शुक्रवार, 30 अप्रैल 2010

कहानी

आदमी की परिभाषा

ढाई हजार वर्ष से भी अधिक पहले यूनान के एथेंस नगर में प्लेटो नाम के एक महान तर्कशास्त्री हुए। उनकी अपनी एकेडमी थी। जिसमें सैकड़ों विद्यार्थी तर्कशास्त्र की शिक्षा पाते थे। हमारे देश में प्लेटो के लिए अफलातून नाम प्रचलित है। यदि कोई व्यक्ति बहुत तर्क-वितर्क करके बहस करने लगता है तो लोग कहते हैं - 'अरे! तुम तो बड़े अफलातून हो गए हो जी।'

प्लेटो के समकालीन ही यूनान में डायोजनीज नाम के एक प्रसिद्ध संत भी थे। वे स्वभाव से बहुत ही मस्तमौला थे। एक दिन वे घूमते हुए प्लेटो की एकेडमी जा पहुँचे। कक्षा चल रही थी, प्लेटो अपने छात्रों को पढ़ा रहे थे। वे चुपचाप विद्यार्थियों के पीछे जाकर खड़े हो गए।

उसी समय एक विद्यार्थी ने खड़े होकर प्रश्न किया -
'श्रीमान आप आदमी की परिभाषा कैसे करेंगे?'
प्लेटो ने कुछ क्षण सोचा, फिर उत्तर दिया -
'आदमी बिना पंखों का दो पैरों वाला जानवर है।'
आदमी की यह परिभाषा सुनकर डायोजनीज खि‍लखिलाकर हँस पड़े। प्लेटो ने जब उनसे हँसने का कारण पूछा तो वे इतना ही बोले - 'अभी बताता हूँ।'
और तुरंत वहाँ से चले गए।

लेकिन डायोजनीज थोड़ी देर बाद ही लौट आए। अब उनके हाथों में एक मुर्गा था, जिसके पंख नोच लिए गए थे। उसे उन्होंने शिक्षक (प्लेटो) और विद्यार्थियों के बीच में खड़ा कर दिया। गंभीर स्वर से बोले - यही की है न आपने आदमी की परिभाषा। दो पैर का जानवर, बिना पंखों का।'

कक्षा में सन्नाटा छा गया। प्लेटो स्तब्ध से हो गए। कुछ विद्यार्थी धीरे-धीरे मुस्कुरा रहे थे। प्लेटो ने इस परिभाषा के लिए क्षमा माँगते हुए विनम्रतापूर्वक कहा - 'मैं दूसरी परिभाषा बनाऊँगा। मुझे थोड़ा समय चाहिए।'

बहुत अच्‍छा, जब दूसरी परिभाषा बना लो तो मुझे सूचित कर देना।' काफी दिनों तक प्लेटो दूसरी परिभाषा बनाने की कोशिश करते रहे परंतु वे ऐसी कोई परिभाषा नहीं बना सके, जो मनुष्य के सभी बाह्य और आंतरिक स्वरूप की सही-सही व्याख्‍या करती हो।

अंतत: परेशान होकर वे डायोजनीज के पास जा पहुँचे। क्षमा याचना करते हुए बोले - 'मैं आदमी की परिभाषा नहीं बना सका।'

यह सुनते ही डायोजनीज ने प्रसन्न होकर उन्हें गले से लगाते हुए कहा - बस, बस, मैं यही सुनना चाहता था। आदमी की परिभाषा बन भी नहीं सकती। क्योंकि परिभाषा के नियम तो होते हैं स्थिर, कठोर और मनुष्य का जीवन होता है तरल, बहते हुए पानी जैसा - क्षण-क्षण परिवर्तनशील। एक लहर दूसरी में बदलती रहती है।

इसलिए उसकी परिभाषा नहीं की जा सकती। वह अव्याख्‍य है।' कहते हैं, प्लेटो ने फिर दूसरी परिभाषा नहीं बनाई।

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