लड़े जब नैन ऑफिस में
अब से लगभग 15 बरस पहले ऑफिस प्रेम के कारण ट्रांसफर या नौकरी छोड़ने की नौबत आ जाती थी। लेकिन अब हालात काफी बदल गए हैं। मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि सब कुछ खुल्लम-खुल्ला हो रहा है। आपके दफ्तर के जो साथी प्रेम की पींगें ले रहे हैं वे सब कुछ छिपते-छिपाते करना चाहते हैं लेकिन कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपता।
आज बहुराष्ट्रीय कंपनियों के दफ्तरों खासकर कॉल सेंटर्स में जितने लड़के काम करते हैं तकरीबन उतनी ही लड़कियाँ भी नौकरी करती हैं। सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक एक-दूसरे का साथ होने का स्वाभाविक नतीजा दोस्ती है। हाल में किए गए एक सर्वे के अनुसार 58 प्रतिशत लोगों ने बताया कि वे ऑफिस प्रेम में या तो शामिल रहे हैं या ऐसा करने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। अन्य दस प्रतिशत ने कहा कि वे फिलहाल ऑफिस प्रेम की गिरफ्त में हैं।
ऑफिस रोमांस को समझने के भी कुछ नुस्खे हैं। अगर आप एक ऐसे बॉस हैं जिसे इन प्रेम प्रसंगों के चलते अपने लक्ष्य को हासिल करने में कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है तो ऐसे प्रेम प्रसंगों पर नजर रखने के लिए ऑफिस की इन गतिविधियों पर नजर रखें :
* जब दो लोग हर घंटे बाद कॉफी ब्रेक की जरूरत महसूस करें तो समझ लें कि दोनों के बीच कुछ हो रहा है।
* जब कर्मचारी कपड़े लैटेस्ट डिजाइन के और नए-नए पहनकर दफ्तर आने लगें और दिवाली या ईद आसपास न हो तो समझो प्रेम पर बहार आई हुई है।
* जब दो लोग साथ आते हों और साथ जाते हों तो यह महज इत्तेफाक नहीं है भले ही वे यह दिखाने की कोशिश कर रहे हों कि वे आपस में अजनबी हैं।
* जब बार-बार मोबाइल पर एसएमएस आने लगें या हर आधा घंटे बाद मैसेंजर एलर्ट ई-मेल का संकेत देता हो तो समझ लें दो दिल धड़क रहे हैं।
* जब आँखें आँखों को तलाश रही हों तो यह प्यार है।
सर्वे के नतीजों पर किसी को ताज्जुब नहीं हुआ है। जो लोग दफ्तर जाते हैं उन्हें अच्छी तरह मालूम है कि कार्यस्थल पर सोशल चैंजेस आ रहा है। खासकर इसलिए भी क्योंकि आज काम का भी दबाव है और करियर का भी, नतीजतन कर्मचारी ज्यादा से ज्यादा समय एक-दूसरे के साथ गुजार रहे हैं। ऐसे में प्रेम प्रसंगों की तादाद में इजाफा होना स्वाभाविक है। साथ काम करते समय एक-दूसरे को समझने का अच्छा मौका मिलता है। बेहतर आपसी समझ बन जाती है। एक-दूसरे के लिए सम्मान भी आ जाता है। ऐसे में कब प्यार अंकुरित हो जाए कुछ पता ही नहीं चलता।
बहरहाल ये ऑफिस रोमांस कॉल सेंटरों तक ही सीमित नहीं है। दरअसल हो यह रहा है कि हर दफ्तर में वर्क फोर्स कम उम्र की है। वे जिम्मेदारी की स्थिति में हैं, युवा हैं और अकेले हैं। कार्यस्थल पर उन्हें अपने जैसे ही दूसरे लोग मिलते हैं जिनकी दिलचस्पियाँ और पृष्ठभूमि भी उन जैसी ही होती हैं। ऐसे में यह बहुत प्राकृतिक प्रतीत होता है कि आपस में प्रेम संबंध विकसित हो जाएँ।
लेकिन सवाल यह है कि क्या सहकर्मी से व्यक्तिगत संबंध बनाना अच्छा विचार है। पुराने लोग तो यह सुझाव दिया करते थे कि दफ्तर की रोशनाई अपने कलम में न भरें। लेकिन यह सब जानते हुए अपने दिल पर काबू किसे रह पाता है। दरअसल मुसीबत उस समय खड़ी होती है जब संबंधों में खटास आ जाए और रिश्ते खराब अनुभव के साथ टूटें। इससे आपका काम भी प्रभावित होता है। अगर रिश्ते मर्यादित रहें तो हल्के-फुल्के रोमांस में कोई हर्ज नहीं। मनोविज्ञान कहता है ऐसे प्लेटोनिक लव से ताजगी मिलती है। लेकिन कुछ लड़के और लड़कियाँ खुलेपन की जिद में बदनामी की परवाह नहीं करते। यह सरासर गलत है क्योंकि ऑफिस आपका वर्किंग प्लेस है इसे लव स्पॉट ना बनाएँ। और जरूरी नहीं कि जीवन भर आपको यहीं नौकरी में रहना पड़े ऐसे में जब आप जॉब चैंज करेंगे तो आपकी बदनामी भी साथ जाएगी।
अगर एक-दूजे के प्रति गंभीर हैं तब तो इस रोमांस का स्वागत किया जाना चाहिए। मगर जब दो बच्चों के पिता कमसिनों के साथ नैन लड़ाए तो मामला शर्मनाक और चर्चा का विषय बनता है जिसमें बर्बादी सिर्फ लड़की की होती है। ऑफिस में इस नैन मटक्के को कोई हेल्दी रिलेशन नहीं मान सकता। खैर, सबकी अपनी लाइफ है बिंदास जिएँ लेकिन दूसरों की नजर में ना गिरें यह सावधानी भी आपको ही रखनी होगी।
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