जितनी गंदी मछली, उतने अच्छे शुक्राणु
इंसान में तो आकर्षक दिखने की होड़ लगी रहती है, लेकिन आकर्षक दिखना क्या हर हाल में फायदेमंद ही रहता है। कम-से-कम मछलियों के मामले में तो ऐसा नहीं है, जानिए क्यों?
गप्पी प्रजाति की उष्ण कटिबंधीय मछलियों पर किए गए एक शोध में वैज्ञानिकों ने पाया है कि नर मछली जितना खराब दिखेगा, उसके शुक्राणु उतने ही बेहतर होंगे।
शोध से यह बात सामने आई है कि रंगीन और आकर्षक दिखने वाले नर मछली अपने शुक्राणु की गुणवत्ता की कीमत पर खूबसूरत दिखते हैं। इस नतीजे के आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि नर मछली की प्रजाति के आधार पर उनकी प्रजनन क्षमता का निर्धारण किया जा सकता है।
अध्ययन के नतीजों को रॉयल सोसाइटी जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
शुक्राणु प्रतिस्पर्धा सिद्धांत : इस अध्ययन का संचालन यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया में सेंटर फॉर इवोल्यूशनरी बायोलॉजी के प्रोफेसर जोनाथन इवांस ने किया।
अपने 'शुक्राणु प्रतिस्पर्धा सिद्धांत' के पक्ष में उन्होंने व्याख्या भी की। इसके लिए उन्होंने कई नर मछलियों के जरिए मादा मछलियों के प्रजनन को आधार बनाया।
शुक्राणु की गुणवत्ता और उनके तैरने की रफ्तार के आधार पर बताया गया कि किन नर मछलियों से उनकी उत्पत्ति हुई है। इस तरह के अध्ययन के लिए गप्पी प्रजाति की मछलियाँ काफी उपयोगी होती हैं।
दो तरह से प्रजनन : गप्पी प्रजाति की मछलियों में नर मछली दो तरह से प्रजनन करता है- पहला, मादा मछली को रिझाकर और दूसरा, चुपचाप बिना आहट किए।
प्रोफेसर इवांस ने बताया, 'जिन नर मछलियों ने चुपचाप प्रजनन कार्य संपन्न किए, वे देखने में तो कम सुंदर थे, लेकिन उनके शुक्राणुओं में तैरने की रफ्तार उतनी ही अधिक थी। वहीं दूसरी तरफ मादा मछली को रिझाकर संपन्न किए गए प्रजनन में शुक्राणुओं में तैरने की रफ्तार धीमी थी।'
स तरह कम सुंदर नर मछलियों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता उनकी तुलना में बेहतर थी जो देखने में कहीं ज्यादा आकर्षक थे।
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