प्यार किया नहीं जाता...
प्यार क्या होता है, इस सवाल का जवाब मुझे नहीं मालूम था। स्कूल में सहेलियों की स्लैम बुक भरते समय अक्सर यह कॉलम खाली छोड़ दिया करती थी कि प्यार क्या होता है? काश, किसी किताब में प्यार की परिभाषा दी होती, तो मैं उसे रटकर याद कर लेती। फिर बड़ी आसानी से बताती कि प्यार क्या होता है। वैसे जब छोटी थी तो लगता था कि सोलह साल की उम्र में प्यार होता है। मैं भी सोलह साल की हुई पर मुझे तो नहीं हुआ।
जब सोलह साल की हुई तो बर्थ-डे विश करते समय कुछ लोगों ने कहा कि अहा, अब तो स्वीट सिक्स्टीन में आ गई हो। मुझे भी लगा कि स्वीट सिक्स्टीन यानी अब हमेशा से कुछ अलग होगा। ये क्या, अब भी कुछ अलग नहीं हुआ। सबकुछ वैसा ही चलता रहा जैसा था।
मस्ती तो हम क्लास में पहले भी करते थे। सोलह साल के होने के बाद भी करते रहे। बारहवीं की पढ़ाई करते-करते सोलहवाँ साल आधा बीत गया। सोलहवें साल में मैं स्कूल पास कर कॉलेज पहुँच गई। फिल्मों में देखा था कि कॉलेज में जाकर लड़कियों को प्यार हो जाता है। मुझे तो नहीं हुआ।
वैसे हमारी क्लास में प्यार करने वाले बहुत थे। सब उन्हें लव-बर्ड्स कहकर चिढ़ाया करते थे। यह सब देखने के बाद मैंने फैसला किया कि मैं कभी प्यार नहीं करूँगी और किया भी नहीं। सच कहूँ तो हुआ ही नहीं। फिर कभी प्यार के बारे में सोचा भी नहीं। कॉलेज खत्म होने तक स्लैम बुक के लव कॉलम भरने के लिए मेरे पास शानदार शब्द थे। लव मतलब बकवास, प्यार का मतलब होता है, टाइम वेस्ट।
समय बीतता गया और लव की फैन्टेसी दूर जाती रही। एक दिन ऑफिस में सीनियर ने विषय दे दिया कि प्यार पर लेख लिखो। जिसके लिए प्यार शब्द बकवास था, वो भला क्या लिखती? पर फिर भी काम टाला नहीं जा सकता था, इसलिए प्यार के बारे में सोचना शुरू किया।
याद आया कि एक कपल के इंटरव्यू के दौरान देखा था कि साठ वर्ष की उम्र वाले सज्जन कैंसर से लड़कर ठीक होने वाली अपनी पचपन साल की पत्नी को जीने का रास्ता दिखा रहे थे। वे अपनी पत्नी से बार-बार यही कहते कि तुम ठीक हो जाओ, फिर मुझे अपना एक वादा पूरा करना है। कौन-सा वादा बाकी है आपका? उनकी पत्नी ने पूछा, अरे भई तुम्हें योरप घुमाना है।
अब मुझे नहीं घूमना।
क्यों नहीं घूमना? मुझे पता है तुम्हें घूमना है, लेकिन तुम इस बीमारी से डर रही हो। इस बीमारी में इतनी ताकत नहीं है कि तुम्हें घूमने न दे।
जो लाड़ उस व्यक्ति की बातों में था, शायद उसे ही प्यार कहते हैं। याद आया, ऐसा प्यार तो मैंने सब्जी मंडी में भी देखा था।
सब्जी मंडी में एक डॉक्टर साहब अक्सर मिल जाते हैं। वो शहर के नामी डॉक्टर हैं। घर पर नौकर-चाकर जरूर होंगे। फिर हर दो-चार दिनों में जब मैं सब्जी खरीदने जाती हूँ, वो अपनी बीवी के साथ सब्जियाँ खरीदते हुए मिल जाते हैं। सब्जी का भरा हुआ झोला उनके कंधों पर टँगा रहता है। उनकी पत्नी केवल सब्जियाँ खरीदने में ही मगन रहती हैं। हमेशा से उन दोनों को यूँ साथ-साथ देखने की मेरी आदत हो गई थी। एक बार काम के सिलसिले में उनके क्लिनिक में मुलाकात हुई और जान-पहचान बढ़ गई।
इस परिचय के कुछ समय बाद एक दिन डॉक्टर साहब मंडी में अकेले ही सब्जियाँ खरीदते हुए नजर आए। उनका अभिवादन करते हुए मैंने सहज ही पूछ लिया कि आज आप अकेले कैसे? उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की तबीयत ठीक नहीं है।
वे बोले, सब्जियाँ छाँटने में मेरी मदद करो, मुझे सब्जी खरीदना नहीं आता है।
मैंने कहा, रोज सब्जी खरीदने के बाद भी आप कह रहे हैं कि आपको सब्जी खरीदना नहीं आता। 'मैं कहाँ खरीदता हूँ, वो खरीदती है।' '
पर, साथ तो आप भी रहते हैं न!
अपनी पत्नी की खुशी के लिए मैं कंधे पर झोला लटकाए आ जाता हूँ।
आपको झोला लटकाए देख वो खुश हो जाती है?
नहीं, मुझे झोला लटकाए देख वो खुश नहीं होती है। उसे सब्जियाँ खरीदने का शौक है। वो सब्जी खरीदकर खुश होती है, उसे खुश देखने के लिए मैं झोला टाँग लेता हूँ।
दरअसल, विनीता को पैरों में तकलीफ है। उसे अकेले सब्जी मंडी तक भेजने में मुझे डर लगता है। उसका एक ही शौक है। अब इस उम्र में वो कोई नया शौक तो पालने से रही। उसकी खुशी के लिए मैंने ही अपना टाइम मैनेज कर रखा है।
आपको अपनी पत्नी की इतनी फिक्र है। क्या आपकी लव मैरिज हुई थी?
अरे नहीं, हमारे समय में लव मैरिज नहीं होती थी।
फिर भी आप दोनों के बीच इतनी अच्छी अंडरस्टैंडिंग कैसे है?
किसने कहा, अच्छी अंडरस्टैंडिंग है। अक्सर वो मुझसे कहती है कि तुमने मेरे लिए क्या किया है? मैं धीरे से मुस्कुरा देता हूँ। उसे क्या पता, मैंने उसके लिए क्या किया है?
अब प्यार शब्द के मायने मुझे समझ आ रहे थे। जो समझ पाई, वो इतना ही कि प्यार को लिखा नहीं जा सकता, समझाया नहीं जा सकता, प्यार किया नहीं जा सकता, वह तो बस होता है या हो जाता है।
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