शनिवार, 10 अप्रैल 2010

साहित्यिक कृतियां

रेन डांस
आज मिसेज वाधवा की नींद काफी सुबह होने के बाद भी पूरी नहीं हो रही थी। कालवेल की आवाज से सिर में दर्द होने लगा था। देर रात चली रेन डांस पार्टी की थकान पूरी तरह उतरी नहीं थी। आंखों को मलते हुए दरवाजे को खोला। नौकरानी कांताबाई ने तेजी के साथ प्रवेश किया- बीबी जी, आज आप बहुत देर तक सो रहीं हैं।.. तबियत तो ठीक है?
हां ठीक है,.. दरअसल कल रात क्लब की ओर से रेन डांस का आयोजन ताज होटल में किया गया था। रात को वापसी में बहुत देर हो गयी।

बीबी जी, उसमें क्या हुआ..?

मिसेज वाधवा बात करने के मूड में नहीं थीं। लेकिन कांताबाई को जानने की उत्सुकता ज्यादा थी।

रेन डांस में आदमी-औरत बरसात में भीगते पानी में साथ-साथ नाचते हैं।

अरे, बीबी जी, .. कल रात हम भी अपने आदमी के साथ रात भर बरसते पानी मा नाचते रहे। हम लोगन का सारा सामान इधर-उधर रखते सबेरा हो गया। खोली वाले सेठ से पहले कहा था बरसात के आवन से पहले छत बनवा देव। पानी बहुत आवत है। लेकिन वह सुनत ही नहीं..। इतना कहते हुए कांताबाई किचेन में जाकर बर्तन साफ करने लगीं।

मिसेज बाधवा कांता बाई के रेन डांस के मतलब की समझ के विषय में सोचते-सोचते वापस बेड में कब आ गयी। उसे पता ही नहीं चला।

जमाने से आगे की सोच रखती थी देविका रानी
हिंदी सिनेमा में महिलाओं की स्थिति मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाने वाली देविका रानी हिंदी सिनेमा में पहली सफल जोडी बनाने वाली अभिनेत्री थी जिन्हें ट्रैजिडी किंग दिलीप कुमार को सिनेमा की दुनिया में लाने का श्रेय हासिल है।
जिस दौर में फिल्मों में महिलाओं का काम करना समाज में अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था, उस समय देविका रानी ने न सिर्फ फिल्मों में महिलाओं को प्रमुख स्थान दिलाया बल्कि निजी जिंदगी में भी उन्होंने कई सामाजिक वर्जनाओं को खारिज कर नई पीढ़ी को संदेश दिया।

तीस मार्च 1908 को वाल्टेयर में पैदा हुई देविका रानी के ताल्लुकात नोबल पुरस्कार विजेता रवीन्द्र नाथ टैगोर के परिवार से था। उनकी मां टैगोर परिवार से थीं वहीं उनके पिता भी बंगाल के एक प्रतिष्ठित परिवार से थे। उनके पिता एम एन चौधरी अपने समय की प्रसिद्ध हस्तियों में से थे।

अपने समय से आगे की सोच रखने वाली देविका रानी शुरूआती शिक्षा के बाद आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चली गईं। वहां उन्होंने रॉयल एकेडमी आफ ड्रामेटिक आर्ट और रॉयल एकेडमी आफ म्यूजिक लंदन में अध्ययन किया। इसके अलावा देविका रानी ने आर्किटेक्चर, टेक्सटाइल डिजायन आदि की भी पढ़ाई की।

पढ़ाई के दौरान ही उनकी भेंट हिमंाशु राय से हुई। राय पहले से ही फिल्म निर्माण से जुड़े हुए थे। राय ने देविका रानी से अपनी फिल्मों का सेट डिजायन करने की पेशकश की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया और इस प्रकार वह फिल्मों से औपचारिक रूप से जुड़ गई।

जल्दी ही दोनों ने शादी कर ली और हिमांशु राय ने युवा पत्नी को अपनी फिल्म करमा में नायिका की भूमिका दी। यह फिल्म सफल रही और इसने अभिनेत्री देविका रानी को अभिनय के क्षेत्र में स्थापित कर दिया। अपने कुछ दृश्यों को लेकर यह फिल्म काफी चर्चित भी हुई थी।

बाद के दिनों में अशोक कुमार के साथ देविका रानी की जोड़ी बनी जो बेहद कामयाब रही। इस जोड़ी को हिंदी सिनेमा की शुरूआती सफल जोडि़यों में से एक गिना जाता है। अशोक कुमार के साथ उन्होंने कई फिल्में की जिनमें अछूत कन्या को सबसे अधिक सराहना और कामयाबी मिली। इस फिल्म में जाति प्रथा की कुरीति पर चोट किया गया था। इस फिल्म ने बाद के दिनों में कई फिल्मकारों को सामाजिक संदेश देने वाली फिल्में बनाने के लिए प्रेरित किया।

प्रचलित सामाजिक मान्यताओं को स्वीकार नहीं करने वाली देविका रानी के साथ किस्मत ने भी क्रूर मजाक किया और 1940 में हिमांशु राय का निधन हो गया। इस विपदा को भी साहस के साथ झेलकर उन्होंने पति के स्टूडियो बांबे टाकीज पर नियंत्रण के लिए संघर्ष किया। 1945 में उन्होंने रूसी चित्रकार स्वेतोस्लाव रोरिख से शादी कर स्थाई रूप से उनके साथ बेंगलूर में रहने लगी जहां वह 1994 में अपने निधन तक रही।

देविका रानी को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सहित दर्जनों सम्मान मिले। फिल्मों से अलग होने के बाद भी वह विभिन्न कलाओं से जुड़ी रहीं। वह नेशनल एकेडमी के अलावा ललित कला अकादमी, राष्ट्रीय हस्तशिल्प बोर्ड तथा भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद जैसी संस्थाओं से संबद्ध रहीं।

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