चाव से आलू-गोभी की सब्जी व गरमागरम पराठे उन मनुष्यमात्र में विद्यमान ईश्वर को परोस रही थीं। वाह रे मेरा अहंकार! हम इस भोली पवित्र मानसिकता में भक्ति को पनपी देख सोचने लगे, पूजा किसे कहते हैं।
रेगिस्तान को पार करते हुए दो यात्रियों ने एक खानाबदोश बेदुइन की झोपड़ी को देखा और ठहरने की इजाजत माँगी। जैसे सभी बंजारा जातियाँ करती हैं, बेदुइन ने बहुत हर्षोल्लास से उनका स्वागत किया और उनकी दावत के लिए एक ऊँट को जिबह करके बेहतरीन भोजन परोसा।
अगले दिन दोनों यात्री तड़के ही उठ गए और उन्होंने यात्रा जारी रखने का निश्चय किया। बेदुइन उस वक्त घर पर नहीं था इसलिए उन्होंने उसकी पत्नी को सौ दीनार दिए और अलसुबह चलने के लिए इजाजत माँगी। उन्होंने कहा कि ज्यादा देर करने पर सूरज चढ़ जाएगा और उन्हें यात्रा करने में असुविधा होगी।
वे लगभग चार घंटे तक रेगिस्तान में चलते रहे। उन्होंने पीछे से किसी को पुकार लगाते सुना। उन्होंने पीछे मुड़कर देखा, बेदुइन आ रहा था। पास आने पर बेदुइन ने दीनारों की पोटली रेत पर फेंक दी। बेदुइन ने कहा- 'क्या तुम लोगों को यह सोचकर शर्म नहीं आती कि मैंने कितनी खुशी से तुम दोनों का अपनी झोपड़ी में स्वागत किया था!'
यात्री आश्चर्यचकित थे। उनमें से एक ने कहा- 'हमें जितना ठीक लगा उतना हमने दे दिया। इतने दीनारों में तो तुम तीन ऊँट खरीद सकते हो।'
'मैं ऊँट और दीनारों की बात नहीं कर रहा हूँ!' बेदुइन ने कहा, 'यह रेगिस्तान हमारा सब कुछ है। यह हमें हर कहीं जाने देता है और हमसे बदले में कुछ नहीं माँगता। हमने अपने प्यारे रेगिस्तान से यही सीखा है कि अतिथि भगवान का रूप होता है। अतिथि की सेवा-सत्कार करना ही हमारा धर्म है। अतिथि से हम कुछ ले नहीं सकते और आप मुझे ये दीनार देकर जा रहे हैं। आपने मेरे आतिथ्य का अपमान किया है।' तभी दोनों यात्रियों ने बेदुइन को दिव्य रूप के दर्शन कराए और कहा- 'हम आपकी परीक्षा ले रहे थे।'
पूजा किसे कहें!
नीना अग्रवाल
उन्होंने स्कार्पियो से उतर मंदिर में प्रवेश किया, शिव जी को जल चढ़ाया, फिर बारी-बारी से सभी देवी-देवताओं के सामने नतमस्तक होती रही। हम भी वहीं विधिवत पूजा अर्चना कर रहे थे। हमने सभी मूर्तियों के सामने दस-दस के नोट चढ़ाए, दान-पात्र में पचास रुपए का करारा नोट डाला। इन सौ-सवा सौ रुपए के बदले प्रभु से अनगिनत बार मिन्नतें कीं। पति की कमाई में दोगुनी बढ़ोतरी करें, बेटे की नौकरी लग जाए, बेटी की शादी किसी धनाढ्य खानदान में हो जाए। उधर हमारा ध्यान उन प्रौढ़ भक्त पर भी था जिन्होंने अभी तक प्रभु के चरणों में एक रुपया भी नहीं चढ़ाया था।
हमने सगर्व एक पचास रुपए का नोट पंडितजी को चरण स्पर्श करके दिया और प्रदर्शित किया, पूजा इसे कहते हैं। हम दोनों पूजा के बाद साथ ही मंदिर के बाहर निकले, हमें मंदिर के द्वार पर एक परिचित मिल गईं। हम उनसे बातें करने लगे मगर हमारा ध्यान उन्हीं कंजूस भक्तों पर रहा।
उधर उन्होंने अपनी गाड़ी से एक बड़ी सी डलिया निकाली, जिसमें से ताजा बने भोजन की भीनी-भीनी महक आ रही थी। वो मंदिर के बगल में बने आदिवासी आश्रम में गईं। तब तक हमारी परिचित जा चुकी थीं। अब वो प्रौढ़ा हमारे लिए जिज्ञासा का विषय बन गईं। हम आगे बढ़कर उनकी जासूसी करने लगे।
उन्होंने स्वयं अपने हाथों से पत्तलें बिछानी शुरू कीं, बच्चे हाथ धोकर टाट-पट्टी पर बैठने लगे। वो बड़े चाव से आलू-गोभी की सब्जी व गरमागरम पराठे उन मनुष्यमात्र में विद्यमान ईश्वर को परोस रही थीं। वाह रे मेरा अहंकार! हम इस भोली पवित्र मानसिकता में भक्ति को पनपी देख सोचने लगे, पूजा किसे कहते हैं।
कबीर जयंती
कबीर के लोकप्रिय दोहे
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥
तिनका कबहुँ ना निंदए, जो पाँव तले होए।
कबहुँ उड़ अँखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥
गुरु गोविंद दोऊँ खड़े, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥
रात गँवाई सोय के, दिवस गँवाया खाय।
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥
दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥
माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर ।
कर का मन का डारि दे, मन का मनका फेर॥
तिनका कबहुँ ना निंदए, जो पाँव तले होए।
कबहुँ उड़ अँखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥
गुरु गोविंद दोऊँ खड़े, काके लागूँ पाँय।
बलिहारी गुरु आपकी, गोविंद दियो बताय॥
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय॥
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥
कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥
रात गँवाई सोय के, दिवस गँवाया खाय।
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥
दुःख में सुमिरन सब करें सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे होय॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई।
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥
मेहनत
अपने आप से समझौता न करें
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?
दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।
* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।
* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।
लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।
* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।
असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?
दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।
* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।
* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।
लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।
* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।
असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।
मेहनत
अपने आप से समझौता न करें
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?
दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।
* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।
* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।
लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।
* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।
असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?
दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।
* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।
* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।
लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।
* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।
असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।
सेहत
अच्छी बातें सोचें, स्वस्थ रहें
सकारात्मक लोगों के साथ रहें - सबसे ज्यादा जरूरी है आप के आस-पास के लोग सकारात्मक सोच वाले हों।
दयालुता - इसकी शुरुआत भी आप अपने आप से करें। खुद के प्रति दयालु रहें आपकी सोच पॉजिटिव हो जाएगी।
विश्वास - जी हाँ, फरेब की इस दुनिया में विश्वास के साथ चलें। आपका विश्वास आपको दिशा देगा।
प्रेरणा लें - जिस व्यक्ति का काम अच्छा लगे उससे प्रेरणा लें। अखबार के अलावा किताबें पढ़ने की आदत डालें।
स्माइल - सबसे अधिक जरूरी है आपका मुस्कुराना। दिन भर में पचासों ऐसे कारण सामने आते है जिनसे खीज होती है, स्वस्थ रहने के लिए बेहतर है कि यह खीज आपके साथ क्षण भर ही रहे। तुरंत नियंत्रण पाने की कोशिश करें।
ध्यान बाँटें - जो बात आपको ज्यादा परेशान कर रही है उससे अपना ध्यान हटा कर उन बातों की तरफ रूख कीजिए जो आपको अच्छी लगती है।
प्यार के बारे में सोचें : हम सभी अपने जीवन में एक बार प्यार अवश्य करते हैं। स्वस्थ रहने के लिए वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है प्यार की मधुर स्मृतियाँ आपको ताकत देती है। याद रहे, प्यार की अच्छी और सुखद बातें ही सोचें ना कि तकलीफदेह बातें।
सकारात्मक लोगों के साथ रहें - सबसे ज्यादा जरूरी है आप के आस-पास के लोग सकारात्मक सोच वाले हों।
दयालुता - इसकी शुरुआत भी आप अपने आप से करें। खुद के प्रति दयालु रहें आपकी सोच पॉजिटिव हो जाएगी।
विश्वास - जी हाँ, फरेब की इस दुनिया में विश्वास के साथ चलें। आपका विश्वास आपको दिशा देगा।
प्रेरणा लें - जिस व्यक्ति का काम अच्छा लगे उससे प्रेरणा लें। अखबार के अलावा किताबें पढ़ने की आदत डालें।
स्माइल - सबसे अधिक जरूरी है आपका मुस्कुराना। दिन भर में पचासों ऐसे कारण सामने आते है जिनसे खीज होती है, स्वस्थ रहने के लिए बेहतर है कि यह खीज आपके साथ क्षण भर ही रहे। तुरंत नियंत्रण पाने की कोशिश करें।
ध्यान बाँटें - जो बात आपको ज्यादा परेशान कर रही है उससे अपना ध्यान हटा कर उन बातों की तरफ रूख कीजिए जो आपको अच्छी लगती है।
प्यार के बारे में सोचें : हम सभी अपने जीवन में एक बार प्यार अवश्य करते हैं। स्वस्थ रहने के लिए वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है प्यार की मधुर स्मृतियाँ आपको ताकत देती है। याद रहे, प्यार की अच्छी और सुखद बातें ही सोचें ना कि तकलीफदेह बातें।
स्वस्थ परिवार
खाना-पीना फिट तो फैमिली हिट
स्वस्थ परिवार की निशानी है तरक्की। परिवार में किसी एक का भी स्वास्थ्य गड़बड़ाया नहीं कि पूरा परिवार परेशान हो जाता है। ऐसे में यदि परिवार के सदस्यों की उम्र के हिसाब से खाना-पीना सुनिश्चित कर लिया जाए तो आप जल्दी किसी बीमारी की चपेट में नहीं आएंगे। बस इस बात का ध्यान रखें कि उनको पहले से तो कोई बीमारी नहीं है। तो चलिए, इस बार हम आपको बताते हैं कि नन्हे-मुन्ने और टीनएजर का कैसा खान-पान हो ताकि वह अंदर से बने स्ट्रांग।
बच्चे का खानापीना
शिशु (बच्चा) माता के गर्भ में रहता है तो उसका पोषण एवं खाने की पूर्ति माता द्वारा लिए गए भोजन से ही होती है। शिशु का जन्म होना प्रकृति की एक लीला है। बच्चे की पैदाइश के बाद माता के शरीर में से भोजन सीढ़ी या प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। अत: उसका भोजन अलग से व्यवस्थित करना पड़ता है। बच्चा फूल की तरह कोमल होता है। उसको यदि जरा-सी भी गलत चीज दे दी जाती है तो अनर्थ हो सकता है, कारण कि उसके शरीर में कोमलता किसी गलत चीज को सहने में सक्षम नहीं। वह तो अपनी माता या धाया पर निर्भर है।
एक से छह महीने तक नवजात शिशु को माता का दूध ही दिया जाना चाहिए क्योंकि माता के दूध में वे सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद हैं, जिससे उनके मन तथा शरीर की विकास प्रक्रियाओं की आधारशिला रखी जानी है।
यदि किसी कारण से माता के स्तनों में दूध आता ही न हो या इतनी मात्र में न आता हो जो बच्चे की आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त न हो तो उन्हें किसी चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। यदि संभव उपाय करने के बाद भी समस्या का कोई उपाय न निकले तो बच्चों को केवल गाय का दूध ही दें। माता के दूध के बाद गाय के दूध का नंबर ही आता है। यदि गाय का दूध आसानी से न मिल सके तो शिशु को बकरी का दूध ही दें।
दो पशुओं का दूध मिलाकर शिशु को कभी न दें क्योंकि हर दूध में पोषक तत्व अलग-अलग होते हैं, तासीर भी अलग-अलग होती है और प्रभाव भी अलग होता है। दूध के बाद बच्चे को विटामिन सी और डी की जरूरत होती है जिसकी पूर्ति क्रमश: मौसमी या संतरे के ताजे रस और मछली के तेल से पूरी हो सकती है। आहार का समय निश्चित कर लें और नियत समय पर ही आहार दें। प्राय: माताएं समझती हैं कि शिशु जब रोता है तो भूखा होता है, यह धारणा निराधार है। शिशु के रोने का कारण कोई रोग भी हो सकता है।
शिशु का आहार जिन बर्तनों में दिया जाता है (जैसे दूध की बोतल, चम्मच, कटोरी, प्लेट आदि) उन्हें सदा स्वच्छ रखें और स्वच्छ रूप से ही उन्हें सदा प्रयोग करें।
शिशु को आहार सुषुम देना चाहिए-न तो गरम हो और न ही ठंडा। गर्म के बाद ठंडा या ठंडे के बाद गरम।
जब भी शिशु दूध या अन्य आहार लेने से मना कर दे या अरुचि दिखाए या वह सो रहा हो, तो ऐसी अवस्था में जोर-जबर्दस्ती न करें।
वयस्कों के नियम और दिनचर्या शिशु पर लागू करना अनुचित है। उसे आप स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने दें। शिशु को कोई वस्तु खाने पर मजबूर न करें। उसकी रुचि-अरुचि का पूरा ध्यान रखें। रात या जब भी आवश्यक हो शिशु को पेशाब कराना न भूलें और ऐसा प्रयत्न करें कि वह शौच और मूत्र समय पर ही विसजिर्त करे।
शिशु का भोजन हल्का, सुपाच्य, खट्टे और मिर्च-मसाले से रहित होना चाहिए और उसकी तासीर मौसम के अनुसार ही होनी चाहिए।
शिशु को कभी भी बहुत ढीले या कसे हुए कपड़े न पहनाएं। उसके कपड़े नायलोन या सिंथेटिक कपड़ों के न होकर सूती हों तो बेहतर है।
शिशु के शरीर की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। जब भी कपड़ा गीला हो जाए तो उसे फौरन बदल दें वरना गीले कपड़े शरीर पर अधिक देर तक रहने से उसे चमड़ी के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
बच्चे को कभी ज्यादा ठंडे या गरम वातावरण में आहार न दें। ऋतु परिवर्तन के अनुसार उसके कपड़े, आहार और रख-रखाव का पूरा ध्यान रखें।
शिशु को कोई रोग हो जाए तो उस अवस्था में जिस प्रकार को भोजन दिया जाना जरूरी है, उसके बारे में योग्य चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही उसके आहार में परिवर्तन करें, स्वयं कोई परिवर्तन न करें।
ऐसा आहार (जैसे चिकनाई वाले पदार्थ, खट्टा, मिर्च, मसाला आदि) जो शिशु को सुहाते न हों और जिनसे खांसी, बुखार, दस्त, पेट में दर्द, वमन, ठंड लगने, गला खराब होने की आशंका हो, न दें।
स्वस्थ परिवार की निशानी है तरक्की। परिवार में किसी एक का भी स्वास्थ्य गड़बड़ाया नहीं कि पूरा परिवार परेशान हो जाता है। ऐसे में यदि परिवार के सदस्यों की उम्र के हिसाब से खाना-पीना सुनिश्चित कर लिया जाए तो आप जल्दी किसी बीमारी की चपेट में नहीं आएंगे। बस इस बात का ध्यान रखें कि उनको पहले से तो कोई बीमारी नहीं है। तो चलिए, इस बार हम आपको बताते हैं कि नन्हे-मुन्ने और टीनएजर का कैसा खान-पान हो ताकि वह अंदर से बने स्ट्रांग।
बच्चे का खानापीना
शिशु (बच्चा) माता के गर्भ में रहता है तो उसका पोषण एवं खाने की पूर्ति माता द्वारा लिए गए भोजन से ही होती है। शिशु का जन्म होना प्रकृति की एक लीला है। बच्चे की पैदाइश के बाद माता के शरीर में से भोजन सीढ़ी या प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। अत: उसका भोजन अलग से व्यवस्थित करना पड़ता है। बच्चा फूल की तरह कोमल होता है। उसको यदि जरा-सी भी गलत चीज दे दी जाती है तो अनर्थ हो सकता है, कारण कि उसके शरीर में कोमलता किसी गलत चीज को सहने में सक्षम नहीं। वह तो अपनी माता या धाया पर निर्भर है।
एक से छह महीने तक नवजात शिशु को माता का दूध ही दिया जाना चाहिए क्योंकि माता के दूध में वे सभी आवश्यक पोषक तत्व मौजूद हैं, जिससे उनके मन तथा शरीर की विकास प्रक्रियाओं की आधारशिला रखी जानी है।
यदि किसी कारण से माता के स्तनों में दूध आता ही न हो या इतनी मात्र में न आता हो जो बच्चे की आवश्यकता पूरी करने के लिए पर्याप्त न हो तो उन्हें किसी चिकित्सक से परामर्श करना चाहिए। यदि संभव उपाय करने के बाद भी समस्या का कोई उपाय न निकले तो बच्चों को केवल गाय का दूध ही दें। माता के दूध के बाद गाय के दूध का नंबर ही आता है। यदि गाय का दूध आसानी से न मिल सके तो शिशु को बकरी का दूध ही दें।
दो पशुओं का दूध मिलाकर शिशु को कभी न दें क्योंकि हर दूध में पोषक तत्व अलग-अलग होते हैं, तासीर भी अलग-अलग होती है और प्रभाव भी अलग होता है। दूध के बाद बच्चे को विटामिन सी और डी की जरूरत होती है जिसकी पूर्ति क्रमश: मौसमी या संतरे के ताजे रस और मछली के तेल से पूरी हो सकती है। आहार का समय निश्चित कर लें और नियत समय पर ही आहार दें। प्राय: माताएं समझती हैं कि शिशु जब रोता है तो भूखा होता है, यह धारणा निराधार है। शिशु के रोने का कारण कोई रोग भी हो सकता है।
शिशु का आहार जिन बर्तनों में दिया जाता है (जैसे दूध की बोतल, चम्मच, कटोरी, प्लेट आदि) उन्हें सदा स्वच्छ रखें और स्वच्छ रूप से ही उन्हें सदा प्रयोग करें।
शिशु को आहार सुषुम देना चाहिए-न तो गरम हो और न ही ठंडा। गर्म के बाद ठंडा या ठंडे के बाद गरम।
जब भी शिशु दूध या अन्य आहार लेने से मना कर दे या अरुचि दिखाए या वह सो रहा हो, तो ऐसी अवस्था में जोर-जबर्दस्ती न करें।
वयस्कों के नियम और दिनचर्या शिशु पर लागू करना अनुचित है। उसे आप स्वाभाविक जीवन व्यतीत करने दें। शिशु को कोई वस्तु खाने पर मजबूर न करें। उसकी रुचि-अरुचि का पूरा ध्यान रखें। रात या जब भी आवश्यक हो शिशु को पेशाब कराना न भूलें और ऐसा प्रयत्न करें कि वह शौच और मूत्र समय पर ही विसजिर्त करे।
शिशु का भोजन हल्का, सुपाच्य, खट्टे और मिर्च-मसाले से रहित होना चाहिए और उसकी तासीर मौसम के अनुसार ही होनी चाहिए।
शिशु को कभी भी बहुत ढीले या कसे हुए कपड़े न पहनाएं। उसके कपड़े नायलोन या सिंथेटिक कपड़ों के न होकर सूती हों तो बेहतर है।
शिशु के शरीर की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखें। जब भी कपड़ा गीला हो जाए तो उसे फौरन बदल दें वरना गीले कपड़े शरीर पर अधिक देर तक रहने से उसे चमड़ी के रोग होने की संभावना बढ़ जाती है।
बच्चे को कभी ज्यादा ठंडे या गरम वातावरण में आहार न दें। ऋतु परिवर्तन के अनुसार उसके कपड़े, आहार और रख-रखाव का पूरा ध्यान रखें।
शिशु को कोई रोग हो जाए तो उस अवस्था में जिस प्रकार को भोजन दिया जाना जरूरी है, उसके बारे में योग्य चिकित्सक से सलाह लेने के बाद ही उसके आहार में परिवर्तन करें, स्वयं कोई परिवर्तन न करें।
ऐसा आहार (जैसे चिकनाई वाले पदार्थ, खट्टा, मिर्च, मसाला आदि) जो शिशु को सुहाते न हों और जिनसे खांसी, बुखार, दस्त, पेट में दर्द, वमन, ठंड लगने, गला खराब होने की आशंका हो, न दें।
ख़ास बातें
बढ़ते बच्चों का रखें खास खयाल
इस आयु वर्ग में वे बच्चे आते हैं जिनकी आयु 10-15 वर्ष के बीच होती है। यह उनके पढ़ने, खाने-पीने, शरीर एवं मस्तिष्क के विकास की उम्र होती है। इस उम्र में बच्चों की हड्डियां, मांसपेशियां, प्रजनन के अंगों का विशेष रूप से विकास होता है। शरीर के साथ आदतें, स्वभाव, विपरीत सेक्स (लिंग) के प्रति आकर्षण होना, लड़कों में दाढ़ी निकलना, लड़कियों में स्तनों का विकास, सेक्स संबंधी विषयों में रुचि होने लगती है। जननांगों का विकास एवं प्रवर्धन उनके आकार में वृद्धि एवं परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है। ऐसी स्थिति में लड़की नारीत्व की ओर और लड़का पुरुषत्व की ओर अग्रसर होता है। यह बचपन से यौवन में पदार्पण का समय होता है। इस काल में पढ़ने-लिखने में बच्चे अधिक व्यस्त रहते हैं, खेल-कूद तथा अन्य प्रकार के व्यवसाय, मौज-मस्ती का माहौल होता है।
संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अभिप्राय है कि पांच वर्ष तक बच्चों को खूब लाड़-प्यार, दुलार से पालें। उसके बाद 15 वर्ष तक की आयु तक उन्हें ताड़कर रखें और सोलहवें साल में पांव रखते ही उनके साथ मित्र के समान व्यवहार करें। इस दस साल के समय पर बच्चे का भविष्य निर्भर है। यदि नींव ही कमजोर होगी तो उस पर बनी इमारत, देखने में चाहे कितनी भी सुंदर और आकर्षक लगे, उसमें टिकाऊपन नहीं होगा।
इस आयु में आहार पूर्णतया पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए। ज्यादा ध्यान इस पक्ष पर रखा जाना चाहिए कि आहार शरीर, बुद्धि तथा सद्वृत्तियों के विकास में सहायक होना चाहिए। सात से बारह वर्ष की आयु तक 1200 से 1600 कैलोरी का भोजन और 13-15 वर्ष के बीच 3200 कैलोरी (लड़कों के लिए) और 2800 कैलोरी भोजन (लड़कियों के लिए) पर्याप्त होता है। दोनों वर्गो में 400 कैलोरी का अंतर है। हमारे विचार में यदि एक काम एक-सा है और खेल-कूद का स्तर और प्रकार भी एक-सा है तो भोजन में कैलोरी का अंतर नहीं होना चाहिए। कारण कि जब कैलोरी वय एक-सा है तो निम्न और विभिन्न कैलोरी स्तर में कोई औचित्य नहीं दिखता है।
वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य और परिश्रम के आधार पर परिवार के सभी लोगों को पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए। युवकों को आहार देते वक्त नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें।
भोजन का समय निश्चित कर लें और नियत समय पर ही भोजन दिया करें।
घर का भोजन शुद्ध, ताजा और स्वच्छ होता है, इसलिए बाहर बिकने वाले भोजन को खाने से बचा जाए। ऐसे भोजन में पोषक तत्व प्राय: न के बराबर होते हैं।
भोजन में हरी सब्जियां, साग, गेहूं, सोयाबीन, देशी घी, दूध, मक्खन, पनीर, चने का समावेश होना चाहिए जिसमें प्रोटीन, काबरेहाइड्रेट, वसा, खनिज तथा विटामिन का समुचित मिश्रण होना चाहिए।
बाजार में बिकने वाले ताजे फलों के जूस, ठंडे पेय, धूल से भरे, खुले में रखे हुए कटे फल, गन्ने का रस आदि का सेवन करने से बचें।
चाय, कॉफी आदि का सेवन नियमित मात्र में ही करें, परंतु जहां पर आपको प्यास अधिक लगी हो, उस अवस्था में पानी के स्थान पर इनका उपयोग हानिकारक होता है।
बर्फ का पानी पीने से प्यास और अधिक लगती है। घड़े में रखा हुआ पानी पीने से प्यास शांत होगी और संतुष्टि मिलती है।
ध्यान रखें कि अशुद्ध, अधिक गर्म या अधिक ठंडा पानी कई रोगों को बुलावा देता है। गर्म पानी या कोई भी पेय लेने के बाद ठंडा पेय कभी न लें और न ही ठंडे पेय के बाद कोई गर्म पेय लें। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपको दांतों के कष्ट, मसूढ़ों में सूजन और दर्द होने की पूरी संभावना रहती है।
इसके अतिरिक्त पाचन प्रणाली, गर्म के बाद ठंडा और ठंडे के बाद गर्म आहार लेने के कारण बिगड़ जाएगी। सदा अति की दशा से बचने का प्रयत्न किया जाए तो श्रेयस्कर होगा।
ऋतु एवं प्रकृति के अनुसार अपने भोज्य पदार्थो में बदलाव सदैव करना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थ सबके लिए ठीक नहीं करते, इसलिए भोजन का संबंध ऋतु के अनुसार और स्थानीय खाद्य-आदतों के अनुसार रखा जाए तो सदा लाभप्रद रहता है। परंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि कोई भी खाद्य पदार्थ अपनी रुचि के विरुद्ध कभी न लें।
अंकुरित अन्न का प्रयोग करने की भोजन विशेषज्ञ सलाह देते हैं। चना, गेहूं, मूंग की दाल, सोयाबीन, ताजा मटर के दाने, उड़द आदि को अंकुरित हो जाने के बाद खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं।
भोजन के बाद थोड़ा-सा गुड़ (यदि आप मधुमेह से ग्रसित नहीं हैं तो) लिया जाए तो इससे पाचन में मदद मिलती है।
गले,मुंह और अन्न-नली में लगी हुई चिकनाई तथा धूल आदि नष्ट हो जाते हैं।
गुड़ में अम्ल तत्व की बहुतायत होने से सारी गंदगी धुल जाएगी और आपको स्वस्थ डकार आएंगी।
शौच से तुरंत पहले और एकदम बाद नहीं खाना चाहिए। दूसरे जब तक पेट पूरी तरह साफ न हो भोजन न करें।
यदि संभव हो तो शुद्ध गुनगुने जल में नींबू का रस निचोड़ कर लें। इससे दस्त तो साफ होगा ही, पेट तथा पाचन की अन्य बीमारियां भी दूर होंगी।
भोजन के साथ नींबू लेना बहुत लाभ देता है। गर्मी के दिनों में नींबू के रस को जल में मिलाएं, थोड़ी चीनी और काला नमक डालें और दिन में 4-6 बार पीएं। इससे आपके शरीर में जल-चीनी-लवण बना रहेगा और यदि शरीर से पानी (दस्त अधिक हो जाने से) निकल भी जाता है तो उसकी पूर्ति हो जाएगी।
जब कसरत कर चुके हों, पसीना अधिक आया हो, सांस तेज चल रही हो, मन अशांत एवं तनावपूर्ण हो, शरीर पर वस्त्र पहने हों, हाथ धोये न हों, जल्दबाजी हो, मनपसंद भोजन न हो, प्रकृति और ऋतु के अनुकूल भोजन न हो, खाने का समय बीच चुका हो, बहुत रात बीत चुकी हो या बहुत सवेरे इन सभी तथा अन्य अवस्थाओं में भोजन न करें।
बेमौसम के फल, सब्जियां, पेय आदि खाने-पीने से सदा बचें, कारण ऐसी खाद्य वस्तुओं में पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है।
इस आयु वर्ग में वे बच्चे आते हैं जिनकी आयु 10-15 वर्ष के बीच होती है। यह उनके पढ़ने, खाने-पीने, शरीर एवं मस्तिष्क के विकास की उम्र होती है। इस उम्र में बच्चों की हड्डियां, मांसपेशियां, प्रजनन के अंगों का विशेष रूप से विकास होता है। शरीर के साथ आदतें, स्वभाव, विपरीत सेक्स (लिंग) के प्रति आकर्षण होना, लड़कों में दाढ़ी निकलना, लड़कियों में स्तनों का विकास, सेक्स संबंधी विषयों में रुचि होने लगती है। जननांगों का विकास एवं प्रवर्धन उनके आकार में वृद्धि एवं परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है। ऐसी स्थिति में लड़की नारीत्व की ओर और लड़का पुरुषत्व की ओर अग्रसर होता है। यह बचपन से यौवन में पदार्पण का समय होता है। इस काल में पढ़ने-लिखने में बच्चे अधिक व्यस्त रहते हैं, खेल-कूद तथा अन्य प्रकार के व्यवसाय, मौज-मस्ती का माहौल होता है।
संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अभिप्राय है कि पांच वर्ष तक बच्चों को खूब लाड़-प्यार, दुलार से पालें। उसके बाद 15 वर्ष तक की आयु तक उन्हें ताड़कर रखें और सोलहवें साल में पांव रखते ही उनके साथ मित्र के समान व्यवहार करें। इस दस साल के समय पर बच्चे का भविष्य निर्भर है। यदि नींव ही कमजोर होगी तो उस पर बनी इमारत, देखने में चाहे कितनी भी सुंदर और आकर्षक लगे, उसमें टिकाऊपन नहीं होगा।
इस आयु में आहार पूर्णतया पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए। ज्यादा ध्यान इस पक्ष पर रखा जाना चाहिए कि आहार शरीर, बुद्धि तथा सद्वृत्तियों के विकास में सहायक होना चाहिए। सात से बारह वर्ष की आयु तक 1200 से 1600 कैलोरी का भोजन और 13-15 वर्ष के बीच 3200 कैलोरी (लड़कों के लिए) और 2800 कैलोरी भोजन (लड़कियों के लिए) पर्याप्त होता है। दोनों वर्गो में 400 कैलोरी का अंतर है। हमारे विचार में यदि एक काम एक-सा है और खेल-कूद का स्तर और प्रकार भी एक-सा है तो भोजन में कैलोरी का अंतर नहीं होना चाहिए। कारण कि जब कैलोरी वय एक-सा है तो निम्न और विभिन्न कैलोरी स्तर में कोई औचित्य नहीं दिखता है।
वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य और परिश्रम के आधार पर परिवार के सभी लोगों को पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए। युवकों को आहार देते वक्त नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें।
भोजन का समय निश्चित कर लें और नियत समय पर ही भोजन दिया करें।
घर का भोजन शुद्ध, ताजा और स्वच्छ होता है, इसलिए बाहर बिकने वाले भोजन को खाने से बचा जाए। ऐसे भोजन में पोषक तत्व प्राय: न के बराबर होते हैं।
भोजन में हरी सब्जियां, साग, गेहूं, सोयाबीन, देशी घी, दूध, मक्खन, पनीर, चने का समावेश होना चाहिए जिसमें प्रोटीन, काबरेहाइड्रेट, वसा, खनिज तथा विटामिन का समुचित मिश्रण होना चाहिए।
बाजार में बिकने वाले ताजे फलों के जूस, ठंडे पेय, धूल से भरे, खुले में रखे हुए कटे फल, गन्ने का रस आदि का सेवन करने से बचें।
चाय, कॉफी आदि का सेवन नियमित मात्र में ही करें, परंतु जहां पर आपको प्यास अधिक लगी हो, उस अवस्था में पानी के स्थान पर इनका उपयोग हानिकारक होता है।
बर्फ का पानी पीने से प्यास और अधिक लगती है। घड़े में रखा हुआ पानी पीने से प्यास शांत होगी और संतुष्टि मिलती है।
ध्यान रखें कि अशुद्ध, अधिक गर्म या अधिक ठंडा पानी कई रोगों को बुलावा देता है। गर्म पानी या कोई भी पेय लेने के बाद ठंडा पेय कभी न लें और न ही ठंडे पेय के बाद कोई गर्म पेय लें। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपको दांतों के कष्ट, मसूढ़ों में सूजन और दर्द होने की पूरी संभावना रहती है।
इसके अतिरिक्त पाचन प्रणाली, गर्म के बाद ठंडा और ठंडे के बाद गर्म आहार लेने के कारण बिगड़ जाएगी। सदा अति की दशा से बचने का प्रयत्न किया जाए तो श्रेयस्कर होगा।
ऋतु एवं प्रकृति के अनुसार अपने भोज्य पदार्थो में बदलाव सदैव करना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थ सबके लिए ठीक नहीं करते, इसलिए भोजन का संबंध ऋतु के अनुसार और स्थानीय खाद्य-आदतों के अनुसार रखा जाए तो सदा लाभप्रद रहता है। परंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि कोई भी खाद्य पदार्थ अपनी रुचि के विरुद्ध कभी न लें।
अंकुरित अन्न का प्रयोग करने की भोजन विशेषज्ञ सलाह देते हैं। चना, गेहूं, मूंग की दाल, सोयाबीन, ताजा मटर के दाने, उड़द आदि को अंकुरित हो जाने के बाद खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं।
भोजन के बाद थोड़ा-सा गुड़ (यदि आप मधुमेह से ग्रसित नहीं हैं तो) लिया जाए तो इससे पाचन में मदद मिलती है।
गले,मुंह और अन्न-नली में लगी हुई चिकनाई तथा धूल आदि नष्ट हो जाते हैं।
गुड़ में अम्ल तत्व की बहुतायत होने से सारी गंदगी धुल जाएगी और आपको स्वस्थ डकार आएंगी।
शौच से तुरंत पहले और एकदम बाद नहीं खाना चाहिए। दूसरे जब तक पेट पूरी तरह साफ न हो भोजन न करें।
यदि संभव हो तो शुद्ध गुनगुने जल में नींबू का रस निचोड़ कर लें। इससे दस्त तो साफ होगा ही, पेट तथा पाचन की अन्य बीमारियां भी दूर होंगी।
भोजन के साथ नींबू लेना बहुत लाभ देता है। गर्मी के दिनों में नींबू के रस को जल में मिलाएं, थोड़ी चीनी और काला नमक डालें और दिन में 4-6 बार पीएं। इससे आपके शरीर में जल-चीनी-लवण बना रहेगा और यदि शरीर से पानी (दस्त अधिक हो जाने से) निकल भी जाता है तो उसकी पूर्ति हो जाएगी।
जब कसरत कर चुके हों, पसीना अधिक आया हो, सांस तेज चल रही हो, मन अशांत एवं तनावपूर्ण हो, शरीर पर वस्त्र पहने हों, हाथ धोये न हों, जल्दबाजी हो, मनपसंद भोजन न हो, प्रकृति और ऋतु के अनुकूल भोजन न हो, खाने का समय बीच चुका हो, बहुत रात बीत चुकी हो या बहुत सवेरे इन सभी तथा अन्य अवस्थाओं में भोजन न करें।
बेमौसम के फल, सब्जियां, पेय आदि खाने-पीने से सदा बचें, कारण ऐसी खाद्य वस्तुओं में पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है।
शनिवार, 26 जून 2010
क्षमा दिवस
व्यक्तित्व का अद्भुत गुण है क्षमा
क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। यदि इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी माँग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। जिस तरह क्षमा माँगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है उसी तरह किसी को क्षमा कर देना भी इंसान के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाने का काम करता है। माफ करने वाले व्यक्ति की हर कोई तारीफ करता है और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल जाती है।
कवियों ने क्षमा को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात, कहाँ रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात' जैसी पंक्तियाँ यही संदेश देती हैं कि क्षमा करना बड़ों का दायित्व है। यदि छोटे गलती कर देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें माफ न किया जाए।
वहीं रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो।' वह लिखते हैं-
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन किया जाता है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं।
उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। क्षमा का मनुष्य के व्यक्तित्व में बहुत महत्व होता है। यदि आदमी गलती कर दे और उसके लिए माफी नहीं माँगे तो इसका मतलब यह हुआ कि उसके व्यक्तित्व में अहम संबंधी विकार है।
माफी माँगना और माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण करने वाले तत्व हैं। लेकिन कुछ लोग जो जानबूझकर, बार-बार लगातार और मूर्खतावश या अहंकारवश गलती करते हैं, उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए। आज के जमाने में माफ करने वाला बेवकूफ समझा जाता है। अगर कोई आपके व्यक्तित्व को बार-बार अपमानित करने की कोशिश करें तो समय यह कहता है कि ऐसे व्यक्ति का त्याग करना ही मुनासिब है।
क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। यदि इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी माँग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। जिस तरह क्षमा माँगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है उसी तरह किसी को क्षमा कर देना भी इंसान के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाने का काम करता है। माफ करने वाले व्यक्ति की हर कोई तारीफ करता है और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल जाती है।
कवियों ने क्षमा को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात, कहाँ रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात' जैसी पंक्तियाँ यही संदेश देती हैं कि क्षमा करना बड़ों का दायित्व है। यदि छोटे गलती कर देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें माफ न किया जाए।
वहीं रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो।' वह लिखते हैं-
सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।
क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन किया जाता है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं।
उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। क्षमा का मनुष्य के व्यक्तित्व में बहुत महत्व होता है। यदि आदमी गलती कर दे और उसके लिए माफी नहीं माँगे तो इसका मतलब यह हुआ कि उसके व्यक्तित्व में अहम संबंधी विकार है।
माफी माँगना और माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण करने वाले तत्व हैं। लेकिन कुछ लोग जो जानबूझकर, बार-बार लगातार और मूर्खतावश या अहंकारवश गलती करते हैं, उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए। आज के जमाने में माफ करने वाला बेवकूफ समझा जाता है। अगर कोई आपके व्यक्तित्व को बार-बार अपमानित करने की कोशिश करें तो समय यह कहता है कि ऐसे व्यक्ति का त्याग करना ही मुनासिब है।
गौरैया
मोबाइल की वजह से गायब हो जाएँगी गौरैया
चील, बाज, गिद्ध और गरुड़ ही नहीं, गौरैया भी अब भारत में लुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है। जलवायु परिवर्तन नहीं, मोबाइल फोन का चस्का इस चिड़िया की चहचहाहट के चुप हो जाने का प्रमुख कारण बन गया है।
एक समय था, जब भोर होते ही गौरैयों की चहक के साथ शहरों और गाँवों में दिन की चहल-पहल शुरू होती थी। अब वह शुरू होती है मोबाइल फोन प्रेमियों की बातचीत के साथ।
वैसे तो पूरी दुनिया में गौरैयों की संख्या तेजी से घट रही है। इस तेजी से कि पक्षी संरक्षण के लिए ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ने गौरैये को अब उस लाल सूची में शामिल कर लिया है, जो दिखाती है कि पक्षियों की कौन-कौन सी प्रजातियाँ विलुप्त हो जाने के खतरे का सामना कर रही हैं। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि इस सोसायटी के अनुसार भारत में भी वह विलुप्त हो जाने के भारी खतरे में है।
केरल में कोलम के एसएन कॉलेज में जूलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर सैनुद्दीन पट्टाझी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि नया अध्ययन यही दिखाता है कि भारत के केरल सहित कई हिस्सों में गौरैया की संख्या लगातार घट रही है। शहरी इलाकों में उसने चिंताजनक रूप ले लिया है। कारण कई हैं। सबसे बड़ा कि अवैज्ञानिक कारण है मोबाइल फोन टॉवरों का तेजी से बढ़ना।
डॉक्टर पट्टाझी ने 2009-2010 में केरल में इस समस्या का खुद अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि रेलवे स्टेशनों, अनाज के गोदामों और रिहायशी बस्तियों में गौरैयाँ अब लगभग नहीं मिलतीं। कारण हैं कि कारों के लिए सीसारहित (अनलेडेड) पेट्रोल से पैदा होने वाले मीथाइल नाइट्रेट जैसे यौगिक, जो उन कीड़ों-मकोड़ों के लिए बहुत जहरीले होते हैं, जिन्हें गौरैयाँ चुगती हैं।
खेतों और बगीचों में ऐसे कीटनाशकों का बढ़ता हुआ उपयोग, जो गौरैयों के बच्चों लायक कीड़ों-मकोड़ों को मार डालते हैं। घास के खुले मैदानों का लुप्त होते जाना, आजकल के भवनों और मकानों की पक्षियों के लिए अहितकारी बनावट और जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान का बढ़ना भी।
लेकिन डॉक्टर पट्टाझी की सबसे चौंकाने वाली खोज यह है कि इमारतों की छतों पर मोबाइल फोन कंपनियों के बढ़ते हुए एंटेना और ट्रांसमीटर टॉवर गौरैया चिड़ियों की घटती हुई संख्या का आजकल मुख्य कारण बनते जा रहे हैं। उनका कहना है कि ये टॉवर रात दिन 900 से 1800 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) पैदा करते हैं, जो चिड़ियों के शरीर के आर पार चला जाता है। उनके तंत्रिकातंत्र और उनकी दिशाज्ञान प्रणाली को प्रभावित करता है। उन्हें अपने घोंसले और चारे की जगह ढूँढने में दिशाभ्रम होने लगता है। जिन चिड़ियों के घोंसले किसी मोबाइल फोन टॉवर के पास होते हैं, उन्हें एक ही सप्ताह के भीतर अपना घोंसला त्याग देते देखा गया।
पट्टाझी यह भी कहते हैं कि वह समय भी बहुत लंबा हो जाता है, जो अंडों के सेने के लिए चाहिए। उनका कहना है कि एक घोंसले में एक से आठ तक अंडे हो सकते हैं। उन्हें सेने में लिए आम तौर पर 10 से 14 दिन लगते हैं लेकिन जो अंडे किसी मोबाइल फोन टॉवर के पास के किसी घोंसले में होते हैं, वे 30 दिन बाद भी पक नहीं पाते।
डॉक्टर पट्टाझी ने अपनी खोजों के आधार पर 2009 में भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ को भी लिख कर अनुरोध किया कि गौरैये को सदा-सदा के लिए लुप्त हो जाने से बचाया जाए। भारत सरकार की प्रतिक्रिया यह रही कि उसने गौरैयों की संख्या में गिरावट का सर्वेक्षण करने के लिए एक तीन वर्षीय परियोजना शुरू करने का आदेश दिया है।
चील, बाज, गिद्ध और गरुड़ ही नहीं, गौरैया भी अब भारत में लुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है। जलवायु परिवर्तन नहीं, मोबाइल फोन का चस्का इस चिड़िया की चहचहाहट के चुप हो जाने का प्रमुख कारण बन गया है।
एक समय था, जब भोर होते ही गौरैयों की चहक के साथ शहरों और गाँवों में दिन की चहल-पहल शुरू होती थी। अब वह शुरू होती है मोबाइल फोन प्रेमियों की बातचीत के साथ।
वैसे तो पूरी दुनिया में गौरैयों की संख्या तेजी से घट रही है। इस तेजी से कि पक्षी संरक्षण के लिए ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ने गौरैये को अब उस लाल सूची में शामिल कर लिया है, जो दिखाती है कि पक्षियों की कौन-कौन सी प्रजातियाँ विलुप्त हो जाने के खतरे का सामना कर रही हैं। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि इस सोसायटी के अनुसार भारत में भी वह विलुप्त हो जाने के भारी खतरे में है।
केरल में कोलम के एसएन कॉलेज में जूलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर सैनुद्दीन पट्टाझी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि नया अध्ययन यही दिखाता है कि भारत के केरल सहित कई हिस्सों में गौरैया की संख्या लगातार घट रही है। शहरी इलाकों में उसने चिंताजनक रूप ले लिया है। कारण कई हैं। सबसे बड़ा कि अवैज्ञानिक कारण है मोबाइल फोन टॉवरों का तेजी से बढ़ना।
डॉक्टर पट्टाझी ने 2009-2010 में केरल में इस समस्या का खुद अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि रेलवे स्टेशनों, अनाज के गोदामों और रिहायशी बस्तियों में गौरैयाँ अब लगभग नहीं मिलतीं। कारण हैं कि कारों के लिए सीसारहित (अनलेडेड) पेट्रोल से पैदा होने वाले मीथाइल नाइट्रेट जैसे यौगिक, जो उन कीड़ों-मकोड़ों के लिए बहुत जहरीले होते हैं, जिन्हें गौरैयाँ चुगती हैं।
खेतों और बगीचों में ऐसे कीटनाशकों का बढ़ता हुआ उपयोग, जो गौरैयों के बच्चों लायक कीड़ों-मकोड़ों को मार डालते हैं। घास के खुले मैदानों का लुप्त होते जाना, आजकल के भवनों और मकानों की पक्षियों के लिए अहितकारी बनावट और जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान का बढ़ना भी।
लेकिन डॉक्टर पट्टाझी की सबसे चौंकाने वाली खोज यह है कि इमारतों की छतों पर मोबाइल फोन कंपनियों के बढ़ते हुए एंटेना और ट्रांसमीटर टॉवर गौरैया चिड़ियों की घटती हुई संख्या का आजकल मुख्य कारण बनते जा रहे हैं। उनका कहना है कि ये टॉवर रात दिन 900 से 1800 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) पैदा करते हैं, जो चिड़ियों के शरीर के आर पार चला जाता है। उनके तंत्रिकातंत्र और उनकी दिशाज्ञान प्रणाली को प्रभावित करता है। उन्हें अपने घोंसले और चारे की जगह ढूँढने में दिशाभ्रम होने लगता है। जिन चिड़ियों के घोंसले किसी मोबाइल फोन टॉवर के पास होते हैं, उन्हें एक ही सप्ताह के भीतर अपना घोंसला त्याग देते देखा गया।
पट्टाझी यह भी कहते हैं कि वह समय भी बहुत लंबा हो जाता है, जो अंडों के सेने के लिए चाहिए। उनका कहना है कि एक घोंसले में एक से आठ तक अंडे हो सकते हैं। उन्हें सेने में लिए आम तौर पर 10 से 14 दिन लगते हैं लेकिन जो अंडे किसी मोबाइल फोन टॉवर के पास के किसी घोंसले में होते हैं, वे 30 दिन बाद भी पक नहीं पाते।
डॉक्टर पट्टाझी ने अपनी खोजों के आधार पर 2009 में भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ को भी लिख कर अनुरोध किया कि गौरैये को सदा-सदा के लिए लुप्त हो जाने से बचाया जाए। भारत सरकार की प्रतिक्रिया यह रही कि उसने गौरैयों की संख्या में गिरावट का सर्वेक्षण करने के लिए एक तीन वर्षीय परियोजना शुरू करने का आदेश दिया है।
गुरुवार, 24 जून 2010
कहानी
काँच की बरनी
जीवन में सबकुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेजी से पा लेने की भी इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बरनी टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।
उन्होंने छात्रों से पूछा, "क्या बरनी पूरी भर गई ?" "हाँ," आवाज आई। फिर प्रोफेसर ने कंकर भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ-जहाँ जगह थी वहाँ कंकर समा गए। प्रोफेसर ने फिर पूछा, "क्या अब बरनी भई गई है?" छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफेसर ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। रेत भी उस बरनी में जहाँ संभव था बैठ गई। प्रोफेसर ने फिर पूछा- "क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई न?" हाँ, अब तो पूरी भर गई है," सभी ने कहा।
प्रोफेसर ने समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंद को भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक समझो। छोटे कंकर का मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है। रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार-सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।
जीवन में सबकुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेजी से पा लेने की भी इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बरनी टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।
उन्होंने छात्रों से पूछा, "क्या बरनी पूरी भर गई ?" "हाँ," आवाज आई। फिर प्रोफेसर ने कंकर भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ-जहाँ जगह थी वहाँ कंकर समा गए। प्रोफेसर ने फिर पूछा, "क्या अब बरनी भई गई है?" छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफेसर ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। रेत भी उस बरनी में जहाँ संभव था बैठ गई। प्रोफेसर ने फिर पूछा- "क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई न?" हाँ, अब तो पूरी भर गई है," सभी ने कहा।
प्रोफेसर ने समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंद को भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक समझो। छोटे कंकर का मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है। रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार-सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।
कहानी
मुल्ला नसीरूद्दीन और मित्र के कपड़े
मुल्ला नसीरूद्दीन की एक दोस्त से कई वर्षों के बाद मुलाकात हुई। वह उसके गले मिला, पर उसके खराब वस्त्र देख उसके मन में करुणा जागी और उसने अपने लिए सिले कपड़े उसे पहनने को दिए। ये कपड़े उसने अपने लिए सिलाए तो थे, मगर उन्हें कीमती जान वह पहनने में हिचकिचाता था। भोजन करने के बाद नसीरूद्दीन मित्र से बोला, 'चलो, मैं तुम्हें अपने मित्रों से परिचय कराता हूँ।' रास्ते में मित्र के शरीर पर अपने कीमती कपड़े देख नसीरूद्दीन सोचने लगा-यह तो बिलकुल अमीर लगता है और मैं उसका नौकर। मगर कपड़े तो अब वापस लिए नहीं जा सकते।
इतने में उसके एक मित्र का घर दिखाई दिया। वे दोनों अंदर गए। नसीरूद्दीन जब मित्र से उसका परिचय कराने लगा, तो उसका ध्यान वस्त्रों की ओर गया और वह बोला, 'यह मेरा बरसों पुराना दोस्त है। इसने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे ही हैं।' दोस्त ने सुना, तो बुरा लगा। उसने उस समय तो कुछ नहीं कहा, मगर रास्ते में उसने कहा, 'आपको यह नहीं कहना था कि ये आपके कपड़े हैं।'
'ठीक है! अब मैं ऐसा नहीं कहूँगा,' नसीरूद्दीन ने जवाब दिया। मगर रास्ते में जब एक परिचित से मुलाकात हुई, तो अपने दोस्त का परिचय कराते समय कपड़ों की ओर ध्यान गया, और उसके मुँह से निकल पड़ा, 'इन्होंने ये जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे नहीं इन्हीं के हैं।' दोस्त को फिर बुरा लगा और उसने रास्ते में कहा, 'आपको मेरे कपड़े नहीं है-ऐसा नहीं कहना था नसीरूद्दीन ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, 'मेरी जबान धोखा खा गई।'
उसने निश्चय किया कि अब वह कपड़ों का जिक्र ही नहीं करेगा, मगर उसके अंतर्चक्षुओं को तो वे कपड़े ही दिखाई दे रहे थे, इसलिए तीसरे मित्र से मुलाकात होने पर उसके मुँह से निकल पड़ा, 'ये मेरे गहरे दोस्त हैं। बड़े अच्छे हैं, मगर मैं यह नहीं बताऊँगा कि इन्होंने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे हैं या इनके।' अब दोस्त से न रहा गया। वह वापस चल दिया। और उसने घर लौटकर गुस्सा जताते हुए कपड़े वापस कर दिए और दोस्त को छोड़कर वहाँ से चलता बना। नसीरूद्दीन को बड़ा पश्चाताप हुआ, किंतु अब कोई उपाय नहीं था।
मुल्ला नसीरूद्दीन की एक दोस्त से कई वर्षों के बाद मुलाकात हुई। वह उसके गले मिला, पर उसके खराब वस्त्र देख उसके मन में करुणा जागी और उसने अपने लिए सिले कपड़े उसे पहनने को दिए। ये कपड़े उसने अपने लिए सिलाए तो थे, मगर उन्हें कीमती जान वह पहनने में हिचकिचाता था। भोजन करने के बाद नसीरूद्दीन मित्र से बोला, 'चलो, मैं तुम्हें अपने मित्रों से परिचय कराता हूँ।' रास्ते में मित्र के शरीर पर अपने कीमती कपड़े देख नसीरूद्दीन सोचने लगा-यह तो बिलकुल अमीर लगता है और मैं उसका नौकर। मगर कपड़े तो अब वापस लिए नहीं जा सकते।
इतने में उसके एक मित्र का घर दिखाई दिया। वे दोनों अंदर गए। नसीरूद्दीन जब मित्र से उसका परिचय कराने लगा, तो उसका ध्यान वस्त्रों की ओर गया और वह बोला, 'यह मेरा बरसों पुराना दोस्त है। इसने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे ही हैं।' दोस्त ने सुना, तो बुरा लगा। उसने उस समय तो कुछ नहीं कहा, मगर रास्ते में उसने कहा, 'आपको यह नहीं कहना था कि ये आपके कपड़े हैं।'
'ठीक है! अब मैं ऐसा नहीं कहूँगा,' नसीरूद्दीन ने जवाब दिया। मगर रास्ते में जब एक परिचित से मुलाकात हुई, तो अपने दोस्त का परिचय कराते समय कपड़ों की ओर ध्यान गया, और उसके मुँह से निकल पड़ा, 'इन्होंने ये जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे नहीं इन्हीं के हैं।' दोस्त को फिर बुरा लगा और उसने रास्ते में कहा, 'आपको मेरे कपड़े नहीं है-ऐसा नहीं कहना था नसीरूद्दीन ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, 'मेरी जबान धोखा खा गई।'
उसने निश्चय किया कि अब वह कपड़ों का जिक्र ही नहीं करेगा, मगर उसके अंतर्चक्षुओं को तो वे कपड़े ही दिखाई दे रहे थे, इसलिए तीसरे मित्र से मुलाकात होने पर उसके मुँह से निकल पड़ा, 'ये मेरे गहरे दोस्त हैं। बड़े अच्छे हैं, मगर मैं यह नहीं बताऊँगा कि इन्होंने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे हैं या इनके।' अब दोस्त से न रहा गया। वह वापस चल दिया। और उसने घर लौटकर गुस्सा जताते हुए कपड़े वापस कर दिए और दोस्त को छोड़कर वहाँ से चलता बना। नसीरूद्दीन को बड़ा पश्चाताप हुआ, किंतु अब कोई उपाय नहीं था।
चिट्ठी-पत्री
अपने आप से समझौता न करें
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?
दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।
* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।
* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।
लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।
* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।
असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?
दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।
* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।
* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।
लक्ष्य की निकटता आपको और अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।
* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।
असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।
मिर्च-मसाला
हैकर ने मेघना नायडू को बनाया ‘प्रेगनेंट’!
बॉलीवुड एक्ट्रेस मेघना नायडू ने मुंबई स्थित साइबर क्राइम इनवेस्टिगेशन सेल पर शिकायत दर्ज करवाई है कि एक अज्ञात हैकर ने उनके जी-मेल अकाउंट को हैक किया और उन्हें प्रेगनेंट बताया।
इस हैकर ने मेघना के दोस्तों के साथ मेघना बन चैट की और कहा मैं प्रेगनेंट हूँ और मुझे उस शख्स का नाम भी याद नहीं है जिसने यह काम किया है। मैं आपकी इस बारे में सलाह चाहती हूँ।
जब इस अज्ञात व्यक्ति ने मेघना के एक्स पब्लिसिस्ट डेल भगवागर से चैट की तो डेल को दाल में कुछ काला नजर आया। डेल ने कई कलाकारों के लिए काम किया है और वे सभी के हाव-भाव, आदतों से अच्छी तरह परिचित हैं।
वे कहते हैं ‘वह व्यक्ति चैट के दौरान कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो रहा था जबकि मेघना बेहद कूल हैं। इसलिए चैट के तुरंत बाद मैंने मेघना के घर फोन यह जानने के लिए लगाया कि कि क्या वे ही चैट कर रही थी। मुझे उनके पैरेंट्स ने बताया कि वे तो योगा क्लास गई हुई हैं।‘
एक घंटे बाद मेघना वापस आईं और और उन्होंने डेल से बात की। मेघना ने बाद में कहा ‘मैंने अपने गूगल चैट्स चेक किए और पाया कि उस व्यक्ति ने मेरे कई दोस्तों से बात की और मेरे प्रेगनेंट होने की जानकारी उन्हें दी। साथ ही उसने यह भी कहा कि मैं उस व्यक्ति का नाम भूल गई हूँ जिसने मुझे प्रेगनेंट किया है। यह सब बाते झूठी हैं।‘
घबराकर मेघना ने क्राइम ब्रांच की शरण लेते हुए शिकायत दर्ज कराई। मेघना को उम्मीद है कि वह हैकर जल्दी ही सामने होगा, लेकिन साइबर क्रइम इनवेस्टिगेशन सेल की ओर से मेघना को ठंडा रिस्पांस मिला है।
मेघना ने सीनियर इंस्पेक्टर मुकुंद पवार से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कोई रूचि नहीं ली। वे कहती हैं ‘मैंने दो आईपी एड्रेसेस भी उन्हें दिए ताकि वे ट्रेक कर सकें, इसके बावजूद वे इस केस में रूचि नहीं ले रहे हैं। वे इस छोटे से काम के लिए एक सप्ताह का समय चाहते हैं।‘
बॉलीवुड एक्ट्रेस मेघना नायडू ने मुंबई स्थित साइबर क्राइम इनवेस्टिगेशन सेल पर शिकायत दर्ज करवाई है कि एक अज्ञात हैकर ने उनके जी-मेल अकाउंट को हैक किया और उन्हें प्रेगनेंट बताया।
इस हैकर ने मेघना के दोस्तों के साथ मेघना बन चैट की और कहा मैं प्रेगनेंट हूँ और मुझे उस शख्स का नाम भी याद नहीं है जिसने यह काम किया है। मैं आपकी इस बारे में सलाह चाहती हूँ।
जब इस अज्ञात व्यक्ति ने मेघना के एक्स पब्लिसिस्ट डेल भगवागर से चैट की तो डेल को दाल में कुछ काला नजर आया। डेल ने कई कलाकारों के लिए काम किया है और वे सभी के हाव-भाव, आदतों से अच्छी तरह परिचित हैं।
वे कहते हैं ‘वह व्यक्ति चैट के दौरान कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो रहा था जबकि मेघना बेहद कूल हैं। इसलिए चैट के तुरंत बाद मैंने मेघना के घर फोन यह जानने के लिए लगाया कि कि क्या वे ही चैट कर रही थी। मुझे उनके पैरेंट्स ने बताया कि वे तो योगा क्लास गई हुई हैं।‘
एक घंटे बाद मेघना वापस आईं और और उन्होंने डेल से बात की। मेघना ने बाद में कहा ‘मैंने अपने गूगल चैट्स चेक किए और पाया कि उस व्यक्ति ने मेरे कई दोस्तों से बात की और मेरे प्रेगनेंट होने की जानकारी उन्हें दी। साथ ही उसने यह भी कहा कि मैं उस व्यक्ति का नाम भूल गई हूँ जिसने मुझे प्रेगनेंट किया है। यह सब बाते झूठी हैं।‘
घबराकर मेघना ने क्राइम ब्रांच की शरण लेते हुए शिकायत दर्ज कराई। मेघना को उम्मीद है कि वह हैकर जल्दी ही सामने होगा, लेकिन साइबर क्रइम इनवेस्टिगेशन सेल की ओर से मेघना को ठंडा रिस्पांस मिला है।
मेघना ने सीनियर इंस्पेक्टर मुकुंद पवार से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कोई रूचि नहीं ली। वे कहती हैं ‘मैंने दो आईपी एड्रेसेस भी उन्हें दिए ताकि वे ट्रेक कर सकें, इसके बावजूद वे इस केस में रूचि नहीं ले रहे हैं। वे इस छोटे से काम के लिए एक सप्ताह का समय चाहते हैं।‘
बालिवूड
मित्र के साथ फोटो पर नाराज़ हुईं रिहाना मशहूर पॉप गायिका रिहाना अपने पुरुष मित्र और बेसबॉल खिलाड़ी मैट कैंप के साथ फोटो लिए जाने पर खासी नाराज़ हैं।
वेबसाइट 'डेलीस्टार डॉट को डॉट यूके' के अनुसार 'अनफेथपुल' में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर चुकीं रिहाना संभवत: अपने संबंधों को छिपाना चाहती थीं। परंतु एक रेस्तरां से बाहर निकलते समय उनकी तस्वीर ले ली गई।
वर्तमान में रिहाना 'लास्ट गर्ल आन अर्थ' के तहत विश्वव्यापी दौरे पर निकलेंगी जो अगले महीने अमेरिका से शुरू होगा।
चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाती हैं सलमा
हॉलीवुड स्टार सलमा हायक की बातों पर यकीन करें तो उनकी खूबसूरत फिगर का राज़ चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाना है। चौंकिए मत क्योंकि सलमा ने खुद एक टीवी शो के दौरान ऐसा कहा है।
डेविड लेटरमैन के टीवी शो में सलमा ने कहा कि भूनी हुई चींटियां लाजवाब होती हैं और कीड़े भी। उनकी अलग-अलग रेसिपी होती है। ये पकाने और खाने में वाकई काफी अच्छी होती हैं।
सन ऑनलाइन के मुताबिक, टॉक शो के दौरान 43 साल की सलमा ने यह भी कहा कि लोगों को ये स्वादिष्ट आहार ज़रूर खाना चाहिए।
वेबसाइट 'डेलीस्टार डॉट को डॉट यूके' के अनुसार 'अनफेथपुल' में अपनी आवाज़ का जादू बिखेर चुकीं रिहाना संभवत: अपने संबंधों को छिपाना चाहती थीं। परंतु एक रेस्तरां से बाहर निकलते समय उनकी तस्वीर ले ली गई।
वर्तमान में रिहाना 'लास्ट गर्ल आन अर्थ' के तहत विश्वव्यापी दौरे पर निकलेंगी जो अगले महीने अमेरिका से शुरू होगा।
चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाती हैं सलमा
हॉलीवुड स्टार सलमा हायक की बातों पर यकीन करें तो उनकी खूबसूरत फिगर का राज़ चींटियां और कीड़े-मकोड़े खाना है। चौंकिए मत क्योंकि सलमा ने खुद एक टीवी शो के दौरान ऐसा कहा है।
डेविड लेटरमैन के टीवी शो में सलमा ने कहा कि भूनी हुई चींटियां लाजवाब होती हैं और कीड़े भी। उनकी अलग-अलग रेसिपी होती है। ये पकाने और खाने में वाकई काफी अच्छी होती हैं।
सन ऑनलाइन के मुताबिक, टॉक शो के दौरान 43 साल की सलमा ने यह भी कहा कि लोगों को ये स्वादिष्ट आहार ज़रूर खाना चाहिए।
रविवार, 20 जून 2010
कहानी
चरित्र का मूल्य
शेषनारायण बंछोर
एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।
एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।
दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।
तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की नीयत निश्चित ही खराब हो गई है।
उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। राजा को इस सूचना से बड़ा आघात पहुँचा। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।
चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था।
यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा - 'सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।'
इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -'क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?' राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया।
राजा का अगला प्रश्न था - 'आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार?' राजा ने पुन: पूछा - 'वे मोती कहाँ हैं?'
राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए।
राजा बोले - 'राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?
राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा - 'राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।
आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है। वह सब ज्ञान के कारण नहीं अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है।
अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे। कहा जाता है -
धन गया, कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्य गया, कुछ गया।
चरित्र गया तो सब कुछ गया।
सौजन्य से - देवपुत्र
शेषनारायण बंछोर
एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।
एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।
दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।
तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की नीयत निश्चित ही खराब हो गई है।
उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। राजा को इस सूचना से बड़ा आघात पहुँचा। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।
चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था।
यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा - 'सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।'
इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -'क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?' राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया।
राजा का अगला प्रश्न था - 'आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार?' राजा ने पुन: पूछा - 'वे मोती कहाँ हैं?'
राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए।
राजा बोले - 'राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?
राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा - 'राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।
आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है। वह सब ज्ञान के कारण नहीं अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है।
अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे। कहा जाता है -
धन गया, कुछ नहीं गया,
स्वास्थ्य गया, कुछ गया।
चरित्र गया तो सब कुछ गया।
सौजन्य से - देवपुत्र
अमृत वचन
वास्तव में शिक्षा मूलत
ज्ञान के प्रसार का एक माध्यम है। चिंतन तथा परिप्रेक्ष्य के प्रसार का एक तरीका है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीवन के सही मूल्यों कोआने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है। - सदाशिव माधव गोलवलकर (पूजनीय श्री गुरु जी)
मनुष्य में जो संपूर्णता सुप्त रूप से विद्यमान है। उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का कार्य है।
- स्वामी विवेकानंद
मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। - प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य (रज्जू भैया)
सज्जनों से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती। - कालिदास
किसी से शत्रुता करना अपने विकास को रोकना है। - विनोबा भावे
रिश्वत और कर्तव्य दोनों एक साथ नहीं निभ सकते। - प्रेमचंद
युवकों की शिक्षा पर ही राज्यों का भाग्य आधारित है। - अरस्तू
तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो। जैसा तुम अपने प्रति चाहते हो। - जॉन लॉक
बिना उत्साह के कभी किसी महान लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती।
संकलन : कु. शिवानी ठाकुर
सौजन्य से - देवपुत्र
ज्ञान के प्रसार का एक माध्यम है। चिंतन तथा परिप्रेक्ष्य के प्रसार का एक तरीका है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीवन के सही मूल्यों कोआने वाली चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है। - सदाशिव माधव गोलवलकर (पूजनीय श्री गुरु जी)
मनुष्य में जो संपूर्णता सुप्त रूप से विद्यमान है। उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का कार्य है।
- स्वामी विवेकानंद
मनुष्य का सर्वांगीण विकास करना ही शिक्षा का मूल उद्देश्य है। - प्रो. राजेंद्र सिंह उपाख्य (रज्जू भैया)
सज्जनों से की गई प्रार्थना कभी निष्फल नहीं जाती। - कालिदास
किसी से शत्रुता करना अपने विकास को रोकना है। - विनोबा भावे
रिश्वत और कर्तव्य दोनों एक साथ नहीं निभ सकते। - प्रेमचंद
युवकों की शिक्षा पर ही राज्यों का भाग्य आधारित है। - अरस्तू
तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो। जैसा तुम अपने प्रति चाहते हो। - जॉन लॉक
बिना उत्साह के कभी किसी महान लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती।
संकलन : कु. शिवानी ठाकुर
सौजन्य से - देवपुत्र
कहानी
प्रसन्नता का रहस्य
ओमप्रकाश बंछोर
एक मंगल वन था। वहाँ के जानवरों में बहुत एकता थी। वह बहुत ही हरा-भरा व खुशहाल था। वहाँ दिनभर जानवर मस्ती करते व प्रसन्न रहते।
सभी जानवर अपने-अपने परिवार के साथ खुश थे। गिलहरियाँ इधर से उधर उछलकूद करती, बंदरों की तो बात ही अलग थी। जानवरों की आवाज मानों मधुर संगीत हो और मोर बादलों को देखकर इस प्रकार झूमते मानों चातक पक्षी मेघ के जल को देखकर खुशी से झूमते।
एक दिन उस वन को किसी की नजर सी लग गई। उस वन के सभी पेड़ों की पत्तियाँ गिर गईं और पेड़ सूख गए। अब न तो वहाँ के पेड़ों पर फल-फूल लगते न ही जानवरों को छाया मिलती।
वन की स्थिति ऐसी हो गई थी कि वह उजड़े हुए घर सा रह गया था। पास ही एक और हरा-भरा वन था। किंतु वहाँ के जानवर उस सूखे वन को छोड़कर हरे-भरे वन में नहीं गए। उनकी दिनचर्या आज भी वैसी ही थी जैसी कभी हरे-भरे वन में हुआ करती थी।
एक समय वहाँ से एक संत का निकलना हुआ। वे सभी जानवरों को उजड़े हुए वन में प्रसन्न देखकर अचंभित हो गए। उन्होंने एक हिरण से पूछा - 'तुम इस उजड़े हुए वन में कैसे रहते हो और वह भी इतने प्रसन्न? पास ही एक हरा-भरा वन है, वहाँ क्यों नहीं चले जाते?'
हिरण ने कहा कि - 'इसके दो कारण हैं। पहला कारण यह तो यह कि हम उस वन में जा ही रहे थे कि अचानक वन के राजा के मन में विचार आया। और उन्होंने कहा - 'जब यह हरा-भरा था तब हम इसके साथ थे। किंतु अब यह विषम परिस्थिति में है, तो हम इसका साथ कैसे छोड़ सकते हैं।'
दूसरा कारण यह है कि - अगर इस वन के पास यह हरा-भरा वन नहीं होता तो हम क्या करते? यदि हमें प्रसन्न रहना है तो हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करना होगा और परिस्थितियों के अनुसार अनुकूल होना होगा। हमें समय के साथ चलना होगा। समय न किसी के लिए रुका है, न रुकेगा।
समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसी प्रकार परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं हो सकतीं हमें ही परिस्थितियों के अनुसार ढलना होगा। यह प्रकृति का नियम है और हम प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कैसे कर सकते हैं।'
हिरण की बात सुनकर संत प्रसन्न होकर सोचने लगे कि जंगल के जानवरों में भी मानवता है। अब उन्हें जानवरों के प्रसन्न रहने का रहस्य समझ में आ गया था।
सौजन्य से - देवपुत्र
ओमप्रकाश बंछोर
एक मंगल वन था। वहाँ के जानवरों में बहुत एकता थी। वह बहुत ही हरा-भरा व खुशहाल था। वहाँ दिनभर जानवर मस्ती करते व प्रसन्न रहते।
सभी जानवर अपने-अपने परिवार के साथ खुश थे। गिलहरियाँ इधर से उधर उछलकूद करती, बंदरों की तो बात ही अलग थी। जानवरों की आवाज मानों मधुर संगीत हो और मोर बादलों को देखकर इस प्रकार झूमते मानों चातक पक्षी मेघ के जल को देखकर खुशी से झूमते।
एक दिन उस वन को किसी की नजर सी लग गई। उस वन के सभी पेड़ों की पत्तियाँ गिर गईं और पेड़ सूख गए। अब न तो वहाँ के पेड़ों पर फल-फूल लगते न ही जानवरों को छाया मिलती।
वन की स्थिति ऐसी हो गई थी कि वह उजड़े हुए घर सा रह गया था। पास ही एक और हरा-भरा वन था। किंतु वहाँ के जानवर उस सूखे वन को छोड़कर हरे-भरे वन में नहीं गए। उनकी दिनचर्या आज भी वैसी ही थी जैसी कभी हरे-भरे वन में हुआ करती थी।
एक समय वहाँ से एक संत का निकलना हुआ। वे सभी जानवरों को उजड़े हुए वन में प्रसन्न देखकर अचंभित हो गए। उन्होंने एक हिरण से पूछा - 'तुम इस उजड़े हुए वन में कैसे रहते हो और वह भी इतने प्रसन्न? पास ही एक हरा-भरा वन है, वहाँ क्यों नहीं चले जाते?'
हिरण ने कहा कि - 'इसके दो कारण हैं। पहला कारण यह तो यह कि हम उस वन में जा ही रहे थे कि अचानक वन के राजा के मन में विचार आया। और उन्होंने कहा - 'जब यह हरा-भरा था तब हम इसके साथ थे। किंतु अब यह विषम परिस्थिति में है, तो हम इसका साथ कैसे छोड़ सकते हैं।'
दूसरा कारण यह है कि - अगर इस वन के पास यह हरा-भरा वन नहीं होता तो हम क्या करते? यदि हमें प्रसन्न रहना है तो हमें अपनी आवश्यकताओं को कम करना होगा और परिस्थितियों के अनुसार अनुकूल होना होगा। हमें समय के साथ चलना होगा। समय न किसी के लिए रुका है, न रुकेगा।
समय किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। इसी प्रकार परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल नहीं हो सकतीं हमें ही परिस्थितियों के अनुसार ढलना होगा। यह प्रकृति का नियम है और हम प्रकृति के नियमों का उल्लंघन कैसे कर सकते हैं।'
हिरण की बात सुनकर संत प्रसन्न होकर सोचने लगे कि जंगल के जानवरों में भी मानवता है। अब उन्हें जानवरों के प्रसन्न रहने का रहस्य समझ में आ गया था।
सौजन्य से - देवपुत्र
स्वास्थय
दिल की बीमारी से बचाते चाय और कॉफी
नीदरलैंड।दिल की बीमारी से बचना है तो चाय और कॉफी पिएं। नीदरलैंड में 13 साल के एक लंबे अध्ययन में पाया गया कि चाय और कॉफी दिल की बीमारी से शरीर की रक्षा करते हैं। पूर्व में किए अध्ययन को भी यह शोध साबित करता है कि इसको पीने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। चालीस हजार लोगों पर किए गए शोध में पाया गया कि दिन में छह या छह से अधिक कप चाय पीने वालों में दिल की बीमारी का खतरा तीन गुना कम हो जाता है।
वहीं दिन में दो से चार कप कॉफी पीने वालों में यह खतरा और भी कम हो जाता है। अमरीकन हर्ट एसोसिएशन के जर्नल के अध्ययन के मुताबिक दिन में दो से चार कप पीने वालों में 20 फीसदी दिल की बीमारी का खतरा कम होता है। इस शोध का अध्ययन करने वाले प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर योने वान डेर स्काव का कहना है कि यह उन लोगों के लिए खुशी की खबर है जो चाय और कॉफी पीना पसंद करते हैं।
पुदीना : सिर्फ स्वाद नहीं, दवा भी
गर्मियों में पुदीने की खुशबू और उसका स्वाद बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींच लेता है। रिप्रेशमेंट के लिए पुदीने से बेहतर कोई हर्ब नहीं होता। लेकिन पुदीना सिर्फ स्वाद में ही बेजोड़ नहीं है। स्वास्थ्य के लिए पुदीने का इस्तेमाल फायदेमंद माना जाता है। पुदीना औषधीय गुणों से भरपूर है और कई रोगों का निदान इससे संभव है। पुदीने के औषधीय गुणों पर डालते हैं एक नजर :
डाइजेशन
पुदीने एक बेहतर अपेटाइजर (भूख बढ़ाने वाला) है और इससे पाचन क्रिया भी अच्छी रहती है। पेट में सूजन की स्थिति में पुदीने का सेवन फायदेमंद है। पुदीने के स्वाद के साथ ही इसकी खुशबू भी सेहतमंद मानी जाती है। पुदीने की खुशबू लार ग्रंथियों को सक्रिय बनाती है, जिससे आहार को पचाने में मदद मिलती है।
मिचली और सिरदर्द
मिचली में पुदीने की खुशबू से तुरंत आराम मिलता है। यदि मिचली का अहसास हो रहा हो, तो पुदीने की पत्तियों को मसलकर सुंघाने से फायदा मिलता है। यदि पत्तियां उपलब्ध न हो तो पुदीने का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सिरदर्द होने पर पुदीने से बना बाम या पुदीने का तेल ललाल पर मालिश करें। तुरंत आराम मिलेगा।
श्वसन तंत्र
सर्दी जुकाम में कफ की वजर से अक्सर नाक और गला बंद हो जाता है। ऎसे में सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। पुदीने की पत्तियों को सुंघने से श्वसन तंत्र सुचारू रूप से काम करने लगता है और नाक व गला खुल जाता है। पुदीना शरीर से कफ निकालने में भी मदद करता है।
अस्थमा
पुदीने का नियमित इस्तेमाल अस्थमा रोगियों के लिए लाभदायक होता है। पुदीने की खुशबू सांस फूलने की स्थिति में आराम देती है।
स्किन केयर
पुदीने का ज्यूस एक अच्छा स्किन क्लिंजर है। यह स्किल को स्मूथ बनाता है और इंफेक्शन से बचाता है। इसके इस्तेमाल से खुजली की समस्या दूर रहती है और साथ ही पिंपल्स भी नहीं होते। मच्छर आदि के काटने पर पुदीने का इस्तेमाल उपचार के रूप में भी किया जाता है।
ओरल केयर
मुंह की दुर्गध दूर करने में पुदीना कारगर है। यह जम्र्स को दूर कर ताजगी की अहसास कराता है। पुदीना एक बेहतर ब्रेथ फ्रेशनर है।
कैंसर
हालांकि, कैंसर के इलाज में पुदीने का अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में हुए शोध में दावा किया है कि पुदीने में कुछ ऎसे एंजाइम पाए जाते हैं, जो कैंसर के उपचार में कारगर हैं।
नीदरलैंड।दिल की बीमारी से बचना है तो चाय और कॉफी पिएं। नीदरलैंड में 13 साल के एक लंबे अध्ययन में पाया गया कि चाय और कॉफी दिल की बीमारी से शरीर की रक्षा करते हैं। पूर्व में किए अध्ययन को भी यह शोध साबित करता है कि इसको पीने से स्वास्थ्य ठीक रहता है। चालीस हजार लोगों पर किए गए शोध में पाया गया कि दिन में छह या छह से अधिक कप चाय पीने वालों में दिल की बीमारी का खतरा तीन गुना कम हो जाता है।
वहीं दिन में दो से चार कप कॉफी पीने वालों में यह खतरा और भी कम हो जाता है। अमरीकन हर्ट एसोसिएशन के जर्नल के अध्ययन के मुताबिक दिन में दो से चार कप पीने वालों में 20 फीसदी दिल की बीमारी का खतरा कम होता है। इस शोध का अध्ययन करने वाले प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर योने वान डेर स्काव का कहना है कि यह उन लोगों के लिए खुशी की खबर है जो चाय और कॉफी पीना पसंद करते हैं।
पुदीना : सिर्फ स्वाद नहीं, दवा भी
गर्मियों में पुदीने की खुशबू और उसका स्वाद बरबस ही लोगों को अपनी ओर खींच लेता है। रिप्रेशमेंट के लिए पुदीने से बेहतर कोई हर्ब नहीं होता। लेकिन पुदीना सिर्फ स्वाद में ही बेजोड़ नहीं है। स्वास्थ्य के लिए पुदीने का इस्तेमाल फायदेमंद माना जाता है। पुदीना औषधीय गुणों से भरपूर है और कई रोगों का निदान इससे संभव है। पुदीने के औषधीय गुणों पर डालते हैं एक नजर :
डाइजेशन
पुदीने एक बेहतर अपेटाइजर (भूख बढ़ाने वाला) है और इससे पाचन क्रिया भी अच्छी रहती है। पेट में सूजन की स्थिति में पुदीने का सेवन फायदेमंद है। पुदीने के स्वाद के साथ ही इसकी खुशबू भी सेहतमंद मानी जाती है। पुदीने की खुशबू लार ग्रंथियों को सक्रिय बनाती है, जिससे आहार को पचाने में मदद मिलती है।
मिचली और सिरदर्द
मिचली में पुदीने की खुशबू से तुरंत आराम मिलता है। यदि मिचली का अहसास हो रहा हो, तो पुदीने की पत्तियों को मसलकर सुंघाने से फायदा मिलता है। यदि पत्तियां उपलब्ध न हो तो पुदीने का तेल भी इस्तेमाल कर सकते हैं। सिरदर्द होने पर पुदीने से बना बाम या पुदीने का तेल ललाल पर मालिश करें। तुरंत आराम मिलेगा।
श्वसन तंत्र
सर्दी जुकाम में कफ की वजर से अक्सर नाक और गला बंद हो जाता है। ऎसे में सांस लेने में काफी तकलीफ होती है। पुदीने की पत्तियों को सुंघने से श्वसन तंत्र सुचारू रूप से काम करने लगता है और नाक व गला खुल जाता है। पुदीना शरीर से कफ निकालने में भी मदद करता है।
अस्थमा
पुदीने का नियमित इस्तेमाल अस्थमा रोगियों के लिए लाभदायक होता है। पुदीने की खुशबू सांस फूलने की स्थिति में आराम देती है।
स्किन केयर
पुदीने का ज्यूस एक अच्छा स्किन क्लिंजर है। यह स्किल को स्मूथ बनाता है और इंफेक्शन से बचाता है। इसके इस्तेमाल से खुजली की समस्या दूर रहती है और साथ ही पिंपल्स भी नहीं होते। मच्छर आदि के काटने पर पुदीने का इस्तेमाल उपचार के रूप में भी किया जाता है।
ओरल केयर
मुंह की दुर्गध दूर करने में पुदीना कारगर है। यह जम्र्स को दूर कर ताजगी की अहसास कराता है। पुदीना एक बेहतर ब्रेथ फ्रेशनर है।
कैंसर
हालांकि, कैंसर के इलाज में पुदीने का अभी तक कोई इस्तेमाल नहीं किया गया है। वैज्ञानिकों ने हाल ही में हुए शोध में दावा किया है कि पुदीने में कुछ ऎसे एंजाइम पाए जाते हैं, जो कैंसर के उपचार में कारगर हैं।
घर को सजाये
ताकि फूल की तरह नजर आए घर
बारिश का मजा खराब न हो जाए इसलिए जरूरी है घर को भारी बरसात होने से पहले ही सुरक्षित बनाने के प्रयास जरूरी है, जिससे घर फूलों की तरह खिला-खिला नजर आए। ऎसे में घर के इंटीरियर को सुरक्षित रखने के लिए कुछ बदलाव जरूरी है ताकि फूल की तरह खिलता रहे घर।
आते है वाटर प्रूफिंग पेन्ट- वैसे लोग मानसून आने के पहले ही सचेत हो जाते हैं। सिविल इंजीनियर आजाद जैन ने बताया लिकेज रिपेयर कराना, दरारें भरवाना, दरवाजे-खिड़कियों के जॉइंट में सीमेंट भरने घर को पानी से सुरक्षित रखा जा सकता है।
इंटीरियर में भी चेंज- इंटीरियर को सुरक्षित रखने के लिए इस मौसम में हैवी परदों की जगह सिंपल और सिंथेटिक परदे लगाना चाहिए। सोफे कवर करके रखें ताकि बारिश की नमी से खराब न हो। आर्किटेक्ट आशा जैन के मुताबिक दीवारों पर ऎसे कलर का चुनाव करें, जो मौसम से मिलते-जुलते हों, घर अच्छा लुक दे।
छज्जे न होने से परेशानी - बारिश के मौसम में खिड़की-दरवाजों से पानी आने की समस्या ज्यादा रहती है। इंटीरियर डिजाइनर विनय बाबर ने बताया इसका कारण खिड़की-दरवाजों पर छज्जे न बनना है। छज्ो बनाकर घर की सुरक्षा करें।
जागरूक हुए लोग - वाटर प्रूफिंग कल्सटेंट संजीवन तोमर बताते हैं 20 वर्ष पहले वाटर प्रूफिंग को फालतू खर्च माना जाता था। आज घर के निर्माण के समय ही इसका ध्यान रखते हैं। इससे दीवारों पर आनी वाली फंगस, काले धब्बे, स्मेल और छतों से घर सुरक्षित हो जाता है।
बारिश का मजा खराब न हो जाए इसलिए जरूरी है घर को भारी बरसात होने से पहले ही सुरक्षित बनाने के प्रयास जरूरी है, जिससे घर फूलों की तरह खिला-खिला नजर आए। ऎसे में घर के इंटीरियर को सुरक्षित रखने के लिए कुछ बदलाव जरूरी है ताकि फूल की तरह खिलता रहे घर।
आते है वाटर प्रूफिंग पेन्ट- वैसे लोग मानसून आने के पहले ही सचेत हो जाते हैं। सिविल इंजीनियर आजाद जैन ने बताया लिकेज रिपेयर कराना, दरारें भरवाना, दरवाजे-खिड़कियों के जॉइंट में सीमेंट भरने घर को पानी से सुरक्षित रखा जा सकता है।
इंटीरियर में भी चेंज- इंटीरियर को सुरक्षित रखने के लिए इस मौसम में हैवी परदों की जगह सिंपल और सिंथेटिक परदे लगाना चाहिए। सोफे कवर करके रखें ताकि बारिश की नमी से खराब न हो। आर्किटेक्ट आशा जैन के मुताबिक दीवारों पर ऎसे कलर का चुनाव करें, जो मौसम से मिलते-जुलते हों, घर अच्छा लुक दे।
छज्जे न होने से परेशानी - बारिश के मौसम में खिड़की-दरवाजों से पानी आने की समस्या ज्यादा रहती है। इंटीरियर डिजाइनर विनय बाबर ने बताया इसका कारण खिड़की-दरवाजों पर छज्जे न बनना है। छज्ो बनाकर घर की सुरक्षा करें।
जागरूक हुए लोग - वाटर प्रूफिंग कल्सटेंट संजीवन तोमर बताते हैं 20 वर्ष पहले वाटर प्रूफिंग को फालतू खर्च माना जाता था। आज घर के निर्माण के समय ही इसका ध्यान रखते हैं। इससे दीवारों पर आनी वाली फंगस, काले धब्बे, स्मेल और छतों से घर सुरक्षित हो जाता है।
शनिवार, 19 जून 2010
मनोरंजन
काइली बनेगी कॉलेज गर्ल
ऑस्ट्रेलियन पॉप स्टार काइली मिनॉग चाहती है कि वे एक बार कॉलेज लाइफ का आनंद लें। स्कूल से पास-आउट होकर सीधे ग्लैमर वर्ल्ड में धमाल मचाने वाली काइली अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए मिनॉग एक यूनिवर्सिटी कोर्स में दाखिला लेने की भी सोच रही हैं। मिनॉग का कहना है कि ग्लैमर वर्ल्ड में कामयाबी के बावजूद वह पढ़ाई करती है और वे न्यूयॉके के किसी कॉलेज में दाखिला लेने के बारे में सोच रही हैं। मिनॉग उन हॉलीवुड सेलीब्रिटी में से हैं जो महज 11 साल की उम्र में अपना एक्टिंग करियर शुरू कर दिया था। करियर की शुरुआत वह ऑस्ट्रेलियन सीरियल ‘नेबर्स’ से की थी और महज 18 साल की उम्र में ही एक जाना-पहचाना नाम बन गईं।
माँ बनना चाहती हैं ईवा
मशहूर हॉलीवुड़ अभिनेत्री ईवा लोंगेरिया पारकर और उनके बास्केटबॉल खिलाड़ी पति टोनी पारकर अब अपने परिवार को आगे बढ़ाने के इक्छुक हैं। मगर ईवा के सीरियल 'डेस्पेरेट हाउसवाइव्स' में काम करने के चलते फ़िलहाल वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।
टोनी ने एक मैग्जीन को दिए इंटरव्यू में बताया कि " हम इसके बारे में जल्द ही सोच रहे है। मगर इवा अभी "डेस्पेरेट हाउसवाइव्स" में एक साल और काम करेंगी और इसके बाद ही हम इस बारे में विचार कर पाएंगे।
बड़ी फैमिली के बारे में पूछने पर टोनी ने कहा कि "सब ईवा के ऊपर है मुझे इसकी चिंता नही है ( लड़का हो या लड़की)। मेरे लिये दोनो ही प्यारे होगे। "
हॉलीवुड पर छाने को तैयार है मल्लिका
मल्लिका शेरावत काफी समय से किसी बॉलीवुड फिल्म में नज़र नहीं आई हैं क्योंकि वह अपने हॉलीवुड प्रोजेक्ट्स में बिजी हैं।
मल्लिका ने हाल ही में दो हॉलीवुड फिल्मों 'हिस्स' और 'लव बराक' की शूटिंग पूरी की है और अब लगता है उन्हें आगे भी फुर्सत नहीं मिलने वाली है क्योंकि खबर है कि मल्लिका जल्द ही हॉलीवुड ऐक्ट्रेस सलमा हेयक के साथ एक हॉलीवुड फिल्म में काम करने जा रही हैं।
यह एक महिला आधारित फिल्म होगी जिसमें मल्लिका केंद्रीय भूमिका निभाएंगी|सलमा ने कांस फिल्म फेस्टिवल के दौरान मल्लिका की फिल्म हिस्स देखी थी और उनकी एक्टिंग से काफी इंप्रेस हो गईं और अपनी फिल्म में काम करने का न्यौता दे दिया।
ऑस्ट्रेलियन पॉप स्टार काइली मिनॉग चाहती है कि वे एक बार कॉलेज लाइफ का आनंद लें। स्कूल से पास-आउट होकर सीधे ग्लैमर वर्ल्ड में धमाल मचाने वाली काइली अपनी इच्छा को पूरा करने के लिए मिनॉग एक यूनिवर्सिटी कोर्स में दाखिला लेने की भी सोच रही हैं। मिनॉग का कहना है कि ग्लैमर वर्ल्ड में कामयाबी के बावजूद वह पढ़ाई करती है और वे न्यूयॉके के किसी कॉलेज में दाखिला लेने के बारे में सोच रही हैं। मिनॉग उन हॉलीवुड सेलीब्रिटी में से हैं जो महज 11 साल की उम्र में अपना एक्टिंग करियर शुरू कर दिया था। करियर की शुरुआत वह ऑस्ट्रेलियन सीरियल ‘नेबर्स’ से की थी और महज 18 साल की उम्र में ही एक जाना-पहचाना नाम बन गईं।
माँ बनना चाहती हैं ईवा
मशहूर हॉलीवुड़ अभिनेत्री ईवा लोंगेरिया पारकर और उनके बास्केटबॉल खिलाड़ी पति टोनी पारकर अब अपने परिवार को आगे बढ़ाने के इक्छुक हैं। मगर ईवा के सीरियल 'डेस्पेरेट हाउसवाइव्स' में काम करने के चलते फ़िलहाल वह ऐसा नहीं कर पाएंगे।
टोनी ने एक मैग्जीन को दिए इंटरव्यू में बताया कि " हम इसके बारे में जल्द ही सोच रहे है। मगर इवा अभी "डेस्पेरेट हाउसवाइव्स" में एक साल और काम करेंगी और इसके बाद ही हम इस बारे में विचार कर पाएंगे।
बड़ी फैमिली के बारे में पूछने पर टोनी ने कहा कि "सब ईवा के ऊपर है मुझे इसकी चिंता नही है ( लड़का हो या लड़की)। मेरे लिये दोनो ही प्यारे होगे। "
हॉलीवुड पर छाने को तैयार है मल्लिका
मल्लिका शेरावत काफी समय से किसी बॉलीवुड फिल्म में नज़र नहीं आई हैं क्योंकि वह अपने हॉलीवुड प्रोजेक्ट्स में बिजी हैं।
मल्लिका ने हाल ही में दो हॉलीवुड फिल्मों 'हिस्स' और 'लव बराक' की शूटिंग पूरी की है और अब लगता है उन्हें आगे भी फुर्सत नहीं मिलने वाली है क्योंकि खबर है कि मल्लिका जल्द ही हॉलीवुड ऐक्ट्रेस सलमा हेयक के साथ एक हॉलीवुड फिल्म में काम करने जा रही हैं।
यह एक महिला आधारित फिल्म होगी जिसमें मल्लिका केंद्रीय भूमिका निभाएंगी|सलमा ने कांस फिल्म फेस्टिवल के दौरान मल्लिका की फिल्म हिस्स देखी थी और उनकी एक्टिंग से काफी इंप्रेस हो गईं और अपनी फिल्म में काम करने का न्यौता दे दिया।
मॉडल कहती है
ब्रिटेन की मॉडल विद मोस्ट सेक्सी ब्रेस्ट
टेबलॉयड 'द सन' द्वारा कराई गई एक प्रतियोगिता में लौरा एन स्मिथ को ब्रिटेन की सबसे सेक्सी ब्रेस्ट वाली मॉडल चुना गया है।
स्कॉटलैंड के बोनीब्रिज की कर्वी शेप मॉडल लौरा को पाठकों ने 'कर्वी केट' की अगली मॉडल चुना है। लौरा स्मिथ एक सैलून की मालिक भी है।
लोगों को सबसे ज्यादा लौरा की कर्वी फीगर और उसके 28 डबल एच साइज ब्रेस्ट पसंद आए। अब यह खिताब जीतने के बाद वो एक साल तक 'कर्वी केट डीडी' की एक साल तक मॉडल रहेगी।
लौरा कहती है कि मैं यह साबित करना चाहती थी कि महिलाओं, चाहे उनकी शेप कैसी भी हो और ब्रेस्ट साइज कितना भी हो, को खुद से प्यार करना चाहिए।
इस प्रतियोगिता में एन्ना ब्रोडले दूसरे और लॉरेन सेडलर तीसरे स्थान पर रही।
रोज पांच बार सेक्स करती हूं, स्वस्थ रहती हूं
ब्रिटीश पॉप सिंगर और गीतकार मेलेनी ब्राउन ने स्विकार किया है कि वो स्वस्थ रहने के लिए अपने पति स्टीफन बेलाफोंटे के साथ रोज पांच बार सेक्स करती हैं। ब्राउन का कहना है कि उनके सफल वैवाहिक जीवन का राज भी नियमित सेक्स ही है।
पूर्व स्पाइस गर्ल ब्राउन का कहना है कि उनकी 34 वर्षीय स्टीफन के साथ शादी में तीन साल बाद भी रोचकता सिर्फ इसलिए बरकरार है क्योंकि वो दोनों एक दूसरे से दूर नहीं रहते हैं। ब्राउन बताती है कि वो रोजाना पांच बार सेक्स करती है।
ब्राउन मानती है कि उनके पति बहुत हॉट हैं। वो कहती है कि हम दोनों एक ही उम्र के हैं और हमे एक दूसरे का साथ बेहद पसंद हैं। हम सिर्फ पति-पत्नी ही नहीं बल्कि सबसे अच्छे दोस्त भी हैं।
टेबलॉयड 'द सन' द्वारा कराई गई एक प्रतियोगिता में लौरा एन स्मिथ को ब्रिटेन की सबसे सेक्सी ब्रेस्ट वाली मॉडल चुना गया है।
स्कॉटलैंड के बोनीब्रिज की कर्वी शेप मॉडल लौरा को पाठकों ने 'कर्वी केट' की अगली मॉडल चुना है। लौरा स्मिथ एक सैलून की मालिक भी है।
लोगों को सबसे ज्यादा लौरा की कर्वी फीगर और उसके 28 डबल एच साइज ब्रेस्ट पसंद आए। अब यह खिताब जीतने के बाद वो एक साल तक 'कर्वी केट डीडी' की एक साल तक मॉडल रहेगी।
लौरा कहती है कि मैं यह साबित करना चाहती थी कि महिलाओं, चाहे उनकी शेप कैसी भी हो और ब्रेस्ट साइज कितना भी हो, को खुद से प्यार करना चाहिए।
इस प्रतियोगिता में एन्ना ब्रोडले दूसरे और लॉरेन सेडलर तीसरे स्थान पर रही।
रोज पांच बार सेक्स करती हूं, स्वस्थ रहती हूं
ब्रिटीश पॉप सिंगर और गीतकार मेलेनी ब्राउन ने स्विकार किया है कि वो स्वस्थ रहने के लिए अपने पति स्टीफन बेलाफोंटे के साथ रोज पांच बार सेक्स करती हैं। ब्राउन का कहना है कि उनके सफल वैवाहिक जीवन का राज भी नियमित सेक्स ही है।
पूर्व स्पाइस गर्ल ब्राउन का कहना है कि उनकी 34 वर्षीय स्टीफन के साथ शादी में तीन साल बाद भी रोचकता सिर्फ इसलिए बरकरार है क्योंकि वो दोनों एक दूसरे से दूर नहीं रहते हैं। ब्राउन बताती है कि वो रोजाना पांच बार सेक्स करती है।
ब्राउन मानती है कि उनके पति बहुत हॉट हैं। वो कहती है कि हम दोनों एक ही उम्र के हैं और हमे एक दूसरे का साथ बेहद पसंद हैं। हम सिर्फ पति-पत्नी ही नहीं बल्कि सबसे अच्छे दोस्त भी हैं।
लड़ाकू विमान
हवाओं को हराकर आसमान पर छाने वाले
आसमान में लकीरें नहीं खिंचीं होतीं कि इतना तुम्हारा और इतना हमारा। इसीलिए इन सीमाओं पर खास निगाह रखनी पड़ती है। इस अदृश्य बॉर्डर से आने वाले दुश्मन से निपटने के लिए वायुसेना का ताकतवर होना ज़रूरी है। तभी तो हमारी वायुसेना में शामिल हैं एक से बढ़कर एक लड़ाकू विमान।
भारतीय वायुसेना में किसी भी सक्षम वायुसेना की तरह लड़ाकू विमान, हैलिकॉप्टर, ट्रेनर विमान और वाहक विमान शामिल हैं।
लड़ाकू विमान मिग
मिग का विकास सोवियत संघ में हुआ था। यह लड़ाकू विमानों की एक जानी-मानी श्रंखला है। शीत युद्ध के दौरान इन विमानों का दुनियाभर में प्रयोग हुआ था। वायुसेना ने 60 के दशक से इन विमानों का रूस से आयात शुरू किया था। आज ये वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमान हैं।
मिग-21
मिग-21 विमान हवाई सुरक्षा में अहम भूमिका निभाते आए हैं। वायुसेना के बेड़े में ऐसे तीन सौ से अधिक विमान हैं लेकिन पिछले कई वषों से इन विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की दर काफी अधिक हो जाने के कारण अब इन्हें सेवा से हटाया जा रहा है।
मिग-23,25 और 27
मिग 21 के साथ ही भारतीय वायुसेना के पास मिग 23, 25 और मिग 27 भी हैं। पाकिस्तान को अमेरिका से मिले एफ 16 विमानों को टक्कर देने के लिए रूस ने सत्तर के दशक में भारत को मिग 23 विमान उपलब्ध कराए थे। मिग के पायलट इसकी बेहद तेज गति के कायल हैं। इन विमानों की पहली परख सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय ध्वज फहराए जाने के लिए हुए आपरेशन मेघदूत में हुई थी, जब मिग 23 का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
जम्मू-कश्मीर के बनिहाल र्दे को रात के समय पार करने वाला यह पहला विमान बना। 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर के समय टाइगर हिल्स पर दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने के लिए इन विमानों का ही प्रयोग किया गया था। तीन दशक की सेवाएं भारतीय वायु सेना को देने के बाद मिग 23 की सेवाएं मार्च 2009 में समाप्त कर दी गईं।
मिग-29
रूस में बने मिग-29 लड़ाकू विमानों को गत वर्ष दिसंबर में सेना में शामिल किया है। इन्हें 2012 में आईएनएस विक्रमादित्य (एडमिरल गॉर्शकोव) पर तैनात किया जाएगा।
संहारक सुखोई
इसे भारतीय वायुसेना का सबसे संहारक लड़ाकू विमान माना जाता है। अभी इसके आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए सुखोई- 30 एमकेआई विमानों में ब्रह्मोस मिसाइल की वायुसैनिक किस्म लगाई जाएगी। साथ ही दुनिया का अत्याधुनिक आएसा रडार भी लगाया जाएगा। आधुनिकीकरण की यह प्रक्रिया 2015 तक पूरी होगी और तब सुखोई-30 विमान दुनिया का सबसे संहारक विमान बन जाएगा।
वज्र है यह
फ्रांस में बना मिराज २क्क्क् भारतीय वायुसेना में वज्र के नाम से शामिल किया गया है। अभी इनके आधुनिकीकरण का काम चल रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
तेजस
मिग 21 की जगह वायुसेना में शामिल होने वाला तेजस एक हल्का लड़ाकू विमान है। भारत में बनने वाले इस विमान को अगले साल वायुसेना में शामिल कर लिया जाएगा।
हॉक
यह ब्रिटेन निर्मित आधुनिक प्रशिक्षण विमान हैं। इनका इस्तेमाल आमतौर पर पॉयलटों के प्रशिक्षण के लिए किया जाता है, लेकिन युद्ध की स्थिति में इनसे ज़मीन पर हमले भी किए जा सकते हैं।
भविष्य के विमान
भारत और रूस के अधिकारी इन दिनों पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के साझा विकास पर काम कर रहे हैं, जो दुनिया के सभी तत्कालीन लड़ाकू विमानों की क्षमता के बराबर होगा।
मिग-35भविष्य में इनके भारतीय वायुसेना में शामिल होने की उम्मीद है। मिग-35 में आएसा रडार लगा होगा। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरोधक प्रणालियों से लैस यह विमान दुश्मन के लड़ाकू विमान के सभी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों को निरस्त कर
सकता है।
क्या है आएसा रडार
आएसा (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे) रडार अपने आस-पास उड़ रहे 30 हमलावर विमानों पर नज़र रख सकते हैं और 150 किलोमीटर दूर से उन्हें देखकर अपनी रक्षात्मक प्रणाली को सचेत कर सकते हैं। आएसा रडार फिलहाल अमेरिका की पांचवीं पीढ़ी के एफ-22 और नौसेना के एफ-18 विमान में ही लगे हैं।
अवॉक्स
भारत दक्षिण एशिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके पास हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली अवॉक्स [एडब्ल्यूएसीएस] है, जिसे आकाश में आंख कहा जाता है। इज़राइल से खरीदा गया यह टोही विमान मई 2009 में वायुसेना में शामिल किया गया है।
ध्रुव, चेतक और चीता- यह वे हैलिकॉप्टर्स हैं, जिनका प्रयोग भारतीय वायुसेना सैनिकों और रसद को एक स्थान से दूसरे
स्थान पहुंचाने में करती है।
आसमान में लकीरें नहीं खिंचीं होतीं कि इतना तुम्हारा और इतना हमारा। इसीलिए इन सीमाओं पर खास निगाह रखनी पड़ती है। इस अदृश्य बॉर्डर से आने वाले दुश्मन से निपटने के लिए वायुसेना का ताकतवर होना ज़रूरी है। तभी तो हमारी वायुसेना में शामिल हैं एक से बढ़कर एक लड़ाकू विमान।
भारतीय वायुसेना में किसी भी सक्षम वायुसेना की तरह लड़ाकू विमान, हैलिकॉप्टर, ट्रेनर विमान और वाहक विमान शामिल हैं।
लड़ाकू विमान मिग
मिग का विकास सोवियत संघ में हुआ था। यह लड़ाकू विमानों की एक जानी-मानी श्रंखला है। शीत युद्ध के दौरान इन विमानों का दुनियाभर में प्रयोग हुआ था। वायुसेना ने 60 के दशक से इन विमानों का रूस से आयात शुरू किया था। आज ये वायुसेना के प्रमुख लड़ाकू विमान हैं।
मिग-21
मिग-21 विमान हवाई सुरक्षा में अहम भूमिका निभाते आए हैं। वायुसेना के बेड़े में ऐसे तीन सौ से अधिक विमान हैं लेकिन पिछले कई वषों से इन विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की दर काफी अधिक हो जाने के कारण अब इन्हें सेवा से हटाया जा रहा है।
मिग-23,25 और 27
मिग 21 के साथ ही भारतीय वायुसेना के पास मिग 23, 25 और मिग 27 भी हैं। पाकिस्तान को अमेरिका से मिले एफ 16 विमानों को टक्कर देने के लिए रूस ने सत्तर के दशक में भारत को मिग 23 विमान उपलब्ध कराए थे। मिग के पायलट इसकी बेहद तेज गति के कायल हैं। इन विमानों की पहली परख सियाचिन ग्लेशियर पर भारतीय ध्वज फहराए जाने के लिए हुए आपरेशन मेघदूत में हुई थी, जब मिग 23 का व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया गया।
जम्मू-कश्मीर के बनिहाल र्दे को रात के समय पार करने वाला यह पहला विमान बना। 1999 में ऑपरेशन सफेद सागर के समय टाइगर हिल्स पर दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने के लिए इन विमानों का ही प्रयोग किया गया था। तीन दशक की सेवाएं भारतीय वायु सेना को देने के बाद मिग 23 की सेवाएं मार्च 2009 में समाप्त कर दी गईं।
मिग-29
रूस में बने मिग-29 लड़ाकू विमानों को गत वर्ष दिसंबर में सेना में शामिल किया है। इन्हें 2012 में आईएनएस विक्रमादित्य (एडमिरल गॉर्शकोव) पर तैनात किया जाएगा।
संहारक सुखोई
इसे भारतीय वायुसेना का सबसे संहारक लड़ाकू विमान माना जाता है। अभी इसके आधुनिकीकरण की प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए सुखोई- 30 एमकेआई विमानों में ब्रह्मोस मिसाइल की वायुसैनिक किस्म लगाई जाएगी। साथ ही दुनिया का अत्याधुनिक आएसा रडार भी लगाया जाएगा। आधुनिकीकरण की यह प्रक्रिया 2015 तक पूरी होगी और तब सुखोई-30 विमान दुनिया का सबसे संहारक विमान बन जाएगा।
वज्र है यह
फ्रांस में बना मिराज २क्क्क् भारतीय वायुसेना में वज्र के नाम से शामिल किया गया है। अभी इनके आधुनिकीकरण का काम चल रहा है। कारगिल युद्ध के दौरान दुश्मन के ठिकानों को नष्ट करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
तेजस
मिग 21 की जगह वायुसेना में शामिल होने वाला तेजस एक हल्का लड़ाकू विमान है। भारत में बनने वाले इस विमान को अगले साल वायुसेना में शामिल कर लिया जाएगा।
हॉक
यह ब्रिटेन निर्मित आधुनिक प्रशिक्षण विमान हैं। इनका इस्तेमाल आमतौर पर पॉयलटों के प्रशिक्षण के लिए किया जाता है, लेकिन युद्ध की स्थिति में इनसे ज़मीन पर हमले भी किए जा सकते हैं।
भविष्य के विमान
भारत और रूस के अधिकारी इन दिनों पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान के साझा विकास पर काम कर रहे हैं, जो दुनिया के सभी तत्कालीन लड़ाकू विमानों की क्षमता के बराबर होगा।
मिग-35भविष्य में इनके भारतीय वायुसेना में शामिल होने की उम्मीद है। मिग-35 में आएसा रडार लगा होगा। साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक प्रतिरोधक प्रणालियों से लैस यह विमान दुश्मन के लड़ाकू विमान के सभी इलेक्ट्रॉनिक सिग्नलों को निरस्त कर
सकता है।
क्या है आएसा रडार
आएसा (एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड ऐरे) रडार अपने आस-पास उड़ रहे 30 हमलावर विमानों पर नज़र रख सकते हैं और 150 किलोमीटर दूर से उन्हें देखकर अपनी रक्षात्मक प्रणाली को सचेत कर सकते हैं। आएसा रडार फिलहाल अमेरिका की पांचवीं पीढ़ी के एफ-22 और नौसेना के एफ-18 विमान में ही लगे हैं।
अवॉक्स
भारत दक्षिण एशिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसके पास हवाई चेतावनी और नियंत्रण प्रणाली अवॉक्स [एडब्ल्यूएसीएस] है, जिसे आकाश में आंख कहा जाता है। इज़राइल से खरीदा गया यह टोही विमान मई 2009 में वायुसेना में शामिल किया गया है।
ध्रुव, चेतक और चीता- यह वे हैलिकॉप्टर्स हैं, जिनका प्रयोग भारतीय वायुसेना सैनिकों और रसद को एक स्थान से दूसरे
स्थान पहुंचाने में करती है।
चुटकुले
वीरू, जय से- ‘कल तुझे मेरे मोहल्ले के दस लड़कों ने बहुत बुरी तरह पीटा। फिर तूने क्या किया?’
वीरू- ‘मैंने उन सभी से कहा कि कि अगर हिम्मत है, तो अकेले-अकेले आओ।’
जय- ‘फिर क्या हुआ?’
वीरू- ‘होना क्या था, उसके बाद उन सबने एक-एक करके फिर से मुझे पीटा।’
अमेरिका में चोर पकड़ने की मशीन बनी। उसने अमेरिका में एक ही दिन में 9 चोर पकड़े लिए। फिर चीन में 30 और ब्रिटेन में 50 चोर पकड़े। भारत में आने पर मशीन 1 घंटे में चोरी हो गई।
एक बार पुलिस ने एक आदमी को सड़क पर पॉटी करते हुए देख लिया। पुलिस जब उस आदमी को पकड़ कर ले जाने लगी, तो वह बोला-
‘ओ कानून के रखवालों सबूत तो उठा लो।’
एक आदमी पहलवान से- तुम मेरे तीस दांत तोड़ने की धमकी दे रहे हो। पूछ सकता हूं कि बाकी के दो दांतों पर इतना रहम क्यों?
पहलवान- त्योहार में सबको विशेष छूट दे रहा हूं।
रमा लौवंशी, इंदौर
जेलर (चोर से)- तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे मिलने क्यों नहीं आता?
चोर (हंसते हुए)- दरअसल, वो सब जेल में ही हैं।
संता- यार उत्तरपुस्तिका में क्या लिखूं?
बंता- यही कि इस शीट पर लिखे गए सारे उत्तर काल्पनिक हैं और इनका किसी भी किताब से कोई ताल्लुक नहीं है। अक्षत सुगंधी
टीचर- राहुल बताओ, अकबर ने कब तक शासन किया था?राहूल- पेज नम्बर 14 से लेकर पेज 20 तक।
प्रवीण लौवंशी, इंदौर
जज चोर से- तुमने एक हफ्ते में 15 चोरियां कैसे की?चोर- हुजूर दिन-रात मेहनत करके
प्रभा लौवंशी, इंदौर
एक मनचला लड़का एक लड़की का पीछा कर रहा था। लड़की को छेड़ने के लिए उसे रोक कर कहा- मैडम, आपकी घड़ी में कितना बजा है?
लड़की ने गुस्से में आकर अपनी चप्पल उतारी और उसकी पीठ पर एक जमाते हुए कहा- एक बजा है।
एक राहगीर ने जब यह देखा तो लड़के को कहा कि अच्छा हुआ जो समय अभी पूछा, अगर एक घंटा पहले पूछते तो तुम्हें मज़ा आ जाता।
वीरू- ‘मैंने उन सभी से कहा कि कि अगर हिम्मत है, तो अकेले-अकेले आओ।’
जय- ‘फिर क्या हुआ?’
वीरू- ‘होना क्या था, उसके बाद उन सबने एक-एक करके फिर से मुझे पीटा।’
अमेरिका में चोर पकड़ने की मशीन बनी। उसने अमेरिका में एक ही दिन में 9 चोर पकड़े लिए। फिर चीन में 30 और ब्रिटेन में 50 चोर पकड़े। भारत में आने पर मशीन 1 घंटे में चोरी हो गई।
एक बार पुलिस ने एक आदमी को सड़क पर पॉटी करते हुए देख लिया। पुलिस जब उस आदमी को पकड़ कर ले जाने लगी, तो वह बोला-
‘ओ कानून के रखवालों सबूत तो उठा लो।’
एक आदमी पहलवान से- तुम मेरे तीस दांत तोड़ने की धमकी दे रहे हो। पूछ सकता हूं कि बाकी के दो दांतों पर इतना रहम क्यों?
पहलवान- त्योहार में सबको विशेष छूट दे रहा हूं।
रमा लौवंशी, इंदौर
जेलर (चोर से)- तुम्हारा कोई रिश्तेदार तुमसे मिलने क्यों नहीं आता?
चोर (हंसते हुए)- दरअसल, वो सब जेल में ही हैं।
संता- यार उत्तरपुस्तिका में क्या लिखूं?
बंता- यही कि इस शीट पर लिखे गए सारे उत्तर काल्पनिक हैं और इनका किसी भी किताब से कोई ताल्लुक नहीं है। अक्षत सुगंधी
टीचर- राहुल बताओ, अकबर ने कब तक शासन किया था?राहूल- पेज नम्बर 14 से लेकर पेज 20 तक।
प्रवीण लौवंशी, इंदौर
जज चोर से- तुमने एक हफ्ते में 15 चोरियां कैसे की?चोर- हुजूर दिन-रात मेहनत करके
प्रभा लौवंशी, इंदौर
एक मनचला लड़का एक लड़की का पीछा कर रहा था। लड़की को छेड़ने के लिए उसे रोक कर कहा- मैडम, आपकी घड़ी में कितना बजा है?
लड़की ने गुस्से में आकर अपनी चप्पल उतारी और उसकी पीठ पर एक जमाते हुए कहा- एक बजा है।
एक राहगीर ने जब यह देखा तो लड़के को कहा कि अच्छा हुआ जो समय अभी पूछा, अगर एक घंटा पहले पूछते तो तुम्हें मज़ा आ जाता।
सेक्सी आईटम गर्ल्स
बॉलीवुड की टॉप हॉट और सेक्सी आईटम गर्ल्स
आईटम सोंग्स का बॉलीवुड फिल्मों में बड़ा महत्व है|बॉलीवुड में आईटम नंबर्स इतने लोकप्रिय हैं कि कई बार तो यह फिल्मों की पहचान बन जाते हैं और लोग फिल्म से ज्यादा आईटम सोंग्स में दिलचस्पी लेते हैं|
फिल्मों में आईटम डांस नंबर्स का क्रेज कोई नया नहीं है|70 के दशक में हेलेन पर फिल्माया गया सेक्सी आईटम सॉन्ग 'पिया तू' आज भी लोगों के दिलों पर छाया हुआ है|माधुरी दीक्षित के दीवाने आज भी उनपर फिल्माए गए 'एक दो तीन' आईटम सॉन्ग पर खुद को झूमने से रोक नहीं पाते|फिल्म 'बिल्लू बारबर' में करीना ,दीपिका और प्रियंका पर फिल्माए गए आईटम सॉन्ग भी जबरदस्त हिट हुए थे|फिल्म 'बंटी और बबली' में ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया 'कजरारे कजरारे' भी बेहद पॉपुलर हुआ|आईटम नंबर्स पर मलाईका अरोरा और मल्लिका शेरावत का थिरकना कोई कैसे भूल सकता है|
आइए आपको मिलाते हैं बॉलीवुड की पांच हॉट आईटम गर्ल्स से:
हेलेन- गोल्डन गर्ल के नाम से मशहूर हेलेन को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन आईटम गर्ल्स में शुमार किया जाता है|60 ,70 के दशक में हेलेन अपने सेक्सी डांस की वजह से इतनी लोकप्रिय हुईं कि हर फिल्म में हेलेन का एक गाना तो जरुर होता ही था|'हावड़ा ब्रिज' में उनके द्वारा किया गया 'मेरा नाम चिन चिन चू'एक सदाबहार गाना बन चुका है|वहीं फिल्म शोले में 'महबूबा महबूबा'और कारवां में 'पिया तू अब तो आजा'में हेलेन के केब्रे डांस और सेक्सी अदाओं ने सबको मदहोश ही कर डाला था और इन गानों में हेलेन द्वारा किए गए डांस को अभी तक लोग भुला नहीं पाए हैं|
शिल्पा शेट्टी-आईटम गानों की बात की जाए तो हॉट ऐक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी के सेक्सी आईटम गानों को भला कैसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता है|फिल्म शूल में शिल्पा पर फिल्माया गया 'मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने'इतना जबरदस्त हिट हुआकि सब शिल्पा के हॉट अंदाज़ के दीवाने हो गए|इस गाने में शिल्पा के ठुमको ने दर्शकों को लूट लिया|इसके बाद फिल्म 'दोस्ताना' में शिल्पा ने मियामी के बीच पर 'शट अप एंड बाउंस'गाने में इतनी सेक्सी अदाएं दिखाईं कि फिल्म से ज्यादा शिल्पा का यह गाना सुर्ख़ियों में छाया रहा|
मलाइका अरोरा खान-फिल्म 'दिल से' में शाहरुख़ खान के साथ छैया-छैया गाने पर मलाईका के ठुमको ने तो कहर ही बरपा दिया था|मलाइका का सेक्सी फिगर किसी आईटम गाने को और सेक्सी बना देता है|मलाइका एक बार फिर सलमान खान की फिल्म 'दबंग' में एक हॉट आईटम सॉन्ग करती नज़र आएंगी|
मल्लिका शेरावत-इस हॉट लिस्ट में हम सेक्स बम मल्लिका शेरावत को कैसे भूल सकते हैं| फिल्म गुरु में 'मैया मैया' और हिमेश की फिल्म में महबूबा महबूबा गाने पर मल्लिका के डांस ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रिय बना दिया|मल्लिका अपने लीड रोल्स से ज्यादा आईटम सोंग्स के लिए ज्यादा फेमस हो गईं|
ऐश्वर्या राय- फिल्म बंटी और बबली में ऐश्वर्या के कजरारे कजरारे गाने को आज भी उनकी सबसे बेहतरीन परफोर्मेंस में शुमार किया जाता है|इस गाने में ऐश ने बड़ी ही शालीनता से झटके मटके मारे जिससे उनके फैंस कायल हुए बिना नहीं रह सके|
आईटम सोंग्स का बॉलीवुड फिल्मों में बड़ा महत्व है|बॉलीवुड में आईटम नंबर्स इतने लोकप्रिय हैं कि कई बार तो यह फिल्मों की पहचान बन जाते हैं और लोग फिल्म से ज्यादा आईटम सोंग्स में दिलचस्पी लेते हैं|
फिल्मों में आईटम डांस नंबर्स का क्रेज कोई नया नहीं है|70 के दशक में हेलेन पर फिल्माया गया सेक्सी आईटम सॉन्ग 'पिया तू' आज भी लोगों के दिलों पर छाया हुआ है|माधुरी दीक्षित के दीवाने आज भी उनपर फिल्माए गए 'एक दो तीन' आईटम सॉन्ग पर खुद को झूमने से रोक नहीं पाते|फिल्म 'बिल्लू बारबर' में करीना ,दीपिका और प्रियंका पर फिल्माए गए आईटम सॉन्ग भी जबरदस्त हिट हुए थे|फिल्म 'बंटी और बबली' में ऐश्वर्या राय पर फिल्माया गया 'कजरारे कजरारे' भी बेहद पॉपुलर हुआ|आईटम नंबर्स पर मलाईका अरोरा और मल्लिका शेरावत का थिरकना कोई कैसे भूल सकता है|
आइए आपको मिलाते हैं बॉलीवुड की पांच हॉट आईटम गर्ल्स से:
हेलेन- गोल्डन गर्ल के नाम से मशहूर हेलेन को बॉलीवुड की सबसे बेहतरीन आईटम गर्ल्स में शुमार किया जाता है|60 ,70 के दशक में हेलेन अपने सेक्सी डांस की वजह से इतनी लोकप्रिय हुईं कि हर फिल्म में हेलेन का एक गाना तो जरुर होता ही था|'हावड़ा ब्रिज' में उनके द्वारा किया गया 'मेरा नाम चिन चिन चू'एक सदाबहार गाना बन चुका है|वहीं फिल्म शोले में 'महबूबा महबूबा'और कारवां में 'पिया तू अब तो आजा'में हेलेन के केब्रे डांस और सेक्सी अदाओं ने सबको मदहोश ही कर डाला था और इन गानों में हेलेन द्वारा किए गए डांस को अभी तक लोग भुला नहीं पाए हैं|
शिल्पा शेट्टी-आईटम गानों की बात की जाए तो हॉट ऐक्ट्रेस शिल्पा शेट्टी के सेक्सी आईटम गानों को भला कैसे नज़र अंदाज़ किया जा सकता है|फिल्म शूल में शिल्पा पर फिल्माया गया 'मैं आई हूं यूपी बिहार लूटने'इतना जबरदस्त हिट हुआकि सब शिल्पा के हॉट अंदाज़ के दीवाने हो गए|इस गाने में शिल्पा के ठुमको ने दर्शकों को लूट लिया|इसके बाद फिल्म 'दोस्ताना' में शिल्पा ने मियामी के बीच पर 'शट अप एंड बाउंस'गाने में इतनी सेक्सी अदाएं दिखाईं कि फिल्म से ज्यादा शिल्पा का यह गाना सुर्ख़ियों में छाया रहा|
मलाइका अरोरा खान-फिल्म 'दिल से' में शाहरुख़ खान के साथ छैया-छैया गाने पर मलाईका के ठुमको ने तो कहर ही बरपा दिया था|मलाइका का सेक्सी फिगर किसी आईटम गाने को और सेक्सी बना देता है|मलाइका एक बार फिर सलमान खान की फिल्म 'दबंग' में एक हॉट आईटम सॉन्ग करती नज़र आएंगी|
मल्लिका शेरावत-इस हॉट लिस्ट में हम सेक्स बम मल्लिका शेरावत को कैसे भूल सकते हैं| फिल्म गुरु में 'मैया मैया' और हिमेश की फिल्म में महबूबा महबूबा गाने पर मल्लिका के डांस ने उन्हें जबरदस्त लोकप्रिय बना दिया|मल्लिका अपने लीड रोल्स से ज्यादा आईटम सोंग्स के लिए ज्यादा फेमस हो गईं|
ऐश्वर्या राय- फिल्म बंटी और बबली में ऐश्वर्या के कजरारे कजरारे गाने को आज भी उनकी सबसे बेहतरीन परफोर्मेंस में शुमार किया जाता है|इस गाने में ऐश ने बड़ी ही शालीनता से झटके मटके मारे जिससे उनके फैंस कायल हुए बिना नहीं रह सके|
शुक्रवार, 18 जून 2010
अनोखी खबरे
चीन में लड़की के शरीर से निकल रही कीलें
चीन के उत्तर-पूर्वी भाग में डेढ़ साल की एक बच्ची के शरीर से लोहे की कीलें निकल रही हैं। लड़की पूर्ण रूप से स्वस्थ है और सामान्य बच्चों की तरह खा-पी भी रही है। डॉक्टरों के लिए लड़की पहेली बन गई है। पिछले एक महीने में उसके शरीर से स्टील की एक पिन समेत 21 कीलें निकल चुकी हैं। लेकिन उसमें अभी तक किसी बीमारी का लक्षण नहीं दिखाई दिया।
> सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, बाल रोग विशेषज्ञों ने लड़की का परीक्षण करने के बाद बताया कि उसे खाने से संबंधित पाइका नाम की एक बीमारी हो सकती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति लोहा, पत्थर, लकड़ी आदि चीजें खाने लगता है। लेकिन पहेली यह है कि उस बच्ची को यह चीजें कहां से मिल रही हैं।
> जियांग्सियोटोंग यूनिवसिर्टी के प्रोफेसर गाओ या ने बताया, हो सकता है कि उसे पाइका बीमारी ही हो। हम लोग इस मामले में अभी और शोध कर रहे हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसे कीलें कहां से मिल रही हैं? पाइका एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति के शरीर में जिंक, आयरन और कुछ अन्य तत्वों की कमी हो जाती है। इसमें आगे चलकर एनीमिया और लैड पाइजनिंग जैसी खतरनाक बीमारियां पैदा हो सकती है।
> लेकिन उस लड़की के खून के परीक्षण में जिंक, कैल्शियम, मैग्नीशियम का स्तर भी सामान्य आया है। आयरन की मामूली कमी देखी गई है। लड़की के माता-पिता उसके मुंह में दो कीलें देखने के बाद उसे 5 मई को डाक्टर के पास ले गए थे। तब से वह 5 सेमी लंबी कीलें लगातार उगल रही है।
चीन के उत्तर-पूर्वी भाग में डेढ़ साल की एक बच्ची के शरीर से लोहे की कीलें निकल रही हैं। लड़की पूर्ण रूप से स्वस्थ है और सामान्य बच्चों की तरह खा-पी भी रही है। डॉक्टरों के लिए लड़की पहेली बन गई है। पिछले एक महीने में उसके शरीर से स्टील की एक पिन समेत 21 कीलें निकल चुकी हैं। लेकिन उसमें अभी तक किसी बीमारी का लक्षण नहीं दिखाई दिया।
> सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ के मुताबिक, बाल रोग विशेषज्ञों ने लड़की का परीक्षण करने के बाद बताया कि उसे खाने से संबंधित पाइका नाम की एक बीमारी हो सकती है। इससे ग्रस्त व्यक्ति लोहा, पत्थर, लकड़ी आदि चीजें खाने लगता है। लेकिन पहेली यह है कि उस बच्ची को यह चीजें कहां से मिल रही हैं।
> जियांग्सियोटोंग यूनिवसिर्टी के प्रोफेसर गाओ या ने बताया, हो सकता है कि उसे पाइका बीमारी ही हो। हम लोग इस मामले में अभी और शोध कर रहे हैं। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि उसे कीलें कहां से मिल रही हैं? पाइका एक गंभीर बीमारी है। इस बीमारी में व्यक्ति के शरीर में जिंक, आयरन और कुछ अन्य तत्वों की कमी हो जाती है। इसमें आगे चलकर एनीमिया और लैड पाइजनिंग जैसी खतरनाक बीमारियां पैदा हो सकती है।
> लेकिन उस लड़की के खून के परीक्षण में जिंक, कैल्शियम, मैग्नीशियम का स्तर भी सामान्य आया है। आयरन की मामूली कमी देखी गई है। लड़की के माता-पिता उसके मुंह में दो कीलें देखने के बाद उसे 5 मई को डाक्टर के पास ले गए थे। तब से वह 5 सेमी लंबी कीलें लगातार उगल रही है।
खास खबरे
22 साल से निरंतर दूध दे रही गाय
एक मवेशी अधिकतम एक या दो वर्ष अथवा इससे कुछ अधिक समय तक ही लगातार दूध दे सकता है। प्रकृति के नियमों के तहत भी लंबे समय तक दूध देने के लिए उसे बार-बार गर्भ धारण करना जरूरी है। पर कठुआ के नंगल गांव में रघुवीर सिंह के घर में 25 साल की एक गाय 22 साल से दोबारा गर्भ धारण किए बिना निरंतर दूध दे रही है।
> परिवार के लोग इस गाय को मां का स्वरूप व घर का सदस्य मानते हैं। उनका कहना है कि इस गाय ने उनके परिवार को दूध पिलाकर पाला है। ऐसी गाय उनके परिवार के किसी सदस्य से कम नहीं है। उन्होंने बताया कि वह इस गाय को कहीं से खरीद कर नहीं लाए थे, बल्कि इसका जन्म उनके घर में ही हुआ था। साढ़े तीन साल की उम्र में 22 साल पहले यह गर्भवती हुई थी और एक बछड़े को जन्म दिया था। उसके बाद आज तक इसने गर्भ धारण नहीं किया, लेकिन दूध निरंतर दे रही है। रघुवीर ने बताया कि शुरुआत में यह 15 किलो तक दूध देती थी, उसके बाद 10 किलो, फिर पांच और अब दो किलो दे रही है। उनका कहना है कि 25 साल से उनके आंगन में बंधी गाय अब उनके परिवार की सदस्य है। उन्होंने बताया कि कई बार लोगों ने इसे खरीदने का भी प्रयास किया, लेकिन वे ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। रघुवीर के बेटे कमल सिंह ने गाय के बड़े-बड़े फोटो अपने कंप्यूटर में सेव कर रखे थे। उसका कहना है कि यह गाय उनके परिवार की मां है। उनके परिवार के अलावा पूरे गांव के लोगों ने इसके दूध का स्वाद चखा है। आज भी जिसके घर में दूध नहीं होता, वो उनके घर लेने आते हैं।
> इस संबंध में पशुपालन विभाग के सेवानिवृत्त चीफ एनीमल हस्बेंडरी आफिसर जेएस जसरोटिया का का कहना है कि ऐसा किसी भी दुधारू पशु में हारमोनल सिस्टम में गड़बड़ी के कारण होता है। पिछले दिनों सुंदरबनी और हीरानगर में भी एक महीने की बछड़ी द्वारा दूध देने का मामला सामने आया था। हां गाय की उम्र 25 साल होने की बात पहली बार सामने आई है, जो हैरानी वाली बात है। अक्सर गाय की उम्र 15 से 16 साल तक ही होती है।
एक मवेशी अधिकतम एक या दो वर्ष अथवा इससे कुछ अधिक समय तक ही लगातार दूध दे सकता है। प्रकृति के नियमों के तहत भी लंबे समय तक दूध देने के लिए उसे बार-बार गर्भ धारण करना जरूरी है। पर कठुआ के नंगल गांव में रघुवीर सिंह के घर में 25 साल की एक गाय 22 साल से दोबारा गर्भ धारण किए बिना निरंतर दूध दे रही है।
> परिवार के लोग इस गाय को मां का स्वरूप व घर का सदस्य मानते हैं। उनका कहना है कि इस गाय ने उनके परिवार को दूध पिलाकर पाला है। ऐसी गाय उनके परिवार के किसी सदस्य से कम नहीं है। उन्होंने बताया कि वह इस गाय को कहीं से खरीद कर नहीं लाए थे, बल्कि इसका जन्म उनके घर में ही हुआ था। साढ़े तीन साल की उम्र में 22 साल पहले यह गर्भवती हुई थी और एक बछड़े को जन्म दिया था। उसके बाद आज तक इसने गर्भ धारण नहीं किया, लेकिन दूध निरंतर दे रही है। रघुवीर ने बताया कि शुरुआत में यह 15 किलो तक दूध देती थी, उसके बाद 10 किलो, फिर पांच और अब दो किलो दे रही है। उनका कहना है कि 25 साल से उनके आंगन में बंधी गाय अब उनके परिवार की सदस्य है। उन्होंने बताया कि कई बार लोगों ने इसे खरीदने का भी प्रयास किया, लेकिन वे ऐसा सोच भी नहीं सकते थे। रघुवीर के बेटे कमल सिंह ने गाय के बड़े-बड़े फोटो अपने कंप्यूटर में सेव कर रखे थे। उसका कहना है कि यह गाय उनके परिवार की मां है। उनके परिवार के अलावा पूरे गांव के लोगों ने इसके दूध का स्वाद चखा है। आज भी जिसके घर में दूध नहीं होता, वो उनके घर लेने आते हैं।
> इस संबंध में पशुपालन विभाग के सेवानिवृत्त चीफ एनीमल हस्बेंडरी आफिसर जेएस जसरोटिया का का कहना है कि ऐसा किसी भी दुधारू पशु में हारमोनल सिस्टम में गड़बड़ी के कारण होता है। पिछले दिनों सुंदरबनी और हीरानगर में भी एक महीने की बछड़ी द्वारा दूध देने का मामला सामने आया था। हां गाय की उम्र 25 साल होने की बात पहली बार सामने आई है, जो हैरानी वाली बात है। अक्सर गाय की उम्र 15 से 16 साल तक ही होती है।
रोचक खबरे
बंदर को भी टीवी देखने में आता है मजा!
जापान के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जैविक विकास में इंसान के पुरखे कहे जाने वाले बंदर को भी टीवी देखने में मजा आता है।
> यूनिवर्सिटीज प्राइमेट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बंदर के टीवी देखने को लेकर प्रयोग किया। उन्होंने पाया कि तीन साल के एक नर बंदर को सर्कस के हाथी, जिराफ और बाघ के वीडियो देखने में काफी मजा आया।
> वैज्ञानिकों ने टीवी देखते समय बंदर के दिमाग में हो रहे रक्त संचार का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने नीयर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी नाम की विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया।
> उन्होंने पाया कि जब बंदर सर्कस के जानवरों को देख रहा था, तो उसके मस्तिष्क का फ्रंटल लोब काफी सक्रिय था। यह सक्रियता टीवी के प्रति बंदर की रुचि को बताती है।
> जब इन्सान का बच्चा अपनी मां को मुस्कराते देखता है, तो उसके दिमाग का भी यही भाग सक्रिय होता है। इसी वजह से बच्चा भी हंसता है। फ्रंटियर्स इन बिहेवियरल न्यूरोसाइंस में छपे इस अध्ययन में मनुष्य और इंसानों के प्रति समानता को बताया गया है।
> यद्यपि इससे पहले भी मनुष्य और इंसानों को लेकर कई अध्ययन किए जा चुके हैं। लेकिन टीवी जैसे रोचक विषय पर किया गया अध्ययन पहली बार प्रकाश में आया है।
जापान के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि जैविक विकास में इंसान के पुरखे कहे जाने वाले बंदर को भी टीवी देखने में मजा आता है।
> यूनिवर्सिटीज प्राइमेट रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने बंदर के टीवी देखने को लेकर प्रयोग किया। उन्होंने पाया कि तीन साल के एक नर बंदर को सर्कस के हाथी, जिराफ और बाघ के वीडियो देखने में काफी मजा आया।
> वैज्ञानिकों ने टीवी देखते समय बंदर के दिमाग में हो रहे रक्त संचार का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने नीयर इंफ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी नाम की विशेष तकनीक का इस्तेमाल किया।
> उन्होंने पाया कि जब बंदर सर्कस के जानवरों को देख रहा था, तो उसके मस्तिष्क का फ्रंटल लोब काफी सक्रिय था। यह सक्रियता टीवी के प्रति बंदर की रुचि को बताती है।
> जब इन्सान का बच्चा अपनी मां को मुस्कराते देखता है, तो उसके दिमाग का भी यही भाग सक्रिय होता है। इसी वजह से बच्चा भी हंसता है। फ्रंटियर्स इन बिहेवियरल न्यूरोसाइंस में छपे इस अध्ययन में मनुष्य और इंसानों के प्रति समानता को बताया गया है।
> यद्यपि इससे पहले भी मनुष्य और इंसानों को लेकर कई अध्ययन किए जा चुके हैं। लेकिन टीवी जैसे रोचक विषय पर किया गया अध्ययन पहली बार प्रकाश में आया है।
ज़रा हटके
नवाबों जैसे ठाठ-बाट कुत्तों की
क्या किस्मत लेकर पैदा हुए हैं ये तीन कुत्ते! इनकी मालकिन इनके लिए 11.3 मिलियन डालर [52.2 करोड़ रुपये] की संपत्ति छोड़कर गई है। इसमें 8.3 मिलियन डालर [38.3 करोड़ रुपये] का मियामी में समुद्र किनारे एक घर और तीन मिलियन डालर [13.8 करोड़ रुपये] का एक ट्रस्ट शामिल है। कुत्तों की मालकिन का नाम है गेल पोसनर। यह अमेरिका के नामी व्यापारी विक्टर पोसनर की बेटी थीं। मार्च में 67 साल की उम्र में कैंसर से उनकी मौत हो गई। लेकिन अब उनकी विरासत तीन कुत्ते संभाल रहे हैं।
गेल का पूरा स्टाफ दिन भर कुत्तों की खिदमत में लगा रहता है। इन तीन कुत्तों या यूं कहें तीन नवाबों के नाम हैं कोंचिटा, मारिया और लूसिया। तीनों हर हफ्ते स्पा का आनंद उठाते हैं। इनमें से गेल का पसंदीदा कुत्ता तो दस हजार पौंड [करीब सात लाख रुपये] का नेकलेस पहने रहता है। वहीं गेल का इकलौता बेटा ब्रेट कार कुत्तों के ठाठ-बाट देखकर अपनी किस्मत पर रोता है। ब्रेट को अपनी मां की संपत्ति में से केवल छह लाख पौंड ही [4.1 करोड़ रुपये] मिले हैं। बे्रट का कहना है कि उसकी मां के आखिरी दिनों में उनके स्टाफ ने उनका ब्रेनवाश कर दिया था। ब्रेट फ्लोरिडा की अदालत में अपनी मां की वसीयत के खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है। उसका दावा है कि उसकी मां की पूरी संपत्ति पर केवल उसका हक है। पेशे से फिल्मकार बे्रट ने कहा है कि उसकी मां के स्टाफ ने उन्हें नशे की दवाएं देकर कुत्तों के नाम सारी वसीयत लिखवा ली थी।
क्या किस्मत लेकर पैदा हुए हैं ये तीन कुत्ते! इनकी मालकिन इनके लिए 11.3 मिलियन डालर [52.2 करोड़ रुपये] की संपत्ति छोड़कर गई है। इसमें 8.3 मिलियन डालर [38.3 करोड़ रुपये] का मियामी में समुद्र किनारे एक घर और तीन मिलियन डालर [13.8 करोड़ रुपये] का एक ट्रस्ट शामिल है। कुत्तों की मालकिन का नाम है गेल पोसनर। यह अमेरिका के नामी व्यापारी विक्टर पोसनर की बेटी थीं। मार्च में 67 साल की उम्र में कैंसर से उनकी मौत हो गई। लेकिन अब उनकी विरासत तीन कुत्ते संभाल रहे हैं।
गेल का पूरा स्टाफ दिन भर कुत्तों की खिदमत में लगा रहता है। इन तीन कुत्तों या यूं कहें तीन नवाबों के नाम हैं कोंचिटा, मारिया और लूसिया। तीनों हर हफ्ते स्पा का आनंद उठाते हैं। इनमें से गेल का पसंदीदा कुत्ता तो दस हजार पौंड [करीब सात लाख रुपये] का नेकलेस पहने रहता है। वहीं गेल का इकलौता बेटा ब्रेट कार कुत्तों के ठाठ-बाट देखकर अपनी किस्मत पर रोता है। ब्रेट को अपनी मां की संपत्ति में से केवल छह लाख पौंड ही [4.1 करोड़ रुपये] मिले हैं। बे्रट का कहना है कि उसकी मां के आखिरी दिनों में उनके स्टाफ ने उनका ब्रेनवाश कर दिया था। ब्रेट फ्लोरिडा की अदालत में अपनी मां की वसीयत के खिलाफ मुकदमा लड़ रहा है। उसका दावा है कि उसकी मां की पूरी संपत्ति पर केवल उसका हक है। पेशे से फिल्मकार बे्रट ने कहा है कि उसकी मां के स्टाफ ने उन्हें नशे की दवाएं देकर कुत्तों के नाम सारी वसीयत लिखवा ली थी।
बुधवार, 16 जून 2010
खुशबू
एक दुनिया खुशबू की
आम तौर पर बात होती है आँख खोल कर चलने की, लेकिन फिलहाल बात नाक खोल कर चलने की। जी हाँ अक्सर हम देखने-बोलने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि सुनना और सूंघना बिलकुल भूल जाते हैं।
जर्मनी के एक शोधार्थी हान्स हाट खुशबूओं पर शोध कर रहे हैं और उन्होंने कई बहुत ही रोचक तथ्य खोज निकाले हैं। हान्स के शोध के लिए उन्हें इस साल पचास हजार यूरो का कम्युनिकेटर पुरस्कार भी मिला है।
हान्स हाट कहते हैं, 'मैं लोगों से कहना चाहता हूँ कि आप सभी के पास सिर्फ आँखे और कान ही नहीं हैं एक नाक भी है, तो इसे इस्तेमाल करें। यही नाक आपको जीवन में ऐसी चीजें दिखाएगी और समझाएगी, जो आपको किसी भी और जगह से मिलना नामुमकिन है।
हान्स हाट ने अपने शोध में कई विषयों को छुआ है। इसमें भय से पीड़ित लोगों को ठीक करना भी शामिल है। हान्स कहते हैं कि इसके लिए जासमीन, मतलब मोंगरे की खुशबू को मिलाकर बनाया गया खास इत्र बहुत मदद कर सकता है। हान्स की टीम ने इस खुशबू को ढूँढ कर पहले ही इसे पेटेंट करा लिया है। सूँघने पर ये गंध फेफड़ों, रक्त और फिर दिमाग में जाती है और अपना असर करती है।
हान्स ने कहा है कि ये गंध दिमाग में वैलियम दवाई जैसा असर करती है और दिमाग को शांत करती है। इस गंध के कोई साइड इफेक्ट्स अभी सामने नहीं आए हैं। वैसे भी गंध मनुष्य सहित कई जीव-जंतुओं के लिए बहुत अहम भूमिका निभाती है। हान्स कहते हैं कि सभी मनुष्यों को खुश रख सके, ऐसी कोई गंध बनाना संभव नहीं।
वे कहते हैं, 'ऐसा बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसी गंध बनाई जाए, जो सभी को खुश रखे, जो सभी लोगों में एक जैसी भावना पैदा कर सके, चाहे वो प्रेम की हो या कोई और, या सभी मनुष्यों को आकर्षक बना सके।'
हान्स हाट के शोध में छोटी-छोटी घंटियों जैसे प्यारे सफेद फूलों की अहम भूमिका है। इन फूलों को इंग्लिश में लिली ऑफ द वैली कहते हैं। ये वनस्पति शास्त्र के हिसाब से एस्पेरेगल्स ऑर्डर में आती है। लिली ऑफ द वैली का पूरा पौधा बहुत जहरीला होता है लेकिन इसके फूलों से निकले रसायन का मनुष्य के शरीर पर गहरा असर होता है।
हान्स के शोध में सामने आया है कि इन फूलों की गंध से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि इनकी गंध से शुक्राणु सीधे अंडाणु से जा मिलता है, 'मनुष्य के शुक्राणु की ऊपरी सतह पर ऐसे हिस्से होते हैं जो गंध पहचान सकते हैं, उसे ले सकते हैं। गंध वाले ये शुक्राणु लिली ऑफ द वैली की गंध पहचान सकते हैं।'
जर्मनी के बोखुम शहर की रुअर यूनिवर्सिटी में शोध के दौरान हान्स ने शुक्राणुओं में ऐसे बीस रिसेप्टर ढूँढे हैं जो गंध पहचान सकते हैं। वे इस बात पर शोध कर रहे हैं कि कौन-सी ऐसी गंधें हैं जो शुक्राणु को तेजी से अंडाणु तक पहुँचने में मदद कर सकती हैं।
वहीं एक और खुशबू है, वह है बनक्षा या बनफसा की, जो प्रोस्टेट कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोक सकती है। यह हान्स हाट के शोध का सबसे नया आयाम है। इससे प्रोस्टेट कैंसर के लिए दवाई बनाने में आसानी हो सकती है। मीठी गंध वाली बनक्षा वनस्पति का यूनानी चिकित्सा पद्धती में खाँसी-कफ या फिर वायरल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
तितलियाँ कैसे सूँघती हैं, इसका शोध करते-करते हान्स हाट खुशबूओं में ऐसे खोए कि उन्होंने एक नई दुनिया अपने लिए खोल ली और कई बीमारियों के उपचार के लिए रास्ता भी।
आम तौर पर बात होती है आँख खोल कर चलने की, लेकिन फिलहाल बात नाक खोल कर चलने की। जी हाँ अक्सर हम देखने-बोलने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि सुनना और सूंघना बिलकुल भूल जाते हैं।
जर्मनी के एक शोधार्थी हान्स हाट खुशबूओं पर शोध कर रहे हैं और उन्होंने कई बहुत ही रोचक तथ्य खोज निकाले हैं। हान्स के शोध के लिए उन्हें इस साल पचास हजार यूरो का कम्युनिकेटर पुरस्कार भी मिला है।
हान्स हाट कहते हैं, 'मैं लोगों से कहना चाहता हूँ कि आप सभी के पास सिर्फ आँखे और कान ही नहीं हैं एक नाक भी है, तो इसे इस्तेमाल करें। यही नाक आपको जीवन में ऐसी चीजें दिखाएगी और समझाएगी, जो आपको किसी भी और जगह से मिलना नामुमकिन है।
हान्स हाट ने अपने शोध में कई विषयों को छुआ है। इसमें भय से पीड़ित लोगों को ठीक करना भी शामिल है। हान्स कहते हैं कि इसके लिए जासमीन, मतलब मोंगरे की खुशबू को मिलाकर बनाया गया खास इत्र बहुत मदद कर सकता है। हान्स की टीम ने इस खुशबू को ढूँढ कर पहले ही इसे पेटेंट करा लिया है। सूँघने पर ये गंध फेफड़ों, रक्त और फिर दिमाग में जाती है और अपना असर करती है।
हान्स ने कहा है कि ये गंध दिमाग में वैलियम दवाई जैसा असर करती है और दिमाग को शांत करती है। इस गंध के कोई साइड इफेक्ट्स अभी सामने नहीं आए हैं। वैसे भी गंध मनुष्य सहित कई जीव-जंतुओं के लिए बहुत अहम भूमिका निभाती है। हान्स कहते हैं कि सभी मनुष्यों को खुश रख सके, ऐसी कोई गंध बनाना संभव नहीं।
वे कहते हैं, 'ऐसा बहुत मुश्किल है कि कोई ऐसी गंध बनाई जाए, जो सभी को खुश रखे, जो सभी लोगों में एक जैसी भावना पैदा कर सके, चाहे वो प्रेम की हो या कोई और, या सभी मनुष्यों को आकर्षक बना सके।'
हान्स हाट के शोध में छोटी-छोटी घंटियों जैसे प्यारे सफेद फूलों की अहम भूमिका है। इन फूलों को इंग्लिश में लिली ऑफ द वैली कहते हैं। ये वनस्पति शास्त्र के हिसाब से एस्पेरेगल्स ऑर्डर में आती है। लिली ऑफ द वैली का पूरा पौधा बहुत जहरीला होता है लेकिन इसके फूलों से निकले रसायन का मनुष्य के शरीर पर गहरा असर होता है।
हान्स के शोध में सामने आया है कि इन फूलों की गंध से गर्भधारण की संभावना बढ़ जाती है क्योंकि इनकी गंध से शुक्राणु सीधे अंडाणु से जा मिलता है, 'मनुष्य के शुक्राणु की ऊपरी सतह पर ऐसे हिस्से होते हैं जो गंध पहचान सकते हैं, उसे ले सकते हैं। गंध वाले ये शुक्राणु लिली ऑफ द वैली की गंध पहचान सकते हैं।'
जर्मनी के बोखुम शहर की रुअर यूनिवर्सिटी में शोध के दौरान हान्स ने शुक्राणुओं में ऐसे बीस रिसेप्टर ढूँढे हैं जो गंध पहचान सकते हैं। वे इस बात पर शोध कर रहे हैं कि कौन-सी ऐसी गंधें हैं जो शुक्राणु को तेजी से अंडाणु तक पहुँचने में मदद कर सकती हैं।
वहीं एक और खुशबू है, वह है बनक्षा या बनफसा की, जो प्रोस्टेट कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोक सकती है। यह हान्स हाट के शोध का सबसे नया आयाम है। इससे प्रोस्टेट कैंसर के लिए दवाई बनाने में आसानी हो सकती है। मीठी गंध वाली बनक्षा वनस्पति का यूनानी चिकित्सा पद्धती में खाँसी-कफ या फिर वायरल इन्फेक्शन से लड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
तितलियाँ कैसे सूँघती हैं, इसका शोध करते-करते हान्स हाट खुशबूओं में ऐसे खोए कि उन्होंने एक नई दुनिया अपने लिए खोल ली और कई बीमारियों के उपचार के लिए रास्ता भी।
रोमांस
ठोकर खाकर भी बदल सकती है राह
हेलो दोस्तो! कोई अपना व्यवहार क्यों और कब बदल देगा इसका अंदाजा लगाना बड़ा कठिन है। हमारी दुनिया अपनी ही धुन पर चलती है। हममें से अधिकतर लोगों को जब जिस ओर बेहतरी दिखती है बस उसी के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। उस वक्त न तो किसी नैतिकता पर विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है और न ही किसी की पीड़ा से कोई मतलब होता है। हर पल हम एक प्रकार की तुलना में ही जीते रहते हैं। जो पलड़ा जितना अपने फायदे की ओर झुका होता है हमारा फैसला भी उसी ओर हो जाता है।
समाज में ऐसे भी बहुतेरे लोग मिल जाएँगे जिन्हें जीवन के किसी एक वक्त जिन विचार, धर्म, स्त्री, पुरुष, बच्चे, भाषा, संस्कृति, रंग साहित्य आदि से नफरत थी उन्हें जीवन के दूसरे मोड़ पर उससे प्यार हो गया। तब जीने के लिए वही नफरत वाली भावना बदलनी पड़ी या कहें कि स्वार्थ के लिए हम कोई भी कदम उठा सकते हैं। किसी को नीचा दिखा सकते हैं। किसी की मासूम भावना का मजाक उड़ा सकते हैं। जिसकी भावना का तमाशा बनाया जा रहा हो उसके लिए सचमुच जीना मुहाल हो जाता है।
ऐसी ही स्थिति में पड़कर रंजन (बदला हुआ नाम) सबसे मुँह छुपाते फिर रहे हैं। दोस्तों के कमेंट ने उन्हें एकांत में ढकेल दिया है। आँसू बहाने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं बचा है। रंजन इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष के छात्र हैं और वह प्रथम वर्ष की एक छात्रा को बेहद पसंद करते थे। नए वर्ष के मौके पर उन्होंने एक लाल गुलाब और नया वर्ष बधाई कार्ड उसे गर्ल्स हॉस्टल भिजवा दिया। तकरीबन एक हफ्ते बाद वह लड़की उन्हें मिली और उस पर खूब चिल्लाई, बुरा-भला कहा और इल्जाम लगाया कि उसने उसे कलंकित किया है जबकि वह ऐसी-वैसी लड़की नहीं है।
रंजन को ग्लानि हुई। यहाँ तक तो कहानी सीधी थी। ऐसा अमूमन होता रहता है। पर उस वक्त रंजन हैरान रह गया जब उसी लड़की के सामने दो-तीन दिनों के भीतर ही एक और लड़के ने प्रस्ताव रखा और वह झट खुशी-खुशी मान गई। लड़की के इस दोहरे व्यवहार ने रंजन को मजाक का पात्र बना दिया। अब कॉलेज के लड़के रंजन को हर वक्त चिढ़ाते रहते हैं। वह लड़की दूसरे लड़के के साथ खूब हँसी-ठिठोली करती घूमती फिरती है। रंजन को समझ में नहीं आता कि वह यह सब कैसे भुलाए। वह उस लड़की के व्यवहार से उपजे हजार सवाल अपने मन से पूछता है पर उसे जवाब नहीं मिलता।
रंजन जी, हम सभी लोग दूसरों का व्यवहार सोच-सोचकर ही परेशान होते हैं। दूसरे ने खास प्रकार का व्यवहार क्यों किया, वह आप नहीं जान सकते। आप उस व्यक्ति की सोच को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
हो सकता है वह लड़की उस लड़के को पसंद करती हो। दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करते हों पर औपचारिक रूप से ऐलान न किया हो। ऐसे में उसे अपनी एकनिष्ठा एवं पवित्रता साबित करने के लिए उसने आपका प्रस्ताव स्वीकार न किया हो। अपने प्रेमी को अपनी वफादारी जताने का यही तरीका उसे समझ में आया हो। आखिर वह भी एक छोटी लड़की ही है। दूसरी बात यह कि वह उतनी संवेदनशील लड़की नहीं होगी, नहीं तो वह आपसे क्षमा जरूर माँगती। कई बार हम भीतर से ज्यादा मजबूत न हों तो अधिक चीखते-चिल्लाते हैं। मना करने का उसका तरीका गलत था।
आपने अभी जीवन जीना शुरू किया है। पहली बार बिना किसी सलाह-मशविरे के आपने एक फैसला लिया और उस पर अमल किया। वह गलत निकला इसलिए आपको ज्यादा बुरा लग रहा है। यह जीवन है यहाँ न जाने कितनी ऐसी घटनाएँ होंगी जो आपकी अपेक्षा के विपरीत होंगी। इतना हताश होने से काम नहीं चलता।
आप अपने भीतर झाँकें। आपने न तो किसी का मजाक उड़ाया है और न ही किसी का दिल तोड़ा है फिर आप क्यों परेशान होते हैं। आपने बड़ी ईमानदारी से अपनी भावना सामने रखी। वह कोई पाप नहीं है। एक अच्छे इंसान को दुख तो होता है पर शैतानों के लिए मन छोटा करना अक्लमंदी नहीं है। आप अपने दोस्तों से चाहे तो कह दें, उसे जो पसंद था उसके साथ हो ली। चलता है, वे भी हँसकर चुप हो जाएँगे। न भी कहें तो थोड़े ही दिनों में सब भूल जाएँगे। समय हर मर्ज की दवा है। आप मायूस न हों। खूब दिल लगाकर पढ़ें। समय के साथ ही बेहतर रास्ते भी बनते हैं।
हेलो दोस्तो! कोई अपना व्यवहार क्यों और कब बदल देगा इसका अंदाजा लगाना बड़ा कठिन है। हमारी दुनिया अपनी ही धुन पर चलती है। हममें से अधिकतर लोगों को जब जिस ओर बेहतरी दिखती है बस उसी के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। उस वक्त न तो किसी नैतिकता पर विचार करने की आवश्यकता महसूस होती है और न ही किसी की पीड़ा से कोई मतलब होता है। हर पल हम एक प्रकार की तुलना में ही जीते रहते हैं। जो पलड़ा जितना अपने फायदे की ओर झुका होता है हमारा फैसला भी उसी ओर हो जाता है।
समाज में ऐसे भी बहुतेरे लोग मिल जाएँगे जिन्हें जीवन के किसी एक वक्त जिन विचार, धर्म, स्त्री, पुरुष, बच्चे, भाषा, संस्कृति, रंग साहित्य आदि से नफरत थी उन्हें जीवन के दूसरे मोड़ पर उससे प्यार हो गया। तब जीने के लिए वही नफरत वाली भावना बदलनी पड़ी या कहें कि स्वार्थ के लिए हम कोई भी कदम उठा सकते हैं। किसी को नीचा दिखा सकते हैं। किसी की मासूम भावना का मजाक उड़ा सकते हैं। जिसकी भावना का तमाशा बनाया जा रहा हो उसके लिए सचमुच जीना मुहाल हो जाता है।
ऐसी ही स्थिति में पड़कर रंजन (बदला हुआ नाम) सबसे मुँह छुपाते फिर रहे हैं। दोस्तों के कमेंट ने उन्हें एकांत में ढकेल दिया है। आँसू बहाने के सिवा उनके पास कोई चारा नहीं बचा है। रंजन इंजीनियरिंग के दूसरे वर्ष के छात्र हैं और वह प्रथम वर्ष की एक छात्रा को बेहद पसंद करते थे। नए वर्ष के मौके पर उन्होंने एक लाल गुलाब और नया वर्ष बधाई कार्ड उसे गर्ल्स हॉस्टल भिजवा दिया। तकरीबन एक हफ्ते बाद वह लड़की उन्हें मिली और उस पर खूब चिल्लाई, बुरा-भला कहा और इल्जाम लगाया कि उसने उसे कलंकित किया है जबकि वह ऐसी-वैसी लड़की नहीं है।
रंजन को ग्लानि हुई। यहाँ तक तो कहानी सीधी थी। ऐसा अमूमन होता रहता है। पर उस वक्त रंजन हैरान रह गया जब उसी लड़की के सामने दो-तीन दिनों के भीतर ही एक और लड़के ने प्रस्ताव रखा और वह झट खुशी-खुशी मान गई। लड़की के इस दोहरे व्यवहार ने रंजन को मजाक का पात्र बना दिया। अब कॉलेज के लड़के रंजन को हर वक्त चिढ़ाते रहते हैं। वह लड़की दूसरे लड़के के साथ खूब हँसी-ठिठोली करती घूमती फिरती है। रंजन को समझ में नहीं आता कि वह यह सब कैसे भुलाए। वह उस लड़की के व्यवहार से उपजे हजार सवाल अपने मन से पूछता है पर उसे जवाब नहीं मिलता।
रंजन जी, हम सभी लोग दूसरों का व्यवहार सोच-सोचकर ही परेशान होते हैं। दूसरे ने खास प्रकार का व्यवहार क्यों किया, वह आप नहीं जान सकते। आप उस व्यक्ति की सोच को नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
हो सकता है वह लड़की उस लड़के को पसंद करती हो। दोनों ही एक-दूसरे को पसंद करते हों पर औपचारिक रूप से ऐलान न किया हो। ऐसे में उसे अपनी एकनिष्ठा एवं पवित्रता साबित करने के लिए उसने आपका प्रस्ताव स्वीकार न किया हो। अपने प्रेमी को अपनी वफादारी जताने का यही तरीका उसे समझ में आया हो। आखिर वह भी एक छोटी लड़की ही है। दूसरी बात यह कि वह उतनी संवेदनशील लड़की नहीं होगी, नहीं तो वह आपसे क्षमा जरूर माँगती। कई बार हम भीतर से ज्यादा मजबूत न हों तो अधिक चीखते-चिल्लाते हैं। मना करने का उसका तरीका गलत था।
आपने अभी जीवन जीना शुरू किया है। पहली बार बिना किसी सलाह-मशविरे के आपने एक फैसला लिया और उस पर अमल किया। वह गलत निकला इसलिए आपको ज्यादा बुरा लग रहा है। यह जीवन है यहाँ न जाने कितनी ऐसी घटनाएँ होंगी जो आपकी अपेक्षा के विपरीत होंगी। इतना हताश होने से काम नहीं चलता।
आप अपने भीतर झाँकें। आपने न तो किसी का मजाक उड़ाया है और न ही किसी का दिल तोड़ा है फिर आप क्यों परेशान होते हैं। आपने बड़ी ईमानदारी से अपनी भावना सामने रखी। वह कोई पाप नहीं है। एक अच्छे इंसान को दुख तो होता है पर शैतानों के लिए मन छोटा करना अक्लमंदी नहीं है। आप अपने दोस्तों से चाहे तो कह दें, उसे जो पसंद था उसके साथ हो ली। चलता है, वे भी हँसकर चुप हो जाएँगे। न भी कहें तो थोड़े ही दिनों में सब भूल जाएँगे। समय हर मर्ज की दवा है। आप मायूस न हों। खूब दिल लगाकर पढ़ें। समय के साथ ही बेहतर रास्ते भी बनते हैं।
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