शुक्रवार, 2 अप्रैल 2010

कहानी

एक चिड़िया की होली
एक दिन एक चिड़िया के मन में खयाल आया कि सारे लोग होली पर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं तो इस बार वह भी होली मनाएगी। चिड़िया ने पोखर में जाकर देखा तो पानी नहीं था। गर्मियों की शुरूआत में ही सूखे पोखर को देखकर चिड़िया को लगा कि रंग बने तो ऐसे जिन्हें छुड़ाने में ज्यादा पानी नहीं लगे तो अच्छा। अपना ही खयाल चिड़िया को जम गया कि वह वैसे रंग से होली नहीं खेलेगी जिससे सब खेलते हैं वह अपना रंग बनाएगी।

पर मुश्किल थी। चिड़िया के सामने मुश्किल यह थी कि वह रंग कहाँ से लाएगी। तभी उसे याद आई टेसू के पेड़ की। टेसू के पेड़ पर तो कितने ही रंग-बिरंगे फूल खिलते हैं। क्यों न टेसू (पलाश) के इन फूलों का रंग ले ले। चिड़िया ने टेसू के पास जाकर अपनी बात कही। एक भरे-पूरे पेड़ को अपने फूल देने में क्या हर्जा होता। उसने चिड़िया को टप्प से दो फूल दे दिए।

अब चिड़िया की रंग की दिक्कत भी दूर हो गई। उसने टेसू के फूलों को थोड़े से पानी में भिगोकर रंग बनाया। दूसरे दिन जब रंग बन गया तो चिड़िया बहुत खुश हुई। उसके रंग में से अच्छी महक भी आ रही थी। चिड़िया अब तैयार थी होली खेलने के लिए। अब चिड़िया चाहती थी कि वह जंगल से थोड़ी दूर रहने वाले किसान के बेटे पुन्नू को रंग लगाए।

पुन्नू को इसलिए क्योंकि वह चिड़िया के खाने के लिए कुछ अनाज के दाने बापू की नजर चुराकर बिखरा देता था। चिड़िया ने चोंच में थोड़ा सा रंग भरा और ले जाकर पुन्नू पर डाल दिया। पुन्नू को पता भी नहीं चला बस उसे इत्ता भर लगा कि उसके ऊपर कुछ गिरा है। उसने ऊपर देखा कि एक चिड़िया चहक रही है। पर चिड़िया इससे बहुत खुश होकर गा रही थी- होली है, भई होली है।
आखिर अँगूठी कहाँ गई
आज सुबह से ही घर में माँ की कर्कश आवाज सुनाई पड़ रही थी। छुनकी को अंदाज लग गया था कि जरूर कोई नुकसान हुआ होगा। जब भी छोटा या बड़ा नुकसान होता था माँ की खीझ इसी तरह ब़ढ़ जाती थी। छुनकी ऐसे मौके पर माँ ही हर बात सुन लेती थी। अगर उसे कुछ कहना होता तो माँ का गुस्सा ठंडा होने का इंतजार करती थी। पर आज माँ को गुस्सा किस बात पर आ रहा था? छुनकी ने कुछ पूछने के बजाय सुनकर अंदाज लगाना ठीक समझा। ऐसा करने से माँ के गुस्से की चपेट में आने की आशंका न्यून हो जाती थी।

उसने सुना कि माँ अपनी अँगूठी के बारे में बड़बड़ाती जा रही है। आगे उसने सुना कि माँ ने कल अँगूठी उतारकर टीवी वाले कमरे में रखी थी फिर पता नहीं कहाँ चली गई। मिल ही नहीं रही है। छुनकी ने कहा कि अब जब तक अँगूठी मिल नहीं जाती तब तक माँ उसी के बारे में बात करती रहेगी। तो छुनकी ने चुपचाप नाश्ता किया और अपनी सहेली के यहाँ चली गई। उसे मालूम था कि ऐसे समय यही सबसे अच्छा तरीका होता है। माँ को जब खोई अँगूठी वापस मिल जाएगी तो उनका मूड अच्छा हो जाएगा।

छुनकी जब दोपहर में लौटी तो माँ को वैसे ही पाया। तो इसका मतलब था कि माँ की खोज पूरी नहीं हुई है। छुनकी ने माँ से पूछा पर माँ तुमने अँगूठी रखी कहाँ थी? माँ ने कहा यही तो रखी थी टीवी वाले कमरे में और अब देखती हूँ तो मिल ही नहीं रही है। छुनकी ने भी माँ के साथ पूरा कमरा तलाशा पर कोई नतीजा नहीं। माँ ने बताया कि यह अँगूठी उनकी शादी की दूसरी सालगिरह पर छुनकी के पापा ने उन्हें दी थी और उन्हें यह बहुत प्रिय है। शाम तक अँगूठी नहीं मिली। माँ के सर में बहुत दर्द होने लगा।

पापा ऑफिस से लौटे तो उन्होंने ने भी पूरी बात सुनी। उनका कहना था कि पहले अच्छी तरह देखो, यहीं-कहीं रखने में आ गई होगी। छुनकी ने बताया कि पूरे घर में तो ढूँढ चुके हैं पर मिल ही नहीं रही है। पापा ने कहा देखते हैं, और कहकर वे अपने काम में लग गए। मार्च और अप्रैल के महीने में उन पर काम का ज्यादा ही दबाव रहता है। तो काम करते कि अँगूठी ढूँढने लगते?

शाम को पड़ोस से लवलीन आंटी मिलने आई। लवलीन आंटी को छुनकी ने अँगूठी पुराण सुनाया। लवलीन आंटी को देखकर माँ के सर का दर्द कुछ कम हुआ और वे तुरंत बातचीत के लिए आ गई। लवलीन आंटी ने माँ को कहा- तुम काम वालों का बराबर ध्यान रखती हो या नहीं? माँ ने कहा पर हमारे यहाँ आने वाली बाई तो बहुत अच्छी है। पहले भी इसी तरह कई चीजें इधर-उधर रखने में आ गई थी उसी ने ढूँढकर दी। वह कभी ऐसा नहीं कर सकती। लवलीन आंटी ने कहा- अरे, आँख मींचकर इतना विश्वास भी मत करो। जब कोई चीज नहीं मिल रही है तो गायब होने से तो रही। हो न हो किसी ने चुराई होगी।

अभी पिछले दिनों मिसेज वर्मा के यहाँ दो हजार रु. गायब हो गए। और फिर उनके माली को पकड़ा तो उसने कबूला कि रुपए उसने ही चुराए थे। छुनकी बातें बड़े ध्यान से सुन रही थी। उसे लगा कि अभी कह दे कि राधा बुआ ऐसा काम कभी नहीं करेगी पर उसने चुप रहना ज्यादा ठीक समझा। लवलीन आंटी माँ के दिमाग में नई बात डालकर चली गई। माँ अँगूठी नहीं मिलने से पूरे दिन परेशान रही। पर दिन तो बीत गया। अब रात को भी अँगूठी माँ को परेशान किए जा रही थी।

अगले दिन नल कम आए और माँ को गुस्सा करने का एक मौका मिल गया। दरअसल नल कम आने पर कम पानी से साथ काम चल जाता है पर जब तक नल कम आने की बात सदन में गूँजे नहीं, तो घर में पता कैसे चलेगा कि आज नल कम आए हैं।

पिताजी तो दूसरे दिन ज्यादा काम का कहकर जल्दी दफ्तर चले गए। अब माँ को अँगूठी न मिलने और नल कम आने दोनों बातें परेशान कर रही थीं। छुनकी को याद आया कि कल टीवी पर प्रवचन देते हुए बाबाजी कह रहे थे कि जब गुस्सा ज्यादा आता है तो वह हमारे विवेक को नष्ट कर देता है।

छुनकी माँ को बाबा का यह उपदेश देती इसके पहले ही लवलीन आंटी आ पहुँची। लवलीन आंटी ने आकर बताया कि पास ही में राधेश्याम बाबा रहते हैं। वे तंत्र-मंत्र जानते हैं और खोई चीजों का पता बता देते हैं। माँ खोई अँगूठी के पते ‍के लिए उनके पास जाने को तैयार हो गई।
शाम का कार्यक्रम तय हो गया कि वे राधेश्याम बाबा के पास जाएँगे। छुनकी को यह बात रोमांचक लगी कि क्या वाकई बाबा खोई चीजों का पता बता देते हैं। अगर ऐसा हुआ तो दो साल पहले जो उसका फाउंटेन पेन गुम हुआ वह उसका पता भी पूछ लेगी।

घर आते हुए छुनकी के मन में एकता कपूर के सीरियल वाला 'क' घूम रहा था कि आखिर 'क' नाम का चोर कौन हो सकता है। उसे खुशी भी थी कि बाबा ने 'र' नहीं बताया वरना राधा बुआ पर आरोप लग सकता था।

बाबा की बात पर विचार होने लगा। माँ ने कहा - उन्हें तो पहले ही शक था कि यह दूधवाले कमलेश का ही काम हो सकता है। कल जब वह दूध देने आया था। माँ ने कहा - अब तो मुझे पक्का यकीन हो गया है। छुनकी सोच रही थी कि माँ को शक था तो फिर दो दिनों तक घर में अँगूठी क्यों ढूँढते रहे। पहले यह बात क्यों नहीं बताई। लवलीन आंटी ने कहा कि उन्हें कुछ काम है और अब वे घर जाएँगे। पर जाते-जाते वे यह कहना नहीं भूली कि राधेश्याम बाबा की कोई बात गलत नहीं होती। लोगों का उन पर बड़ा विश्वास है।

थोड़ी देर बाद पापा दफ्तर से आए। उन्हें भी यह बात बताई गई। उन्होंने कहा ‍कि किसी पर इस तरह का आरोप लगाने से पहले खुद थोड़ा तलाश कर लो तो ज्यादा अच्छा रहेगा। और अगर कमलेश के पास अँगूठी नहीं निकली तो? माँ ने कहा ‍कि उसका घर उत्तर दिशा में ही है और उसका नाम भी 'क' से शुरू होता है तो पक्का है कि वही चोर है। पिताजी ने कहा ठीक है पर यह साबित कैसे करेंगे कि अँगूठी उसी ने ली है। माँ ने कहा कि अगर पुलिस में शिकायत करें तो वह चोर से सच उगलवा लेती है।



और हाँ फ्रीज उत्तर दिशा में नहीं ‍बल्कि पूर्व दिशा में रखा था। छुनकी ने कहा - जय हो, राधेश्याम बाबा की। उनकी वजह से ही यह अँगूठी वापस मिल सकी है।



पिताजी ने माँ से कहा कि बिना बात के बेचारे दूधवाले को परेशान करना ठीक नहीं होगा और फिर 'क' अक्षर से तो माँ की सहेली किरण का भी नाम आता है और वह भी तो उत्तर दिशा में ही रहती है। अब माँ थोड़ा सा शांत हुई। वरना वे तो दूधवाले भैया को चोर मान ही बैठी थी। फिर भी माँ को शक तो था ही।

छुनकी इस पूरे दिन की दौड़-भाग में बहुत थक गई थी। तो उसने माँ से पूछा - माँ क्या मैं फ्रीज में रखी आइसक्रीम ले लूँ? ठीक है - माँ ने जवाब दिया। छुनकी ने आइसक्रीम लेने के लिए फ्रीज खोला और आइसक्रीम निकालते हुए उसके हाथ से बाजू में रखी एक कटोरी गिर गई।

कटोरी गिरते ही उसमें रखे धनिया पत्ती के साथ अँगूठी भी जमीन पर गिर पड़ी। छुनकी ने जयघोष किया - माँ अँगूठी! माँ तुरंत किचन में दौड़कर आई। पीछे-पीछे पिताजी भी। दोनों ने आकर देखा ‍कि जमीन पर अँगूठी पड़ी है। माँ ने तुरंत अँगूठी उठा ली। पिताजी ने कहा - लगता है कि दूधवाला पकड़े जाने के डर से अँगूठी आकर फ्रीज में रख गया। माँ बस हँस दी। और हाँ फ्रीज उत्तर दिशा में नहीं ‍बल्कि पूर्व दिशा में रखा था। छुनकी ने कहा - जय हो, राधेश्याम बाबा की। उनकी वजह से ही यह अँगूठी वापस मिल सकी है। माँ ने कहा कि चलो अब सोते हैं कल सुबह नल के लिए जल्दी उठना है। छुनकी तो अँगूठी मिलने की खुशी में आइसक्रीम खाकर ही सोई।

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