अभी तो मैं जवान हूँ!
उर्मिला मेहरा
कुछ समय पहले जब इवनिंग वॉक के लिए मैं गई और वापस घर की ओर लौट रही थी तब मेरी बहन का फोन आया और मैं उनसे बतियाने लगी। तभी अचानक मेरी दाईं तरफ से मोटरसाइकल पर सवार दो युवक गुजरे और पीछे बैठे युवक ने बड़ी शीघ्रता से मेरा मोबाइल मेरे हाथ से छीन लिया और मेरे देखते ही देखते वे नौ-दो-ग्यारह हो गए।
अब मुद्दे की बात यह है कि हमारे एक प्रमुख समाचार-पत्र में यह समाचार 'वृद्धा का मोबाइल चोरी' शीर्षक से प्रकाशित हुआ, जो मुझे अंदर तक आहत कर गया। यकायक मुझे कविवर केशव की व्यथा का अनुभव होने लगा जिसमें उन्होंने लिखा था कि 'केशव केसनि अस करि काहू ते न कराईं, चंद्रवदनी मृग लोचनी बाबा कहि-कहि जाईं।'
संपादक महोदय ने जहाँ मेरा नाम छापकर मुझे कृतार्थ किया वहीं 'वृद्धा' शब्द से विभूषित कर 'एक नुकसान पर एक नुकसान फ्री' का तोहफा भी दे दिया! काश, संपादक महोदय, पत्रकारजी अथवा संवाददाता बंधु शीर्षक में केवल 60 वर्षीय महिला ही लिख देते तो मोबाइल चोरी का गम इतना भारी तो नहीं होता। फिर यह तो जगजाहिर है कि महिला से उसकी उम्र और पुरुष से उनकी तनख्वाह का जिक्र करना शिष्टाचार के दायरे में नहीं आता है।
परंतु घाव पर मरहम लगाने का काम हमारे समझदार रिश्तेदारों और मित्रों ने किया। सबका यही सवाल था कि 60 वर्षीय वृद्धा के तहत जो आपका नाम छपा है वह सही है क्या? क्योंकि आप 60 वर्ष की लगती नहीं हैं। मेरे कलेजे में थोड़ी ठंडक पहुँची कि लोग मुझे वृद्धा तो क्या 60 वर्ष का भी नहीं समझ रहे हैं, यह अत्यंत हर्ष का विषय है। वैसे मैं आपको चुपके से बता रही हूँ कि 28 अप्रैल को मैं 61 वर्ष की हो गई हूँ, किसी को बताइए मत।
मोबाइल चोरी का समाचार पढ़कर हमारी काकी सास का फोन आया कि तुमको चोट तो नहीं लगी न? मेरे 'नहीं' कहने पर उन्होंने संतोष व्यक्त करते हुए कहा कि ईश्वर की कृपा है, नहीं तो हमारे भतीजे का क्या होता?
मेरे दोनों मामा ससुरजी ने भी मेरी खैरियत पूछी। और 'वृद्धा' शब्द पर हास-परिहास किया। उनके सुपुत्रों अर्थात मेरे देवरों ने भी खूब कटाक्ष किया और बोले 'भाभी, आपको असली दुख मोबाइल चोरी का नहीं है बल्कि 'वृद्धा' शब्द का है।' मैंने कहा, 'सत्य वचन देवरश्रियों!' इस पर वे बोले, 'पर आप तो विद्यार्थी जीवन में प्रथम श्रेणी की 'धाविका' रही हैं, तो आपने मोबाइल चोरों को पकड़ा कैसे नहीं?' मैंने कहा कि 'भाई लोगों, मोटरसाइकल वाले को पकड़ना तो पीटी उषा के बस का रोग भी नहीं है, वह भी इस उम्र में! अर्थात स्वीट सिक्सटी में तो मैं कैसे पकड़ती?' अत्यंत दुःख की बात है कि मेरे एक मामा ससुर इतनी सब हँसी- मजाक होने के दूसरे दिन ही निर्वाण को प्राप्त हो गए।
हमारे ननदोईजी जो कि हमारे घर के पास ही रहते हैं, कहने लगे कि 'जब रेलवे में आपको सीनियर सिटीजन का लाभ मिलता है तब आपको कोई आपत्ति नहीं होती तो अब क्यों बुरा लग रहा है?' मैंने कहा, 'जीजाश्री, सीनियर का अर्थ वरिष्ठ होता है न कि 'वृद्धा'! अभी तो हमारे पोते-पोती खिलाने के दिन हैं, लैपटॉप पर फार्मविल, फिशविल, केफे और चेस खेलने के दिन हैं। अभी हमारी उम्र ही क्या है भला? रेडिफ, याहू, ऑरकुट, फेसबुक और यू ट्यूब के टच में रहने वाले क्या कभी वृद्ध हो सकते हैं? मैं ये सब अप-टू-डेट ज्ञान से सम्मोहित हो 'फील गुड' कर रही थी, पर इस मुए 'वृद्धा' शब्द ने मुझे 'फील बेड' करा दिया। पर कोई बात नहीं जब स्वयं में आत्मविश्वास हो और हितैषियों का साथ हो तो अफसोस किस बात का?
अमेरिका में मैंने जींस पहनी, बहू ने मुझे स्वीमिंग करवाई और एलिजाबेथ जैसी लाँग फ्रॉक पहनाकर फोटो खींचे और 'वेरी स्मार्ट' का कॉम्प्लीमेंट दिया तो क्या निष्कर्ष निकला? यही न कि अभी तो मैं... हूँ (रिक्त स्थान की पूर्ति करें)। मेरे पतिदेव भी यदा- कदा गुनगुनाते रहते हैं, 'ओ मेरी जोहराजबीं तुझे मालूम नहीं, तू अभी तक है...' (आगे आपको मालूम ही होगा)। तो मुझे यही संतोष है कि 'सैंया भए कोतवाल तो डर काहे का!'
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