बढ़ते बच्चों का रखें खास खयाल
इस आयु वर्ग में वे बच्चे आते हैं जिनकी आयु 10-15 वर्ष के बीच होती है। यह उनके पढ़ने, खाने-पीने, शरीर एवं मस्तिष्क के विकास की उम्र होती है। इस उम्र में बच्चों की हड्डियां, मांसपेशियां, प्रजनन के अंगों का विशेष रूप से विकास होता है। शरीर के साथ आदतें, स्वभाव, विपरीत सेक्स (लिंग) के प्रति आकर्षण होना, लड़कों में दाढ़ी निकलना, लड़कियों में स्तनों का विकास, सेक्स संबंधी विषयों में रुचि होने लगती है। जननांगों का विकास एवं प्रवर्धन उनके आकार में वृद्धि एवं परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है। ऐसी स्थिति में लड़की नारीत्व की ओर और लड़का पुरुषत्व की ओर अग्रसर होता है। यह बचपन से यौवन में पदार्पण का समय होता है। इस काल में पढ़ने-लिखने में बच्चे अधिक व्यस्त रहते हैं, खेल-कूद तथा अन्य प्रकार के व्यवसाय, मौज-मस्ती का माहौल होता है।
संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अभिप्राय है कि पांच वर्ष तक बच्चों को खूब लाड़-प्यार, दुलार से पालें। उसके बाद 15 वर्ष तक की आयु तक उन्हें ताड़कर रखें और सोलहवें साल में पांव रखते ही उनके साथ मित्र के समान व्यवहार करें। इस दस साल के समय पर बच्चे का भविष्य निर्भर है। यदि नींव ही कमजोर होगी तो उस पर बनी इमारत, देखने में चाहे कितनी भी सुंदर और आकर्षक लगे, उसमें टिकाऊपन नहीं होगा।
इस आयु में आहार पूर्णतया पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए। ज्यादा ध्यान इस पक्ष पर रखा जाना चाहिए कि आहार शरीर, बुद्धि तथा सद्वृत्तियों के विकास में सहायक होना चाहिए। सात से बारह वर्ष की आयु तक 1200 से 1600 कैलोरी का भोजन और 13-15 वर्ष के बीच 3200 कैलोरी (लड़कों के लिए) और 2800 कैलोरी भोजन (लड़कियों के लिए) पर्याप्त होता है। दोनों वर्गो में 400 कैलोरी का अंतर है। हमारे विचार में यदि एक काम एक-सा है और खेल-कूद का स्तर और प्रकार भी एक-सा है तो भोजन में कैलोरी का अंतर नहीं होना चाहिए। कारण कि जब कैलोरी वय एक-सा है तो निम्न और विभिन्न कैलोरी स्तर में कोई औचित्य नहीं दिखता है।
वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य और परिश्रम के आधार पर परिवार के सभी लोगों को पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए। युवकों को आहार देते वक्त नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें।
भोजन का समय निश्चित कर लें और नियत समय पर ही भोजन दिया करें।
घर का भोजन शुद्ध, ताजा और स्वच्छ होता है, इसलिए बाहर बिकने वाले भोजन को खाने से बचा जाए। ऐसे भोजन में पोषक तत्व प्राय: न के बराबर होते हैं।
भोजन में हरी सब्जियां, साग, गेहूं, सोयाबीन, देशी घी, दूध, मक्खन, पनीर, चने का समावेश होना चाहिए जिसमें प्रोटीन, काबरेहाइड्रेट, वसा, खनिज तथा विटामिन का समुचित मिश्रण होना चाहिए।
बाजार में बिकने वाले ताजे फलों के जूस, ठंडे पेय, धूल से भरे, खुले में रखे हुए कटे फल, गन्ने का रस आदि का सेवन करने से बचें।
चाय, कॉफी आदि का सेवन नियमित मात्र में ही करें, परंतु जहां पर आपको प्यास अधिक लगी हो, उस अवस्था में पानी के स्थान पर इनका उपयोग हानिकारक होता है।
बर्फ का पानी पीने से प्यास और अधिक लगती है। घड़े में रखा हुआ पानी पीने से प्यास शांत होगी और संतुष्टि मिलती है।
ध्यान रखें कि अशुद्ध, अधिक गर्म या अधिक ठंडा पानी कई रोगों को बुलावा देता है। गर्म पानी या कोई भी पेय लेने के बाद ठंडा पेय कभी न लें और न ही ठंडे पेय के बाद कोई गर्म पेय लें। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपको दांतों के कष्ट, मसूढ़ों में सूजन और दर्द होने की पूरी संभावना रहती है।
इसके अतिरिक्त पाचन प्रणाली, गर्म के बाद ठंडा और ठंडे के बाद गर्म आहार लेने के कारण बिगड़ जाएगी। सदा अति की दशा से बचने का प्रयत्न किया जाए तो श्रेयस्कर होगा।
ऋतु एवं प्रकृति के अनुसार अपने भोज्य पदार्थो में बदलाव सदैव करना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थ सबके लिए ठीक नहीं करते, इसलिए भोजन का संबंध ऋतु के अनुसार और स्थानीय खाद्य-आदतों के अनुसार रखा जाए तो सदा लाभप्रद रहता है। परंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि कोई भी खाद्य पदार्थ अपनी रुचि के विरुद्ध कभी न लें।
अंकुरित अन्न का प्रयोग करने की भोजन विशेषज्ञ सलाह देते हैं। चना, गेहूं, मूंग की दाल, सोयाबीन, ताजा मटर के दाने, उड़द आदि को अंकुरित हो जाने के बाद खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं।
भोजन के बाद थोड़ा-सा गुड़ (यदि आप मधुमेह से ग्रसित नहीं हैं तो) लिया जाए तो इससे पाचन में मदद मिलती है।
गले,मुंह और अन्न-नली में लगी हुई चिकनाई तथा धूल आदि नष्ट हो जाते हैं।
गुड़ में अम्ल तत्व की बहुतायत होने से सारी गंदगी धुल जाएगी और आपको स्वस्थ डकार आएंगी।
शौच से तुरंत पहले और एकदम बाद नहीं खाना चाहिए। दूसरे जब तक पेट पूरी तरह साफ न हो भोजन न करें।
यदि संभव हो तो शुद्ध गुनगुने जल में नींबू का रस निचोड़ कर लें। इससे दस्त तो साफ होगा ही, पेट तथा पाचन की अन्य बीमारियां भी दूर होंगी।
भोजन के साथ नींबू लेना बहुत लाभ देता है। गर्मी के दिनों में नींबू के रस को जल में मिलाएं, थोड़ी चीनी और काला नमक डालें और दिन में 4-6 बार पीएं। इससे आपके शरीर में जल-चीनी-लवण बना रहेगा और यदि शरीर से पानी (दस्त अधिक हो जाने से) निकल भी जाता है तो उसकी पूर्ति हो जाएगी।
जब कसरत कर चुके हों, पसीना अधिक आया हो, सांस तेज चल रही हो, मन अशांत एवं तनावपूर्ण हो, शरीर पर वस्त्र पहने हों, हाथ धोये न हों, जल्दबाजी हो, मनपसंद भोजन न हो, प्रकृति और ऋतु के अनुकूल भोजन न हो, खाने का समय बीच चुका हो, बहुत रात बीत चुकी हो या बहुत सवेरे इन सभी तथा अन्य अवस्थाओं में भोजन न करें।
बेमौसम के फल, सब्जियां, पेय आदि खाने-पीने से सदा बचें, कारण ऐसी खाद्य वस्तुओं में पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है।
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