tag:blogger.com,1999:blog-76099682220739630032024-03-14T00:43:28.359+05:30हर्षहर्ष मेरी अभिव्यक्ति है इसमे लिखी बातें मेरा अपना विचार होगा| शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.comBlogger331125tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-4487748549043713592015-01-28T13:20:00.003+05:302015-01-28T13:20:47.689+05:30तीन मछलियांएक बड़ा जलाशय था। जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी बहुत-सी मछलियां आकर रहती थी। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थी। वह जलाशय आसानी से नजर नहीं आता था।
उसी में तीन मछलियों का झुंड रहता था। उनके स्वभाव भिन्न थे। पिया नामक मछली संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी। रिया कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो। चिया का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार हैं करने कराने से कुछ नहीं होता जो किस्मत में लिखा है, वह होकर रहेगा।
एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियां पकड़ कर घर जा रहे थे। बहुत कम मछलियां उनके जालों में फंसी थी। अतः उनके चेहरे उदास थे। तभी उन्हें झाडियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिखाई दिया। सबकी चोंच में मछलियां दबी थी। वे चौंके।
एक ने अनुमान लगाया दोस्तों! लगता हैं झाडियों के पीछे नदी से जुड़ा जलाशय हैं, जहां इतनी सारी मछलियां पल रही हैं।
मछुआरे पुलकित होकर झाडियों में से होकर जलाशय के तट पर आ निकले और ललचाई नजर से मछलियों को देखने लगे।
एक मछुआरा बोला अहा! इस जलाशय में तो मछलियां भरी पड़ी हैं। आज तक हमें इसका पता ही नहीं लगा।
यहां हमें ढेर सारी मछलियां मिलेंगी। दूसरा बोला।
तीसरे ने कहा आज तो शाम घिरने वाली हैं। कल सुबह ही आकर यहां जाल डालेंगे।
शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-78141436590591251842014-01-03T20:14:00.001+05:302014-01-03T20:14:38.480+05:30my father is sr. journlist<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1l181XMI_3B81T5zhAPxleU-P0PP4hn5k0djZrlkZOqzQUs7xfcRsKc8cbHQa25vsV-usTVxuhyphenhyphenPg71oQsTOlFN_sO4maDY9jNyMYWTDaEJFKKDxz_MR7acpLd09uMOEd_hSw6CELjJk/s1600/raman.jpg" imageanchor="1" ><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEg1l181XMI_3B81T5zhAPxleU-P0PP4hn5k0djZrlkZOqzQUs7xfcRsKc8cbHQa25vsV-usTVxuhyphenhyphenPg71oQsTOlFN_sO4maDY9jNyMYWTDaEJFKKDxz_MR7acpLd09uMOEd_hSw6CELjJk/s400/raman.jpg" /></a>
शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-85498042835382542432013-11-13T17:21:00.001+05:302013-11-13T17:21:02.206+05:30'शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे''शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे'
अपनी बीवी पर किसी का हुकुम चलाना – मुझे पसंद नहीं।
किसी का उसकी ओर जरा आंख उठाना – मुझे पसंद नहीं।
क्या बताऊं यारों सब प्यार से मुझे ही बुलाते हैं “किसी”।
इसलिए किसी को भी अपना नाम बताना – मुझे पसंद नहीं...।
बेलन लगता है तो लग जाए बेशक, मगर,
बेगम का यूं निशाना लगाना – मुझे पसंद नहीं
जो चीज़ बनी है जिसके लिए वही करो न इस्तेमाल,
अब झाड़ू का यूं तलवार बनाना - मुझे पसंद नहीं
कभी कभी पूरे परिवार को डिनर पर ले जाता हूं मैं,
क्यूंकि रोज-रोज बीवी संग बर्तन धुलवाना – मुझे पसंद नहीं
कैसे दिए हैं 10-12 क्रेडिट कार्ड बेगम को मैंने,
भैया यूं कैश में हर जगह शोपिंग कराना – मुझे पसंद नहीं
मांगे पूरी कर देता हूं मैं बेगम की हमेशा टाइम पर,
थका-मांदा घर लौंटू, उस फिर पिटना-पिटाना – मुझे पसंद नहीं
सरदर्द बेग़म का मुझे परेशान करता है हरदम,
पहले बाम लगाना फिर सर दबाना – मुझे पसंद नहीं
शादी का ये लड्डू होता है कैसा, जरा पूछे कोई मुझसे,
हलवाई की दूकान के आगे से भी निकल जाना – मुझे पसंद नहीं
झगड़ा बेगम से वो भी सर्दियों में, यह मुमकिन नहीं,
ठिठुर-2 कर बिना कम्बल, रात घर से बाहर बिताना – मुझे पसंद नहीं
के करोड़पति परिवार की इकलोती बेटी है मेरी बेगम,
कैसे कहूं , ससुर जी, कि ये कबाड़खाना – मुझे पसंद नहीं
बताईं हैं मैंने गिनती की बातें ही आपको जनाबे-आली,
अब सभी को यूं हाल-ए-दिल बताना – मुझे पसंद नहीं...
शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-35349448261711277452013-09-25T21:18:00.006+05:302013-09-25T21:18:47.945+05:30पीड़ितों की सेवा में जीवन लगाने वाली माँपीडि़त मानवता की सेवा को अपना सर्वोपरि धर्म मानने वाली मदर टेरेसा दुनिया के गरीब मुल्कों से भी ज्यादा पश्चिमी देशों को गरीब मानती थी और उनके अनुसार इन संपन्न देशों की गरीबी हटाना ज्यादा मुश्किल है। मदर टेरेसा के अनुसार भूखे को भरपेट भोजन, वस्त्र और आवास देकर संतुष्ट किया जा सकता है लेकिन उपेक्षा, अकेलापन, असहाय जैसी भावनाओं से रूबरू होने वाले पश्चिम के संपन्न समाज की गरीबी दूर करना बेहद कठिन काम है।
अकेलेपन और उपेक्षित होने की भावना को अत्यंत भयानक गरीबी मानने वाली मदर टेरेसा धर्म से कैथोलिक थीं और एक सच्ची ईसाई की तरह उन्होंने मनुष्य सेवा को ही प्रभु सेवा बना लिया था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को मकदूनिया में हुआ और उनका परिवार अल्बानिया मूल का था। बचपन से ही एगनेस गोनक्शा बोजाशियो (मदर टेरेसा का मूल नाम) ईसाई मिशनरियों के जीवनगाथाओं से प्रभावित थीं। सपने बुनने वाली किशोरावस्था के दौर में मदर टेरेसा के मन में कुछ अलग ही सपना पल रहा था और 12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपना जीवन धर्म के नाम करने का संकल्प कर लिया। धर्म की राह पर चलने का उनका यह संकल्प आने वाले सालों में और सुदृढ़ होता गया तथा आखिरकार 18 साल की उम्र में वह सिस्टर्स आफ लारेटो में मिशनरी के रूप में शामिल हो गईं।
सिस्टर्स आफ लारेटो में आने के बाद मदर टेरेसा को अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए आयरलैंड जाना पड़ा। मदर टेरेसा ने अपनी कर्म भूमि भारत में 1929 में कदम रखा और शुरू में वह दार्जीलिंग में बच्चों को पढ़ाने का काम करती रहीं। उन्होंने 24 मई 1931 को नन के रूप में धार्मिक शपथ ली। मदर टेरेसा ने 1931 से 1948 के बीच कोलकाता के सेंट मैरी स्कूल में शिक्षण का काम किया। लेकिन उनका भावुक मन इस दौरान विद्यालय परिसर के बाहर हो रही घटनाओं को लेकर बुरी तरह पीडि़त होता रहा जिनमें 1943 का अकाल और 1946 के सांप्रदायिक दंगे शामिल हैं। पीडि़त मानवता की पुकार को मदर टेरेसा अधिक देर तक अनसुनी नहीं कर पाईं और आखिरकार 1948 से उन्होंने समाज सेवा और मलिन बस्तियों के बच्चों और बेसहारा लोगों की सेवा का काम शुरू कर दिया। इस संबंध में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा− आपको केवल दुनिया से कहना भर है सब चीजें फिर से आपकी हो जायेंगी। प्रलोभन लगातार आवाज दे रहे थे, मुक्त निर्णय से मेरे प्रभु और आपके (मनुष्य प्रेम) प्यार के कारण मैं सिर्फ वही आकांक्षा करूंगी और वही काम करूंगी जो इस संबंध में परम पवित्र की इच्छा हो। मैं एक भी आंसू गिरने नहीं दूंगी। मदर टेरेसा को सात अक्तूबर 1950 को वेटिकन से मिशनरीज आफ चैरिटी नामक अपनी संगत शुरू करने की इजाजत मिल गई। कलकत्ता में मात्र 13 सदस्यों के साथ शुरू की गई इस संस्था के आज दुनिया भर में करीब दस लाख से अधिक कार्यकर्ता हैं।
मदर टेरेसा ने 1952 में मृत्यु के कगार पर खड़े रोगियों की देखभाल और मृत्यु के बाद उनका सम्मानजनक ढंग से अंतिम संस्कार करने के लिए निर्मल हृदय नामक केन्द्र खोला। इसी प्रकार 1955 में उन्होंने बेसहारा और अनाथ बच्चों के लिए निर्मल शिशु सदन खोला। उन्हें पीडि़त मानवता की सेवा के लिए 1979 में नोबेल पुरस्कार तथा 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न प्रदान किया गया। मदर टेरेसा की स्वास्थ्य की खराबी का दौर 1983 से ही शुरू हो गया था जब रोम में पहली बार उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। लेकिन उन्होंने पीडि़त मानवता की सेवा में कभी भी अपने स्वास्थ्य को बाधा नहीं बनने दिया। उन्होंने 13 मार्च 1997 को मिशनरीज आफ चैरिटी के प्रमुख पद को त्यागा और इसके कुछ ही महीनों बाद पांच सितंबर 1997 को संक्षिप्त बीमारी के बाद उनकी देह शांत हो गई।
निधन के बाद 19 अक्तूबर 2003 में रोम के कैथोलिक चर्च ने उन्हें धन्य घोषित करके मदर ब्लेस्ड की उपाधि दी। वर्ष 2002 में पश्चिम बंगाल की महिला मोनिका बेसरा ने दावा किया था कि मदर टेरेसा के चित्र वाला लाकेट पहनने के कारण उसका ट्यूमर दूर हो गया। चमत्कार की इसी घटना के कारण उन्हें धन्य घोषित किया गया। कैथोलिक चर्च के नियमों के अनुसार मदर टेरेसा को संत घोषित करने के लिए इसी प्रकार के एक और चमत्कार की घटना की जरूरत है। चर्च अपने रीति रिवाजों के कारण भले ही मदर टेरेसा को चाहे जब संत घोषित करे ले
शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-77364181559894723982012-04-17T14:32:00.001+05:302012-04-17T14:36:53.423+05:30चुटकुले<strong>हैंडसम भिखारी ने लड़की को बताई अपनी ख्वाहिश</strong><br /><br />फकीर - एक रूपया दे दो मैडम।<br />लड़की - शर्म नहीं आती, इतने हैंडसम नौजवान होकर भीख मांगते हो !<br />फकीर - अच्छा मैडम, फिर एक पप्पी ही दे दो।<br /><br />===========================<br /><strong>लड़की की समस्या सुनकर बाबा की बांछें खिलीं !</strong><br /><br />लड़की, निरा मल बाबा से - बाबा को प्रणाम। बाबा मेरे पति रोज आधी रात को घर से बाहर चले जाते हैं। <br />निरा मल बाबा - बेटी, ये समस्या है या आमंत्रण ?शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-44473460466541327132012-03-29T16:29:00.000+05:302012-03-29T16:30:00.714+05:30आईपीएल की मायाटीम इंडिया ट्वेंटी-20 मैच खेलने दक्षिण अफ्रीका पहुंच गई है। गुरुवार को होने जा रहे इस मुकाबले के लिए टीम इंडिया का ऐलान एशिया कप के साथ ही कर दिया गया था। फिटनेस की वजह से पूर्व उप-कप्तान वीरेंद्र सहवाग को टीम के बाहर रखा गया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही सहवाग ने खुद को आईपीएल खेलने के लिए फिट घोषित कर दिया। इलाज के लिए लंदन गए सचिन भी इस मैच में नहीं खेल रहे हैं। ये दोनों आईपीएल में खेलेंगे। महेंद्र सिंह धोनी ने भी आईपीएल के मद्देनजर थकान का मुद्दा परे रख दिया है। ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं।<br />टीम के सबसे विस्फोटक बल्लेबाज सहवाग दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक मात्र टी-20 मैच खेलने के लिए तो अनफिट हैं, लेकिन आईपीएल खेलने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। चयनकर्ताओं के इस फैसले ने बीसीसीआई को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि बोर्ड को इस बारे में सवालों के जवाब देने चाहिए। <br />सवाल है कि क्या सहवाग को कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ हुए झगड़े का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, या फिर यह आईपीएल के प्रायोजकों का दबाव है, जो कि सितारा खिलाड़ियों के बाहर होना सहन नहीं कर सकते। सवाल और भी हैं। वक्त-बेवक्त थकान की बात करने वाले धोनी भी कह रहे हैं कि आईपीएल से थकान नहीं होगी।<br /><br /><strong>धोनी नहीं चाहते वीरू का साथ?</strong><br />चयनकर्ताओं ने एशिया कप की टीम का ऐलान करने के साथ ही इस एकमात्र टी-20 के लिए टीम घोषित कर दी। तब बोर्ड ने यह तर्क दिया था कि सहवाग पीठ की जकड़न से जूझ रहे हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं। वनडे मैचों में लगातार फ्लॉप होने के बाद सहवाग को आराम देने के नाम पर टीम से बाहर बैठा दिया गया। <br />जब बोर्ड के इस फैसले पर सवाल उठाए गए तो खुद सहवाग ने आकर यह सफाई दी कि उन्होंने ही बोर्ड से आराम मांगा है। लेकिन इसके पीछे एक कारण ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रोटेशन पॉलिसी को लेकर सहवाग और कप्तान धोनी के बीच विवाद भी रहा।<br /><br /><strong>अब फिट हैं सहवाग, बनेंगे ऑलराउंडर</strong><br />वीरेंद्र सहवाग अब हर बयान में एक बात कह रहे हैं, वो पूरी तरह फिट हैं और आईपीएल में अपनी टीम को नई बुलंदियों पर ले जाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सहवाग ने कहा है, मैं अब फ्रेश महसूस कर रहा हूं। यह कुछ दिनों का आराम मेरे लिए अच्छा रहा। अब मैं बल्ले के साथ-साथ गेंद से भी अपनी टीम की मदद करने को तैयार हूं। इस आईपीएल सीजन में आप मेरी गेंदबाजी का जलवा भी देखेंगे।<br /><br /><strong>31 के लिए अनफिट, 5 तारीख के लिए फिट</strong><br />हैरत की बात यह है कि बोर्ड ने फिटनेस के आधार पर सहवाग को एशिया कप और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 मुकाबले से बाहर रखा था। यदि सहवाग 30 मार्च को होने वाले मैच के लिए अनफिट हैं, तो वो महज 6 दिन में कैसे पूरी तरह फिट हो जाएंगे? दिल्ली डेयरडेविल्स को अपना पहला मुकाबला 5 तारीख को कोलकाता नाइटराइडर्स के खिलाफ खेलना है। और सहवाग आईपीएल के लिए जमकर अभ्यास भी कर रहे हैं। (तस्वीरें देखें) <br /><br /><strong>आईपीएल की माया</strong><br />आईपीएल क्रिकेट का एक ग्लैमरस रूप है। इसमें स्टार खिलाड़ियों की मौजूदगी जरूरी है। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू ने सहवाग के आईपीएल खेलने और अंतर्राष्ट्रीय मैच से दूर रहने के पीछे आईपीएल के प्रायोजकों के दबाव को वजह बताया है।<br />सिद्धू ने बीसीसीआई पर निशाना साधते हुए कहा, "बीसीसीआई ने अपने खिलाड़ियों का सौदा स्पॉन्सर्स के साथ कर दिया है। मैदान पर सहवाग, सचिन तेंडुलकर जैसे बड़े नामों को दिखाने के लिए प्रायोजकों ने मोटी रकम बीसीसीआई को दी है। अब ऐसे में खिलाड़ी फिट हो या अनफिट, उसे तो खेलना ही होगा। इसलिए सिर्फ क्रिकेटर को दोषी ठहराना सही नहीं। इसके लिए बोर्ड भी जिम्मेदार है।"<br /><br /><strong>सचिन का भी है यही हाल</strong><br />मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर पर भी आईपीएल का दबाव है। अपने पैर की उंगली का इलाज करवाने लंदन गए सचिन आईपीएल खेलने के लिए फिट बताए जा रहे हैं। सचिन को अपनी इस चोट के इलाज के लिए सर्जरी भी करवानी पड़ सकती है। सर्जरी के बाद एक खिलाड़ी को फिटनेस दोबारा हासिल करने में 2 से 3 हफ्तों का समय लगता है। लेकिन सचिन 4 अप्रैल को होने वाले आईपीएल के उद्घाटन मैच और बाकी दूसरे मैचों में खेलेंगे। यह बयान बीसीसीआई और उनकी टीम मुंबई इंडियंस ने दिया है। मुंबई इंडियंस ने बुधवार को यह घोषित कर दिया कि सचिन पूरे आईपीएल-5 में खेलेंगे।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-32526336284123272322012-03-21T16:04:00.000+05:302012-03-21T16:11:52.499+05:30यह कैसा प्यार है...प्रेम अब भी हमारी कल्पना का सबसे नाजुक, खूबसूरत और अनूठा हिस्सा है। वक्त चाहे कितना भी बदल जाए, हम कितने ही आधुनिक, तेज और मशीनी हो जाएं, लेकिन प्रेम का अहसास एक-सा ही होता है। कहने को तो कहा जा सकता है कि समाज की दूसरी चीजों की तरह की प्रेम या रोमांस भी टाइम बीईंग हो गया है, लेकिन हकीकत ये है कि जीवन में जब प्रेम जैसा प्रेम दस्तक देता है तो अच्छे-अच्छे तीसमार खां इसकी मार से बच नहीं सकते हैं। <br /><br />हां आजकल के युवा प्रेम के नाम पर डेटिंग-शेटिंग करते हैं, और मान लेते हैं कि वे प्रेम में कमिटमेंट नहीं करते हैं, लेकिन जब हकीकत में प्रेम होता है तो कमिटमेंट करें या न करें का सवाल उठता ही नहीं है। समर्पण अपने आप ही आ जाता है। <br /><br />इंस्टेंट कॉफी, फास्ट फूड, फेसबुक, ट्विटर और नेट चैट के इस युग में प्रेम का अर्थ बदल गया है, कम-से-कम युवाओं के लिए। हालांकि प्यार और रोमांस के प्रति आकर्षण आज भी मौजूद है, लेकिन आज का युवा कमिटमेंट से डरता है। आज प्रेम और रोमांस का अर्थ युवाओं के लिए सिर्फ इतना ही रह गया है कि अपने-अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के साथ हैंग आउट करना, फिल्म जाना, पब में बैठकर गप्प लड़ाना, गिफ्ट का आदान-प्रदान करना, कुछ देर के लिए किसी कोने में खो जाना और फिर ब्रेकअप कर दूसरे साथी की तलाश में जुट जाना। <br /><br />असल में समाज जिस तेजी से बदल रहा है उतनी ही तेजी से युवा संबंध के अर्थ को पुनः परिभाषित कर रहे हैं। उनके लिए बिना किसी जिम्मेदारी वाले संबंध आसान और आरामदायक होते जा रहे हैं। दीर्घकालीन अफेयर उन्हें बोरिंग लगते हैं। उनके लिए संबंध स्वीट और शॉर्ट होने चाहिए। प्यार और रोमांस का युवाओं के लिए बस इतना-सा ही मतलब रह गया है। रोमांस भी शॉर्ट एंड स्वीट और लिव-इन भी। <br /><br />आज का युवा न चाहता है और न ही उम्मीद करता है कि प्रेम जीवनभर का बोझ बन जाए। कमिटमेंट बदलते हैं, लोग बदल जाते हैं, और किसी को भी इससे शिकायत नहीं होती। दीर्घकालीन संबंध तेजी से इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे हैं। युवा कमिटमेंट से बहुत अधिक डरे और सहमे हुए हैं और जब अफेयर गंभीर होने लगे तो उन्हें परेशानी होने लगती है। उन्हें लगता है कि परंपरागत और ओल्ड फैशंड अफेयर का मतलब गुलामी और स्वतंत्रता खो देना है। <br /><br />आजकल बबलगम रोमांस का दौर है और इसमें लड़के और लड़किया दोनों ही की सोच एक जैसी है। जिस तरह आप बबलगम चबाते रहते हैं और जब मन भर जाता है तब उसे थूक देते हैं, उसी तरह रोमांस का भी यही किस्सा है। इसलिए आज के युग में कमिटमेंट का सिर्फ यही मतलब रह गया है कि फिल्में जाओ, पब और पार्टी में जाओ और अच्छे दोस्तों की तरह चिलआउट करो। <br /><br />कुछ समय एक-दूसरे के साथ रहने के बाद नए डेट की तलाश पूरे जोश से शुरू हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस बदलते दृष्टिकोण या व्यवहार का मुख्य कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, क्योंकि कोई भी अपनी आजादी नहीं खोना चाहता। <br /><br />हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आज के सारे रिश्ते बबलगम की ही तरह हो गए हैं। आज भी ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो प्रेम और रोमांस को गंभीरता से लेते हैं। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है सही साथी की तलाश। और तलाश खत्म होने पर जब उनका आपसी तालमेल बैठता जाता है तो फिर पीछे मुड़कर देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती।<br />(webdunia.com)शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-44726314438437172732011-05-29T22:19:00.002+05:302011-05-29T22:25:58.810+05:30क्रिकेट की दुनिया के दबंग के रिकार्ड<strong>क्रिकेट की दुनिया के दबंग </strong> <br />आईपीएल-4 शुरू होने से पहले वीरेन्द्र सहवाग, युवराजसिंह और गौतम गंभीर सहित कई खिलाड़ियों ने दावा किया था कि वे महेन्द्रसिंह धोनी की कप्तानी को अच्छी तरह जानते हैं और टूर्नामेंट में उनकी हर चाल का जवाब देंगे।<br />लेकिन, धोनी ने आईपीएल में अपनी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स को लगातार दूसरी बार चैंपियन बनाकर दिखा दिया है कि क्रिकेट की दुनिया का असली दबंग कौन है। वर्ष 2007 से शुरू हुआ धोनी की सफलता का सिलसिला बदस्तूर जारी है और हर दिन वे नई ऊंचाइयां हासिल कर रहे हैं।<br />आईपीएल के फाइनल में धोनी के समक्ष चक्रवाती फॉर्म में चल रहे रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के कैरेबियाई बल्लेबाज क्रिस गेल की चुनौती थी। फाइनल मुकाबले से पहले गेल की मौजूदगी में बेंगलुरु टीम ने 11 में से नौ में जीत हासिल की थी और धोनी अच्छी तरह जानते थे कि गेल चल गए तो उनके गेंदबाजों का तेल निकाल देंगे।<br />चेन्नई ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 205 रन का मजबूत स्कोर खड़ा किया, लेकिन धोनी के सामने असली चुनौती गेल को सस्ते में निपटाने की थी क्योंकि गेल चलते तो बेंगलुरु के लिए 206 रन का लक्ष्य छोटा पड़ सकता था। आखिर कर्मयुद्ध के इस अंतिम पड़ाव में धोनी ने धुरंधर गेल के लिए ऐसा चक्रब्यूह रचा कि वे इससे निकल नहीं पाए।<br />धोनी ने पहले ही ओवर में गेंद ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन को थमाई। अश्विन ने ओवर की चौथी गेंद में चतुराई से पेस में परिवर्तन किया और गेल चकमा खा गए। गेंद उनके बल्ले का किनारा लेकर विकेटकीपर धोनी के दस्तानों में समा गई। धोनी की रणनीति काम कर गई और चेन्नई का एक बार फिर चैंपियन बनना उसी समय तय हो गया।<br />धोनी के बारे में कहा जाता है कि वे मिट्टी को छू लेते हैं तो वह भी सोना बन जाती है। उन्होंने बार-बार इसे साबित भी किया है। उनकी कप्तानी में भारत ने वर्ष 2007 में सभी को चौंकाते हुए ट्वेंटी-20 विश्वकप का खिताब जीता था। उसके बाद तो धोनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई सफलताएं अर्जित करते चले गए।<br />यह माही की कप्तानी का करिश्मा था कि भारत दिसंबर 2009 में पहली बार आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचा और तबसे उसने अपना दबदबा बनाए रखा है। इतना ही नहीं कैप्टन कूल धोनी ने भारत को 28 वर्ष बाद वनडे विश्वकप का खिताब जिताकर अपनी कप्तानी का लोहा मनवाया है।<br />आईपीएल में धोनी की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स तीन बार फाइनल में पहुंची है, जिसमें से दो बार उसने खिताब पर कब्जा किया है। धोनी पिछले वर्ष चैंपियंस लीग टवंटी-20 टूर्नामेंट में भी अपनी टीम को चैंपियन बनाने में सफल रहे। इस तरह धोनी ने साबित कर दिया कि खेल के तीनों प्रारूपों में कोई उनका सानी नहीं है।<br />आईपीएल का चौथा संस्करण शुरू होने से पहले टीम इंडिया में धोनी के साथी खिलाडी सहवाग, युवराज और गंभीर ने दावा किया था कि वे माही की कप्तानी से वाकिफ हैं और उनकी चालों का मुंहतोड़ जवाब देंगे। सहवाग दिल्ली डेयरडेविल्स, युवराज पुणे वारियर्स और गंभीर कोलकाता नाइटराइडर्स के कप्तान थे।<br />दिल्ली की टीम टूर्नामेंट में सबसे फिसड्डी रही, जबकि युवराज की पुणे वारियर्स दिल्ली से एक स्थान ऊपर नौवें स्थान पर रही। नाइटराइडर्स की टीम भी एलिमिनेटर में बाहर हो गई। धोनी के आगे इन सबकी दबंगई धरी की धरी गई।<br />क्रिकेट की दुनिया में भगवान का दर्जा पा चुके मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर भी धोनी की कप्तानी के कायल हैं। विश्वकप के बाद सचिन ने स्वयं स्वीकार किया था कि वे अब तक जितने भी कप्तानों के अंडर में खेले हैं, उनमें धोनी सर्वश्रेष्ठ हैं। धोनी की कप्तानी के लिए इससे बड़ा प्रमाणपत्र क्या हो सकता है?<br />बेहतरीन रणनीतिकार होने के साथ-साथ धोनी ने नाजुक मौकों पर शानदार पारियां खेलकर टीम को संकट से उबारा है। विश्वकप के फाइनल में नाबाद 91 रन की पारी इसका सबूत है। धोनी ने आईपीएल-4 में 43.55 के औसत से 392 रन बनाएट वे आईपीएल में खिताब जीतने वाले एकमात्र भारतीय कप्तान हैं।<br />नाजुक मौकों पर संयम बनाए रखना और साहसिक फैसले लेना धोनी की सबसे बड़ी खूबी है। साथ ही वे अपने खिलाड़ियों का भरपूर साथ देते हैं और उनकी काबिलियत पर भरोसा करते हैं। विश्वकप से पहले जब युवराज बुरे दौर से गुजर रहे थे तब धोनी उनके साथ खड़े थे। आखिर युवराज ने विश्वकप में शानदार प्रदर्शन करते हुए धोनी को सही साबित किया और आलोचकों के मुंह पर ताले जड़ दिए।<br />धोनी अपने खिलाडियों पर कितना विश्वास करते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आईपीएल4 के अंतिम छह मैचों में उन्होंने अंतिम एकादश में कोई बदलाव नहीं किया। धोनी की बेमिसाल रणनीति और नेतृत्व क्षमता के आगे आईपीएल में सभी विपक्षी कप्तान पानी भरते नजर आए और कैप्टन कूल को खिताब ले जाने से नहीं रोक सके।<br /><br /><strong>पॉइंट टेबल</strong> <br />Team Played Won Lost Tie NR Pts. NRR <br />RCB 14 9 4 0 1 19.00 0.33 <br />CSK 14 9 5 0 0 18.00 0.44 <br />MI 14 9 5 0 0 18.00 0.04 <br />KKR 14 8 6 0 0 16.00 0.43 <br />KXIP 14 7 7 0 0 14.00 -0.05 <br />RR 14 6 7 0 1 13.00 -0.69 <br />DC 14 6 8 0 0 12.00 0.22 <br />KTK 14 6 8 0 0 12.00 -0.21 <br />PW 14 4 9 0 1 9.00 -0.13 <br />DD 14 4 9 0 1 9.00 -0.45शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-20904767449009222832011-05-09T22:18:00.001+05:302011-05-09T22:20:39.684+05:30स्विटजरलैंड की सैर<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi806nI6A5hQuiBmCYGiwjcCaHOkOwjlRfXw8U-jhXczrMUL-z7_HIfp1mimvgZGgfXxxvNY_N4w2DeOtnMy-hFMPKW8aiGbxIAvnFTUf3BM3r9iPVmH-wq4mxDPA5miEGJlBctuVaoxOA/s1600/arun.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi806nI6A5hQuiBmCYGiwjcCaHOkOwjlRfXw8U-jhXczrMUL-z7_HIfp1mimvgZGgfXxxvNY_N4w2DeOtnMy-hFMPKW8aiGbxIAvnFTUf3BM3r9iPVmH-wq4mxDPA5miEGJlBctuVaoxOA/s400/arun.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5604759446044730322" /></a>शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-11888607711205063052011-05-09T22:15:00.000+05:302011-05-09T22:18:45.533+05:30श्रीजन की तस्वीर<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkZHzcNfjadKlVlLQ-SuWPqVo6MmmLYjg30YCrJee2Cx7gVtq6N6_-zYr3JNevjU5cYcH3qWUx9tw1xYnyJIFtoti3wuqG-X0b4mD4Lkk3YZ4Z2nzgRBqftrV8E_tjejsGu1axPkT5V9M/s1600/srijan.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgkZHzcNfjadKlVlLQ-SuWPqVo6MmmLYjg30YCrJee2Cx7gVtq6N6_-zYr3JNevjU5cYcH3qWUx9tw1xYnyJIFtoti3wuqG-X0b4mD4Lkk3YZ4Z2nzgRBqftrV8E_tjejsGu1axPkT5V9M/s400/srijan.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5604759107772176546" /></a>शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-20420621362356622642011-01-06T22:52:00.000+05:302011-01-06T22:53:37.716+05:30चार कहानियाँ<strong>समर्पित सचिव</strong><br />महादेव भाई देसाई महात्मा गांधी के पास आए। उस समय वह युवा थे और कुछ नया करने के जोश से भरे हुए थे। उन्होंने गांधी जी से कहा, 'मैंने आपके गुजराती भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। कृपया जांच लंे, यह ठीक है या नहीं? मैं आपकी सेवा में रहना चाहूंगा। अगर आप ठीक समझें तो मुझे अपने साथ कार्य करने का अवसर दें।' गांधी जी ने लेख पढ़ने से पहले ही महादेव को स्वीकृति दे दी। गांधी जी बोले, 'ठीक है, तुम जैसा चाहते हो वैसा ही होगा।' <br />गांधीजी ने उन्हें अपने सचिव के पद पर रख लिया। गांधी जी के सचिव के रूप में नियुक्ति बहुत बड़ी बात थी। महादेव भाई काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने उत्साहित होकर पूछा, 'कब से काम शुरू करूं?' गांधी जी बोले, 'बस अभी से शुरू कर दो।' इस पर महादेव भाई बोले, 'लेकिन मेरे पास तो कुछ काम है। मुझे जाना होगा। मैं चाहता हूं कि घर पर सूचना दे आऊं।' <br />गांधी जी ने कहा, 'अब तुम घर नहीं जाओगे। अपने आप को देश की सेवा में समर्पित करने वालों को सब कुछ छोड़ना होता है। अपने अतीत से चिपके रहोगे तो समर्पण कैसे कर पाओगे।' महादेव भाई गांधी जी का आशय समझ गए। उन्होंने उसी समय से अपना काम संभाल लिया। उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने खुद को एक योग्य सचिव साबित किया। गांधी जी अपने निर्णयों में उनकी सलाह लेते रहते थे। इस तरह महादेव भाई ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने तरीके से योगदान किया। उनकी डायरी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। <br /><br /><strong>सहनशीलता का पाठ</strong><br />राजा अपने दरबार में बैठे थे। तभी दरबारियों ने एक संत की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने बताया कि वह संत केवल काले रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनकी सहनशीलता की कोई सीमा नहीं है। वह बड़े - छोटे , अमीर - गरीब सभी के साथ समान व्यवहार करते हैं। राजा ने जब यह सुना तो वह उस ज्ञानी संत से मिलने को उत्सुक हो उठे। वह उनसे मिलने उनके आश्रम में जा पहुंचे। संत ने राजा के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जैसा वह आश्रम में आने वाले अन्य लोगों के साथ कर रहे थे। <br />राजा ने संत से पूछा , ' आप हमेशा काले वस्त्र ही क्यों धारण करते हैं ?' राजा का प्रश्न सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले , ' पुत्र , मैंने अपने अंतर्मन के मित्रों काम , क्रोध , ईर्ष्या , लोभ , मोह आदि को मार डाला है। इसलिए मैं उन्हीं के शोक में काले वस्त्र धारण करता हूं। ' यह रोचक जवाब सुनकर सब हंस पड़े और संत से अभिभूत भी हुए। राजा की जिज्ञासा थोड़ी और बढ़ी। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस संत की परीक्षा ली जाए। उन्होंने संत को अपने महल में बुलवाया। संत के पहुंचने पर राजा के सेवकों ने उन्हें धक्के मार कर बाहर निकाल दिया। <br />उसके कुछ देर बाद उन्होंने संत को एक बार फिर वापस बुलवाया लेकिन उन्हें फिर उसी तरह बाहर कर दिया गया। यह क्रम कई बार चला। हर बार संत सहज भाव से फिर आ खड़े होते। उनके चेहरे पर क्रोध की मामूली झलक भी नहीं दिखाई पड़ी। संत की सहनशीलता देखकर राजा उनके पैरों पर गिर पडे़ और उनसे क्षमा मांगते हुए बोले , ' आप सचमुच क्षमावान व सहनशील हैं और आपने वास्तव में मानव के अंतर्मन के मित्रों काम , क्रोध , लोभ , ईर्ष्या , मोह आदि पर विजय प्राप्त कर ली है। कृपया मुझे भी अपनी शरण में लेकर इन सब पर विजय पाने का कोई रास्ता बताइए ताकि मैं अपनी प्रजा का समुचित पालन कर सकूं । ' इसके बाद राजा संत से शिक्षा प्राप्त करने लगे। <br /> <br /><strong>बहुमूल्य रत्न</strong><br />एक बार राजा कृष्णदेव के निमंत्रण पर भक्त पुरंदर दास राजमहल में पधारे। जाते समय राजा ने दो मुट्ठी चावल उनकी झोली में डालते हुए कहा, 'महाराज, इस छोटी सी भेंट को स्वीकार करें।' राजा ने बड़ी चतुराई से इन चावलों में कुछ हीरे मिला दिए थे। पुरंदर दास की पत्नी ने घर पर चावल साफ करते समय देखा कि उनमें कुछ बहुमूल्य रत्न भी हैं, तो उन्होंने उन्हें अलग करके कूड़ेदान में फेंक दिया। <br />उसके बाद पुरंदर दास को प्राय: रोज ही किसी न किसी कारण से दरबार में आना पड़ा। राजा रोज ही उन्हें दो मुट्ठी चावल के साथ हीरे मिलाकर देते और मन में यही सोचते कि यह ब्राह्मण भी धन के लालच से मुक्त नहीं है। एक दिन राजा ने कहा, 'लालच मनुष्य को आध्यात्मिक उपलब्धियों से दूर कर देता है। आप स्वयं ही अपने विषय में विचार करें।' राजा की यह बात सुनकर पुरंदर दास को बेहद दुख हुआ। <br />वह अगले दिन राजा को अपना घर दिखाने ले गए। उस समय पुरंदर दास की पत्नी चावल साफ कर रही थीं। राजा ने पूछा, 'देवी, आप क्या कर रही हैं?' वह बोलीं, 'महाराज, कोई व्यक्ति भिक्षा के चावल के साथ कुछ पत्थर मिलाकर हमें देता है। वैसे वे बहुमूल्य रत्न हैं, लेकिन हमारे लिए इनका कोई मूल्य नहीं है। अन्न तो खाना ही है, इसलिए उन्हें निकाल कर अलग कर रही हूं।' राजा ने अपने उन सभी बहुमूल्य रत्नों को कूड़ेदान में पड़े देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। फिर उस भक्त दंपती के चरणों में गिर कर उन्होंने अपने आरोप के लिए क्षमा मांगी। पुरंदर दास और उनकी पत्नी ने उन्हें अपने सहज स्वभाव के अनुसार क्षमा कर दिया। <br /><br /><strong>सबसे बड़ा उपहार</strong> <br />बगदाद का बादशाह बेहद उदार व दयालु था। वह निर्धनों की सहायता में हर समय लगा रहता था। बगदाद से थोड़ी दूर एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था। वह किसी तरह रूखा-सूखा खाकर अपना गुजारा करता था। <br />एक दिन पत्नी ने पति से कहा, 'तुम देख रहे हो कि हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। तुम्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि कम से कम दोनों समय पेट भर भोजन तो मिल सके।' पति बोला, 'तुम्हारा कहना सही है, पर संसार में किसी की हालत हमेशा एक जैसी नहीं रहती। अमीरी और गरीबी दोनों धूप-छांव की तरह आती-जाती रहती हैं। मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण धन संतोष है। निश्चिंत रहो, समय पर सब कुछ ठीक हो जाएगा।' <br />पत्नी ने झुंझला कर कहा, 'तुम हमेशा यही बोलते रहते हो। मेरी बात मानो। बगदाद का बादशाह बहुत दानी है। जो उसके पास जाता है, उसे वह खुले हाथों दान देता है। तुम जल्दी ही बगदाद के लिए रवाना हो जाओ।' पति ने कहा, 'बात तो तुम्हारी ठीक है, पर बादशाह के पास खाली हाथ भी नहीं जाया जाता। उसके लिए क्या उपहार ले जाऊं?' <br />पत्नी ने कहा, 'बादशाह के खजाने में हीरे-मोती हो सकते हैं, पर हमारे यहां का पानी वहां मिलना कठिन है। हमारा पानी मीठा व सुस्वादु है। इसे ही उपहार के रूप में ले जाओ।' पति ने पहले तो मना किया पर पत्नी के जोर देने पर शीतल जल से भरी मशक लेकर बादशाह के पास पहुंचा। बादशाह ने प्रसन्न होकर उसके मशक को उपहार के रूप में स्वीकार किया और उस पानी को बर्तन में खाली करवा कर उसकी मशक अशर्फियों से भरकर उसे वापस दे दी। जब पति घर पहुंचा तो पत्नी बोली, 'महान लोग यह नहीं देखते कि उपहार कितना बड़ा या कीमती है। वे तो सिर्फ भेंट देने वाले का मन पढ़ते हैं। वे देखते हैं उसका मन कितना शुद्ध है। शुद्ध मन ही सबसे बड़ा उपहार है।'शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-72171189813265474292010-12-27T23:07:00.000+05:302010-12-27T23:08:00.723+05:30मनोरंजन<strong>जब दुर्योधन ने भीम को विष पिलाया </strong><br /><br />हस्तिनापुर में आने के बाद पाण्डवों को वैदिक संस्कार सम्पन्न हुए। पाण्डव तथा कौरव साथ ही खेलने लगे। दौडऩे में, निशाना लगाने तथा कुश्ती आदि सभी खेलों में भीम सभी धृतराष्ट्र पुत्रों को हरा देते थे। भीमसेन कौरवों से होड़ के कारण ही ऐसा करते थे लेकिन उनके मन में कोई वैर-भाव नहीं था। परंतु दुर्योधन के मन में भीमसेन के प्रति दुर्भावना पैदा हो गई। तब उसने उचित अवसर मिलते ही भीम को मारने का विचार किया। <br />दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई। <br />तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए। <br /><br /><strong>न्यू यिअर पार्टी से मत रोको पापा </strong><br />डियर पापा, <br />मुझे समझ में नहीं आ रहा कि आप मुझे न्यू यिअर पार्टी में क्यों नहीं जाने देना चाहते। कल रात मैंने आपकी और ममी की बातें सुन ली थीं। इससे मुझे समझ में आ गया कि आप किन चीजों से हिचक रहे हैं। पापा, मुझे भी मालूम है कि दिल्ली में इन दिनों क्राइम बहुत बढ़ गया है। <br />लड़कियां सेफ नहीं रह गई हैं। लेकिन क्या इस कारण लड़कियों ने स्कूल-कॉलेज और ऑफिस जाना बंद कर दिया? पापा, मैं अब आठवीं क्लास में आ गई हूं। अपनी जिम्मेदारी और आपकी फीलिंग्स को भी समझती हूं। मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगी जिससे आप लोगों को तकलीफ पहुंचे। अब मेरा भी तो मन करता है कि न्यू इयर्स की पार्टी दोस्तों के साथ एंजॉय करें। इसमें कोई नई बात तो है नहीं। <br />आप खुद बताते हैं कि बचपन में आप मोहल्ले भर के बच्चों के साथ मेला देखने जाते थे। न्यू इयर्स की पार्टी उसी मेले का मॉडर्न रूप है। मैं किसी अनजान लोगों के साथ तो पार्टी में जा नहीं रही हूं। इसमें हमारी कई फ्रेंड्स रहेंगी और सीनियर्स भी। आपने स्कूल की पिकनिक में जाने से तो मना नहीं किया था। <br />जैसे वहां बच्चों ने एक-दूसरे का हमेशा ख्याल रखा वैसे ही इसमें भी रखेंगे। फिर पड़ोस की मुग्धा दीदी भी तो रहेंगी। मैं उन्हीं के साथ चली जाऊंगी। लौटते समय क्या आप रात में हमें पिक अप करने नहीं आ सकते? एक दिन की तो बात है। मेरे लिए थोड़ी तकलीफ उठा लीजिए। प्लीज पापा। <br />आपकी बेटी <br /><br /><strong>उन्हें रोककर तो दिखाओ</strong> <br />नवभारत टाइम्स <br />सड़कों पर भारी ट्रैफिक के चलते जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं मेट्रो से ऑफिस आना पसंद करता हूं। उस दिन दफतर में एक लेख लिखते हुए थोड़ा लेट हो गया था। मेट्रो पकड़ी और अपने घर के नजदीकी स्टेशन पर उतरा। मेरा फ्लैट, स्टेशन से करीब दो किलोमीटर दूर है। वहां तक का रिक्शे का किराया 10 रुपया है। मैंने बाहर निकलकर एक रिक्शे वाले को पुकारा। मैंने रिक्शे वाले से पूछा- परवाना विहार चलोगे? वह बोला, चलूंगा, मगर 15 रुपये लूंगा। मैं हंसा- लगता है कि तुम मुझे परदेसी समझ रहे हो। मैं यहीं का बाशिंदा हूं। रिक्शा वाला बोला- रात का वक्त है। मैंने कहा- बहानेबाजी मत कहो, 10 रुपये में चलो। चूंकि वहां सवारी कम थी, रिक्शा वाला मन मारकर राजी हो गया। <br />क्शा थोड़ी दूर ही गया था कि मैंने रिक्शे वाले से बातचीत शुरू की। मैंने कहा- भैया, थोड़ी ईमानदारी रखा करो। कोई जरूरतमंद मिल गया तो मनमाना किराया वसूलोगे। यह क्या तरीका है। वह बोला- हम मेहनत करते हैं। मुझे गुस्सा आया- तो क्या हम लोग मेहनत नहीं करते। हम भी मेहनत करते हैं। ठीक है कि तुम शारीरिक मेहनत ज्यादा करते हो, हम दिमागी तौर पर मेहनत करते हैं। रिक्शे वाले ने पूछा- क्या करते हैं आप? मैंने कहा- पत्रकार हूं। रिपोर्टर हूं, जानते हो, रिपोर्टर किसे कहते हैं। जो खबरें लाता है, उसे लिखता है, तभी अखबार में खबरें छपती है। अब बोलो, क्या मैं मेहनत नहीं करता। भैया मेहनत सभी करते हैं। ऐसे में तुम जो 10 रुपये की जगह 15 रुपये किसी मेहनतकश से वसूलते हो वह गलत है। जो तुम्हारा बनता है, उसे लो। उसे देने में कोई ऐतराज नहीं करेगा और किसी को दुख भी नहीं होगा। मैं बोलता रहा, वह रास्ते भर.. हूं, हूं करके सुनता रहा। <br />मेरे अपार्टमेंट का गेट आ गया। मैं उतरा, जेब से रुपये निकालता, तभी रिक्शा वाला बोला- आप पत्रकार हैं। मुझे काफी कुछ सीख दे रहे थे। ठीक है मैं रिक्शा चला रहा हूं, मगर मैं भी थोड़ा- बहुत पढ़ा लिखा हूं। मैंने 10 की जगह 15 रुपये मांग लिए तो आप इतना बोल रहे हैं। आप पत्रकार हैं तो उन लोगों को कुछ बोलिए न जो घोटाला करके करोड़ों रुपये देश का डकार गए। रोज अखबार में छप रहा है कि यह घोटाला हुआ, वो घोटाला हुआ। आप ही लोग छाप रहे हैं। देश, प्रदेश के नेता से लेकर सरकारी बाबू तक करोड़ों रुपये कमा रहे हैं, वह भी नाजायज रूप से। रात का समय है, सर्दी लग रही है, अगर मैंने पांच रुपये ज्यादा मांग लिये तो आप इतना बोल रहे हैं। पत्रकार हैं आप, उनको रोकिए घोटाला करने से, जो नाजायज तरीके से ऐसा कर रहे हैं। <br />मैं सहम गया। उसकी बातों में सच की आंच थी जिसे सहने की ताकत मुझमें नहीं थी। हम पत्रकार-बुद्धिजीवी बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं पर आम आदमी के सवालों का कोई जवाब हमारे पास नहीं है। मैंने चुपचाप जेब से 15 रुपये निकाले और उसे दे दिए। उससे आंख मिलाने का साहस मैं नहीं कर पा रहा था। <br /><br /><br /><strong>मन की जीत</strong><br />नमि नामक राजा राजपाट छोड़कर तपस्या करने निकले। वह ज्यों ही राजमहल से बाहर आए, एक देवदूत उनकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से सामने आकर खड़ा हो गया और बोला, 'राजन्! आप जा रहे हैं। किंतु पहले आपका कर्त्तव्य है कि आप अपने महल की रक्षा के लिए मजबूत दरवाजे, बुर्ज, खाई और तोपखाना आदि बनाकर जाएं ताकि प्रजा और भावी सम्राट सुरक्षित रह सकें।' <br />इस पर नमि ने कहा, 'हे देव। मैंने ऐसा नगर बनाया है जिसके चारों ओर श्रद्धा, तप और संयम की दीवारें हैं। मन, वचन और काया की एकरूपता की खाई भी है। जिस तरह शत्रु जमीन की खाई को पार कर नगर में प्रवेश नहीं कर सकता, उसी तरह अन्य स्थानों पर व्याप्त वैमनस्य, छल-कपट, काम, क्रोध और लोभ भी मेरी बनाई खाइयों को लांघकर आत्मा में प्रविष्ट नहीं हो सकते। मेरा पराक्रम मेरा धनुष है। मैंने उसमें धैर्य की मूठ लगाई है और सत्य की प्रत्यंचा चढ़ाई है। भौतिक संग्राम से मुझे क्या लेना-देना। <br />मैंने तो आध्यात्मिक संग्राम के लिए सामग्री इकट्ठी की है। मेरे जीवन की दिशा बदलने के साथ ही मेरे संग्राम का रूप भी बदल गया है। ऐसा नहीं है कि ये सारी शिक्षाएं मैंने स्वयं ली हैं अपितु यह मेरे राज्य के एक-एक नागरिक के तन-मन में रची-बसी हैं। इसलिए मुझे अपने राज्य की चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।' देवदूत ने कहा, 'राजा का कर्त्तव्य है कि वह अपने आसपास के सभी राज्यों को अपने अधीन करे। <br />आप इस कार्य को पूरा करके ही साधु बनें।' यह सुन कर नमि बोले, 'जो रणभूमि में दस हजार योद्धाओं को जीतता है, वह बलवान माना जाता है, किंतु उससे भी अधिक बलवान वह है, जो अपने मन को जीत लेता है। दूसरों को अधीन करने से अच्छा है अपने मन को अधीन करना। जिसने मन को जीत लिया उसने विश्व को जीत लिया।' यह सुनकर देवपुरुष उनके आगे नतमस्तक हो गया और उन्हें शुभकामनाएं देकर चला गया। <br />प्रस्तुतकर्ता अरुण बंछोर पर 27.12.10 0 टिप्पणियाँ इस संदेश के लिए लिंक <br />नए साल के लिए एक जनवरी ही क्यों <br />एक जनवरी नजदीक आ गई है। जगह-जगह हैपी न्यू ईयर के बैनर व होर्डिंग लग गए हैं। जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो गई हैं। जनवरी से प्रारंभ होने वाली काल गणना को हम ईस्वी सन् के नाम से जानते हैं जिसका संबंध ईसाई जगत् व ईसा मसीह से है। इसे रोम के सम्राट जूलियस सीजर द्वारा ईसा के जन्म के तीन वर्ष बाद प्रचलन में लाया गया था। <br />भारत में ईस्वी संवत् का प्रचलन अंग्रेज शासकों ने वर्ष 1752 में शुरू किया। अधिकांश राष्ट्रों के ईसाई होने और अंग्रेजों के विश्वव्यापी प्रभुत्व के कारण ही इसे अनेक देशों ने अपना लिया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नवम्बर 1952 में हमारे देश में वैज्ञानिक और औद्योगिक परिषद द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गई। समिति ने 1955 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रमी संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की थी। मगर तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन कैलंडर को ही सरकारी कामकाज के लिए उपयुक्त मानकर 22 मार्च 1957 को इसे राष्ट्रीय कैलंडर के रूप में स्वीकार कर लिया गया। <br />ग्रेगेरियन कैलंडर की काल गणना मात्र दो हजार वर्षों के काफी कम समय को दर्शाती है। जबकि यूनान की काल गणना 3579 वर्ष, रोम की 2756 वर्ष, यहूदियों की 5767 वर्ष, मिस्र की 28670 वर्ष, पारसी की 198874 वर्ष चीन की 96002304 वर्ष पुरानी है। इन सबसे अलग यदि भारतीय काल गणना की बात करें तो भारतीय ज्योतिष के अनुसार पृथ्वी की आयु एक अरब 97 करोड़ 39 लाख 49 हजार 109 वर्ष है। जिसके व्यापक प्रमाण हमारे पास उपलब्ध हैं। हमारे प्राचीन ग्रंथों में एक-एक पल की गणना की गई है। जिस प्रकार ईस्वी संवत् का संबंध ईसाई जगत से है उसी प्रकार हिजरी संवत् का संबंध मुस्लिम जगत से है। लेकिन विक्रमी संवत् का संबंध किसी भी धर्म से न हो कर सारे विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांत व ब्रह्मांड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व राष्ट्र की गौरवशाली परंपराओं को दर्शाती है। <br />भारतीय संस्कृति श्रेष्ठता की उपासक है। जो प्रसंग समाज में हर्ष व उल्लास जगाते हुए हमें सही दिशा प्रदान करते हैं उन सभी को हम उत्सव के रूप में मनाते हैं। राष्ट्र के स्वाभिमान व देशप्रेम को जगाने वाले अनेक प्रसंग चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से जुडे़ हुए हैं। यह वह दिन है, जिससे भारतीय नव वर्ष प्रारंभ होता है। यह सृष्टि रचना का पहला दिन है। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन के सूर्योदय से ब्रह्मा जी ने जगत की रचना प्रारंभ की। विक्रमी संवत् के नाम के पीछे भी एक विशेष विचार है। यह तय किया गया था कि उसी राजा के नाम पर संवत् प्रारंभ होगा जिसके राज्य में न कोई चोर हो न अपराधी हो और न ही कोई भिखारी। साथ ही राजा चक्रवर्ती भी हो। <br />सम्राट विक्रमादित्य ऐसे ही शासक थे जिन्होंने 2067 वर्ष पहले इसी दिन अपना राज्य स्थापित किया था। प्रभु श्रीराम ने भी इसी दिन को लंका विजय के बाद अयोध्या में अपने राज्याभिषेक के लिए चुना। युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था। शक्ति और भक्ति के नौ दिन अर्थात नवरात्र स्थापना का पहला दिन यही है। विक्रमादित्य की तरह शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना। <br />प्राकृतिक दृष्टि से भी यह दिन काफी सुखद है। वसंत ऋतु का आरंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह समय उल्लास - उमंग और चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरा होता है। फसल पकने का प्रारंभ अर्थात किसान की मेहनत का फल मिलने का भी यही समय होता है। नक्षत्र शुभ स्थिति में होते हैं अर्थात् नए काम शुरू करने के लिए यह शुभ मुहूर्त होता है। क्या एक जनवरी के साथ ऐसा एक भी प्रसंग जुड़ा है जिससे राष्ट्र प्रेम का भाव पैदा हो सके या स्वाभिमान तथा श्रेष्ठता का भाव जाग सके ? इसलिए विदेशी को छोड़ कर स्वदेशी को स्वीकार करने की जरूरत है। आइए भारतीय नव वर्ष यानी विक्रमी संवत् को अपनाएं। <br />विनोद बंसल <br /><br /><strong>चार मित्र </strong><br />सेन के राज्य में प्रजा बहुत खुशहाल और संतुष्ट थी। वहां कभी किसी तरह का तनाव नहीं होता था। यह बात पड़ोसी राज्य के राजा कुशल सेन तक भी पहुंची। उसके यहां आए-दिन झगड़े होते रहते थे और प्रजा बहुत दु:खी थी। राजा कुशल सेन अपने पड़ोसी राज्य की सुख-शांति व खुशहाली का राज जानने के लिए आदर्श सेन के पास पहुंचा और बोला, 'मेरे यहां हर ओर दु:ख-दर्द व बीमारी फैली है। पूरे राज्य में त्राहि-त्राहि मची हुई है। कृपया मुझे भी अपने राज्य की सुख-शांति का राज बताएं।' कुशल सेन की बात सुनकर राजा आदर्श सेन मुस्कुरा कर बोला, 'मेरे राज्य में सुख-शांति मेरे चार मित्रों के कारण आई है।' इससे कुशल सेन की उत्सुकता बढ़ गई। <br />उसने कहा, 'कौन हैं वे आपके मित्र? क्या वे मेरी मदद नहीं कर सकते?' आदर्श सेन ने कहा, 'जरूर कर सकते हैं। सुनिए मेरा पहला मित्र है सत्य। वह कभी मुझे असत्य नहीं बोलने देता। मेरा दूसरा मित्र प्रेम है, वह मुझे सबसे प्रेम करने की शिक्षा देता है और कभी भी घृणा करने का अवसर नहीं देता। मेरा तीसरा मित्र न्याय है। वह मुझे कभी भी अन्याय नहीं करने देता और हर वक्त मेरे आंख-कान खुले रखता है ताकि मैं राज्य में होने वाली घटनाओं पर निरंतर अपनी दृष्टि बनाए रखूं। और मेरा चौथा मित्र त्याग है। त्याग की भावना ही मुझे स्वार्थ व ईर्ष्या से बचाती है। ये चारों मिलकर मेरा साथ देते हैं और मेरे राज्य की रक्षा करते हैं।' कुशल सेन को आदर्श सेन की सफलता का रहस्य समझ में आ गया। <br /><br /><strong>महात्मा की शिक्षा </strong><br />एक बार मगध के राजा चित्रांगद वन विहार के लिए निकले। साथ में कुछ बेहद करीबी मंत्री और दरबारी भी थे। वे घूमते हुए काफी दूर निकल गए। एक जगह सुंदर सरोवर के किनारे किसी महात्मा की कुटिया दिखाई दी। वह जगह राजा को बहुत पसंद आई हालांकि वह उसे दूर से ही देखकर निकल गए। राजा ने सोचा कि महात्मा अभावग्रस्त होंगे, इसलिए उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुछ धन भिजवा दिया। महात्मा ने वह धनराशि लौटा दी। कुछ दिनों बाद और अधिक धन भेजा गया, पर सब लौटा दी गई। तब राजा स्वयं गए और उन्होंने महात्मा से पूछा, 'आपने हमारी भेंट स्वीकार क्यों नहीं की?' <br />महात्मा हंसते हुए बोले, 'मेरी अपनी जरूरत के लिए मेरे पास पर्याप्त धन है।' राजा ने कुटिया में इधर-उधर देखा, केवल एक तुंबा, एक आसन एवं ओढ़ने का एक वस्त्र था, यहां तक कि धन रखने के लिए कोई अलमारी आदि भी नहीं थी। राजा ने फिर कहा, 'मुझे तो कुछ दिखाई नहीं देता।' महात्मा ने राजा को पास बुलाकर उनके कान में कहा, 'मैं रसायनी विद्या जानता हूं। किसी भी धातु से सोना बना सकता हूं।' अब राजा बेचैन हो गए, उनकी नींद उड़ गई। धन-दौलत के आकांक्षी राजा ने किसी तरह रात काटी और सुबह होते ही महात्मा के पास पहुंचकर बोले, 'महाराज! मुझे वह विद्या सिखा दीजिए, ताकि मैं राज्य का कल्याण कर सकूं।' महात्मा ने कहा, 'ठीक है पर इसके लिए तुम्हें समय देना होगा। वर्ष भर प्रतिदिन मेरे पास आना होगा। मैं जो कहूं उसे ध्यान से सुनना होगा। साल पूरा होते ही विद्या सिखा दूंगा।' राजा रोज आने लगे। महात्मा के साथ रहने का प्रभाव जल्दी ही दिखने लगा। एक वर्ष में राजा की सोच पूरी तरह बदल गई। महात्मा ने एक दिन पूछा, 'वह विद्या सीखोगे?' राजा ने कहा, 'गुरुदेव! अब तो मैं स्वयं रसायन बन गया। अब किसी नश्वर विद्या को सीखकर क्या करूंगा।' <br /><br /><br /><strong>क्यों कहते हैं विष्णु को नारायण? </strong><br />हिंदू धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि सृष्टि का निर्माण त्रिदेवों ने मिलकर किया है। भगवान विष्णु को सृष्टि का संचालनकर्ता माना गया है। कहते हैं कि जब भी धरती पर कोई मुसीबत आती है तो भगवान विभिन्न अवतार लेकर आते हैं और हमें उन मुसीबतों से बचाते हैं।<br />हिन्दू धर्म में भगवान के जितने रूप है उतने ही उनके नाम भी बताये गए है। भगवान विष्णु का ऐसा ही एक नाम है नारायण। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा कि भगवान को नारायण क्यों कहते हैं? भगवान विष्णु का नारायण नाम कैसे पड़ा?<br />विष्णु महापुराण में भगवान के नारायण नाम के पीछे एक रहस्य बताया गया है। इसमें कहा गया है कि जल की उत्पत्ति नर अर्थात भगवान के पैरों से हुई है इसलिए पानी को नीर या नार भी कहा जाता है। चूंकि भगवान का निवास स्थान (अयन) पानी यानी कि क्षीर सागर को माना गया है इसलिए जल में निवास करने के कारण ही भगवान को नारायण (नार+अयन) कहा जाता है।<br />हमारे शास्त्रों नें बताया है कि इस सृष्टि का निर्माण भी जल से हुआ है। और भगवान के पहले तीन अवतार भी जल से उत्पन्न हुए हैं इसलिए हिन्दू धर्म में जल को देव रूप मे पूजा जाता है।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-16531648361433864312010-12-05T22:19:00.000+05:302010-12-05T22:28:22.356+05:30कहानियां<strong>संगीत का सौंदर्य</strong><br />फ्रांस के प्रसिद्ध संगीतकार गाल्फर्ड के पास एक लड़की संगीत सीखने आया करती थी जो अत्यंत कुरूप थी। एक दि <br />न लड़की ने गाल्फर्ड को बताया कि जब कभी वह मंच पर जाती है तो सोचने लगती है कि अन्य लड़कियां तो बहुत ही आकर्षक हैं। कहीं लोग उसकी हंसी तो नहीं उड़ाएंगे। इस आशंका से वह ढंग से नहीं गा पाती। लेकिन घर पर अपने लोगों के बीच वह ठीक से गाती है और वहां सभी उसके गायन की प्रशंसा करते हैं। बस मंच पर जाने के समय ही वह अपनी सारी क्षमता गंवा बैठती है। <br />गाल्फर्ड ने उसकी बातें ध्यान से सुनी। फिर अत्यंत स्नेहपूर्वक बोले, 'बेटी, संगीत का अपना सौंदर्य होता है। जो उस सौंदर्य का रस पीने आते हैं, वे गायक व गायिका का रूप नहीं देखते। फिर भी तुम ऐसा करो कि रोजाना एक बड़े शीशे के सामने खड़े होकर अपनी छवि निहारो और ऐसा करते हुए गीत गाओ। इससे तुम्हारी झिझक अपने आप खत्म हो जाएगी और यह भी समझ में आ जाएगा कि संगीत की मधुरता और संगीतकार के रूप का आपस में कोई संबंध नहीं है। दर्पण के सामने जब तुम भाव विभोर होकर गाओगी तो तुम्हारे मन से हर तरह का डर निकल जाएगा। फिर धीरे-धीरे तुम मंच पर बेफिक्र होकर गा सकोगी।' <br />लड़की ने अपने गुरु की सलाह पर उसी दिन से अमल करना शुरू कर दिया। इससे उसके भीतर आत्मविश्वास आने लगा। फिर जब वह मंच पर उतरी तो उसकी झिझक पूरी तरह खत्म हो गई। संगीत के क्षेत्र में उसने काफी प्रसिद्धि प्राप्त की। उसका नाम था मेरी वुडलनाल्ड। <br /> <br /><strong>शांति की खोज</strong><br />उन दिनों स्वामी रामतीर्थ अमेरिका गए हुए थे। वहां उनके प्रवचन की हर ओर धूम थी। अमेरिकी नागरिक उनसे अपनी <br />परेशानियों के हल पूछने आते और खुशी-खुशी वहां से जाते थे। एक दिन एक अमेरिकी महिला उनके पास पहुंची और बोली, 'स्वामी जी, मेरा सब कुछ लुट गया। मुझे अब इस जीवन में कभी शांति नहीं मिल सकती। कृपया मेरे चित्त को शांत करने का उपाय बताएं।' <br />स्वामी जी ने कहा, 'माता, पहले आप अपने दुख का कारण तो बताएं।' महिला रोती हुई बोली, 'मेरा इकलौता पुत्र काल के गाल में समा गया है। अब मैं क्या करूं?' वह जोर-जोर से विलाप करने लगी। स्वामी जी ने उसे सांत्वना दी और अगले दिन उसके दुख को दूर करने का वादा किया। अगले दिन महिला फिर पहुंची। उसने कहा, 'स्वामी जी, आपने मुझसे वादा किया था कि आज आप मेरी समस्या का समाधान करेंगे।' स्वामी जी बोले, 'बिल्कुल, मैं अवश्य आपकी समस्या दूर करूंगा।' <br />इसके बाद उन्होंने एक छोटे से बालक को आवाज देकर बुलाया और उसका हाथ महिला के हाथ में सौंपते हुए कहा, 'यह लो अपना बेटा। आपको संतान चाहिए और इसे माता-पिता। आप इसके साथ बेटे जैसा व्यवहार करना, फिर देखना आपके सारे दु:ख-दर्द कैसे दूर हो जाते हैं।' उस महिला को इसकी आशा न थी। वह बोली, 'स्वामी जी, भला यह कैसे संभव है? मैं इसे अपना पुत्र कैसे मान लूं? पता नहीं यह कौन है? इसमें तो मेरा अंश मात्र भी नहीं है।' <br />उसकी बात सुनकर स्वामी जी गंभीर होकर बोले, 'ऐसे सोचेंगी तो न कभी आपका दु:ख-दर्द दूर होगा न ही जीवन में शांति मिल सकेगी। आत्मीयता का विस्तार करना सीखें। औरों में भी अपना रूप देखें। इस बच्चे में अपना बेटा देखें। जीवन जरूर बदलेगा। जीवन में सुख और शांति आएगी।' वह अमेरिकी महिला स्वामी रामतीर्थ की बातें सुनकर दंग रह गई। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया। वह अनाथ बच्चे को प्रेम से अपने साथ ले गई । <br /> <br /><strong>दो थैले</strong><br />हमारे गांवों में अक्सर एक कथा सुनने को मिलती है। ईश्वर ने जब मनुष्य की रचना की तो उसे अपनी अन्य सभी कृ <br />तियों से श्रेष्ठ बनाया। सुघड़ और सुंदर बनाने के साथ उसे बुद्धि भी दी। जब मनुष्य इस पृथ्वी पर पहुंचा तो ब्रह्मा ने उससे पूछा, अब यहां आकर तुम क्या चाहते हो? मनुष्य ने कहा, प्रभु, मैं तीन बातें चाहता हूं। एक, मैं सदा प्रसन्न रहूं। दूसरा, सभी मेरा सम्मान करें। और तीसरा, मैं सदा उन्नति के पथ पर चलता रहूं। <br />मनुष्य की ये इच्छाएं जान कर ब्रह्मा जी ने उसे दो थैले दिए और कहा, एक थैले में तुम अपनी सभी कमजोरियां डाल दो, और दूसरे थैले में दूसरे लोगों की कमियां डालते रहो। साथ ही यह भी कहा कि इन दोनों थैलों को हमेशा अपने कंधों पर ले कर चलना। लेकिन हां, एक बात का ध्यान और रखना कि जिस थैले में तुम्हारी अपनी खामियां हैं, उसे तो अगली तरफ रखना। और जिस थैले में दूसरों की कमजोरियां रखी हैं, उन्हें पीछे की तरफ यानी पीठ पर रखना। समय-समय पर सामने वाला थैला खोलकर निरीक्षण भी करते रहना, ताकि अपनी त्रुटियां दूर कर सको। परंतु दूसरे लोगों के अवगुणों का थैला, जो पीठ पर डाला होगा, उसे कभी न खोलना और न ही दूसरों के ऐब देखना या कहना। यदि तुम इस परामर्श पर ठीक से आचरण करोगे, तो तुम्हारी तीनों इच्छाएं पूरी होंगी- तुम सदा प्रसन्न रहोगे, सबसे सम्मान पाओगे और सदा उन्नति करोगे। <br />मनुष्य ने ब्रह्मा जी को नमस्कार किया और अपने दुनियावी कामकाज में लग गया। लेकिन इस बीच उसे थैलों की पहचान भूल गई। जो थैला पीछे डालना था उसे तो आगे टांग लिया और जिस थैले को आगे रख कर देखते रहने को कहा था, वह पीछे की तरफ कर दिया। तब से मनुष्य दूसरों के अवगुण ही देखता है, अपनी कमजोरियों पर ध्यान नहीं देता। इसी वजह से उसेफल भी उलटा ही मिलता है। <br /> <br /><strong>रेत का पुल</strong><br />भारद्वाज ऋषि के पुत्र यवक्रीत को विद्यार्जन में रुचि नहीं थी। इसलिए वह अध्ययन से दूर रहे पर बाद में उन <br />्हें अहसास हुआ कि अशिक्षित होने और शास्त्रों का ज्ञान नहीं होने के कारण समाज में उनका सम्मान नहीं होता। लेकिन चूंकि उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी थी, विधिवत शिक्षा ग्रहण करने का समय निकल चुका था, इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न देवताओं की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया जाए और वरदान मांग कर सारी विद्याएं प्राप्त कर ली जाएं। वह गंगा किनारे भगवान को खुश करने के लिए ध्यानमग्न हो गए। भगवान इंद्र उनके मन की बात समझ गए। <br />एक दिन वह साधु का वेश धारण करके वहां आए और दोनों हाथों से रेत उठा कर पानी में डालने लगे। थोड़ी देर में यवक्रीत की आंखें खुलीं। उन्होंने साधु को पानी में बालू डालते देख कर पूछा, 'आप यह क्या कर रहे हैं?' साधु ने कहा, 'गंगा के ऊपर पुल बना रहा हूं।' इन्हें भी पढ़ें <br />यवक्रीत ने कहा, 'आप तो बड़े ज्ञानी लगते हैं लेकिन यह मूर्खता वाला काम क्यों कर रहे हैं। कहीं बालू से पुल बनता है। बालू तो पानी में गिरते ही उसमें घुल जाता है।' यह सुन कर साधु ने कहा, 'यदि बिना पढ़े-लिखे ज्ञान मिल सकता है तो बालू से पुल क्यों नहीं बन सकता। अगर तपस्या करने से ही ज्ञान मिलता तो फिर पढ़ने- लिखने का कष्ट कौन उठाता। सभी आप की तरह तपस्या करके भगवान को खुश करके ज्ञान का वर मांग लेते।' यह सुन कर यवक्रीत सोच में पड़ गए। <br />उन्होंने कहा, 'पर इतनी ज्यादा उम्र में पढ़ाई कौन करता है।' साधु ने कहा, 'वत्स, ज्ञान प्राप्त करने की कोई उम्र सीमा नहीं होती। यदि आप संकल्प कर लोगे तो अब भी अपने पिता के समान महान ज्ञानी बन सकते हो।' यवक्रीत ने कहा, 'आप ठीक कह रहे हैं। अब मैं अध्ययन करूंगा।' बाद में यवक्रीत महान विद्वान बने और तपोदत्त के नाम से जाने गए।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-23676676323857419002010-12-03T22:53:00.001+05:302010-12-03T22:55:37.487+05:30कहानी<strong>पूजा और भक्ति</strong><br />एक साधु एक राजा के अतिथि बने। राजा ने साधु से पूछा, 'बताएं, पूजा और भक्ति में क्या अंतर है?' साधु ने र <br />ाजा को कुछ दिन प्रतीक्षा करने के लिए कहा। एक दिन जब राजा और साधु एक साथ भोजन कर रहे थे तब राजा ने रसोइए को बुलाया और कहा, 'आज सभी सब्जियां स्वादिष्ट हैं लेकिन बैंगन की सब्जी लाजवाब है।' रसोइए ने प्रसन्न होकर कहा, 'महाराज, बैंगन तो है ही शाही सब्जी। जैसे आप शहंशाह हैं वैसे ही बैंगन भी सब्जियों का शहंशाह है।' रसोइए ने अगले दिन फिर से बैंगन की सब्जी बनाई। अब वह रोज बैंगन बनाने लगा। <br />एक दिन राजा ने भोजन की थाली परे सरकाते हुए रसोइए को बुलाकर फटकार लगाई। रसोइया हाथ जोड़कर बोला, 'महाराज गलती हो गई। बैंगन तो घटिया सब्जी है। इसमें तो कोई गुण नहीं होता तभी तो इसका नाम बैंगन पड़ा। आदमी तो क्या, इसे जानवर भी नहीं खाते। अब मैं कभी इसकी सब्जी नहीं बनाऊंगा।' राजा रसोइए की बात सुनकर हैरान था। उसने कहा, 'अभी कुछ दिन पहले तो तुम बैंगन की तारीफ कर रहे थे और आज इसे घटिया कह रहे हो।' रसोइया तपाक से बोला, 'महाराज, मैं नौकर आपका हूं, बैंगन का नहीं।' तभी साधु ने बीच में टोकते हुए राजा से कहा, 'रसोइए ने ऐसा मेरे कहने पर किया है। यही आपके प्रश्न का उत्तर है। हम मंदिर जाकर पूजा करते हैं, करवाते है, पुजारी को दक्षिणा देते हैं। यह भक्ति नहीं है। पुजारी तो ठहरा दक्षिणा का भोगी। जैसी दक्षिणा वैसी पूजा, वैसा ही आशीर्वाद। पूजा में हमें परमात्मा की भक्ति कहां याद रहती है।' राजा को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-57241161891045925172010-11-17T22:46:00.002+05:302010-11-17T22:47:30.102+05:30कहानी<strong>संगति का फल</strong> <br /> ओमप्रकाश बंछोर <br />पुराने समय की बात है। एक राज्य में एक राजा था। किसी कारण से वह अन्य गाँव में जाना चाहता था। एक दिन वह धनुष-बाण सहित पैदल ही चल पड़ा। चलते-चलते राजा थक गया। अत: वह बीच रास्ते में ही एक विशाल पेड़ के नीचे बैठ गया। राजा अपने धनुष-बाण बगल में रखकर, चद्दर ओढ़कर सो गया। थोड़ी ही देर में उसे गहरी नींद लग गई। <br />उसी पेड़ की खाली डाली पर एक कौआ बैठा था। उसने नीचे सोए हुए राजा पर बीट कर दी। बीट से राजा की चादर गंदी हो गई थी। राजा खर्राटे ले रहा था। उसे पता नहीं चला कि उसकी चादर खराब हो गई है। <br />कुछ समय के पश्चात कौआ वहाँ से उड़कर चला गया और थोड़ी ही देर में एक हंस उड़ता हुआ आया। हंस उसी डाली पर और उसी जगह पर बैठा, जहाँ पहले वह कौआ बैठा हुआ था अब अचानक राजा की नींद खुली। उठते ही जब उसने अपनी चादर देखी तो वह बीट से गंदी हो चुकी थी। <br />राजा स्वभाव से बड़ा क्रोधी था। उसकी नजर ऊपर वाली डाली पर गई, जहाँ हंस बैठा हुआ था। राजा ने समझा कि यह सब इसी हंस की ओछी हरकत है। इसी ने मेरी चादर गंदी की है। <br />क्रोधी राजा ने आव देखा न ताव, ऊपर बैठे हंस को अपना तीखा बाण चलाकर, उसे घायल कर दिया। हंस बेचारा घायल होकर नीचे गिर पड़ा और तड़पने लगा। वह तड़पते हुए राजा से कहने लगा- <br />'अहं काको हतो राजन्! <br />हंसाऽहंनिर्मला जल:।<br />दुष्ट स्थान प्रभावेन, <br />जातो जन्म निरर्थक।।' <br />अर्थात हे राजन्! मैंने ऐसा कौन सा अपराध किया, तुमने मुझे अपने तीखे बाणों का निशाना बनाया है? मैं तो निर्मल जल में रहने वाला प्राणी हूँ? ईश्वर की कैसी लीला है। सिर्फ एक बार कौए जैसे दुष्ट प्राणी की जगह पर बैठने मात्र से ही व्यर्थ में मेरे प्राण चले जा रहे हैं, फिर दुष्टों के साथ सदा रहने वालों का क्या हाल होता होगा?<br />हंस ने प्राण छोड़ने से पूर्व कहा - 'हे राजन्! दुष्टों की संगति नहीं करना। क्योंकि उनकी संगति का फल भी ऐसा ही होता है।' राजा को अपने किए अपराध का बोध हो गया। वह अब पश्चाताप करने लगा।<br /><br /><strong>सौजन्य से - देवपुत्र</strong>शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-31397059514695258152010-11-17T22:46:00.001+05:302010-11-17T22:46:49.765+05:30कहानी<strong>बच्चे की बात में ख़ुशी का राज</strong><br /> Bhaskar <br /> एक बच्चे के स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम होने थे। उसे नाटक में हिस्सा लेने की बड़ी इच्छा थी। लेकिन भूमिकाएं कम थीं और उन्हें निभाने के इच्छुक विद्यार्थी बहुत Êयादा थे। सो, शिक्षक ने बच्चों की अभिनय क्षमता परखने का निर्णय लिया। इस बच्चे की मां उसकी गहरी इच्छा के बारे में जानती थी, साथ ही डरती भी थी कि उसका चयन न हो पाएगा, तो कहीं उस नन्हे बच्चे का दिल ही न टूट जाए।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj75rlk1FK_nk1KKmxds-z-Cl81zY3kiGIhNlk70SiiHHV857RLwI-yCYvmX4sskgY4L3rUV3vkU7y16t11HK3mg5NlneINjbomiUPSS5Uw5HQH_RZS2budzeiwZPNsHWL7RCP1q8Ndn29o/s1600/k-1.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 250px; height: 250px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj75rlk1FK_nk1KKmxds-z-Cl81zY3kiGIhNlk70SiiHHV857RLwI-yCYvmX4sskgY4L3rUV3vkU7y16t11HK3mg5NlneINjbomiUPSS5Uw5HQH_RZS2budzeiwZPNsHWL7RCP1q8Ndn29o/s400/k-1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5540567008496070050" /></a><br />बहरहाल, वह दिन भी आ गया। सभी बच्चे अपने अभिभावकों के साथ पहुंचे थे। एक बंद हॉल में शिक्षक बच्चों से बारी-बारी संवाद बुलवा रहे थे। अभिभावक हॉल के बाहर बैठे परिणाम की प्रतीक्षा कर रहे थे। <br />घंटे भर बाद दरवाजा खुला। कुछ बच्चे चहकते हुए और बाक़ी चेहरा लटकाए हुए, उदास-से बाहर आए। वह बच्च दौड़ता हुआ अपनी मां के पास आया। उसके चेहरे पर ख़ुशी और उत्साह के भाव थे। मां ने राहत की सांस ली। उसने सोचा कि यह अच्छा ही हुआ, अभिनय करने की बच्चे की इच्छा पूरी हो रही है।<br />वह परिणाम के बारे में पूछती, इतने में बच्च ख़ुद ही बोल पड़ा, ‘जानती हो मां, क्या हुआ?’ मां ने चेहरे पर अनजानेपन के भाव बनाए और उसी मासूमियत से बोली, ‘मैं क्या जानूं! तुम बताओगे, तब तो मुझे पता चलेगा।’<br />बच्च उसी उत्साह से बोला, ‘टीचर ने हम सभी से अभिनय कराया। मैं जो रोल चाहता था, वह तो किसी और बच्चे को मिल गया। लेकिन मां, जानती हो, मेरी भूमिका तो नाटक के किरदारों से भी बड़ी मजेदार है।’ मां को बड़ा आश्चर्य हुआ। बच्च बोला, ‘अब मैं ताली बजाने और साथियों का उत्साह बढ़ाने का काम करूंगा!’शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-11113870401344803642010-11-17T22:45:00.000+05:302010-11-17T22:46:16.223+05:30बकरीद<strong>क्यों मनाते हैं बकरीद?</strong><br />बकरीद को इस्लाम में बहुत ही पवित्र त्योहार माना जाता है। इस्लाम में एक वर्ष में दो ईद मनाई जाती है। एक ईद जिसे मीठी ईद कहा जाता है और दूसरी है बकरीद। <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjw5WTNtZB8QM-RxvlQ4QXiY7pU2rdKuF6Z3YhmMwRyLufdlkyJFgsLZEtQGUdGteXtlmEqxkd6Vbw9lQATa7ua_V18KSCyDVJ2qaw3gv0dhrpP_98RS5Yth41NTiUZWZtu2MnSprRsOxCV/s1600/bakareed.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 260px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjw5WTNtZB8QM-RxvlQ4QXiY7pU2rdKuF6Z3YhmMwRyLufdlkyJFgsLZEtQGUdGteXtlmEqxkd6Vbw9lQATa7ua_V18KSCyDVJ2qaw3gv0dhrpP_98RS5Yth41NTiUZWZtu2MnSprRsOxCV/s400/bakareed.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5540566342217933522" /></a><br />बकरीद पर अल्लाह को बकरे की कुर्बानी दी जाती है। पहली ईद यानी मीठी ईद समाज और राष्ट्र में प्रेम की मिठास घोलने का संदेश देती है। <br />दूसरी ईद अपने कर्तव्य के लिए जागरूक रहने का सबक सिखाती है। राष्ट्र और समाज के हित के लिए खुद या खुद की सबसे प्यारी चीज को कुर्बान करने का संदेश देती है। बकरे की कुर्बानी तो प्रतीक मात्र है, यह बताता है कि जब भी राष्ट्र, समाज और गरीबों के हित की बात आए तो खुद को भी कुर्बान करने से नहीं हिचकना चाहिए। <br />कुर्बानी का मतलब है दूसरों की रक्षा करना<br />कोई व्यक्ति जिस परिवार में रहता है, वह जिस समाज का हिस्सा है, जिस शहर में रहता है और जिस देश का वह निवासी है, उस व्यक्ति का फर्ज है कि वह अपने देश, समाज और परिवार की रक्षा करें। इसके लिए यदि उसे अपनी सबसे प्रिय चीज की कुर्बानी देना पड़े तब भी वह पीछे ना हटे।<br />तीन हिस्से किए जाते हैं कुर्बानी के...<br />इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से ईद-उल-जुहा पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के सामान के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों का बांटा दिया जाता है।<br />ऐसा माना जाता है कि पैगम्बर हजरत को अल्लाह ने हुक्म दिया कि अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बान मेरे लिए कुर्बान कर दो। पैगंबर साहब को अपना इकलौता बेटा इस्माइल सबसे अधिक प्रिय था। खुदा के हुक्म के अनुसार उन्होंने अपने प्रिय इस्माइल को कुर्बान करने का मन बना लिया। इस बात से इस्माइल भी खुश था वह अल्लाह की राह में कुर्बान होगा। <br />बकरीद के दिन ही जब कुर्बानी का समय आया तब इस्माइल की जगह एक दुम्बा कुर्बान हो गया। अल्लाह ने इस्माइल को बचा लिया और पैगंबर साहब की कुर्बानी कबुल कर ली। तभी से हर साल पैगंबर साहब द्वारा दी गई कुर्बानी की याद में बकरीद मनाई जाने लगी।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-20815710784294518092010-10-31T22:06:00.001+05:302010-10-31T22:12:14.804+05:30शोध<strong>छोटी छुट्टियां ज्यादा यादगार होती हैं</strong><br /><br /> कॉमन वेल्थ गेम्स के कारण स्कूलों में छुट्टियां हो गई हैं ऐसे में बहुत सारे पेरेंट्स लंबी छुट्टियां मनाने के मूड में हैं। अगर बच्चों की जिद के कारण लंबी छुट्टी पर जाने का प्लान कर रहे हैं तो शोधकर्ताओं के इस शोध पर विचार करें। <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0Omm87cS8rGqOxE5OhsfckdXlAGIVkkQLHt4x_CV6eMItguxErPB6kl1u399dPqgNC0gcGcUk3W9IXliTqVTIU2zNa8kwV2P-IsY0LbLepD9Fbe6tvF8V89780OiPfzV7AKDUnpd6qXQ/s1600/family111_f.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 250px; height: 250px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEh0Omm87cS8rGqOxE5OhsfckdXlAGIVkkQLHt4x_CV6eMItguxErPB6kl1u399dPqgNC0gcGcUk3W9IXliTqVTIU2zNa8kwV2P-IsY0LbLepD9Fbe6tvF8V89780OiPfzV7AKDUnpd6qXQ/s400/family111_f.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5534251415823374786" /></a><br />हाल ही में हुए अध्ययन में अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना के ड्यूक विश्वविद्यालय के शोधकर्ता डैन एरीली ने कहा है कि लंबी छुट्टियों से बेहतर छोटी छुट्टियां होती हैं। अगर आप अपने जीवन में खुशहाली और यादों को संजोना चाहते हैं तो लंबे अवकाश पर न जाकर थोड़े-थोड़े अंतराल पर कम दिनों का अवकाश लें। क्योंकि कम दिनों के अवकाश की ज्यादातर यादें खुशनुमा होती हैं। अंतिम दिनों तक उत्साह बना रहता है।<br /><br />लंबे अवकाश के दौरान पहला दिन सातवें दिन की अपेक्षा ज्यादा अच्छा होता है क्योंकि सातवें दिन तक उत्साह कम हो जाता है। लोगों को रूटीन लाइफ की आदत होती है। ऐसे में जब वे लंबी छुट्टियों पर जाते हैं तो उन्हें कुछ दिन बाद ही ऊब होने लगती है।<br /><br />शोधकर्ताओं का कहना है कि साल में चार बार अवकाश पर जाना ज्यादा अच्छा है। एक सप्ताह के अवकाश में उतनी खुशियां नहीं मिलतीं जितनी कि तीन चार दिन के अवकाश में मिलती है।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-7362490030313818912010-09-29T22:24:00.000+05:302010-09-29T22:25:32.828+05:30कहानी<strong>दोस्ती की परख</strong> <br />एक जंगल था । गाय, घोड़ा, गधा और बकरी वहाँ चरने आते थे । उन चारों में मित्रता हो गई । वे चरते-चरते आपस में कहानियाँ कहा करते थे । पेड़ के नीचे एक खरगोश का घर था । एक दिन उसने उन चारों की मित्रता देखी ।<br />खरगोश पास जाकर कहने लगा - "तुम लोग मुझे भी मित्र बना लो ।"उन्होंने कहा - "अच्छा ।" तब खरगोश बहुत प्रसन्न हुआ । खरगोश हर रोज़ उनके पास आकर बैठ जाता । कहानियाँ सुनकर वह भी मन बहलाया करता था ।<br />एक दिन खरगोश उनके पास बैठा कहानियाँ सुन रहा था । अचानक शिकारी कुत्तों की आवाज़ सुनाई दी । खरगोश ने गाय से कहा - "तुम मुझे पीठ पर बिठा लो । जब शिकारी कुत्ते आएँ तो उन्हें सींगों से मारकर भगा देना ।"<br />गाय ने कहा - "मेरा तो अब घर जाने का समय हो गया है ।"तब खरगोश घोड़े के पास गया । कहने लगा - "बड़े भाई ! तुम मुझे पीठ पर बिठा लो और शिकारी कुत्तोँ से बचाओ । तुम तो एक दुलत्ती मारोगे तो कुत्ते भाग जाएँगे ।"घोड़े ने कहा - "मुझे बैठना नहीं आता । मैं तो खड़े-खड़े ही सोता हूँ । मेरी पीठ पर कैसे चढ़ोगे ? मेरे पाँव भी दुख रहे हैं । इन पर नई नाल चढ़ी हैं । मैं दुलत्ती कैसे मारूँगा ? तुम कोई और उपाय करो ।<br />तब खरगोश ने गधे के पास जाकर कहा - "मित्र गधे ! तुम मुझे शिकारी कुत्तों से बचा लो । मुझे पीठ पर बिठा लो । जब कुत्ते आएँ तो दुलत्ती झाड़कर उन्हें भगा देना ।"गधे ने कहा - "मैं घर जा रहा हूँ । समय हो गया है । अगर मैं समय पर न लौटा, तो कुम्हार डंडे मार-मार कर मेरा कचूमर निकाल देगा ।"तब खरगोश बकरी की तरफ़ चला । <br />बकरी ने दूर से ही कहा - "छोटे भैया ! इधर मत आना । मुझे शिकारी कुत्तों से बहुत डर लगता है । कहीं तुम्हारे साथ मैं भी न मारी जाऊँ ।"इतने में कुत्ते पास अ गए । खरगोश सिर पर पाँव रखकर भागा । कुत्ते इतनी तेज़ दौड़ न सके । खरगोश झाड़ी में जाकर छिप गया । वह मन में कहने लगा - "हमेशा अपने पर ही भरोसा करना चाहिए ।"<br />सीख - दोस्ती की परख मुसीबत मे ही होती है। दोस्ती की परख मुसीबत मे ही होती है। <br /><br /><strong>बोलने वाली मांद</strong> <br />किसी जंगल में एक शेर रहता था। एक बार वह दिन-भर भटकता रहा, किंतु भोजन के लिए कोई जानवर नहीं मिला। थककर वह एक गुफा के अंदर आकर बैठ गया। उसने सोचा कि रात में कोई न कोई जानवर इसमें अवश्य आएगा। आज उसे ही मारकर मैं अपनी भूख शांत करुँगा।<br />उस गुफा का मालिक एक सियार था। वह रात में लौटकर अपनी गुफा पर आया। उसने गुफा के अंदर जाते हुए शेर के पैरों के निशान देखे। उसने ध्यान से देखा। उसने अनुमान लगाया कि शेर अंदर तो गया, परंतु अंदर से बाहर नहीं आया है। वह समझ गया कि उसकी गुफा में कोई शेर छिपा बैठा है। <br />चतुर सियार ने तुरंत एक उपाय सोचा। वह गुफा के भीतर नहीं गया।उसने द्वार से आवाज लगाई- ‘ओ मेरी गुफा, तुम चुप क्यों हो? आज बोलती क्यों नहीं हो? जब भी मैं बाहर से आता हूँ, तुम मुझे बुलाती हो। आज तुम बोलती क्यों नहीं हो?’<br />गुफा में बैठे हुए शेर ने सोचा, ऐसा संभव है कि गुफा प्रतिदिन आवाज देकर सियार को बुलाती हो। आज यह मेरे भय के कारण मौन है। इसलिए आज मैं ही इसे आवाज देकर अंदर बुलाता हूँ। ऐसा सोचकर शेर ने अंदर से आवाज लगाई और कहा-‘आ जाओ मित्र, अंदर आ जाओ।’<br />आवाज सुनते ही सियार समझ गया कि अंदर शेर बैठा है। वह तुरंत वहाँ से भाग गया। और इस तरह सियार ने चालाकी से अपनी जान बचा ली।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-19346924118166186352010-09-11T22:29:00.001+05:302010-09-11T22:29:49.365+05:30श्रीगणेश कथा<strong>श्री गणेश जन्म कथा </strong><br />श्रीगणेश के जन्म की कथा भी निराली है। वराहपुराण के अनुसार भगवान शिव पंचतत्वों से बड़ी तल्लीनता से गणेश का निर्माण कर रहे थे। इस कारण गणेश अत्यंत रूपवान व विशिष्ट बन रहे थे। आकर्षण का केंद्र बन जाने के भय से सारे देवताओं में खलबली मच गई। इस भय को भाँप शिवजी ने बालक गणेश का पेट बड़ा कर दिया और सिर को गज का रूप दे दिया। <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVG-nCgsO7md1YlBmUa2XgOn-WPs_YrLmTIEljH1bfzVl8s8T22IoueoGaHHBuscN6Udc8OhMtvEzCX5THIH1wVIxoh2B-oR9kYeaMrIeMFu3OsawFIfJidANkXt8zf6jTq0kHHRuBwOms/s1600/ganesh-7.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 150px; height: 150px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhVG-nCgsO7md1YlBmUa2XgOn-WPs_YrLmTIEljH1bfzVl8s8T22IoueoGaHHBuscN6Udc8OhMtvEzCX5THIH1wVIxoh2B-oR9kYeaMrIeMFu3OsawFIfJidANkXt8zf6jTq0kHHRuBwOms/s400/ganesh-7.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5515699142225488354" /></a><br />दूसरी कथा शिवपुराण से है। इसके मुताबिक देवी पार्वती ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए। उन्होंने इस प्राणी को द्वारपाल बना कर बैठा दिया और किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश देते हुए स्नान करने चली गईं। संयोग से इसी दौरान भगवान शिव वहाँ आए। उन्होंने अंदर जाना चाहा, लेकिन बालक गणेश ने रोक दिया। नाराज शिवजी ने बालक गणेश को समझाया, लेकिन उन्होंने एक न सुनी। <br />क्रोधित शिवजी ने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। पार्वती को जब पता चला कि शिव ने गणेश का सिर काट दिया है, तो वे कुपित हुईं। पार्वती की नाराजगी दूर करने के लिए शिवजी ने गणेश के धड़ पर हाथी का मस्तक लगा कर जीवनदान दे दिया। तभी से शिवजी ने उन्हें तमाम सामर्थ्य और शक्तियाँ प्रदान करते हुए प्रथम पूज्य और गणों का देव बनाया। <br />सबक गणेश के पास हाथी का सिर, मोटा पेट और चूहा जैसा छोटा वाहन है, लेकिन इन समस्याओं के बाद भी वे विघ्नविनाशक, संकटमोचक की उपाधियों से नवाजे गए हैं। कारण यह है कि उन्होंने अपनी कमियों को कभी अपना नकारात्मक पक्ष नहीं बनने दिया, बल्कि अपनी ताकत बनाया। उनकी टेढ़ी-मेढ़ी सूंड बताती है कि सफलता का पथ सीधा नहीं है। <br />यहाँ दाएँ-बाएँ खोज करने पर ही सफलता और सच प्राप्त होगा। हाथी की भाँति चाल भले ही धीमी हो, लेकिन अपना पथ अपना लक्ष्य न भूलें। उनकी आँखें छोटी लेकिन पैनी है, यानी चीजों का सूक्ष्मता से विश्लेषण करना चाहिए। कान बड़े है यानी एक अच्छे श्रोता का गुण हम सबमें हमेशा होना चाहिए। <br /><br /><strong>श्री गणेशजी की आरती </strong><br /> <br />जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा<br />माता जाकी पार्वती पिता महादेवा ॥ जय...<br /><br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMoHW2stdfDpRrkit2EUfRO5r8h7tqUpJegR8bv8ANd91eCUmRivC6_snN54zuSQv29qRiiFdiiSMnTWIjGCi_dztfFF1ApNNqvf23k3xR3d39Z2M1TMfroIfkl4Kflod3zwlGhwbPGjKj/s1600/ganesh-8.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 155px; height: 174px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiMoHW2stdfDpRrkit2EUfRO5r8h7tqUpJegR8bv8ANd91eCUmRivC6_snN54zuSQv29qRiiFdiiSMnTWIjGCi_dztfFF1ApNNqvf23k3xR3d39Z2M1TMfroIfkl4Kflod3zwlGhwbPGjKj/s400/ganesh-8.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5515698991682314770" /></a><br />एक दन्त दयावन्त चार भुजा धारी।<br />माथे सिन्दूर सोहे मूसे की सवारी ॥ जय...<br /><br />अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।<br />बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया ॥ जय...<br /><br />हार चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा।<br />लड्डुअन का भोग लगे सन्त करें सेवा ॥ जय...<br /><br />दीनन की लाज रखो, शम्भु सुतकारी।<br />कामना को पूर्ण करो जाऊँ बलीहारी॥ जय...<br /> <br /><strong>आरती-2</strong><br /><br />सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची।<br />नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची।<br />सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची।<br />कंठी झळके माळ मुक्ताफळांची॥<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEip60sz6zFLlzl9Jyo_TOItWkhtgON50dl9wAXm3LhN_ikFFQgDHBcvVraNco0qCvBzWjGit0ifA1Qq26zqnPxWhgBIX1sgWdOAtGowy0JhgzwUTJcZ4zsm6rTDxEggkliFumIn5_VdldTq/s1600/ganesh-9.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEip60sz6zFLlzl9Jyo_TOItWkhtgON50dl9wAXm3LhN_ikFFQgDHBcvVraNco0qCvBzWjGit0ifA1Qq26zqnPxWhgBIX1sgWdOAtGowy0JhgzwUTJcZ4zsm6rTDxEggkliFumIn5_VdldTq/s400/ganesh-9.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5515698885731204242" /></a><br />जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती।<br />दर्शनमात्रे मन कामनांपुरती॥ जय देव...<br /><br />रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा।<br />चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा।<br />हिरेजड़ित मुकुट शोभतो बरा।<br />रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरीया॥ जय देव...<br /><br />लंबोदर पीतांबर फणीवर बंधना।<br />सरळ सोंड वक्रतुण्ड त्रिनयना।<br />दास रामाचा वाट पाहे सदना।<br />संकष्टी पावावें, निर्वाणी रक्षावे,<br />सुरवरवंदना॥ जय देव...<br /> <br /><strong>आरती-3</strong><br /><br /><br />शेंदुर लाल चढ़ायो अच्छा गजमुखको।<br />दोंदिल लाल बिराजे सुत गौरिहरको।<br />हाथ लिए गुडलद्दु साँई सुरवरको।<br />महिमा कहे न जाय लागत हूँ पादको ॥1॥<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibxFRgX-_X6AiMw5eryKMD4abm1jRbCdc1OGCavbDM6tpY2NcZ-w7VRLx8VoEAYS7O3Ativ_4uKl-5BfbTbqxcMaBcuHKILjizbd14I8cCPsk_y5Q_b6Vh-Hhginqv-8SmpQKioD0Evuo1/s1600/ganesh-10.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEibxFRgX-_X6AiMw5eryKMD4abm1jRbCdc1OGCavbDM6tpY2NcZ-w7VRLx8VoEAYS7O3Ativ_4uKl-5BfbTbqxcMaBcuHKILjizbd14I8cCPsk_y5Q_b6Vh-Hhginqv-8SmpQKioD0Evuo1/s400/ganesh-10.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5515698752688088098" /></a><br />जय जय जी गणराज विद्या सुखदाता।<br />धन्य तुम्हारा दर्शन मेरा मन रमता ॥धृ॥<br /><br />अष्टौ सिद्धि दासी संकटको बैरि।<br />विघ्नविनाशन मंगल मूरत अधिकारी।<br />कोटीसूरजप्रकाश ऐबी छबि तेरी।<br />गंडस्थलमदमस्तक झूले शशिबिहारि ॥2॥<br /><br />भावभगत से कोई शरणागत आवे।<br />संतत संपत सबही भरपूर पावे।<br />ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे।<br />गोसावीनंदन निशिदिन गुन गावे ॥3॥ <br /><br /><strong>आरती-4</strong><br /><br /><br />घालीन लोटांगण वंदीन चरण।<br />डोळ्यांनी पाहिन रूप तुझे ।<br />प्रेमें आलिंगीन आनंद पूजन।<br />भावे ओवाळिन म्हणे नामा॥<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgr2OXF1Y3WYvszAwPFjHyGgM-CjapTliRAkC4VhtnDZX8_KK9fR_EgLNsAAGLOi9F0qyaoqvoPIYULDQx_4tZY0WzA9DTc3Om5ZcSEZz-zdddbyIZ0Y1k9Z1JAXAEH6TMD8jZADximPslE/s1600/ganesh-11.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgr2OXF1Y3WYvszAwPFjHyGgM-CjapTliRAkC4VhtnDZX8_KK9fR_EgLNsAAGLOi9F0qyaoqvoPIYULDQx_4tZY0WzA9DTc3Om5ZcSEZz-zdddbyIZ0Y1k9Z1JAXAEH6TMD8jZADximPslE/s400/ganesh-11.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5515698609092136834" /></a><br />त्वमेव माता पिता त्वमेव।<br />त्वमेव बंधुः सखा त्वमेव।<br />त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव।<br />त्वमेव सर्वं मम देवदेव॥<br />कायेन वाचा मनसेंद्रियैर्वा।<br />बुध्यात्मना वा प्रकृति स्वभावत्।<br />करोमि यद्यत् सकलं परस्मै।<br />नारायणायेती समर्पयामि॥<br />अच्युतं केशवं राम नारायणम्।<br />कृष्णदामोदरं वासुदेवं भजे।<br />श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभम्।<br />जानकीनायकं रामचंद्रं भजे॥<br /><br /><strong>आरती-5</strong><br />जय गणेशाय नमः<br /><br />प्रारंभी विनती करू गणपती विद्यादयासागरा।<br />अज्ञानत्व हरोनी बुद्धि मती दे आराध्य मोरेश्वरा<br />चिंता, क्लेश, दरिद्र दुःख अवघे,<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVww0rqpQwYK0QNilcJJJBtmjlcBshwz6ggRf8LgvCZ5dpBUaU2Wa5QG3rX9ec9ph9RzmWlvmkDv1p4mrl7VSqbHLImuWmJSBpvioZAKU_Exux3QyByAUKY_lJwjaQBFi_fSzOOptH0Aom/s1600/ganesh-12.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 300px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVww0rqpQwYK0QNilcJJJBtmjlcBshwz6ggRf8LgvCZ5dpBUaU2Wa5QG3rX9ec9ph9RzmWlvmkDv1p4mrl7VSqbHLImuWmJSBpvioZAKU_Exux3QyByAUKY_lJwjaQBFi_fSzOOptH0Aom/s400/ganesh-12.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5515698461944464834" /></a><br />देशांतरा पाठवी।<br />हेरंबा गणनायका गजमुखा भक्तां बहू तोषवीं॥शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-54540192079787226022010-09-07T23:23:00.001+05:302010-09-07T23:23:50.082+05:30भगवान गणेश<strong>क्या दो देवता हैं गणेश और गणपति?</strong><br />हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रसंग है कि भगवान शिव के विवाह में सबसे पहले गणपति की पूजा हुई थी। यह सुनकर मन में यह जानने कि उत्सुकता होती है कि जब भगवान गणेश शिव-पार्वती के पुत्र हैं तो उनके विवाह के पहले ही उनकी पूजा कैसे की गई। लोक मान्यताओं में भी गणेश और गणपति को एक देवता के रुप में जाना जाता है। किंतु धर्म ग्रंथ में गणेश और गणपति को अलग-अलग रुप के बारे में बताया गया हैं। जानते हैं अंतर को - <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxENnG7vM_QA0jzRv6WZXvAEyF0fCHPpxoV6ZyAb72ilJG4egjkcRLyp_3GLpJS5ikrnDLak6zlL0RzPM6903f6k2FWFCGW37XHs4XVCBoT5BTnR2SRU_Acv8cVI3z4jI_vJ1vB6AL8ihs/s1600/ganpati_1.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 260px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhxENnG7vM_QA0jzRv6WZXvAEyF0fCHPpxoV6ZyAb72ilJG4egjkcRLyp_3GLpJS5ikrnDLak6zlL0RzPM6903f6k2FWFCGW37XHs4XVCBoT5BTnR2SRU_Acv8cVI3z4jI_vJ1vB6AL8ihs/s400/ganpati_1.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5514205492937118306" /></a><br />शास्त्रों के अनुसार गणेश का अर्थ है - जगत के सभी प्राणियों का ईश्वर या स्वामी। इसी तरह गणपति का मतलब होता है - गणों यानि देवताओं का मुखिया या रक्षक। <br />गणपति को शिव, विष्णु की तरह ही स्वयंभु, अजन्मा, अनादि और अनंत यानि जिनका न जन्म हुआ न ही अंत है, माना गया है। <br />श्री गणेश इन गणपति का ही अवतार हैं। जैसे पुराणों में विष्णु का अवतार राम, कृष्ण, नृसिंह का अवतार बताया गया है। वैसे ही गणपति, गणेश रुप में जन्में और अलग-अलग युगों में अलग-अलग रुपों में पूजित हुए। विनायक, मोरेश्वर, धूम्रकेतु, गजानन कृतयुग, त्रेतायुग में पूजित गणपति के ही रुप है। यही कारण है कि काल अन्तर से श्रीगणेश जन्म की भी अनेक कथाएं हैं।<br />सनातन धर्म में वैदिक काल से ही पांच देवों की पूजा लोकप्रिय है। इनमें गणपति पंच देवों में प्रमुख माने गए हैं। इन सब बातों में एक बात साफ है कि गणपति हो या गणेश वास्तव मे दोनों ही शक्ति का नाम है जो हर कार्य मे सिद्ध यानि कुशल और सफल बनाती है। <br /><br /><strong>ऐसा रुप क्यों है गणेश का?</strong><br /> <br />हर धार्मिक कर्म, पूजा, उपासना या शुभ और मंगल कार्यों में स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। लोक भाषा में यह मंगल का प्रतीक है। लेकिन यहां जानते हैं कि वास्तव में शुभ कार्यों में स्वस्तिक बनाने का क्या कारण है - <br />दरअसल धार्मिक नजरिए से स्वस्तिक भगवान श्री गणेश का साकार रुप है। इसमें बाएं भाग में गं बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्री गणेश का स्थान माना जाता है। इसकी आकृति में चार बिन्दियां भी बनाई जाती है। जिसमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानि कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है। <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3dwXisTK11sF8nceBQ_Z8ZR9yr2sdYKRHHhtz2qIyvH4lBNbDonWtVyZDNR2K_IOS1-sfHd1DW722h2wXy2-sc6iwzJ2OrQ5F93uNaWE7ChIWELkaaoJ6-mLm8iTEuMiXmJapR3bBYLZj/s1600/ganpati_2.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 260px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj3dwXisTK11sF8nceBQ_Z8ZR9yr2sdYKRHHhtz2qIyvH4lBNbDonWtVyZDNR2K_IOS1-sfHd1DW722h2wXy2-sc6iwzJ2OrQ5F93uNaWE7ChIWELkaaoJ6-mLm8iTEuMiXmJapR3bBYLZj/s400/ganpati_2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5514206019895265682" /></a><br />स्वस्तिक के भगवान गणेश का रुप होने का प्रमाण दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ माने जाने वाले वेदों में आए शांति पाठ से भी होती है, जो हर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में बोला जाता है। यह मंत्र है - <br />स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा: <br />स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु <br />इस मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है। जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ध्यान और आवाहन किया गया है। <br />इसमें व्यावहारिक जीवन का पक्ष खोजें तो पाते हैं कि जहां शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं स्वस्तिक का वास होता है सरल शब्दों में जहां परिवार, समाज या रिश्तों में प्यार, सुख, श्री, उमंग, उल्लास, सद्भाव, सुंदरता और विश्वास का भाव हो। वहीं सुख और सौभाग्य होता है। इसे ही जीवन पर श्री गणेश की कृपा माना जाता है यानि श्री गणेश वहीं बसते हैं। इसलिए श्रीगणेश को मंगलकारी देवता माना गया है। <br /><br /><strong>लाईफ बना दे ऐसी गणेश पूजा</strong><br />भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (इस बार 11 सितंबर) श्री गणेश का जन्मदिन होने से गणपति उपासना का विशेष महत्व है। इस विनायकी चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की प्रसन्नता के पूरी आस्था और श्रद्धा से व्रत, उपवास, पूजा-अर्चना की जाती है। जानते हैं इसी गणेश पूजा की सरल विधि - <br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRdQSUwC-mzck3e2F_n9MjDwVQ1pWAvE_94TbW1l2uAWsTglO723mSfsj-RJWg6lMWIchasYFEJsPIU6_p7fgkPl1Do2yfQBcNE4be4YlhF5ATMQkngYrVzqhZiPnh293tjBggXb6mmFgz/s1600/ganpati_3.jpg"><img style="float:right; margin:0 0 10px 10px;cursor:pointer; cursor:hand;width: 400px; height: 260px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRdQSUwC-mzck3e2F_n9MjDwVQ1pWAvE_94TbW1l2uAWsTglO723mSfsj-RJWg6lMWIchasYFEJsPIU6_p7fgkPl1Do2yfQBcNE4be4YlhF5ATMQkngYrVzqhZiPnh293tjBggXb6mmFgz/s400/ganpati_3.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5514206448494221538" /></a><br />- प्रात:काल स्नान एवं नित्यकर्म करें। <br />- मध्यान्ह के समय शुभ मुहूर्त देखकर अपनी शक्ति के सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा घर, कार्यालय या देवालय में स्थापित करें। <br />- श्रीगणेश पूजा स्वयं या फिर किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जिसमें संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। इस पूजन में भगवान श्री गणेश को सोलह प्रकार की पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। इनमें धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत के साथ विशेष रुप से सिंदूर, दूर्वा, लाल चंदन जरुर चढ़ाना चाहिए। <br />- पूजा में तुलसी दल भगवान श्री गणेश को नहीं चढ़ाना चाहिए। यह शास्त्रों में वर्जित बताया गया है। <br />- गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए 21 दुर्वा-दल चढ़ाएं।<br />ऊँ गणाधिपायनम:। ऊँ उमापुत्रायनम:। <br />ऊँ विघ्ननाशायनम:। ऊँ विनायकायनम:। <br />ऊँ ईशपुत्रायनम:। ऊँ सर्वसिद्धिप्रदायनम:। <br />ऊँ एकदन्तायनम:। ऊँ इभवक्त्रायनम:। <br />ऊँ मूषकवाहनायनम:। ऊँ कुमारगुरवेनम:। <br />- भगवान गणेश का मंत्र ओम गं गणपतये नम: बोलकर भी दुर्वा चढाएं। इस मंत्र का 108 बार जप भी करें। <br />- गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का ही भोग लगाना चाहिए। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण को दें। बाकी लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें।<br />- पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। यह स्त्रोत इस साईट पर उपलब्ध है। <br />- ब्राह्मण भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा भेंट करने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन ग्रहण कर सकते हैं। जहां तक संभव हो उपवास करें। <br />श्री गणेश की पूजा और आरती अगले दस दिनों तक पूरी श्रद्धा, भाव से करें। धार्मिक दृष्टि से श्री गणेश की ऐसी पूजा सभी भौतिक सुख, सफलता देने वाली होती है।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-58546136092405543482010-08-23T21:14:00.002+05:302010-08-23T21:21:13.008+05:30रक्षा बंधन<strong>रक्षा बंधन भाई बहन के रिश्ते की अलार्म क्लॉक </strong><br />रक्षाबंधन का यह पर्व आज पूरी दुनिया में मशहूर है। बाजार भी कई तरह के उपहारों से भरा पड़ा है। राखियां भी कई तरह के रंगबिरंगे रंगों से दुकानों में बंदनवार जैसे सजी हुई हैं। बहनें राखी तलाश रही हैं और भाई उपहार खोज रहे हैं। पर एक महत्वपूर्ण चीज जिसे खोजा जाना चाहिए था वह कोई नहीं खोज रहा जबकि असल में वही ज़रूरी है और वह ज़रूरी चीज़ है विश्वास और प्रेम। हम मंहगी राखियों और कीमती उपहारों से ज्यादा कुछ नहीं सोच रहे क्योंकि यह ही हमारे दिमाग में हावी हैं।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUOhu-wswDi4b15N0wPlSNJyDoG7pAPamXyVd7Bqe8uXDLQAZkD1DJjJj_ECOZ8pTDPQSkQ8gKV6PaKTKMSbKHaoOzYvhEryX9zrzowNtC3mETfFGEEsXgMlCSWu40tXh5pBK4VenxusY/s1600/2.jpg"><img style="display:block; margin:0px auto 10px; text-align:center;cursor:pointer; cursor:hand;width: 332px; height: 237px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgUOhu-wswDi4b15N0wPlSNJyDoG7pAPamXyVd7Bqe8uXDLQAZkD1DJjJj_ECOZ8pTDPQSkQ8gKV6PaKTKMSbKHaoOzYvhEryX9zrzowNtC3mETfFGEEsXgMlCSWu40tXh5pBK4VenxusY/s400/2.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5508633375729533026" /></a><br />विश्वास और प्रेम होता तो क्या कोई भाई अपनी बहन और उसके जीवनसाथी की जान ले सकता था? इज्जत के नाम पर हत्या का जो खेल लगातार चल रहा है वह थम न गया होता? क्या इन भाइयों की कलाई पर राखी नहीं सजी होगी या फिर इन्होंने कीमती उपहार नहीं दिए? सब कुछ हुआ पर विश्वास और प्रेम का रिश्ता न बन सका। रक्षाबंधन का दिन इसी विश्वास और प्रेम को कायम रखने के लिए मनाया जाता है एक तरह से यह भाई-बहन के रिश्ते की अलार्म क्लॉक है। ताकि रिश्ते हमेशा सजग रहें।<br /><br /><strong>धर्म और जाति से परे है रक्षाबंधन</strong><br />रक्षा बंधन का पर्व भाई और बहन के रिश्ते की डोर में बंधा सुरक्षा कवच है। यह रिश्ता धर्म की सीमाओं से भी परे है। इतिहास गवाह है कि हिंदू,मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी जैसे अलग-अलग धर्मों के बीच भी भाई और बहन के रिश्तों ने जन्म लिया और पूरे जीवनभर निभाया।<br /><br /><strong>दूर-दूर तक फैली है रिश्तों की डोर</strong><br />यह रिश्ता एक ही कोख से जन्म लेने वाले भाई- बहन के बीच जितना लोकप्रिय है उतना ही लोकप्रिय अंतरजातीय, अंतरदेशीय भाई बहन के बीच भी है। बहुत सारे अंचल ऐसे भी हैं जहां यह रिश्ते परस्पर फूल और मिठाई देकर तय होते हैं और इसे फूल पताना या सहया बनाना कहते हैं फूल माँ, फूल बाबा, फूल भाई, फूल बहन। झारखंड में इस तरह के रिश्तों का रिवाज है और यह रिश्ते हर पीढ़ी को निभाने होते हैं और लोग बहुत प्रेम के साथ यह रिश्ते निभाते हैं। फूल मां और फूल बहन के रिश्ते ऐसे गांवों में ज्यादा हैं,जहां अलग -अलग जातियों के लोग रहते हैं। रक्षाबंधन से लेकर शादी तक में रस्में निभाई जाती हैं। इस तरह से रिश्तों की यह बनावट हमारे समाज को मजबूत करती है और सांस्कृतिक विकास भी करती हैं।<br /><br /><strong>फिल्मों से लेकर सीरियल तक में है रक्षाबंधन का त्योहार</strong><br />इस थीम पर बनी फिल्में भी सुपरहिट रही। इन फिल्मों के गाने आज भी रक्षाबंधन के दिन एफएम से लेकर टीवी तक में देखे सुने जा सकते हैं। समय के साथ यह गाने अन्य गानों की तरह बासी नहीं हुए बल्कि आज भी इन गानों को सुनकर रिश्तों की मिठास का अनुभव होता है। इसकी वजह साफ हैं क्योंकि भाई-बहन के रिश्ते में किसी तीसरे की घुसपैठ की संभावना नहीं रहती। टीवी सीरियलों में भी भाई -बहन की जोड़ी यह त्योहार मनाती है।<br /><br /><strong>भाई-बहन की जोड़ी आदर्श</strong><br />परिवार की पूर्णता के लिए अभी भी भाई-बहन की जोड़ी आदर्श मानी जाती है। पहली बेटी है तो अभी भी लोग आर्शीवाद देते समय कहते हैं अब तो भाई आना चाहिए। कहने का अर्थ यह है कि भाई और बहन की जोड़ी समाज में परिवार की संपूर्णता के रूप में देखी जाती है। राखी के दिन बहन भी अपने भाई को उपहार<br />देती है।<br /><br /><strong>मौन भी हो जाते हैं रिश्ते</strong><br />आज से कुछ समय पहले रिश्तों में एक अजीब सा ठहराव आ गया था। मन की दूरियां भी बढ़ने लगी थी इसकी वजह यह थी कि आपस में संवाद नहीं हो पाता था। संवाद के साधनों में सिर्फ डाक सेवा थी टेलीफोन भी सबके घरों में नहीं थे। चिट्ठी में कितना लिख सकते हैं और उसके पहुंचने में भी समय लगता था। फिर भी उसका आसरा था। घर से दूर गया भाई एक ही चिट्ठी में सबको लिखता था। पर्सनल स्पेस कम था। पढ़ाई-लिखाई के लिए या फिर नौकरी के लिए निकला भाई काम में इतना व्यस्त हो जाता था कि उसे फुर्सत ही नहीं मिल पाती थी । यही वजह थी कि रिश्तों में दूरियां थी।<br /><br /><strong>तकनीक ने दिए रिश्तों को बोल</strong><br />उदारीकरण के बाद बदलाव आया। नई तकनीकि का विकास जोर शोर से शुरू हुआ लोगों के पास पैसा भी आया । हर किसी के घर में फोन में घंटियां बजने लगीं। इतना ही नहीं मोबाइल भी लोगों के हाथ में दिखाई देने लगे। शुरू में यह बहुत मंहगे थे पर धीरे-धीरे यह सस्ते हो गए और हर किसी के हाथ में आ गए। इसी के साथ कंप्यूटर की दुनिया में भी सभी का दखल होने लगा। छोटे से लेकर बड़े शहरों में कंप्यूटर सिखाने वाले इंस्टीटय़ूट दिखाई देने लगे और इस तरह संवाद के रास्ते भी खुल गए। रिश्ते मन के और करीब आ गए। फेस बुक, ट्विटर, ई-मेल ने रिश्तों का विकास किया।<br /> <br /><strong>बहनें करती हैं भाइयों के सपने पूरे</strong><br />बहुत बार जिंदगी में ऐसे भी मोड़ आते हैं,जो असहनीय होते हैं रिश्तों की डोर टूट जाती है। काम अधूरे रह जाते हैं। ऐसे में बहनें अपने भाई के द्वारा शुरू किए गए कार्यों को मंजिल तक पहुंचाती हैं। वह डॉक्टर बनती है, आईएएस बनती है। पर हर हाल में भाई का सपना पूरा करती हैं।<br /><br /><strong>बहनें बहनें भी बांधती हैं राखियां</strong><br />अपने ही बारे में बताती हूं। हम दो बहनें है। भाई की मृत्यु एक्सीडेंट से हो गई। एक्सीडेंट के बाद जब उसे अस्पताल ले जाया गया डॉक्टर ने केस हेंडिल करने में काफी समय लगा दिया। इससे उसका काफी खून बह गया और वह बच नहीं सका। मेरी दीदी तब बहुत ही छोटी थी और उसके लिए यह एक ऐसा घाव था जो कभी नहीं भर सकता था। उसके दिमाग में यह बात बैठ गई कि अगर डॉक्टर ने समय रहते उसे देख लिया होता तो मेरा भाई जिंदा रहता। उस छोटी सी बच्चाी ने उसी दिन खुद से वादा किया कि मैं बड़ी होकर डॉक्टर बनूंगी और मरीजों की सेवा करूंगी। आज वह डॉक्टर है और मरीजो ं की सेवा में जी-जान से जुटी है। मैं अपनी इसी दीदी को राखी बांधती हूं। क्योंकि मेरे लिए तो भाई भी वही है और दीदी भी।<br /><br /><strong>मुनाफा नहीं है रिश्ता</strong><br />भाई-बहन का रिश्ता मुनाफा नहीं है। रक्षाबंधन का पर्व प्रेम और सद्भावना का है पर हमने इसे मुनाफे से जोड़ दिया है। राखी के गिफ्ट ज्यादा पापुलर हो रहे हैं। और यह गिफ्ट भी काफी मंहगें हैं। रिश्तों में बाजार इस कदर हावी है कि रिश्ते का अर्थ उपहार की कीमत से देखा जा रहा है। बहनों को भी सोसायटी फोबिया है और वह भाई के उपहार को अपना स्टेटस सिंबल बना रही हैं। भाई की कुशल क्षेम पूछने के बजाए दोस्तों को इस बात को जानने की इच्छा होती है कि गिफ्ट क्या मिला? बहन की खुशी गिफ्ट के डिब्बे में कैद हो गई हैं। बाजार महिला के इसी मनोविज्ञान को भुना रहा है और काफी हद तक सफल भी है।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-79105477027722917952010-08-23T21:06:00.001+05:302010-08-23T21:22:23.770+05:30एहसान<strong>काबिले-ग़ौर है अंग्रेजी का औरतों पर एहसान</strong><br /> जाहिदा हिना <br /> दा पुरानी नहीं, बस सदी-सवा सदी पुरानी बात है, जब हमारे उपमहाद्वीप में क्या हिंदू, क्या मुस्लिम दोनों ही समाजों में लड़कियों की शिक्षा को बहुत बुरा समझा जाता था। कुछ लोगों का ख़्याल था कि लड़कियां पढ़-लिख कर बिगड़ जाएंगी। <br /><br />अंग्रेजी राज से लाख शिकायतों के बावजूद, हमारे उपमहाद्वीप की हिंदू और मुस्लिम औरतों पर उनका एहसान है कि उन्होंने उनकी तालीम पर जार दिया। 1787 में मद्रास के गवर्नर की बीवी लेडी कैंबल ने हिंदुस्तानी लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया और फिर यह बात इतनी आगे बढ़ी कि राजा राममोहन राय, शेख़ अब्दुल्ला, मौलवी मुमताज अली और दूसरे कई लोगों ने लड़कियों की शिक्षा को फैलाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। <br /><br />उस समय क्या हिंदू और क्या मुस्लिम दोनों ही तरफ़ के रूढ़िवादी लोगों की ओर से यह कहा जाता था कि लड़कियों की अंग्रेजी शिक्षा एक बुराई है, जो अंग्रेजी ने फैलाई है और जिसका मक़सद दोनों समाजों की लड़कियों का धर्म भ्रष्ट करना है। यह बुराई हमारे समाज में इस तेजी से फैली कि देखते ही देखते सिर्फ़ साहित्य के ही क्षेत्र में रुकैया सख़ावत हसमैन, सरोजिनी नायडू, शाइस्ता इकराम उल्लाह, कुर्रतुलऐन हैदर और आज की नस्ल की अरुंधति राय जैसी मशहूर लेखिकाएं पैदा हुईं, जिनका अंग्रेजी दुनिया में भी नाम है।<br /><br />एक तरफ़ उपमहाद्वीप की औरतों की साहित्य के क्षेत्र में यह सफलता, दूसरी तरफ़ सियासत है, तो इसमें विजय-लक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी, मिसेज बेनÊाीर भुट्टो के नाम सारी दुनिया में मशहूर हैं। इस व़क्त पाकिस्तान और हिंदुस्तान दोनों मुल्कों की स्पीकर महिलाएं ही हैं। <br /><br />इन सब बातों को देखते हुए इन उग्रवादियों और दहशतगर्दी पर हैरत होती है, जो पिछले आठ-दस वर्षो से पाकिस्तानी लड़कियों की तालीम के पीछे पड़े हुए हैं। स्वात, पेशावर और कई स्थानों पर अब तक लड़कियों के छह-सात सौ स्कूल बमों से उड़ाए जा चुके हैं या जला कर राख किए जा चुके हैं। बाज इलाकों में लोगों ने लड़कियों के स्कूल दोबारा बनाए, तो उन्हें फिर से तबाह कर दिया गया। बहुत से इलाक़ों से पढ़ने वाली औरतों के घरों पर ख़त भेजे गए कि अगर उन्होंने घर से बाहर क़दम निकाला, तो क़त्ल कर दिया जाएगा, उनके चेहरों पर तेजाब फेंक दिया जाएगा। और ऐसा करके दिखाया भी। इसके बावजूद पाकिस्तानी लड़कियां पढ़ रही हैं, पाकिस्तानी औरतें पढ़ रही हैं। <br /><br />जहां स्कूल दोबारा से नहीं बनाए जा सके, वहां खेमों (तंबू) में कई बड़े घरों में या खुले आसमान के नीचे पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला जारी है। पाकिस्तानी लड़कियों में तालीम के शौक़ का अंदाÊा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज से नहीं साल दर साल से स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में टॉप करती हैं, गोल्ड मैडल और छात्रवृत्तियां लेती हैं, जबकि उनमें से 90 प्रतिशत लड़कियां घर के काम भी करती हैं और उन्हें ऐसी बहुत सी सुविधाएं हासिल नहीं हैं, जो हमारे यहां आमतौर पर, लड़कों को उनका हक़ समझ कर दी जाती हैं।<br /><br />चंद ह़फ्तों पहले कराची में मैट्रिक साइंस का रिजल्ट आया है। इस इम्तिहान में 68 हजार लड़कों और 53 हजार लड़कियों ने हिस्सा लिया था। इनमें टॉप करने वाली तीनों लड़कियां थीं। 6500 लड़कियों ने ए-1 ग्रेड लिया है, जबकि ए ग्रेड लेने वाले लड़कों की तादाद 4000 थी। मैट्रिक ह्यूमनिटीज का रिजल्ट भी आया है। इसमें भी लड़कियों का प्रदर्शन लड़कों से बेहतर रहा है। इसी तरह लाहौर ग्राम स्कूल की लड़कियों ने नासा से जुड़े जॉनसन स्पेस सेंटर की तरफ़ से होने वाले मुक़ाबले में हिस्सा लिया। <br /><br />यह मुक़ाबला अंतरिक्ष में इंसानी बस्तियां बनाने की डिजाइन बनाने का था और इस मुक़ाबले में क्वालिफाई करने के लिए हिंदुस्तान में एशियन रीजनल मुक़ाबला हुआ था। जनवरी 2010 में हिंदुस्तान के शहर गुड़गांव में एशिया की 33 टीमों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया था, जिनमें से 15 टीमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान की थीं। इसका वर्णन बहुत विस्तृत है, इसीलिए इसमें जाने की बजाय मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि इसमें पाकिस्तानी लड़कियों ने कामयाबी हासिल की और उनके बनाई हुई डिजाइन विशेष रूप से स्वीकृत किए गए।<br /><br />इससे आप पाकिस्तानी लड़कियों और औरतों में तालीम के साथ-साथ साइंस और टेक्नोलॉजी के क्षेत्रों में आगे बढ़ने की ख्वाहिश का अंदाज लगा सकते हैं। उधर, लोग अभी कराची से इस्लामाबाद जाने वाली एयर बस के क्रैश का ही शोक माना रहे थे कि इस हादसे के बारे में दर्जनों अफ़वाहों का बाजार गर्म था कि हमारे दरिया गजबनाक हो कर उबल पड़े, बाढ़ हर साल आती है। इससे तबाही भी होती है, लेकिन इस रिकॉर्ड के साथ ही बहुत से बांध भी टूट गए, सैकड़ों, देहात और दर्जनों बड़े क़स्बों और छोटे शहरों को पानी अपने साथ बहा कर ले गया। <br /><br />सरकार यह कहती है कि अब तक बाढ़ से 25 लाख लोग बेघर हो चुके हैं। दो हजार से Êयादा लोगों की मौत हो चुकी है। लोग कहते हैं कि मरने और बेघर होने वालों की सही तादाद इससे कहीं जयादा है। आफ़त ने पिछले सात दिनों से कराची को घेर लिया है, शहर में बलवाई गोलियां बरसते घूम रहे हैं। प्रोविंशियल एसेंबली के एक मेंबर के क़त्ल के बाद पिछले दिनों में 50 लोग मार दिए गए। पब्लिक ट्रांसपोर्ट सड़कों से ग़ायब हैं। मैं जहां रहती हूं, वहां बलवे का इतना जार है कि इन फ्लैटों के दरवाजे पर लोग मारे गए और दो रातों से सिर्फ़ गोलियां चलने की आवाजे सुनाई दे रही हैं। <br /><strong> ई-1, जुनैद प्लाजा, राशिद मिन्हास रोड, गुलशन-ए-इक़बाल, ब्लॉक-6, कराची-75300 (पाकिस्तान)</strong>शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-58627325668599185732010-07-05T23:23:00.000+05:302010-07-05T23:26:01.042+05:30प्रेरक व्यक्तित्व<strong>हँसते-हँसते फाँसी चढ़ गए बांठिया </strong> <br /><br />भारत को आजादी यूँ ही नहीं मिली। इसके लिए कई लोगों ने अपनी कुरबानी दी थी, तब जाकर हिन्दुस्तान स्वतंत्र हुआ। इन महानायकों की अपनी विशेष भूमिका रही। ग्वालियर के ऐसे ही महानायक शहीद अमरचंद बांठिया ने अपना जीवन मातृभूमि के नाम समर्पित करते हुए हँसते-हँसते फाँसी के फंदे को अपने गले से लगा लिया। २२ जून को उनका बलिदान दिवस मनाया जाता है। इस अवसर पर कई कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं, पर जरूरत है इन कार्यक्रमों के साथ-साथ उन्हें सच्चे दिल से याद करने की।<br />कौन थे शहीद बांठिया<br />राजस्थान की राजपूतानी शौर्य भूमि में बीकानेर में शहीद अमरचंद बांठिया का जन्म 1793 में हुआ था। देश के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा शुरू से ही उनमें था। बाल्यकाल से ही अपने कार्यों से उन्होंने साबित कर दिया था कि देश की आन-बान और शान के लिए कुछ भी कर गुजरना है।<br />इतिहास में स्व. अमरचंद के बारे में बहुत ज्यादा जानकारी नहीं मिलती, लेकिन कहा जाता है कि पिता के व्यावसायिक घाटे ने बांठिया परिवार को राजस्थान से ग्वालियर कूच करने के लिए मजबूर कर दिया और यह परिवार सराफा बाजार में आकर बस गया। तत्कालीन ग्वालियर रियासत के महाराज ने उन्हें उनकी कीर्ति से प्रभावित होकर राजकोष का कोषाध्यक्ष बना दिया। <br />सन १८५७ के विद्रोह ने देश की चारों दिशाओं में विप्लव की चिंगारी पैदा कर दी थी। भारतीय सैनिकों के लिए आर्थिक संकट की घड़ी पैदा होने के कारण कोई तत्कालीन हल नजर नहीं आ रहा था। ऐसे समय शहीद बांठिया ने भामाशाह बनकर सैनिकों और क्रांतिकारियों के लिए पूरा राजकोष खोल दिया। यह धनराशि उन्होंने ८ जून १८५८ को उपलब्ध कराई। उनकी मदद के बल पर वीरांगना लक्ष्मीबाई दुश्मनों के छक्के छु़ड़ाने में सफल रहीं, लेकिन अँगरेज सरकार ने बांठिया के कृत्य को राजद्रोह माना और वीरांगना के शहीद होने के चार दिन बाद अमरचंद बांठिया को राजद्रोह के अपराध में सराफा में नीम के पेड़ पर फाँसी दे दी। अँगरेजों ने भले ही उन्हें फाँसी पर लटका दिया हो, पर उनका कार्य और शहादत हमेशा प्रेरणा देता रहेगा।<br />अब आधा ही बचा नीम का पेड़<br />सराफा बाजार में जिस नीम के पेड़ पर अमर शहीद को फांसी दी गई थी, उसे कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थ के चलते कुछ वर्षों पूर्व आधा कटवा दिया था, जिस वजह से ये पेड़ अब ठूँठ के रूप में आधा ही रह गया है।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-7609968222073963003.post-31819370822343065312010-07-05T23:19:00.000+05:302010-07-05T23:23:24.583+05:30कहानी<strong>बँटवारे का चक्कर </strong> <br />एक जंगल में एक सियार अपनी पत्नी के साथ रहता था। एक दिन उसकी पत्नी को ताजी मछली खाने की तीव्र इच्छा हुई। सियार अपनी पत्नी से वादा कर नदी किनारे पहुँचा, ताकि मछलियों का कुछ जुगाड़ किया जा सके। वह बहुत देर तक वहाँ मछलियों की तलाश करता रहा पर उसे कुछ दिखलाई नहीं पड़ा।<br /><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhElXhSJ8qxUD8VupQQjMzHTqWE409vzxCORbxGxo69QFf4XUkX5YmGainsOc8CEl_ZvK4XMApuh1mX0UxQyU21Rwhtsv98lL1U1U5FF2LMa35oFoE4qLWVQ7CAClREYx_TnnnV5OUEQpYK/s1600/bt.jpg"><img style="float:left; margin:0 10px 10px 0;cursor:pointer; cursor:hand;width: 152px; height: 400px;" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhElXhSJ8qxUD8VupQQjMzHTqWE409vzxCORbxGxo69QFf4XUkX5YmGainsOc8CEl_ZvK4XMApuh1mX0UxQyU21Rwhtsv98lL1U1U5FF2LMa35oFoE4qLWVQ7CAClREYx_TnnnV5OUEQpYK/s400/bt.jpg" border="0" alt=""id="BLOGGER_PHOTO_ID_5490481535296527682" /></a><br />तभी उसने वहाँ देखा कि दो ऊदबिलाव एक बड़ी मछली को नदी में से खींचकर बाहर ला रहे हैं। वह ऊदबिलावों के पास पहुँचा और उसने कहा- मित्रों, तुम दोनों ने मिलकर यह मछली पकड़ तो ली है, परंतु इसका बँटवारा तुम कैसे करोगे? ज्यादा अच्छा हो यदि तुम किसी तीसरे से इसका बँटवारा करवाओ।<br /><br />दोनों ऊदबिलावों को यह बात जम गई। आसपास कोई तीसरा था नहीं, लिहाजा उन्होंने सियार से ही बँटवारा करने को कहा। सियार तो पहले से ही इस बात की फिराक में था कि किसी तरह इन दोनों को मूर्ख बनाकर बँटवारे का मामला जमा दिया जाए। खैर सियार ने मछली के तीन हिस्से किए। सिर एक ऊदबिलाव को दिया। पूँछ दूसरे को। बीच का पूरा हिस्सा लेकर वह अपने घर की ओर चलने लगा। ऊदबिलावों ने उसे रोका और पूछा- अरे, ये क्या करते हो? तुम तो मछली का बँटवारा हम दोनों में कर रहे थे। <br /><br />सियार ने जवाब दिया- मूर्खों, तुम दोनों को बराबर का हिस्सा मिल चुका है। यह जो मैं ले जा रहा हूँ, वह तो मेरा मेहनताना है। यह कह कर वह मछली के बड़े हिस्से को लेकर चला गया। ऊदबिलावों ने अपना सिर धुन लिया। <br /><br />अगर वे बँटवारे के चक्कर में न पड़ते तो उन्हें मछली का सारा हिस्सा मिलता और इस तरह सियार मछली को हड़प नहीं भी नहीं पाता । तब दोनों ने तय किया कि भविष्य में वे किसी भी तीसरे के चक्कर में नहीं आएँगे।शेष नारायण बंछोरhttp://www.blogger.com/profile/17634766491535666484noreply@blogger.com0