हँसी के फुव्वारे
फेरी वाला - चाकू छुरियाँ तेज करवा लो।
लल्लू - (हँसते हुए) - क्यों भाई, अक्ल भी तेज करते हो क्या?
फेरी वाला - क्यों नहीं, हो तो ले आइए।
ट्रेन में बैठे लल्लू से एक जवान लड़के ने टाइम पूछ लिया।
लल्लू बोले - देख भाई, मैं तुझे टाइम नहीं बताऊँगा क्योंकि अगर मैंने तुझे टाइम बताया तो हमारी जान-पहचान हो जाएगी और फिर अपनी दोस्ती हो जाएगी, तू मेरे घर के बारे में पूछेगा, फिर मैं तुझे अपनी जवान लड़की के बारे में बताऊँगा, फिण तू मेरे घर का पता लेगा और मेरे घर आएगा-जाएगा। मेरी लड़की तुझसे प्यार करने लगेगी और फिर तुम दोनों शादी करोगे... तो मैंने ऐसा दामाद कुएँ में फेंकना है जिसके पास अपनी घड़ी भी नहीं है।
दो वकील अदालत में बहस के दौरान व्यक्तिगत कटाक्षों पर उतर आए। एक ने कहा, 'तुम से बड़ा गधा मैंने आज तक नहीं देखा।'
दूसरे ने पलट कर कहा - 'मैंने भी आज तक तुमसे बड़ा गधा नहीं देखा।'
इस पर जज ने मेज पर हथौड़ा मारते हुए कहाँ 'आर्डर-आर्डर आप दोनों शायद भूल रहे हैं कि मैं भी यहाँ पर बैठा हुआ हूँ।'
लल्लू ने कल्लू से सवाल किया, 'एक आदमी पहली मंजिल से और एक आदमी दसवीं मंजिल से गिरता है दोनों में क्या फर्क है?'
लल्लू बोले, 'पहली मंजिल वाला पहले गिरेगा 'धम्म' और फिर करेगा आऽऽऽऽऽ और दसवीं मंजिल वाला पहले करेगा' आऽऽऽऽऽ और फिर गिरेगा धम्म'।
कल्लू - मुझे तो अँग्रेजी फिल्म का बेहद शौक है। जब टाईटैनिक फिल्म आई तो मैंने पाँच बार देखी। तुमने कितनी बार देखी?
लल्लू - मुझे तो एक बार में ही समझ में आ गई थी।
बीवी - तुम मोटे होते जा रहे हो।
लल्लू - तुम भी तो मोटी होती जा रही हो।
बीवी - पर मैं तो माँ बनने वाली हूँ।
लल्लू - तो मैं भी तो बाप बनने वाला हूँ।
रविवार, 31 जनवरी 2010
कहानी
शक्तियाँ
हर काम के लिए व्यक्ति के अंदर शक्ति का होना आवश्यक है। शक्ति दो प्रकार की होती है। शारीरिक तथा मानसिक। जो व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहता है उसके शरीर और मन दोनों में शक्ति होना आवश्यक है। शरीर की शक्ति आती है शरीर को स्वस्थ रखने से और शरीर को स्वस्थ रखने से और मन की शक्ति आती है सत्य के आचरण से। शरीर और मन दोनों की शक्तियाँ जब तक व्यक्ति में हों तभी तक वह सच्चे अर्थों में शक्तिशाली कहलाने का दावा कर सकता है। दोनों में से केवल एक ही शक्ति रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता।
कालू नाम का एक लड़का था। वह रोज नियमपूर्वक कसरत करता था, अच्छी तरह खाता-पीता था। अपने स्वास्थ्य का बहुत ही ध्यान रखता था, किंतु न तो वह पढ़ता-लिखता था, न ही ज्ञान-चर्चा करता था। बड़ा होने पर वह शरीर से हट्टा-कट्टा तो हुआ, परंतु मानसिक बल उसके पास कुछ नहीं था। लोगों को मारपीट की धमकी देकर ही उनसे रुपया-पैंसा ऐंठ लेता था और उसी से अपना काम चलाता था।
ऐसा करते-करते एक दिन वह डाकुओं के दल में जा मिला। पुलिस के डर से भयभीत वह हमेशा अपने आप को छिपाए-छिपाए रहता था। शरीर में इतना बल रखते हुए भी उसे एक दिन पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। क्या कालू को हम शक्तिशाली कह सकते हैं? नहीं, मानसिक बल न रहने के कारण उसका शारीरिक बल व्यर्थ ही नहीं गया, उसकी मृत्यु का कारण भी बना।
इसके विपरीत रामानुजम नाम का लड़का था। वह गणित में बहुत ही अधिक कुशल था। उसे केवल अपनी किताबों से ही प्रेम था। हिसाब बनाते-बनाते न उसे खाने-पीने की सुध रहती न अपने शरीर के आराम की। छोटी-सी उम्र में ही उसने बहुत कुछ जान लिया। यहाँ तक कि उसके एक अँगरेज प्रोफेसर उसे विश्वविख्यात कैंब्रिज विश्वविद्यालय में ले गए ताकि उसे गणित के अध्ययन में सुविधा हो। लेकिन निरंतर अवहेलना के कारण उसके शरीर का सारा बल जाता रहा था। उसे टीबी हो गई और 25 साल की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। वह संसार को बहुत कुछ दे सकता था, किंतु शरीर के बल के अभाव के कारण उसका जीवन एक प्रकार से व्यर्थ हो गया।
इन दो उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि शारीरिक और मानसिक बल एक-दूसरे के बिना निरर्थक हैं। शरीर में बल प्राप्त करने के लिए उसकी देखभाल बहुत आवश्यक है। जब तक बच्चा छोटा रहता है, उसका स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उसके माता-पिता पर रहती है। बड़े होने पर अपने शरीर की देखभाल स्वयं करना बहुत आवश्यक है। आरंभ से ही ठीक आदतें डालनी चाहिए। समय से खानापीना, सोना, खेलना शरीर के स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त भोजन को रुचि तथा प्रेम से करना भी बहुत आवश्यक है।
में नहीं जीभ में होता है। स्वस्थ आदमी जब क्षुधा के साथ भोजन पर बैठेगा तो परोसी हुई हर अच्छी वस्तु खाने की आदत डालना बहुत अच्छा रहता है। खाने-पीने की कुछ चीजें अवश्य ही हानिकारक हैं - जैसे सड़े-गले फल, सड़क पर बिकने वाली खुली भोजन सामग्री, बिना धुली गंदी चीजें, तंबाकू शराब इत्यादि। इन चीजों से दूर रहना ही श्रेयस्कर है। इसके अतिरिक्त नियमित रूप से कसरत करना, टहलना भी स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। शरीर भगवान की एक अनमोल देन है। उसे भगवान का वरदान मानकर हमेशा स्वस्थ, साफ-सुथरा और सुंदर रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, तभी शरीर में बल रहता है और तभी व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूरी तरह चेष्टा कर सकता है।
जो व्यक्ति शरीर की देखभाल नहीं करते, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं। शरीर की देखभाल का स्थान प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति की दिनचर्या में होना नितांत आवश्यक है।
स्वस्थ शरीर के बिना सफल जीवन की कामना करना व्यर्थ है। शरीर की शक्ति ही मन की विविध शक्तियों को कार्य रूप देने में सफल हो सकती है। स्वस्थ जीवन बल यही शरीर की एकमात्र शक्ति है, किंतु इसके विपरीत मन की शक्तियाँ ही कई प्रकार की होती हैं। उनके नाम हैं बुद्धि, दृढ़ता और कल्पना। ये शक्तियाँ सब व्यक्तियों में समान रूप से निहित नहीं होतीं, लेकिन न्यूनाधिक मात्रा में हर एक के पास विद्यमान रहती हैं। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति यदि चाहे तो इनका और अधिक विकास भी सहज ही कर सकता है।
मन के स्वास्थ्य के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है और साथ ही शरीर के स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना भी आवश्यक है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मन सूक्ष्म है, उसकी देखभाल करना शरीर की देखभाल करने की अपेक्षा अधिक कठिन है। इसलिए पहले शरीर को स्वस्थ बनाकर ही मन के स्वास्थ्य पर ध्यान देना उचित है। स्वस्थ मन वह है जिसकी बुद्धि हमेशा अच्छी बातों की प्रेरणा देती है तथा निरंतर ज्ञान के पथ पर अग्रसर होने की चेष्टा करती है। स्वस्थ मन की दृढ़ता व्यक्ति को उत्साहित रखती है और उसे अपने हर काम को पूरा करने में मदद देती है। स्वस्थ मन की कल्पना व्यक्ति को ऊँचा उठाने और अधिक अच्छा बनने में सतत सहायता करती है।
अस्वस्थ मन को बुद्धि बुरी दिशा की तरफ ले जाती है। अस्वस्थ मन में दृढ़ता होती ही नहीं और अस्वस्थ मन की कल्पना सदा भयावह होती है। बुद्धि दूसरों की बुराई सोचती है। दृढ़ता न रहने के कारण अस्वस्थ मन वाला व्यक्ति कोई भी काम नहीं कर पाता। उसकी कल्पना उसे असफलता तथा पतन की तस्वीरें ही उसके आगे प्रस्तुत करती है।
अब प्रश्न उठता है कि मन को स्वस्थ कैसे रखा जाए? मन को स्वस्थ रखने के लिए दो बातें बिल्कुल ही आवश्यक हैं। भगवान में दृढ़ विश्वास और सत्य का आचरण। भगवान में विश्वास न रहने पर व्यक्ति का जीवन अव्यवस्थित हो उठता है। उसे पता नहीं चलता कि वह जीवित ही क्यों है? ऐसे प्रश्न मन में उठकर उसे अशांत बना देते हैं और उसकी बुद्धि उद्भ्रांत-सी रहती है।
भगवान में विश्वास रखने वाला व्यक्ति यह जानता है कि भगवान ने उसे बनाया है, उसकी आत्मा भगवान का ही एक अंश है। भगवान ने उसे संसार में एक खास उद्देश्य से भेजा है - वह सुखी रहे, ज्ञान प्राप्त करे और अपने प्राप्त किए हुए ज्ञान को संसार को अच्छा करने में काम में लाए। ऐसा सोचने वाले व्यक्ति का मन सदा प्रसन्न, सदा शांत रहता है और अपने आप में वह शक्ति का अनुभव करता है। जो व्यक्ति यह जान लेता है कि वह एक उद्देश्य से संसार में आया है वह कभी भी बुरा आचरण नहीं करता है। सत्य को अपने जीवन की धुरी बनाकर वह हमेशा कठिन काम करता है।
अपना कर्तव्य भली-भाँति निभाता है और उसका मन सशक्त और प्रफुल्ल रहता है। मन में शक्ति रहने के कारण वह व्यक्ति समाज में सदा प्रतिष्ठित रहता है। दूसरे लोगों का श्रद्धा-पात्र रहता है।
स्वस्थ रखने के लिए मन पर नियंत्रण रखना भी बहुत आवश्यक है। आज के संसार में बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जो यह कहते हैं कि यदि भगवान ने हमें इच्छा, अभिलाषा, भावनाएँ, अनुभूतियाँ दी हैं तो हम उन्हें छिपाकर क्यों रखें? मन जो कहे वही करना उचित है। ऐसा करने वाले लोग मन और प्रवृत्तियों के अंतर को स्पष्ट नहीं समझ सकते हैं। हम किसी के घर जाते हैं, वहाँ कोई बड़ी लुभावनी वस्तु यदि हमारे सामने आए तो क्या उसे हम उठा लेंगे? नहीं, प्रवृत्ति कहती है, 'वह हमारी हो जाए' लेकिन मन कहता है, नहीं, वह किसी और की है, हम उसे नहीं ले सकते। बीमार रहने पर कई बार हमारी जीभ, हमारा स्वाद चाहता है कि अमुक वस्तु खाएँ, लेकिन मन समझाता है, 'नहीं, यह ठीक नहीं। इसे खा लेने पर हम और अधिक बीमार हो जाएँगे।
पुस्तक 'बच्चो अच्छे बनो' से।
नारदजी
एक बार नारदजी भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्ना हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था। वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- "आपको बाबूजी बुला रहे हैं।"
नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएँगे ही। जैसे हीएक बार नारदजी भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्ना हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था। वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- "आपको बाबूजी बुला रहे हैं।"
नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएँगे ही। जैसे ही नारदजी दुकान पर पहुँचे, वहाँ बैठा हुआ लाला बोल- "बाबा राधेश्याम! नारदजी ने सोचा, शायद किसी राधेश्याम के चक्कर में मुझे बुला लिया है। अतः वे बोले- "भैया क्षमा करना, मेरा नाम राधेश्याम नहीं है, मैं तो नारद हूँ। यह सुनकर लाला मुस्कुराकर बोला-"आप नारद हों या कोई और, मुझे इससे मतलब नहीं है, हाँ आप इस वीणा को मुझे बेच दो, मेरा लाडला वीणा चाहता है।
यह सुनते ही नारदजी के पैरों तले जमीन खिसक गई, वह तो इस आशा से दुकान पर आए थे कि कुछ आदर सत्कार होगा, किंतु यहाँ तो लेने के देने पड़ने लगे। वे बोले 'ना भैया यह वीणा बिकाऊ नहीं है। अपने लाड़ले सपूत को कोई दूसरी वीणा दिला दो।' इतना कहकर नारद जी जाने लगे तो दुकानदार कड़ककर बोला, 'देखो बाबा मेरे बच्चे के मन में ये वीणा बस गई है आप चाहे जितना पैसा ले लो, यह वीणा दे दो।'
अरे क्या कहते हो भैया तुम्हारे लड़के के मन में तो ये आज बसी है मेरे मन में तो सदैव से यही बसी हुई है। मैं इसे नहीं दूँगा मुझे रुपए पैसे से कोई मतलब नहीं है।' नारद जी ने कहा।
नारदजी के इस उत्तर से लाला जनभुन गया। उसने नारद जी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- 'शायद कहीं बाहर से आए हो बाबा?'
'हाँ भैया मैं देवलोक से आया हूँ।' नारद जी ने विनम्रता के साथ कहा। 'हुममम, तभी तो! वाराणसी में रहने का कब तक रहने का विचार है?' लाला ने घमंड के साथ पूछा। 'अब आ ही गया हूँ तो भगवान शिव की नहरी में दस-पाँच दिन घूमूँगा फिरूँगा।' नारद जी ने जवाब दिया। 'तो कान खोलकर सुन लो बाबा! आप इस वीणा को लेकर वाराणसी से वापस नहीं जा सकते। मुझे सेठ पकौड़ीलाल कहते हैं। मेरी शक्ति और सामर्थ्य के बारे में जानना हो तो किसी भी बनारसी से पूछ लेना।'
सेठ की बे सिर पैर की बाते सुनकर नारद जी को भी मजाक सूझा। वे बोले, 'हाँ तुम्हारी शक्ति का तो अंदाजा तुम्हारी मोटी तोंद से ही लग रहा है लेकिन शायद तुम्हारी बुद्धि तुम्हारी तोंद से भी मोटी है।' नारद जी के मुँह से ऐसा सुनकर से सेठ आग बबूला हो गया जैसे ही वह नारद जी पर ढपटा वे अंतर्ध्यान हो गए। लाला का पैर फिसला और वो धम्म से नीचे गिर पड़ा।
हर काम के लिए व्यक्ति के अंदर शक्ति का होना आवश्यक है। शक्ति दो प्रकार की होती है। शारीरिक तथा मानसिक। जो व्यक्ति जीवन में सफल होना चाहता है उसके शरीर और मन दोनों में शक्ति होना आवश्यक है। शरीर की शक्ति आती है शरीर को स्वस्थ रखने से और शरीर को स्वस्थ रखने से और मन की शक्ति आती है सत्य के आचरण से। शरीर और मन दोनों की शक्तियाँ जब तक व्यक्ति में हों तभी तक वह सच्चे अर्थों में शक्तिशाली कहलाने का दावा कर सकता है। दोनों में से केवल एक ही शक्ति रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में सफल नहीं हो सकता।
कालू नाम का एक लड़का था। वह रोज नियमपूर्वक कसरत करता था, अच्छी तरह खाता-पीता था। अपने स्वास्थ्य का बहुत ही ध्यान रखता था, किंतु न तो वह पढ़ता-लिखता था, न ही ज्ञान-चर्चा करता था। बड़ा होने पर वह शरीर से हट्टा-कट्टा तो हुआ, परंतु मानसिक बल उसके पास कुछ नहीं था। लोगों को मारपीट की धमकी देकर ही उनसे रुपया-पैंसा ऐंठ लेता था और उसी से अपना काम चलाता था।
ऐसा करते-करते एक दिन वह डाकुओं के दल में जा मिला। पुलिस के डर से भयभीत वह हमेशा अपने आप को छिपाए-छिपाए रहता था। शरीर में इतना बल रखते हुए भी उसे एक दिन पुलिस की गोली का शिकार होना पड़ा। क्या कालू को हम शक्तिशाली कह सकते हैं? नहीं, मानसिक बल न रहने के कारण उसका शारीरिक बल व्यर्थ ही नहीं गया, उसकी मृत्यु का कारण भी बना।
इसके विपरीत रामानुजम नाम का लड़का था। वह गणित में बहुत ही अधिक कुशल था। उसे केवल अपनी किताबों से ही प्रेम था। हिसाब बनाते-बनाते न उसे खाने-पीने की सुध रहती न अपने शरीर के आराम की। छोटी-सी उम्र में ही उसने बहुत कुछ जान लिया। यहाँ तक कि उसके एक अँगरेज प्रोफेसर उसे विश्वविख्यात कैंब्रिज विश्वविद्यालय में ले गए ताकि उसे गणित के अध्ययन में सुविधा हो। लेकिन निरंतर अवहेलना के कारण उसके शरीर का सारा बल जाता रहा था। उसे टीबी हो गई और 25 साल की आयु में उसकी मृत्यु हो गई। वह संसार को बहुत कुछ दे सकता था, किंतु शरीर के बल के अभाव के कारण उसका जीवन एक प्रकार से व्यर्थ हो गया।
इन दो उदाहरणों से स्पष्ट हो जाता है कि शारीरिक और मानसिक बल एक-दूसरे के बिना निरर्थक हैं। शरीर में बल प्राप्त करने के लिए उसकी देखभाल बहुत आवश्यक है। जब तक बच्चा छोटा रहता है, उसका स्वास्थ्य की जिम्मेदारी उसके माता-पिता पर रहती है। बड़े होने पर अपने शरीर की देखभाल स्वयं करना बहुत आवश्यक है। आरंभ से ही ठीक आदतें डालनी चाहिए। समय से खानापीना, सोना, खेलना शरीर के स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त भोजन को रुचि तथा प्रेम से करना भी बहुत आवश्यक है।
में नहीं जीभ में होता है। स्वस्थ आदमी जब क्षुधा के साथ भोजन पर बैठेगा तो परोसी हुई हर अच्छी वस्तु खाने की आदत डालना बहुत अच्छा रहता है। खाने-पीने की कुछ चीजें अवश्य ही हानिकारक हैं - जैसे सड़े-गले फल, सड़क पर बिकने वाली खुली भोजन सामग्री, बिना धुली गंदी चीजें, तंबाकू शराब इत्यादि। इन चीजों से दूर रहना ही श्रेयस्कर है। इसके अतिरिक्त नियमित रूप से कसरत करना, टहलना भी स्वास्थ्य के लिए अनिवार्य है। शरीर भगवान की एक अनमोल देन है। उसे भगवान का वरदान मानकर हमेशा स्वस्थ, साफ-सुथरा और सुंदर रखना प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है, तभी शरीर में बल रहता है और तभी व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पूरी तरह चेष्टा कर सकता है।
जो व्यक्ति शरीर की देखभाल नहीं करते, वे बहुत बड़ी भूल करते हैं। शरीर की देखभाल का स्थान प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति की दिनचर्या में होना नितांत आवश्यक है।
स्वस्थ शरीर के बिना सफल जीवन की कामना करना व्यर्थ है। शरीर की शक्ति ही मन की विविध शक्तियों को कार्य रूप देने में सफल हो सकती है। स्वस्थ जीवन बल यही शरीर की एकमात्र शक्ति है, किंतु इसके विपरीत मन की शक्तियाँ ही कई प्रकार की होती हैं। उनके नाम हैं बुद्धि, दृढ़ता और कल्पना। ये शक्तियाँ सब व्यक्तियों में समान रूप से निहित नहीं होतीं, लेकिन न्यूनाधिक मात्रा में हर एक के पास विद्यमान रहती हैं। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति यदि चाहे तो इनका और अधिक विकास भी सहज ही कर सकता है।
मन के स्वास्थ्य के लिए शरीर का स्वस्थ होना आवश्यक है और साथ ही शरीर के स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना भी आवश्यक है। दोनों ही एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मन सूक्ष्म है, उसकी देखभाल करना शरीर की देखभाल करने की अपेक्षा अधिक कठिन है। इसलिए पहले शरीर को स्वस्थ बनाकर ही मन के स्वास्थ्य पर ध्यान देना उचित है। स्वस्थ मन वह है जिसकी बुद्धि हमेशा अच्छी बातों की प्रेरणा देती है तथा निरंतर ज्ञान के पथ पर अग्रसर होने की चेष्टा करती है। स्वस्थ मन की दृढ़ता व्यक्ति को उत्साहित रखती है और उसे अपने हर काम को पूरा करने में मदद देती है। स्वस्थ मन की कल्पना व्यक्ति को ऊँचा उठाने और अधिक अच्छा बनने में सतत सहायता करती है।
अस्वस्थ मन को बुद्धि बुरी दिशा की तरफ ले जाती है। अस्वस्थ मन में दृढ़ता होती ही नहीं और अस्वस्थ मन की कल्पना सदा भयावह होती है। बुद्धि दूसरों की बुराई सोचती है। दृढ़ता न रहने के कारण अस्वस्थ मन वाला व्यक्ति कोई भी काम नहीं कर पाता। उसकी कल्पना उसे असफलता तथा पतन की तस्वीरें ही उसके आगे प्रस्तुत करती है।
अब प्रश्न उठता है कि मन को स्वस्थ कैसे रखा जाए? मन को स्वस्थ रखने के लिए दो बातें बिल्कुल ही आवश्यक हैं। भगवान में दृढ़ विश्वास और सत्य का आचरण। भगवान में विश्वास न रहने पर व्यक्ति का जीवन अव्यवस्थित हो उठता है। उसे पता नहीं चलता कि वह जीवित ही क्यों है? ऐसे प्रश्न मन में उठकर उसे अशांत बना देते हैं और उसकी बुद्धि उद्भ्रांत-सी रहती है।
भगवान में विश्वास रखने वाला व्यक्ति यह जानता है कि भगवान ने उसे बनाया है, उसकी आत्मा भगवान का ही एक अंश है। भगवान ने उसे संसार में एक खास उद्देश्य से भेजा है - वह सुखी रहे, ज्ञान प्राप्त करे और अपने प्राप्त किए हुए ज्ञान को संसार को अच्छा करने में काम में लाए। ऐसा सोचने वाले व्यक्ति का मन सदा प्रसन्न, सदा शांत रहता है और अपने आप में वह शक्ति का अनुभव करता है। जो व्यक्ति यह जान लेता है कि वह एक उद्देश्य से संसार में आया है वह कभी भी बुरा आचरण नहीं करता है। सत्य को अपने जीवन की धुरी बनाकर वह हमेशा कठिन काम करता है।
अपना कर्तव्य भली-भाँति निभाता है और उसका मन सशक्त और प्रफुल्ल रहता है। मन में शक्ति रहने के कारण वह व्यक्ति समाज में सदा प्रतिष्ठित रहता है। दूसरे लोगों का श्रद्धा-पात्र रहता है।
स्वस्थ रखने के लिए मन पर नियंत्रण रखना भी बहुत आवश्यक है। आज के संसार में बहुत सारे व्यक्ति ऐसे मिलेंगे जो यह कहते हैं कि यदि भगवान ने हमें इच्छा, अभिलाषा, भावनाएँ, अनुभूतियाँ दी हैं तो हम उन्हें छिपाकर क्यों रखें? मन जो कहे वही करना उचित है। ऐसा करने वाले लोग मन और प्रवृत्तियों के अंतर को स्पष्ट नहीं समझ सकते हैं। हम किसी के घर जाते हैं, वहाँ कोई बड़ी लुभावनी वस्तु यदि हमारे सामने आए तो क्या उसे हम उठा लेंगे? नहीं, प्रवृत्ति कहती है, 'वह हमारी हो जाए' लेकिन मन कहता है, नहीं, वह किसी और की है, हम उसे नहीं ले सकते। बीमार रहने पर कई बार हमारी जीभ, हमारा स्वाद चाहता है कि अमुक वस्तु खाएँ, लेकिन मन समझाता है, 'नहीं, यह ठीक नहीं। इसे खा लेने पर हम और अधिक बीमार हो जाएँगे।
पुस्तक 'बच्चो अच्छे बनो' से।
नारदजी
एक बार नारदजी भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्ना हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था। वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- "आपको बाबूजी बुला रहे हैं।"
नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएँगे ही। जैसे हीएक बार नारदजी भ्रमण करते हुए भगवान शिव की नगरी वाराणसी जा पहुँचे। नगरी के मनोरम दृश्य देखकर उनका मन प्रसन्ना हो गया। जब वे चौक बाजार से होकर जा रहे थे तो उनकी इच्छा तांबूल खाने की हुई। नारदजी को वाराणसी के पान की प्रसिद्धि का पता देवलोक में लग गया था इसलिए उनका पान खाने का बड़ा मन था। वे ललचाई नजरों से किसी पान वाले की दुकान की तलाश कर रहे थे। तभी एक लड़के ने आकर एक दुकान पर बैठे हुए मोटे लालाजी की ओर संकेत करते हुए नारदजी से कहा- "आपको बाबूजी बुला रहे हैं।"
नारदजी ने मन ही मन सोचा, लो अच्छा हुआ, बाबूजी अतिथि-सत्कार के तौर पर पान तो खिलाएँगे ही। जैसे ही नारदजी दुकान पर पहुँचे, वहाँ बैठा हुआ लाला बोल- "बाबा राधेश्याम! नारदजी ने सोचा, शायद किसी राधेश्याम के चक्कर में मुझे बुला लिया है। अतः वे बोले- "भैया क्षमा करना, मेरा नाम राधेश्याम नहीं है, मैं तो नारद हूँ। यह सुनकर लाला मुस्कुराकर बोला-"आप नारद हों या कोई और, मुझे इससे मतलब नहीं है, हाँ आप इस वीणा को मुझे बेच दो, मेरा लाडला वीणा चाहता है।
यह सुनते ही नारदजी के पैरों तले जमीन खिसक गई, वह तो इस आशा से दुकान पर आए थे कि कुछ आदर सत्कार होगा, किंतु यहाँ तो लेने के देने पड़ने लगे। वे बोले 'ना भैया यह वीणा बिकाऊ नहीं है। अपने लाड़ले सपूत को कोई दूसरी वीणा दिला दो।' इतना कहकर नारद जी जाने लगे तो दुकानदार कड़ककर बोला, 'देखो बाबा मेरे बच्चे के मन में ये वीणा बस गई है आप चाहे जितना पैसा ले लो, यह वीणा दे दो।'
अरे क्या कहते हो भैया तुम्हारे लड़के के मन में तो ये आज बसी है मेरे मन में तो सदैव से यही बसी हुई है। मैं इसे नहीं दूँगा मुझे रुपए पैसे से कोई मतलब नहीं है।' नारद जी ने कहा।
नारदजी के इस उत्तर से लाला जनभुन गया। उसने नारद जी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला- 'शायद कहीं बाहर से आए हो बाबा?'
'हाँ भैया मैं देवलोक से आया हूँ।' नारद जी ने विनम्रता के साथ कहा। 'हुममम, तभी तो! वाराणसी में रहने का कब तक रहने का विचार है?' लाला ने घमंड के साथ पूछा। 'अब आ ही गया हूँ तो भगवान शिव की नहरी में दस-पाँच दिन घूमूँगा फिरूँगा।' नारद जी ने जवाब दिया। 'तो कान खोलकर सुन लो बाबा! आप इस वीणा को लेकर वाराणसी से वापस नहीं जा सकते। मुझे सेठ पकौड़ीलाल कहते हैं। मेरी शक्ति और सामर्थ्य के बारे में जानना हो तो किसी भी बनारसी से पूछ लेना।'
सेठ की बे सिर पैर की बाते सुनकर नारद जी को भी मजाक सूझा। वे बोले, 'हाँ तुम्हारी शक्ति का तो अंदाजा तुम्हारी मोटी तोंद से ही लग रहा है लेकिन शायद तुम्हारी बुद्धि तुम्हारी तोंद से भी मोटी है।' नारद जी के मुँह से ऐसा सुनकर से सेठ आग बबूला हो गया जैसे ही वह नारद जी पर ढपटा वे अंतर्ध्यान हो गए। लाला का पैर फिसला और वो धम्म से नीचे गिर पड़ा।
विविध
इब्न बतूता, पहन के जूता...
एक यात्री, जो याद बन गया
रफीक विसाल
FILEसिर्फ इक्कीस बरस की उम्र में इब्न बतूता ने उत्तरी अफ्रीका के उत्तरी-पश्चिमी सिरे (मोरक्को) से जब 14 जून 1325 (02 रज्जब 225 हिजरी) को सफर की शुरुआत की तो ...उसे पता नहीं था कि उसकी मंजिल या रास्ते क्या होंगे। सिर्फ दिल में मक्का-मदीना की जियारत (दर्शन) करने की कोरी ख्वाहिश थी। जियारत और सियाहत (यात्रा) के इस जुनूनी शौक ने इब्न बतूता के नाम के साथ वह कारनामा चस्पाँ कर दिया कि आज भी उसका नाम लबों पर डोल जाता है। 24 फरवरी 1304 (14 रज्जब 703 हिजरी) में मराकिश (मोरक्को) के काजी खानदान में उनका जन्म हुआ। लंबे सफर के लिए मशहूर इब्न बतूता का पूरा नाम भी आम नामों की तुलना में काफी लंबा हैः इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अब्दुल्लाह। अपने समय के इस जाँबाज यात्री ने सिर्फ 28 साल की उम्र में 75 हजार मील का सफर तय किया था।
इब्न बतूता जब मोरक्को से रवाना हुआ था तो सिर्फ हज का इरादा था लेकिन सफर के रोमांच ने उसे आगे बढ़ने का हौंसला दिया। सऊदी अरब से पहले अलजीरिया, ट्यूनिशिया, मिस्र, फिलिस्तीन और सीरिया होते हुए एक बड़े कारवाँ के साथ वह मक्का पहुँचा। यहाँ की जियारतों ने उसके दिल में बह रहे ईमान के दरिया को नई लहरें दीं।
सऊदी अरब की यात्रा में ही बतूता का दो साधुओं से मिलना हुआ। इन साधुओं ने पूरब के मुल्कों की खूब तारीफें कीं। पूरब के बारे में सुनने के बाद उसे अंदाजा हो गया कि यह मजहब और ईमान के कद्रदानों की धरती है। उसने भारत के उत्तर-पश्चिम दरवाजे यानी अफगानिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश किया। उस वक्त दिल्लीClick here to see more news from this city में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की हुकूमत थी। तुगलक ने पहले से ही इब्न बतूता के बारे में सुन रखा था। दिल्ली पहुँचने पर बतूता की खूब खातिरदारी की गई और उसे कई तोहफों से नवाजा गया। बतूता को राजधानी के काजी-ए-आला का ओहदा सौंप दिया गया। तुगलक को बतूता के काम करने का अंदाज बहुत पसंद आया।
उसने 1342 में बतूता को अपना सफीर (दूत) बनाकर चीन के लिए रवाना किया। लेकिन चीन के रास्ते में उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसी सफर के दौरान वह मध्य भारत के मालवा होते हुए गोआ पहुँचा था और वहाँ से कालीकट तक पहुँचने में उसे पसीना आ गया था। आखिरकार तमाम मुश्किलों के बावजूद इब्न बतूता श्रीलंका और बंगाल की खाड़ी के मार्ग से चीन पहुँचने में कामयाब हो गया।
जिस दौर में इब्न बतूता आया तब पूरे अफ्रीका और भारतीय समुद्र मार्ग का पूरा कारोबार सौदागरों के ही हाथ में था। उसने इराक और ईरान में भी 1329 में काफी समय बिताया और फिर मक्का लौट आया। अपनी यात्रा के पड़ाव में तकरीबन तीन साल इब्न बतूता मक्का में ही रहा। यहीं रहते हुए जद्दाह पहुँचकर समुद्र के रास्ते यमन भी जाना हुआ। अदन से मुंबासा और पूर्वी अफ्रीका भी जाना हुआ। यहाँ पहुँचते बतूता काफी संपन्ना हो गया था क्योंकि वह जिस सल्तनत से गुजरता था, वहाँ के सुल्तान उसका सम्मान कर इनाम-इकराम से नवाजते थे।
तमाम सफर के बाद 1354 की शुरुआत में इब्न बतूता अपने देश मोरक्को पहुँचा। राजधानी फेज में उसका सम्मान किया गया क्योंकि इससे पहले किसी ने इतनी लंबी यात्रा नहीं की थी। फेज में सुल्तान अबू हन्नान के दरबार पहुँचकर अपना यात्रा वृतांत सुनाया तो सुल्तान ने अपने सचिव मुहम्मद इब्न जुजैय को इसे लिखने का आदेश दिया। इसके बाद पूरा समय बतूता का मोरक्को में ही बीता। 1377 (779 हिजरी) में बतूता का निधन हो गया।
FILEउसके पूरे सफरनामे को किताबी शक्ल दी गई। इस किताब को 'अजाइब अलअसफारनी गराइबुद्दयार' और ' तुहफतुल नज्जार फी गरायतब अल अमसार' के नाम से प्रकशित किया गया। इस किताब में मध्यकालीन भारत और विश्व के कई देशों के इतिहास और भौगोलिक परिस्थितियों का जिक्र है। इसकी पांडुलिपि पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित है। इस हस्तलिपि को दे फ्रेमरी और सांगिनेती ने संपादित किया है। यह हस्तलिपि 1836 में तांजियार में मिली थी। इसका फ्रेंच में चार खंडों अनुवाद किया गया है।
नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालनCute Vidya Balan Pics & Wallpapers अभिनीत ताजा फिल्म 'इश्किया' के गाने 'इब्न बतूता/ बग्ल में जूता/ पहने तो करता है चुर्र...उड़ उड़ आवे/दाना चुगे/उड़ जावे चिड़िया फुर्र...' ने इब्न बतूता का नाम हर खासो-आम की जबान पर ला दिया है। इस गीत को गुलजार साहब ने बड़ी खूबसूरती से लिखा है। हालाँकि बरसों पहले हिन्दी के ख्यातनाम कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता 'बतूता का जूता' काफी मकबूल हुई थी। हो सकता है गुलजार साहब के जहन में गीत लिखते हुए यह आ गई हो लेकिन गीत और कविता में काफी फर्क है।
बतूता का जूता
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में।
कभी नाक को, कभी कान को
मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता।
उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गए
मोची की दुकान में।
एक यात्री, जो याद बन गया
रफीक विसाल
FILEसिर्फ इक्कीस बरस की उम्र में इब्न बतूता ने उत्तरी अफ्रीका के उत्तरी-पश्चिमी सिरे (मोरक्को) से जब 14 जून 1325 (02 रज्जब 225 हिजरी) को सफर की शुरुआत की तो ...उसे पता नहीं था कि उसकी मंजिल या रास्ते क्या होंगे। सिर्फ दिल में मक्का-मदीना की जियारत (दर्शन) करने की कोरी ख्वाहिश थी। जियारत और सियाहत (यात्रा) के इस जुनूनी शौक ने इब्न बतूता के नाम के साथ वह कारनामा चस्पाँ कर दिया कि आज भी उसका नाम लबों पर डोल जाता है। 24 फरवरी 1304 (14 रज्जब 703 हिजरी) में मराकिश (मोरक्को) के काजी खानदान में उनका जन्म हुआ। लंबे सफर के लिए मशहूर इब्न बतूता का पूरा नाम भी आम नामों की तुलना में काफी लंबा हैः इब्न बतूता मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह बिन मुहम्मद बिन इब्राहीम अललवाती अलतंजी अबू अब्दुल्लाह। अपने समय के इस जाँबाज यात्री ने सिर्फ 28 साल की उम्र में 75 हजार मील का सफर तय किया था।
इब्न बतूता जब मोरक्को से रवाना हुआ था तो सिर्फ हज का इरादा था लेकिन सफर के रोमांच ने उसे आगे बढ़ने का हौंसला दिया। सऊदी अरब से पहले अलजीरिया, ट्यूनिशिया, मिस्र, फिलिस्तीन और सीरिया होते हुए एक बड़े कारवाँ के साथ वह मक्का पहुँचा। यहाँ की जियारतों ने उसके दिल में बह रहे ईमान के दरिया को नई लहरें दीं।
सऊदी अरब की यात्रा में ही बतूता का दो साधुओं से मिलना हुआ। इन साधुओं ने पूरब के मुल्कों की खूब तारीफें कीं। पूरब के बारे में सुनने के बाद उसे अंदाजा हो गया कि यह मजहब और ईमान के कद्रदानों की धरती है। उसने भारत के उत्तर-पश्चिम दरवाजे यानी अफगानिस्तान के रास्ते भारत में प्रवेश किया। उस वक्त दिल्लीClick here to see more news from this city में सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक की हुकूमत थी। तुगलक ने पहले से ही इब्न बतूता के बारे में सुन रखा था। दिल्ली पहुँचने पर बतूता की खूब खातिरदारी की गई और उसे कई तोहफों से नवाजा गया। बतूता को राजधानी के काजी-ए-आला का ओहदा सौंप दिया गया। तुगलक को बतूता के काम करने का अंदाज बहुत पसंद आया।
उसने 1342 में बतूता को अपना सफीर (दूत) बनाकर चीन के लिए रवाना किया। लेकिन चीन के रास्ते में उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इसी सफर के दौरान वह मध्य भारत के मालवा होते हुए गोआ पहुँचा था और वहाँ से कालीकट तक पहुँचने में उसे पसीना आ गया था। आखिरकार तमाम मुश्किलों के बावजूद इब्न बतूता श्रीलंका और बंगाल की खाड़ी के मार्ग से चीन पहुँचने में कामयाब हो गया।
जिस दौर में इब्न बतूता आया तब पूरे अफ्रीका और भारतीय समुद्र मार्ग का पूरा कारोबार सौदागरों के ही हाथ में था। उसने इराक और ईरान में भी 1329 में काफी समय बिताया और फिर मक्का लौट आया। अपनी यात्रा के पड़ाव में तकरीबन तीन साल इब्न बतूता मक्का में ही रहा। यहीं रहते हुए जद्दाह पहुँचकर समुद्र के रास्ते यमन भी जाना हुआ। अदन से मुंबासा और पूर्वी अफ्रीका भी जाना हुआ। यहाँ पहुँचते बतूता काफी संपन्ना हो गया था क्योंकि वह जिस सल्तनत से गुजरता था, वहाँ के सुल्तान उसका सम्मान कर इनाम-इकराम से नवाजते थे।
तमाम सफर के बाद 1354 की शुरुआत में इब्न बतूता अपने देश मोरक्को पहुँचा। राजधानी फेज में उसका सम्मान किया गया क्योंकि इससे पहले किसी ने इतनी लंबी यात्रा नहीं की थी। फेज में सुल्तान अबू हन्नान के दरबार पहुँचकर अपना यात्रा वृतांत सुनाया तो सुल्तान ने अपने सचिव मुहम्मद इब्न जुजैय को इसे लिखने का आदेश दिया। इसके बाद पूरा समय बतूता का मोरक्को में ही बीता। 1377 (779 हिजरी) में बतूता का निधन हो गया।
FILEउसके पूरे सफरनामे को किताबी शक्ल दी गई। इस किताब को 'अजाइब अलअसफारनी गराइबुद्दयार' और ' तुहफतुल नज्जार फी गरायतब अल अमसार' के नाम से प्रकशित किया गया। इस किताब में मध्यकालीन भारत और विश्व के कई देशों के इतिहास और भौगोलिक परिस्थितियों का जिक्र है। इसकी पांडुलिपि पेरिस के राष्ट्रीय पुस्तकालय में सुरक्षित है। इस हस्तलिपि को दे फ्रेमरी और सांगिनेती ने संपादित किया है। यह हस्तलिपि 1836 में तांजियार में मिली थी। इसका फ्रेंच में चार खंडों अनुवाद किया गया है।
नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालनCute Vidya Balan Pics & Wallpapers अभिनीत ताजा फिल्म 'इश्किया' के गाने 'इब्न बतूता/ बग्ल में जूता/ पहने तो करता है चुर्र...उड़ उड़ आवे/दाना चुगे/उड़ जावे चिड़िया फुर्र...' ने इब्न बतूता का नाम हर खासो-आम की जबान पर ला दिया है। इस गीत को गुलजार साहब ने बड़ी खूबसूरती से लिखा है। हालाँकि बरसों पहले हिन्दी के ख्यातनाम कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता 'बतूता का जूता' काफी मकबूल हुई थी। हो सकता है गुलजार साहब के जहन में गीत लिखते हुए यह आ गई हो लेकिन गीत और कविता में काफी फर्क है।
बतूता का जूता
इब्न बतूता पहन के जूता
निकल पड़े तूफान में
थोड़ी हवा नाक में घुस गई
घुस गई थोड़ी कान में।
कभी नाक को, कभी कान को
मलते इब्न बतूता
इसी बीच में निकल पड़ा
उनके पैरों का जूता।
उड़ते उड़ते जूता उनका
जा पहुँचा जापान में
इब्न बतूता खड़े रह गए
मोची की दुकान में।
शनिवार, 30 जनवरी 2010
अजब-गजब
जरूरी काम!
एक दिन एक अँगरेज राजदूत जर्मनी के महान नेता बिस्मार्क से मिलने आया। दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत होने लगी। इस बातचीत में बहुत समय लग गया। बातचीत और भी लंबी चलती जा रही थी। अचानक बीच में अँगरेज राजदूत ने बिस्मार्क से पूछा कि आपसे रोजाना सैकड़ों लोग मिलने आते हैं। इन मुलाकातों में तो आपका बहुत समय नष्ट हो जाता होगा?
बिस्मार्क ने जवाब दिया- मैंने इसके लिए एक तरीका अपना रखा है। जब भी मुझे लगता है कि कोई मेरा समय फिजूल नष्ट कर रहा है तो मेरा नौकर आकर मुझे कहता है कि मेरी पत्नी मुझे किसी बहुत जरूरी काम से बुला रही है। बिस्मार्क का यह कहना हुआ कि ठीक इसी समय बिस्मार्क का नौकर आया और उसने कहा- सर आपको मैडम किसी बहुत जरूरी काम से बुला रही है।
हैलो, कौन बोल रहा है...
पीटर गेम्बलिन के सेलफोन पर एक कॉल आया। सामने वाले ने पूछा कौन बोल रहा है। पीटर ने गर्व के साथ अपने फोन पर परिचय, पता और पहचान बता दी। यह सारी बातें कोर्ट में जज ने सुन ली और पुलिस को तुरंत पीटर को पकड़कर लाने को कहा। पीटर को जज ने पुलिस हिरासत में रखने को कहा और उसका नया साल भी वहीं मना।
दरअसल जब फोन चोरी के मामले में पहले पीटर से पुलिस ने पूछताछ की तो उसने कहा था कि इस चोरी से उसका क्या लेना-देना। जब चोरी हुई तब वह अपनी बहन के यहाँ था। तब कोर्ट के जज ने यह नया तरीका अपनाया और चोरी के मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए पीटर को पकड़ लिया।
एक दिन एक अँगरेज राजदूत जर्मनी के महान नेता बिस्मार्क से मिलने आया। दोनों के बीच विभिन्न मुद्दों पर बातचीत होने लगी। इस बातचीत में बहुत समय लग गया। बातचीत और भी लंबी चलती जा रही थी। अचानक बीच में अँगरेज राजदूत ने बिस्मार्क से पूछा कि आपसे रोजाना सैकड़ों लोग मिलने आते हैं। इन मुलाकातों में तो आपका बहुत समय नष्ट हो जाता होगा?
बिस्मार्क ने जवाब दिया- मैंने इसके लिए एक तरीका अपना रखा है। जब भी मुझे लगता है कि कोई मेरा समय फिजूल नष्ट कर रहा है तो मेरा नौकर आकर मुझे कहता है कि मेरी पत्नी मुझे किसी बहुत जरूरी काम से बुला रही है। बिस्मार्क का यह कहना हुआ कि ठीक इसी समय बिस्मार्क का नौकर आया और उसने कहा- सर आपको मैडम किसी बहुत जरूरी काम से बुला रही है।
हैलो, कौन बोल रहा है...
पीटर गेम्बलिन के सेलफोन पर एक कॉल आया। सामने वाले ने पूछा कौन बोल रहा है। पीटर ने गर्व के साथ अपने फोन पर परिचय, पता और पहचान बता दी। यह सारी बातें कोर्ट में जज ने सुन ली और पुलिस को तुरंत पीटर को पकड़कर लाने को कहा। पीटर को जज ने पुलिस हिरासत में रखने को कहा और उसका नया साल भी वहीं मना।
दरअसल जब फोन चोरी के मामले में पहले पीटर से पुलिस ने पूछताछ की तो उसने कहा था कि इस चोरी से उसका क्या लेना-देना। जब चोरी हुई तब वह अपनी बहन के यहाँ था। तब कोर्ट के जज ने यह नया तरीका अपनाया और चोरी के मोबाइल फोन का उपयोग करते हुए पीटर को पकड़ लिया।
कविता
यही अंदाज है मेरे जीने का
शशीन्द्र जलधारी
ये दिल सदा ढूँढता है हर इक पल खुशी का
अंदाज यही है मेरा अपना जीवन जीने का।
इस जहाँ में कौन किसी का दुख हरता है,
मुझे सुकूँ मिलता है अपना सुख बाँटने का।
बच्चों में भगवान बसते-यह सब कहते हैं,
मैं कोशिश करता हूँ, रोते बच्चे को हँसाने का।
स्पर्धा में हर कोई अव्वल रहना चाहता है।
दुख है मुझको काबिलियत के पिछड़ने का।
बस्ती में जब धर्म के नाम पर आग लगाई जाती,
कोफ्त होता है मुझे उनके इंसान होने का।
दिल किसी का टूटने पर दर्द मुझे होता है।
अच्छा नहीं लगता है मिलकर बिछड़ने का
सब जानते हैं खुदा एक है, रास्ते अलग-अलग
बंदों में नफरत देख, दिल रोता है भगवान का।
स्वार्थ की खातिर भूल जाए जो अपने ईमान को,
क्या फायदा है उनकी इस ऊँची पढ़ाई का।
गरीबों और यतीमों की करते नहीं हैं खिदमत,
कोई अर्थ नहीं है उनका रोज मंदिर जाने का।
सत्य, चरित्र और नैतिकता का पाठ भुला बैठे हैं,
क्या मतलब है निस दिन घंटों पोथी पढ़ने का।
झूठी शानो-शौकत के उजाले नहीं मुझे पसंद,
खूब रोशनी करता है घर में दीपक मिट्टी का।
झूठ फरेब के पकवानों में स्वाद नहीं आता,
भोजन मुझे सुहाता मेहनत की कमाई का।
शशीन्द्र जलधारी
ये दिल सदा ढूँढता है हर इक पल खुशी का
अंदाज यही है मेरा अपना जीवन जीने का।
इस जहाँ में कौन किसी का दुख हरता है,
मुझे सुकूँ मिलता है अपना सुख बाँटने का।
बच्चों में भगवान बसते-यह सब कहते हैं,
मैं कोशिश करता हूँ, रोते बच्चे को हँसाने का।
स्पर्धा में हर कोई अव्वल रहना चाहता है।
दुख है मुझको काबिलियत के पिछड़ने का।
बस्ती में जब धर्म के नाम पर आग लगाई जाती,
कोफ्त होता है मुझे उनके इंसान होने का।
दिल किसी का टूटने पर दर्द मुझे होता है।
अच्छा नहीं लगता है मिलकर बिछड़ने का
सब जानते हैं खुदा एक है, रास्ते अलग-अलग
बंदों में नफरत देख, दिल रोता है भगवान का।
स्वार्थ की खातिर भूल जाए जो अपने ईमान को,
क्या फायदा है उनकी इस ऊँची पढ़ाई का।
गरीबों और यतीमों की करते नहीं हैं खिदमत,
कोई अर्थ नहीं है उनका रोज मंदिर जाने का।
सत्य, चरित्र और नैतिकता का पाठ भुला बैठे हैं,
क्या मतलब है निस दिन घंटों पोथी पढ़ने का।
झूठी शानो-शौकत के उजाले नहीं मुझे पसंद,
खूब रोशनी करता है घर में दीपक मिट्टी का।
झूठ फरेब के पकवानों में स्वाद नहीं आता,
भोजन मुझे सुहाता मेहनत की कमाई का।
क्या तुम जानते हो?
जल्दी बोलो गुडनाइट!
यह कहना है विज्ञान के शोधार्थियों का। इनका कहना है कि जो बच्चे रात को जल्दी सो जाते हैं वे अगले दिन जल्दी काम शुरू कर सकते हैं और बेहतर काम करके बता सकते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि जल्दी सोने वालों को पूरी नींद लेने का मौका मिलता है और इससे उन्हें डिप्रेशन और सिरदर्द नहीं होता। इस अध्ययन के लेखक मानते हैं कि बच्चों और किशोरों के लिए पूरी नींद बहुत जरूरी होती है। इससे उनका मस्तिष्क स्वस्थ रहता है।
अमेरिका में हुए इस अध्ययन की बात सुनें तो यह कहता है कि बच्चों को रात १० बजे से पहले सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी जागना चाहिए। बहुत से बच्चे देर रात तक टीवी देखते रहते हैं या फिर पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं और अगले दिन जल्दी भी उठ जाते हैं। ऐसा करने से उनकी नींद पूरी नहीं होती है और अगले दिन वे पढ़ाई और दूसरे कामों को मन लगाकर नहीं कर पाते हैं। पढ़ाई में मन नहीं लगने से बच्चे पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं और फिर इससे बच्चों में डिप्रेशन आता है।
अध्ययन करने वाले कहते हैं कि बच्चों की नींद पूरी होना बहुत जरूरी है। किशोर अवस्था में ८ घंटे के करीब की नींद जरूरी होती है। वैसे अध्ययन करने वाले यह भी बताते हैं कि ८ घंटे की नींद पर्याप्त है और इससे ज्यादा सोना ठीक नहीं। अध्ययन करने वालों ने कुछ बच्चों से बातचीत के आधार पर उनके सोने का समय पता लगाया तो मालूम हुआ कि सप्ताह के बाकी दिनों में तो बच्चे ठीक समय पर सो जाते हैं पर वीकेंड में देर रात तक जागते हैं। इसके बाद शोधार्थियों का यही मानना था कि वीकेंड में भी बच्चों को जल्दी सोने की कोशिश करना चाहिए ताकि वे फ्रेश रहकर छुट्टी का ज्यादा आनंद ले सकें।
अध्ययनकर्ता मानते हैं कि जो बच्चे 11 बजे के आसपास सोते हैं उन्हें ज्यादा नींद की जरूरत होती है। इसी तरह देर रात को सोने वाले बच्चों को और भी ज्यादा नींद की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रात की नींद की पूर्ति दिन में सोने से नहीं हो पाती है क्योंकि लंबी नींद से शरीर को ज्यादा आराम मिलता है बजाय टुकड़ों में नींद लेने के।
नींद और उसका बच्चों और किशोरों पर प्रभाव का अध्ययन करने वाले इन शोधार्थियों का कहना है कि जिनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है वे अगले दिन के तनावों का ठीक तरह से सामना नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं किसी भी काम को करते हुए वे एकाग्र भी नहीं ही पाते हैं। साथ ही अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि नींद की कमी से शरीर में हारमोन्स का स्त्रावण भी प्रभावित होता है जो बढ़ते बच्चों के विकास पर सीधा असर डालता है। इसलिए जल्दी सोओ, जल्दी जागो और स्वस्थ रहो।
यह कहना है विज्ञान के शोधार्थियों का। इनका कहना है कि जो बच्चे रात को जल्दी सो जाते हैं वे अगले दिन जल्दी काम शुरू कर सकते हैं और बेहतर काम करके बता सकते हैं। इसके पीछे वजह यह है कि जल्दी सोने वालों को पूरी नींद लेने का मौका मिलता है और इससे उन्हें डिप्रेशन और सिरदर्द नहीं होता। इस अध्ययन के लेखक मानते हैं कि बच्चों और किशोरों के लिए पूरी नींद बहुत जरूरी होती है। इससे उनका मस्तिष्क स्वस्थ रहता है।
अमेरिका में हुए इस अध्ययन की बात सुनें तो यह कहता है कि बच्चों को रात १० बजे से पहले सो जाना चाहिए और सुबह जल्दी जागना चाहिए। बहुत से बच्चे देर रात तक टीवी देखते रहते हैं या फिर पढ़ाई में व्यस्त रहते हैं और अगले दिन जल्दी भी उठ जाते हैं। ऐसा करने से उनकी नींद पूरी नहीं होती है और अगले दिन वे पढ़ाई और दूसरे कामों को मन लगाकर नहीं कर पाते हैं। पढ़ाई में मन नहीं लगने से बच्चे पढ़ाई में पीछे रह जाते हैं और फिर इससे बच्चों में डिप्रेशन आता है।
अध्ययन करने वाले कहते हैं कि बच्चों की नींद पूरी होना बहुत जरूरी है। किशोर अवस्था में ८ घंटे के करीब की नींद जरूरी होती है। वैसे अध्ययन करने वाले यह भी बताते हैं कि ८ घंटे की नींद पर्याप्त है और इससे ज्यादा सोना ठीक नहीं। अध्ययन करने वालों ने कुछ बच्चों से बातचीत के आधार पर उनके सोने का समय पता लगाया तो मालूम हुआ कि सप्ताह के बाकी दिनों में तो बच्चे ठीक समय पर सो जाते हैं पर वीकेंड में देर रात तक जागते हैं। इसके बाद शोधार्थियों का यही मानना था कि वीकेंड में भी बच्चों को जल्दी सोने की कोशिश करना चाहिए ताकि वे फ्रेश रहकर छुट्टी का ज्यादा आनंद ले सकें।
अध्ययनकर्ता मानते हैं कि जो बच्चे 11 बजे के आसपास सोते हैं उन्हें ज्यादा नींद की जरूरत होती है। इसी तरह देर रात को सोने वाले बच्चों को और भी ज्यादा नींद की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि रात की नींद की पूर्ति दिन में सोने से नहीं हो पाती है क्योंकि लंबी नींद से शरीर को ज्यादा आराम मिलता है बजाय टुकड़ों में नींद लेने के।
नींद और उसका बच्चों और किशोरों पर प्रभाव का अध्ययन करने वाले इन शोधार्थियों का कहना है कि जिनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है वे अगले दिन के तनावों का ठीक तरह से सामना नहीं कर पाते हैं। इतना ही नहीं किसी भी काम को करते हुए वे एकाग्र भी नहीं ही पाते हैं। साथ ही अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि नींद की कमी से शरीर में हारमोन्स का स्त्रावण भी प्रभावित होता है जो बढ़ते बच्चों के विकास पर सीधा असर डालता है। इसलिए जल्दी सोओ, जल्दी जागो और स्वस्थ रहो।
कहानी
सरलता
ओमप्रकाश बंछोर
सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्ष में दो वृक्ष सन्निकट थे। एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था। पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था। चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र। यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।
कुठार लेकर एक बार लकड़हारे वन में घुस आए। चंदन का वृक्ष सहम गया। पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला - 'सीधे वृक्ष को काट दिया जाता है। ज्यादा सीधे व सरल रहने का जमाना नहीं है। टेढ़ी उँगली से घी निकलता है। देखो सरलता से तुम्हारे ऊपर संकट आ गया। मुझसे सब दूर ही रहते हैं।'
चंदन का वृक्ष धीरे से बोला - 'भाई संसार में जन्म लेने वाले सभी का अंतिम समय आता ही है। परंतु दुख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा। अब चलते हैं। मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे। मेरे न रहने का दुख मत करना। आशा करता हूँ सभी वृक्षों के साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे।'
लकड़हारों ने आठ-दस प्रहार किए चंदन उनके कुल्हाड़े को सुगंधित करता हुआ सद्गति को प्राप्त हुआ। उसकी लकड़ी ऊँचे दाम में बेची गई। भगवान की काष्ठ प्रतिमा बनाने वाले ने उसकी बाँके बिहारी की मूर्ति बनाकर बेच दी। मूर्ति प्रतिष्ठा के अवसर पर यज्ञ-हवन का आयोजन रखा गया। बड़ा उत्सव होने वाला था।
यज्ञीय समिधा (लकड़ी) की आवश्यकता थी। लकड़हारे उसी वन प्रांतर में प्रवेश कर उस पलाश को देखने लगा जो काँप रहा था। यमदूत आ पहुँचे। अपने पड़ोसी चंदन के वृक्ष की अंतिम बातें याद करते हुए पलाश परलोक सिधार गया। उसके छोटे-छोटे टुकड़े होकर यज्ञशाला में पहुँचे।
यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था। तोरण द्वार बना था। वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे। समिधा को पहचान कर काष्ट मूर्ति बन चंदन बोला - 'आओ मित्र! ईश्वर की इच्छा बड़ी बलवान है। फिर से तुम्हारा हमारा मिलन हो गया। अपने वन के वृक्षों का कुशल मंगल सुनाओ। मुझे वन की बहुत याद आती है। मंदिर में पंडित मंत्र पढ़ते हैं और मन में जंगल को याद करता हुआ रहता हूँ।
पलाश बोला - 'देखो, यज्ञ मंडप में यज्ञाग्नि प्रज्जवलित हो चुकी है। लगता है कुछ ही पल में राख हो जाऊँगा। अब नहीं मिल सकेंगे। मुझे भय लग रहा है। अब बिछड़ना ही पड़ेगा।'
चंदन ने कहा - 'भाई मैं सरल व सीधा था मुझे परमात्मा ने अपना आवास बनाकर धन्य कर दिया तुम्हारे लिए भी मैंने भगवान से प्रार्थना की थी अत: यज्ञीय कार्य में देह त्याग रहे हो। अन्यथा दावानल में जल मरते। सरलता भगवान को प्रिय है। अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोड़ना। सज्जन कठिनता में भी सरलता नहीं छोड़ते जबकि दुष्ट सरलता में भी कठोर हो जाते हैं। सरलता में तनाव नहीं रहता। तनाव से बचने का एक मात्र उपाय सरलता पूर्ण जीवन है।'
बाबा तुलसीदास के रामचरितमानस में भगवान ने स्वयं ही कहा है -
निरमल मन जन सो मोहिं पावा।
मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।।
अचानक पलाश का मुख एक आध्यात्मिक दीप्ति से चमक उठा।
सबसे अच्छा कौन?
शेष नारायण बंछोर
एक बार वीर वन में बंदरों ने सभी पशु-पक्षियों की एक विशाल सभा बुलाई जिसमें इस विषय पर चर्चा रखी गई कि दुनिया भर में सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी कौन सा है? दूर-दूर से पशु-पक्षी सभा में आए। काफी देर तक बहुत से वक्ताओं ने अपनी-अपनी राय जाहिर की।
गधा बोला - मेरे विचार से शेर सबसे सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली है। मेंढक बोला - व्हेल मछली सर्वश्रेष्ठ प्राणी है वह पानी के हर प्राणी से ताकतवर और विशालकाय है।
तोते ने अपनी राय दी कि खरगोश हम सबमें बुद्धिमान है उसने तो शेर तक को हरा रखा है इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है।
इस तरह लंबी चर्चा चली तब बंदर ने कहा - मेरे विचार में तो मनुष्य धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और मैं इस बात को सिद्ध कर सकता हूँ। सभी जानवर बोले - वो कैसे?
बंदर बोला - मनुष्य के पास विवेक है, भाषा ज्ञान है, ताकत है, बुद्धि है इसलिए उसी को सर्वश्रेष्ठ मानना उचित है।
सभी पशु-पक्षी इस बात पर सहमत हो गए किंतु कौओं का दल चुप था। बंदर ने कौओं के सरदार से कहा कि अगर वह इस निर्णय से सहमत नहीं हैं तो अपने विचार जरूर रखें क्योंकि यह खुला मंच है सबको बोलने की आजादी है। कौआ बोला - आप मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं परंतु हमारी राय में वह दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है। कौए के इतना कहते ही सारी सभा में खुसर-फुसर होने लगी। बंदर बोला - तुम स्वयं अधम हो इसलिए तुम्हें मनुष्य भी अधम लग रहा है किंतु सच यही है कि सर्वश्रेष्ठ तो मनुष्य ही है।
आखिर लंबे विवाद के बाद सभा खत्म हो गई और कौए के मत का सबने विरोध किया। कुछ दिनों पश्चात बंदर पेड़ पर आराम कर रहा था अचानक उसने देखा सामने से एक मनुष्य दौड़ता हुआ आ रहा है उसके पीछे शेर लगा है। आदमी ने पेड़ के नीचे आकर बंदर से कहा िक शेर उसकी जान ले लेगा। बंदर बोला - 'भाई! घबराओ मत! तुम मेरा हाथ पकड़कर मेरे पास आ जाओ।'
मनुष्य पेड़ पर चढ़ गया और बंदर के पास जाकर थर-थर काँपने लगा। बंदर ने उसे सांत्वना दी और शेर से कहा वह अब उसकी शरण में है शेर का भला इसी में है कि वह वापस चला जाए। शेर बोला 'बंदर! क्यूँ अपनी मुसीबत मोल ले रहे हो? इस आदमी को नीचे धक्का दे दे यह मेरा शिकार है।'
बंदर बोला - 'शेर! मैं शरण में आए की जान खतरे में नहीं डाल सकता।' शेर बोला - अरे मूर्ख बंदर! यह मनुष्य की जाति है और मनुष्य स्वार्थी होता है अब तू अपनी खैर मना।'
शेर पेड़ के नीचे ही बैठा रहा रात होने लगी बंदर को नींद लग गई तभी शेर बोला - 'ओ मनुष्य! तू क्या सोच रहा है? तुम दोनों में से एक को तो मुझे खाना ही है। तू बंदर को नीचे धक्का दे दे।
मनुष्य बोला - नहीं, नहीं इसने मुझे बचाया है। मैं इसे कैसे धक्का दे सकता हूँ?
शेर बोला - 'देख मानव! बंदर का तो आगे-पीछे कोई नहीं, अगर तू नहीं रहा तो मेरे घर वालों का क्या होगा? तेरा मकान, दुकान सब खत्म हो जाएगा। तू अपने बारे में सोच।' इतना कहते ही मनुष्य का स्वार्थ जाग उठा उसने तुरंत बंदर को पेड़ से धक्का दे दिया। गिरते हुए बंदर की नींद खुली और उसने पेड़ की डाल पकड़ ली।
लटके हुए बंदर को देख शेर ने उससे कहा - बंदर! देखी मानव की जात? मैंने पहले ही कहा था कि यह तुझे धोखा देगा। अभी भी वक्त है तू इस आदमी को नीचे धक्का दे दे?' परंतु बंदर अपनी बात पर अटल रहा बोला - मैं इसे नीचे धक्का नहीं दूँगा किंतु शेर मेरे भाई मैं अब पशु-पक्षियों की सभा दोबारा बुलाऊँगा और उसमें कौए की बात पर विचार गोष्ठी रखूँगा। सचमुच स्वार्थी मनुष्य दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है।'
सौजन्य से - देवपुत्र
ओमप्रकाश बंछोर
सतपुड़ा के वन प्रांत में अनेक प्रकार के वृक्ष में दो वृक्ष सन्निकट थे। एक सरल-सीधा चंदन का वृक्ष था दूसरा टेढ़ा-मेढ़ा पलाश का वृक्ष था। पलाश पर फूल थे। उसकी शोभा से वन भी शोभित था। चंदन का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार सरल तथा पलाश का स्वभाव अपनी आकृति के अनुसार वक्र और कुटिल था, पर थे दोनों पड़ोसी व मित्र। यद्यपि दोनों भिन्न स्वभाव के थे। परंतु दोनों का जन्म एक ही स्थान पर साथ ही हुआ था। अत: दोनों सखा थे।
कुठार लेकर एक बार लकड़हारे वन में घुस आए। चंदन का वृक्ष सहम गया। पलाश उसे भयभीत करते हुए बोला - 'सीधे वृक्ष को काट दिया जाता है। ज्यादा सीधे व सरल रहने का जमाना नहीं है। टेढ़ी उँगली से घी निकलता है। देखो सरलता से तुम्हारे ऊपर संकट आ गया। मुझसे सब दूर ही रहते हैं।'
चंदन का वृक्ष धीरे से बोला - 'भाई संसार में जन्म लेने वाले सभी का अंतिम समय आता ही है। परंतु दुख है कि तुमसे जाने कब मिलना होगा। अब चलते हैं। मुझे भूलना मत ईश्वर चाहेगा तो पुन: मिलेंगे। मेरे न रहने का दुख मत करना। आशा करता हूँ सभी वृक्षों के साथ तुम भी फलते-फूलते रहोगे।'
लकड़हारों ने आठ-दस प्रहार किए चंदन उनके कुल्हाड़े को सुगंधित करता हुआ सद्गति को प्राप्त हुआ। उसकी लकड़ी ऊँचे दाम में बेची गई। भगवान की काष्ठ प्रतिमा बनाने वाले ने उसकी बाँके बिहारी की मूर्ति बनाकर बेच दी। मूर्ति प्रतिष्ठा के अवसर पर यज्ञ-हवन का आयोजन रखा गया। बड़ा उत्सव होने वाला था।
यज्ञीय समिधा (लकड़ी) की आवश्यकता थी। लकड़हारे उसी वन प्रांतर में प्रवेश कर उस पलाश को देखने लगा जो काँप रहा था। यमदूत आ पहुँचे। अपने पड़ोसी चंदन के वृक्ष की अंतिम बातें याद करते हुए पलाश परलोक सिधार गया। उसके छोटे-छोटे टुकड़े होकर यज्ञशाला में पहुँचे।
यज्ञ मण्डप अच्छा सजा था। तोरण द्वार बना था। वेदज्ञ पंडितजन मंत्रोच्चार कर रहे थे। समिधा को पहचान कर काष्ट मूर्ति बन चंदन बोला - 'आओ मित्र! ईश्वर की इच्छा बड़ी बलवान है। फिर से तुम्हारा हमारा मिलन हो गया। अपने वन के वृक्षों का कुशल मंगल सुनाओ। मुझे वन की बहुत याद आती है। मंदिर में पंडित मंत्र पढ़ते हैं और मन में जंगल को याद करता हुआ रहता हूँ।
पलाश बोला - 'देखो, यज्ञ मंडप में यज्ञाग्नि प्रज्जवलित हो चुकी है। लगता है कुछ ही पल में राख हो जाऊँगा। अब नहीं मिल सकेंगे। मुझे भय लग रहा है। अब बिछड़ना ही पड़ेगा।'
चंदन ने कहा - 'भाई मैं सरल व सीधा था मुझे परमात्मा ने अपना आवास बनाकर धन्य कर दिया तुम्हारे लिए भी मैंने भगवान से प्रार्थना की थी अत: यज्ञीय कार्य में देह त्याग रहे हो। अन्यथा दावानल में जल मरते। सरलता भगवान को प्रिय है। अगला जन्म मिले तो सरलता, सीधापन मत छोड़ना। सज्जन कठिनता में भी सरलता नहीं छोड़ते जबकि दुष्ट सरलता में भी कठोर हो जाते हैं। सरलता में तनाव नहीं रहता। तनाव से बचने का एक मात्र उपाय सरलता पूर्ण जीवन है।'
बाबा तुलसीदास के रामचरितमानस में भगवान ने स्वयं ही कहा है -
निरमल मन जन सो मोहिं पावा।
मोहिं कपट छल छिद्र न भावा।।
अचानक पलाश का मुख एक आध्यात्मिक दीप्ति से चमक उठा।
सबसे अच्छा कौन?
शेष नारायण बंछोर
एक बार वीर वन में बंदरों ने सभी पशु-पक्षियों की एक विशाल सभा बुलाई जिसमें इस विषय पर चर्चा रखी गई कि दुनिया भर में सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ प्राणी कौन सा है? दूर-दूर से पशु-पक्षी सभा में आए। काफी देर तक बहुत से वक्ताओं ने अपनी-अपनी राय जाहिर की।
गधा बोला - मेरे विचार से शेर सबसे सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि वह बहुत शक्तिशाली है। मेंढक बोला - व्हेल मछली सर्वश्रेष्ठ प्राणी है वह पानी के हर प्राणी से ताकतवर और विशालकाय है।
तोते ने अपनी राय दी कि खरगोश हम सबमें बुद्धिमान है उसने तो शेर तक को हरा रखा है इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ है।
इस तरह लंबी चर्चा चली तब बंदर ने कहा - मेरे विचार में तो मनुष्य धरती का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और मैं इस बात को सिद्ध कर सकता हूँ। सभी जानवर बोले - वो कैसे?
बंदर बोला - मनुष्य के पास विवेक है, भाषा ज्ञान है, ताकत है, बुद्धि है इसलिए उसी को सर्वश्रेष्ठ मानना उचित है।
सभी पशु-पक्षी इस बात पर सहमत हो गए किंतु कौओं का दल चुप था। बंदर ने कौओं के सरदार से कहा कि अगर वह इस निर्णय से सहमत नहीं हैं तो अपने विचार जरूर रखें क्योंकि यह खुला मंच है सबको बोलने की आजादी है। कौआ बोला - आप मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं परंतु हमारी राय में वह दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है। कौए के इतना कहते ही सारी सभा में खुसर-फुसर होने लगी। बंदर बोला - तुम स्वयं अधम हो इसलिए तुम्हें मनुष्य भी अधम लग रहा है किंतु सच यही है कि सर्वश्रेष्ठ तो मनुष्य ही है।
आखिर लंबे विवाद के बाद सभा खत्म हो गई और कौए के मत का सबने विरोध किया। कुछ दिनों पश्चात बंदर पेड़ पर आराम कर रहा था अचानक उसने देखा सामने से एक मनुष्य दौड़ता हुआ आ रहा है उसके पीछे शेर लगा है। आदमी ने पेड़ के नीचे आकर बंदर से कहा िक शेर उसकी जान ले लेगा। बंदर बोला - 'भाई! घबराओ मत! तुम मेरा हाथ पकड़कर मेरे पास आ जाओ।'
मनुष्य पेड़ पर चढ़ गया और बंदर के पास जाकर थर-थर काँपने लगा। बंदर ने उसे सांत्वना दी और शेर से कहा वह अब उसकी शरण में है शेर का भला इसी में है कि वह वापस चला जाए। शेर बोला 'बंदर! क्यूँ अपनी मुसीबत मोल ले रहे हो? इस आदमी को नीचे धक्का दे दे यह मेरा शिकार है।'
बंदर बोला - 'शेर! मैं शरण में आए की जान खतरे में नहीं डाल सकता।' शेर बोला - अरे मूर्ख बंदर! यह मनुष्य की जाति है और मनुष्य स्वार्थी होता है अब तू अपनी खैर मना।'
शेर पेड़ के नीचे ही बैठा रहा रात होने लगी बंदर को नींद लग गई तभी शेर बोला - 'ओ मनुष्य! तू क्या सोच रहा है? तुम दोनों में से एक को तो मुझे खाना ही है। तू बंदर को नीचे धक्का दे दे।
मनुष्य बोला - नहीं, नहीं इसने मुझे बचाया है। मैं इसे कैसे धक्का दे सकता हूँ?
शेर बोला - 'देख मानव! बंदर का तो आगे-पीछे कोई नहीं, अगर तू नहीं रहा तो मेरे घर वालों का क्या होगा? तेरा मकान, दुकान सब खत्म हो जाएगा। तू अपने बारे में सोच।' इतना कहते ही मनुष्य का स्वार्थ जाग उठा उसने तुरंत बंदर को पेड़ से धक्का दे दिया। गिरते हुए बंदर की नींद खुली और उसने पेड़ की डाल पकड़ ली।
लटके हुए बंदर को देख शेर ने उससे कहा - बंदर! देखी मानव की जात? मैंने पहले ही कहा था कि यह तुझे धोखा देगा। अभी भी वक्त है तू इस आदमी को नीचे धक्का दे दे?' परंतु बंदर अपनी बात पर अटल रहा बोला - मैं इसे नीचे धक्का नहीं दूँगा किंतु शेर मेरे भाई मैं अब पशु-पक्षियों की सभा दोबारा बुलाऊँगा और उसमें कौए की बात पर विचार गोष्ठी रखूँगा। सचमुच स्वार्थी मनुष्य दुनिया का सबसे खराब और अधम प्राणी है।'
सौजन्य से - देवपुत्र
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
सितारों के जन्मदिन
फरवरी
जैकी श्राफ 1 फरवरी
शमिता शेट्टी 2 फरवरी
उर्मिला मातोंडकर 4 फरवरी
अभिषेक बच्चन 5 फरवरी
जगजीत सिंह 8 फरवरी
अमृता सिंह 9 फरवरी
टीना मुनीम 11 फरवरी
प्राण 12 फरवरी
रणधीर कपूर 15 फरवरी
खय्याम 18 फरवरी
सोनू वालिया 19 फरवरी
अनु कपूर 20 फरवरी
जिया खान 20 फरवरी
सूरज बड़जात्या 22 फरवरी
भाग्यश्री 23 फरवरी
पूजा भट्ट 24 फरवरी
जैकी श्राफ 1 फरवरी
शमिता शेट्टी 2 फरवरी
उर्मिला मातोंडकर 4 फरवरी
अभिषेक बच्चन 5 फरवरी
जगजीत सिंह 8 फरवरी
अमृता सिंह 9 फरवरी
टीना मुनीम 11 फरवरी
प्राण 12 फरवरी
रणधीर कपूर 15 फरवरी
खय्याम 18 फरवरी
सोनू वालिया 19 फरवरी
अनु कपूर 20 फरवरी
जिया खान 20 फरवरी
सूरज बड़जात्या 22 फरवरी
भाग्यश्री 23 फरवरी
पूजा भट्ट 24 फरवरी
बेहतरीन गीत
बचना ऐ हसीनों के गीत हैं बेहतरीन
फिल्म बचना ऐ हसीनों का एलबम अन्य की तुलना में बेहतरीन कहा जा सकता है। इसमें पंजाबी के साथ जैज संगीत भी कर्णप्रिय है।
फिल्म का शीर्षक गीत बचना ऐ हसीनों वास्तव में वर्ष 1977 की फिल्म हम किसी से कम नहीं में किशोर कुमार के गाए गीत से प्रभावित है, लेकिन विशाल-शेखर ने अपने संगीत से सजाकर इसे पूरी तरह से नए अंदाज में पेश किया है।
पुराने बेहतरीन संगीत को आज के समय की मांग के अनुसार धुन से सजाकर इसे आदर्श मेल (फ्यूजन) के रूप में पेश किया गया है, जिसे लंबे समय तक लोग याद करते रहेंगे। सुखविंदर सिंह और हिमानी कपूर के साथ मिलकर तैयार किया गया शेखर रैवजियानी का लोकगीत जग माही भी बेहतरीन है।
गीतकार अन्विता के गीत खुदा जाने को शिल्पा राव और के.के. ने बेहतरीन ढंग से गाया है। लक्की अली और श्रेया घोषाल का गीत आहिस्ता आहिस्ता भी दमदार है।
एलबम का गीत लक्की बॉय भी श्रोताओं को भाएगा, हालांकि सुनिधि चौहान, राजा हसन और हर्द कौर के गाए गीत भी जबर्दस्त हैं। शंकर महादेवन के गीत स्मॉल टाउन गर्ल में दमदार ढोल की आवाज ने उसे पंजाबी रंग में रंग दिया है।
मधुर गीतों से भरा है अगली और पगली का संगीत
आमतौर पर यह माना जाता है कि हास्य फिल्मों में संगीत का बहुत अधिक योगदान नहीं होता लेकिन आगामी 25 जुलाई को रिलीज होने जा रही फिल्म अगली और पगली इसका अपवाद है।
इस फिल्म का संगीत अनु मलिक ने तैयार किया है जबकि गीत अमिताभ वर्मा लिखे हैं। फिल्म में इश्क बेक्टर और अनुष्का मनचंदा का गाया हिंदी पंजाबी गीत करले गुनाह अंखियां मिला के बहुत मधुर बन पड़ा है। अनु मलिक, वसुंधरा दास और दिब्येंदु मुखर्जी की आवाज में शट अप आ नचले विविधता से भरपूर है।
पंजाबी-हिन्दी मिक्स गीत ताली में ताली हो गई को हर्द कौर, अनमोल मलिक और मीका ने काफी अलग अंदाज में गाया है। इसी तरह मोहित चौहान की आवाज में ये नजर आए-जाए भी श्रोताओं को निराश नहीं करता।
क्रेजी 4 के संगीत में नहीं है दम
जावेद अख्तर और राजेश रोशन की सुपरहिट जोड़ी के बावजूद क्रेजी 4 का संगीत लोकप्रियता के पायदान पर फिसड्डी साबित हो रहा है।
जयदीप सरीन निर्देशित इस फिल्म में सुनिधि चौहान और कृति सगाथिया की आवाज में देखता है तू क्या.. एक अलग तरह का गीत है। जावेद अख्तर ने इस गीत को लिखा है। हालांकि इस गीत को वैसी प्रशंसा नहीं मिल रही है जैसा कि पहले राजेश रोशन के संगीतबद्ध गीतों को मिला करती थी।
कई गायकों द्वारा प्रस्तुत गीत एक रुपया.. को भी लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। फिल्म में एक राष्ट्र प्रेम गीत जन गण मन.. भी है। हालांकि, इस गीत में कुछ नया नजर नहीं आया है। यदि क्रेजी 4 के सभी गीतों को ध्यान पूर्वक सुना जाए तो यह पता चलता है कि इन गीतों में वैसी लय नहीं है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले। राजेश रोशन भी संगीत के मामले में अपने पुराने लय को क्रेजी 4 में शामिल नहीं कर पाए हैं।
फिल्म बचना ऐ हसीनों का एलबम अन्य की तुलना में बेहतरीन कहा जा सकता है। इसमें पंजाबी के साथ जैज संगीत भी कर्णप्रिय है।
फिल्म का शीर्षक गीत बचना ऐ हसीनों वास्तव में वर्ष 1977 की फिल्म हम किसी से कम नहीं में किशोर कुमार के गाए गीत से प्रभावित है, लेकिन विशाल-शेखर ने अपने संगीत से सजाकर इसे पूरी तरह से नए अंदाज में पेश किया है।
पुराने बेहतरीन संगीत को आज के समय की मांग के अनुसार धुन से सजाकर इसे आदर्श मेल (फ्यूजन) के रूप में पेश किया गया है, जिसे लंबे समय तक लोग याद करते रहेंगे। सुखविंदर सिंह और हिमानी कपूर के साथ मिलकर तैयार किया गया शेखर रैवजियानी का लोकगीत जग माही भी बेहतरीन है।
गीतकार अन्विता के गीत खुदा जाने को शिल्पा राव और के.के. ने बेहतरीन ढंग से गाया है। लक्की अली और श्रेया घोषाल का गीत आहिस्ता आहिस्ता भी दमदार है।
एलबम का गीत लक्की बॉय भी श्रोताओं को भाएगा, हालांकि सुनिधि चौहान, राजा हसन और हर्द कौर के गाए गीत भी जबर्दस्त हैं। शंकर महादेवन के गीत स्मॉल टाउन गर्ल में दमदार ढोल की आवाज ने उसे पंजाबी रंग में रंग दिया है।
मधुर गीतों से भरा है अगली और पगली का संगीत
आमतौर पर यह माना जाता है कि हास्य फिल्मों में संगीत का बहुत अधिक योगदान नहीं होता लेकिन आगामी 25 जुलाई को रिलीज होने जा रही फिल्म अगली और पगली इसका अपवाद है।
इस फिल्म का संगीत अनु मलिक ने तैयार किया है जबकि गीत अमिताभ वर्मा लिखे हैं। फिल्म में इश्क बेक्टर और अनुष्का मनचंदा का गाया हिंदी पंजाबी गीत करले गुनाह अंखियां मिला के बहुत मधुर बन पड़ा है। अनु मलिक, वसुंधरा दास और दिब्येंदु मुखर्जी की आवाज में शट अप आ नचले विविधता से भरपूर है।
पंजाबी-हिन्दी मिक्स गीत ताली में ताली हो गई को हर्द कौर, अनमोल मलिक और मीका ने काफी अलग अंदाज में गाया है। इसी तरह मोहित चौहान की आवाज में ये नजर आए-जाए भी श्रोताओं को निराश नहीं करता।
क्रेजी 4 के संगीत में नहीं है दम
जावेद अख्तर और राजेश रोशन की सुपरहिट जोड़ी के बावजूद क्रेजी 4 का संगीत लोकप्रियता के पायदान पर फिसड्डी साबित हो रहा है।
जयदीप सरीन निर्देशित इस फिल्म में सुनिधि चौहान और कृति सगाथिया की आवाज में देखता है तू क्या.. एक अलग तरह का गीत है। जावेद अख्तर ने इस गीत को लिखा है। हालांकि इस गीत को वैसी प्रशंसा नहीं मिल रही है जैसा कि पहले राजेश रोशन के संगीतबद्ध गीतों को मिला करती थी।
कई गायकों द्वारा प्रस्तुत गीत एक रुपया.. को भी लोग पसंद नहीं कर रहे हैं। फिल्म में एक राष्ट्र प्रेम गीत जन गण मन.. भी है। हालांकि, इस गीत में कुछ नया नजर नहीं आया है। यदि क्रेजी 4 के सभी गीतों को ध्यान पूर्वक सुना जाए तो यह पता चलता है कि इन गीतों में वैसी लय नहीं है जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर ले। राजेश रोशन भी संगीत के मामले में अपने पुराने लय को क्रेजी 4 में शामिल नहीं कर पाए हैं।
इश्किया
उ.भारतीय परिवेश की रोमांचक कथा इश्किया
मुख्य कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी, विद्या बालन, सलमान शाहिद आदि।
निर्देशक : अभिषेक चौबे
तकनीकी टीम : निर्माता- विशाल भारद्वाज, रमन मारू, संवाद - विशाल भारद्वाज, पटकथा - विशाल भारद्वाज, सबरीना धवन
अभिषेक चौबे की पहली फिल्म इश्किया मनोरंजक फिल्म है। पूर्वी उत्तरप्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म के दो मुख्य किरदार मध्यप्रदेश केहैं। पुरबिया और भोपाली लहजे से फिल्म की भाषा कथ्य के अनुकूल हो गई है। हिंदी फिल्मों में इन दिनों अंग्रेजी का चलन स्वाभाविक मान लिया गया है। लिहाजा अपने ही देश की भाषाएं फिल्मों में परदेसी लगती हैं। अभिषेक चौबे ने निर्भीक होकर परिवेश और भाषा का सदुपयोग किया है। इश्किया वास्त व में हिंदी में बनी फिल्म है, यह हिंदी की फिल्म नहीं है।
खालू जान और बब्बन उठाईगीर हैं। कहीं ठिकाना नहीं मिलने पर वे नेपाल भागने के इरादे से गोरखपुर के लिए कूच करते हैं। रास्ते में उन्हें अपराधी मित्र विद्याधर वर्मा के यहां शरण लेनी पड़ती है। वहां पहुंचने पर उन्हें मालूम होता है कि विद्याधर वर्मा तो दुनिया से रूखसत कर गए। हां, उनकी बीवी कृष्णा हैं। परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि खालूजान और बब्बन को कृष्णा के यहां ही रूकना पड़ता है। इस बीच कृष्णा, खालू जान और बब्बन के अंतरंग रिश्ते बनते हैं। सब कुछ तात्कालिक है। न कोई समर्पण है और न ही कोई वायदा। सच तो ये है कि सारे किरदार स्वार्थी हैं और वे अपने हितों के लिए एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। शायद ऐसी ही है दुनिया।
इश्किया एक स्तर पर कृष्णा की भी कहानी है। पति ने उसे छोड़ दिया है। शरीर, मन और जीवन में भूखी कृष्णा को खालूजान और बब्बन के स्वार्थ में भी स्नेह की ऊर्जा मिलती है। खालूजान और बब्बन ही उस पर आसक्त नहीं होते। कृष्णा भी शारीरिक संबंधों का बराबर आनंद लेती है। यह नए किस्म का चरित्रांकन है, जहां औरत पवित्रता की मूिर्त्त भर नहीं है। फिल्म के क्लाइमेक्स में पता चलता है कि अपने पति से बिफरी और नाराज कृष्णा घर में शरण लिए खालूजान और बब्बन का इस्तेमाल करती है और अपने पति को लौटने के लिए मजबूर करती है। आखिरी दृश्य में वह झुलस गए पति पर तरस भी नहीं खाती। वह अपनी आजाद जिंदगी के राह पर मनपसंद व्यक्तियों के साथ निकल जाती है।
अभिषेक चौबे और विशाल भारद्वाज ने फिल्म की चुस्त पटकथा में रोमांच बनाए रखा है। इस फिल्म की विशेषता है कि अगले दृश्यों और प्रसंगों का अनुमान नहीं हो पाता। चूंकि अनजाने किरदार हैं, इसलिए उनकी मनोदशा से दर्शक भी अनजान हैं। संवादों में धार और चुटीलापन है। साथ ही इन संवादों में परिवेश की सामाजिक और राजनीतिकअर्थछवियां हैं। दो व्यक्तियों के बीच जमीन-आसमान का फर्क हम सभी समझते हैं, लेकिन उनके बीच हिंदू-मुसलमान का फर्क बताना नया मुहावरा है। फिल्म के कई दृश्य संवादों और अभिनय से जानदार बन गए हैं। नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन की तिगड़ी नहीं होती तो फिल्म का क्या होता? अच्छी फिल्मों की एक पहचान यह भी है कि उनके किरदारों में दूसरे कलाकारों की कल्पना नहीं की जा सके। कृष्णा की भूमिका विद्या के अलावा कौन कर सकता है?
नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन ने मिल कर फिल्म को प्रभावशाली बना दिया है। विद्या सच कहती हैं कि वह कैमरे के आगे बेशर्म हो जाती हैं। उफ्फ, कैमरे से ऐसी अंतरंगता अब दुर्लभ हो गई है। विद्या बालन ने बाडी लैंग्वेज और चेहरे के भावों से दृश्यों को सेक्सी बना दिया है। निर्देशक को अंग प्रदर्शन की जरूरत ही नहीं पड़ी है। निश्चित ही ऐसे दृश्यों में साथी कलाकारों की ईमानदार सहभागिता की दरकार रहती है। अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह ने भरपूर साथ दिया है। उन दोनों की सहजता और स्वाभाविकता भी उल्लेखनीय हैं। उनके नामों के साथ कई दृश्यों के उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिनमें उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया है।
विशाल की एक खासियत को अभिषेक चौबे ने भी अपनाया है। सहयोगी चरित्रों के लिए परिचित कलाकारों को नहीं चुना गया है। इस फिल्म में मुश्ताक, विद्याधर वर्मा और नंदू के किरदारों को निभा रहे कलाकारों को हम पहले से नहीं जानते, इसलिए वे अधिक प्रभावशाली लगते और दिखते हैं। सलमान शाहिद, आदिल और आलोक कुमार की यही खूबी है।
विशाल भारद्वाज और गुलजार की जोड़ी हो तो गीत-संगीत लोकप्रिय होने के साथ फिल्म के लिए उपयोगी और सुंदर भी होते हैं। इश्किया में अभिषेक चौबे ने भी विशाल की तरह पुरानी फिल्मों के चुनिंदा गीतों का सही दृश्यों में उचित उपयोग किया है। इश्किया लिरिकल थ्रिलर है।
मुख्य कलाकार : नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी, विद्या बालन, सलमान शाहिद आदि।
निर्देशक : अभिषेक चौबे
तकनीकी टीम : निर्माता- विशाल भारद्वाज, रमन मारू, संवाद - विशाल भारद्वाज, पटकथा - विशाल भारद्वाज, सबरीना धवन
अभिषेक चौबे की पहली फिल्म इश्किया मनोरंजक फिल्म है। पूर्वी उत्तरप्रदेश की पृष्ठभूमि पर बनी इस फिल्म के दो मुख्य किरदार मध्यप्रदेश केहैं। पुरबिया और भोपाली लहजे से फिल्म की भाषा कथ्य के अनुकूल हो गई है। हिंदी फिल्मों में इन दिनों अंग्रेजी का चलन स्वाभाविक मान लिया गया है। लिहाजा अपने ही देश की भाषाएं फिल्मों में परदेसी लगती हैं। अभिषेक चौबे ने निर्भीक होकर परिवेश और भाषा का सदुपयोग किया है। इश्किया वास्त व में हिंदी में बनी फिल्म है, यह हिंदी की फिल्म नहीं है।
खालू जान और बब्बन उठाईगीर हैं। कहीं ठिकाना नहीं मिलने पर वे नेपाल भागने के इरादे से गोरखपुर के लिए कूच करते हैं। रास्ते में उन्हें अपराधी मित्र विद्याधर वर्मा के यहां शरण लेनी पड़ती है। वहां पहुंचने पर उन्हें मालूम होता है कि विद्याधर वर्मा तो दुनिया से रूखसत कर गए। हां, उनकी बीवी कृष्णा हैं। परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि खालूजान और बब्बन को कृष्णा के यहां ही रूकना पड़ता है। इस बीच कृष्णा, खालू जान और बब्बन के अंतरंग रिश्ते बनते हैं। सब कुछ तात्कालिक है। न कोई समर्पण है और न ही कोई वायदा। सच तो ये है कि सारे किरदार स्वार्थी हैं और वे अपने हितों के लिए एक-दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। शायद ऐसी ही है दुनिया।
इश्किया एक स्तर पर कृष्णा की भी कहानी है। पति ने उसे छोड़ दिया है। शरीर, मन और जीवन में भूखी कृष्णा को खालूजान और बब्बन के स्वार्थ में भी स्नेह की ऊर्जा मिलती है। खालूजान और बब्बन ही उस पर आसक्त नहीं होते। कृष्णा भी शारीरिक संबंधों का बराबर आनंद लेती है। यह नए किस्म का चरित्रांकन है, जहां औरत पवित्रता की मूिर्त्त भर नहीं है। फिल्म के क्लाइमेक्स में पता चलता है कि अपने पति से बिफरी और नाराज कृष्णा घर में शरण लिए खालूजान और बब्बन का इस्तेमाल करती है और अपने पति को लौटने के लिए मजबूर करती है। आखिरी दृश्य में वह झुलस गए पति पर तरस भी नहीं खाती। वह अपनी आजाद जिंदगी के राह पर मनपसंद व्यक्तियों के साथ निकल जाती है।
अभिषेक चौबे और विशाल भारद्वाज ने फिल्म की चुस्त पटकथा में रोमांच बनाए रखा है। इस फिल्म की विशेषता है कि अगले दृश्यों और प्रसंगों का अनुमान नहीं हो पाता। चूंकि अनजाने किरदार हैं, इसलिए उनकी मनोदशा से दर्शक भी अनजान हैं। संवादों में धार और चुटीलापन है। साथ ही इन संवादों में परिवेश की सामाजिक और राजनीतिकअर्थछवियां हैं। दो व्यक्तियों के बीच जमीन-आसमान का फर्क हम सभी समझते हैं, लेकिन उनके बीच हिंदू-मुसलमान का फर्क बताना नया मुहावरा है। फिल्म के कई दृश्य संवादों और अभिनय से जानदार बन गए हैं। नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन की तिगड़ी नहीं होती तो फिल्म का क्या होता? अच्छी फिल्मों की एक पहचान यह भी है कि उनके किरदारों में दूसरे कलाकारों की कल्पना नहीं की जा सके। कृष्णा की भूमिका विद्या के अलावा कौन कर सकता है?
नसीरुद्दीन शाह, अरशद वारसी और विद्या बालन ने मिल कर फिल्म को प्रभावशाली बना दिया है। विद्या सच कहती हैं कि वह कैमरे के आगे बेशर्म हो जाती हैं। उफ्फ, कैमरे से ऐसी अंतरंगता अब दुर्लभ हो गई है। विद्या बालन ने बाडी लैंग्वेज और चेहरे के भावों से दृश्यों को सेक्सी बना दिया है। निर्देशक को अंग प्रदर्शन की जरूरत ही नहीं पड़ी है। निश्चित ही ऐसे दृश्यों में साथी कलाकारों की ईमानदार सहभागिता की दरकार रहती है। अरशद वारसी और नसीरुद्दीन शाह ने भरपूर साथ दिया है। उन दोनों की सहजता और स्वाभाविकता भी उल्लेखनीय हैं। उनके नामों के साथ कई दृश्यों के उदाहरण दिए जा सकते हैं, जिनमें उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता का परिचय दिया है।
विशाल की एक खासियत को अभिषेक चौबे ने भी अपनाया है। सहयोगी चरित्रों के लिए परिचित कलाकारों को नहीं चुना गया है। इस फिल्म में मुश्ताक, विद्याधर वर्मा और नंदू के किरदारों को निभा रहे कलाकारों को हम पहले से नहीं जानते, इसलिए वे अधिक प्रभावशाली लगते और दिखते हैं। सलमान शाहिद, आदिल और आलोक कुमार की यही खूबी है।
विशाल भारद्वाज और गुलजार की जोड़ी हो तो गीत-संगीत लोकप्रिय होने के साथ फिल्म के लिए उपयोगी और सुंदर भी होते हैं। इश्किया में अभिषेक चौबे ने भी विशाल की तरह पुरानी फिल्मों के चुनिंदा गीतों का सही दृश्यों में उचित उपयोग किया है। इश्किया लिरिकल थ्रिलर है।
पति पत्नी और वो
पति पत्नी और वो
पत्नी (पति से)- मुझे भिखारियों से नफरत है!
पति (पत्नी से)- क्यों??
पत्नी - कल मैंने एक भिखारी को खाना दिया था, आज उस भिखारी ने मुझे एक किताब उपहार में दी है खाना कैसे बनाए!!
पत्नी (पति से)- आप मुझे मेरा नाम लेकर मत पुकारा करें, इससे बच्चे भी मेरा नाम लेकर पुकारते हैं।
पति (गुस्से से)- तो क्या मैं भी तुम्हें बच्चों की तरह मम्मी कहकर पुकारू?
पति- इस जीवन से मैं तंग आ गया हूं! हे प्रभु मुझे उठा ले।
पत्नी - नही भगवान, मेरे पति से पहले मुझे उठा ले।
पति- हे प्रभु, मैं अब अपनी मर्जी वापिस लेता हूं, तू इसकी ही सुन ले।
पत्नी (पति से)- चलो ना आज बाहर चलते हैं, कार मैं चलाऊंगी।
पति- मतलब जाएंगे कार में और आएंगे अखबार में..
पत्नी (पति से)- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।
पति (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।
पति (पत्नी से)- मेरा फोन आये तो कहना मैं घर पर नहीं हूं।
अचानक फोन की घंटी बजी..
पत्नी ने फोन उठाकर कहा- वो अभी घर पर हैं।
पत्नी के फोन रखते ही पति खीजते हुए बोला- तुम्हें मैंने मना किया था फिर भी क्यों बताया कि मैं घर पर हूं?
पत्नी- आपने अपने फोन के लिए मना किया था, वह फोन तो मेरे लिए आया था।
एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर चोरी हो रही थी..
पत्नी- उठो जी घर में चोरी हो रही है।
पुलिस इंस्पेक्टर- मुझे सोने दे, मैं इस टाइम डयूटी पर नही हूं!
एक नवविवाहिता पत्नी (पति से)- तुमने अपने दोस्तों से यह क्यों कहा कि मुझे बहुत अच्छा खाना बनाना आता है।
पति- अब तुमसे शादी करने की कोई वजह तो मुझे बतानी ही थी।
पति (पत्नी से)- तुमसे शादी करके मुझे एक बहुत बड़ा फायदा हुआ है!
पत्नी (पति से)- वो क्या?
पति- मुझे मेरे गुनाहों की सजा जीते जी ही मिल गयी!
पत्नी (पति से) - आप यहां पर क्यों खड़े हुए हो?
पति (पत्नी से)- मैं शेर का शिकार करने जा रहा हूं।
पत्नी- तो जाओ न खड़े क्यों हो?
पति- कैसे जाऊं बाहर कुत्ता खड़ा हुआ है।
पागलखाने का डॉक्टर अपनी पत्नी को कहता है- पागलों के साथ रह-रहकर मैं आधा पागल तो हो ही गया हूं।
पत्नी- कभी कोई काम पूरा भी कर लिया करो।
पत्नी (पति से)- आप बहुत मोटे हो गये हो।
पति (पत्नी से)- तुम भी तो कितनी मोटी हो गयी हो।
पत्नी- मैं तो मां बनने वाली हूं।
पति- तो मैं भी तो बाप बनने वाला हूं।
पत्नी (पति से)- आज मेरा नॉनवेज खाने का मन हो रहा है।
पति (पत्नी से)- मैं अभी बाजार से तुम्हारे लिए मछली लेकर आता हूं।
पत्नी- रहने दो उसमें कांटे होते हैं।
पति- कोई बात नहीं तुम चप्पल पहनकर खा लेना।
रजनी (राजन से)- तुम्हें मेरी कौन सी बात सबसे अच्छी लगती है, मेरी खूबसूरती या मेरी समझदारी।
राजन- मुझे तुम्हारी ये मजाक करने की आदत बहुत अच्छी लगती है।
पत्नी (पति से)- मुझे भिखारियों से नफरत है!
पति (पत्नी से)- क्यों??
पत्नी - कल मैंने एक भिखारी को खाना दिया था, आज उस भिखारी ने मुझे एक किताब उपहार में दी है खाना कैसे बनाए!!
पत्नी (पति से)- आप मुझे मेरा नाम लेकर मत पुकारा करें, इससे बच्चे भी मेरा नाम लेकर पुकारते हैं।
पति (गुस्से से)- तो क्या मैं भी तुम्हें बच्चों की तरह मम्मी कहकर पुकारू?
पति- इस जीवन से मैं तंग आ गया हूं! हे प्रभु मुझे उठा ले।
पत्नी - नही भगवान, मेरे पति से पहले मुझे उठा ले।
पति- हे प्रभु, मैं अब अपनी मर्जी वापिस लेता हूं, तू इसकी ही सुन ले।
पत्नी (पति से)- चलो ना आज बाहर चलते हैं, कार मैं चलाऊंगी।
पति- मतलब जाएंगे कार में और आएंगे अखबार में..
पत्नी (पति से)- रात को आप शराब पीकर गटर में गिर गए थे।
पति (पत्नी से)- क्या बताऊं, सब गलत संगत का असर है, हम 4 दोस्त....1 बोतल, और वो तीनों कम्बख्त पीते नही।
पति (पत्नी से)- मेरा फोन आये तो कहना मैं घर पर नहीं हूं।
अचानक फोन की घंटी बजी..
पत्नी ने फोन उठाकर कहा- वो अभी घर पर हैं।
पत्नी के फोन रखते ही पति खीजते हुए बोला- तुम्हें मैंने मना किया था फिर भी क्यों बताया कि मैं घर पर हूं?
पत्नी- आपने अपने फोन के लिए मना किया था, वह फोन तो मेरे लिए आया था।
एक पुलिस इंस्पेक्टर के घर चोरी हो रही थी..
पत्नी- उठो जी घर में चोरी हो रही है।
पुलिस इंस्पेक्टर- मुझे सोने दे, मैं इस टाइम डयूटी पर नही हूं!
एक नवविवाहिता पत्नी (पति से)- तुमने अपने दोस्तों से यह क्यों कहा कि मुझे बहुत अच्छा खाना बनाना आता है।
पति- अब तुमसे शादी करने की कोई वजह तो मुझे बतानी ही थी।
पति (पत्नी से)- तुमसे शादी करके मुझे एक बहुत बड़ा फायदा हुआ है!
पत्नी (पति से)- वो क्या?
पति- मुझे मेरे गुनाहों की सजा जीते जी ही मिल गयी!
पत्नी (पति से) - आप यहां पर क्यों खड़े हुए हो?
पति (पत्नी से)- मैं शेर का शिकार करने जा रहा हूं।
पत्नी- तो जाओ न खड़े क्यों हो?
पति- कैसे जाऊं बाहर कुत्ता खड़ा हुआ है।
पागलखाने का डॉक्टर अपनी पत्नी को कहता है- पागलों के साथ रह-रहकर मैं आधा पागल तो हो ही गया हूं।
पत्नी- कभी कोई काम पूरा भी कर लिया करो।
पत्नी (पति से)- आप बहुत मोटे हो गये हो।
पति (पत्नी से)- तुम भी तो कितनी मोटी हो गयी हो।
पत्नी- मैं तो मां बनने वाली हूं।
पति- तो मैं भी तो बाप बनने वाला हूं।
पत्नी (पति से)- आज मेरा नॉनवेज खाने का मन हो रहा है।
पति (पत्नी से)- मैं अभी बाजार से तुम्हारे लिए मछली लेकर आता हूं।
पत्नी- रहने दो उसमें कांटे होते हैं।
पति- कोई बात नहीं तुम चप्पल पहनकर खा लेना।
रजनी (राजन से)- तुम्हें मेरी कौन सी बात सबसे अच्छी लगती है, मेरी खूबसूरती या मेरी समझदारी।
राजन- मुझे तुम्हारी ये मजाक करने की आदत बहुत अच्छी लगती है।
बुधवार, 27 जनवरी 2010
सौंदर्य और स्वास्थ्य
रह न जाए कोई कमी
सुशीला परगनिहा
खूबसूरत दिखना हर किसी की प्राथमिकता नहीं हो सकती। अगर आपके पास हर दिन अच्छी तरह तैयार होने का समय नहीं होता है तो कम से कम इतना तो आप तय कर सकती हैं, कोई ऐसी कमी न रह जाए जो आपके पूरे रूप को खराब कर दे। मसलन जिस दिन आप तैयार हों, मेकअप तो कर लें लेकिन नाखूनों पर लगी उखडी हुई नेलपॉलिश हटाना भूल जाएं। ऐसी ही छोटी-छोटी गलतियां हम जाने-अनजाने कर जाते हैं जो हमारे सौंदर्य पर ग्रहण लगा देती हैं। सौंदर्य विशेषज्ञा विद्या टिकारी के अनुसार मेकअप का बेसिक तरीका हर किसी के लिए जानना जरूरी है। यहां वह आपको ऐसी ही कुछ छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें बता रही हैं जिन्हें अपनाकर आप हमेशा स्मार्ट और सुंदर दिख सकती हैं।
उखडी हुई नेलपॉलिश
नाखून पर लगी उखडी हुई नेलपॉलिश यह दर्शाती है, कि आप अपने सौंदर्य के प्रति जरा भी सचेत नहीं है। या तो आप नई नेल पॉलिश लगाएं या फिर रिमूवर से नाखून साफ करके यूं ही छोड दें। लेकिन आधी-अधूरी उखडी हुई नेलपॉलिश आपकी छवि को खराब कर देती है। अगर आपका नेल रिमूवर खत्म हो गया है, तो कोई भी डार्क शेड्स की नेलपॉलिश लगाने से पहले रिमूवर की बॉटल जरूर खरीद लें। लगभग 3-4 दिन में आपकी नेलपॉलिश उखडने लगती है। ऐसे में या तो आप नेलपॉलिश का दूसरा कोट उसके ऊपर लगाएं या रिमूवर से साफ करके नई नेल पॉलिश लगाएं। अगर आपके पास बार-बार नेलपॉलिश हटाकर दूसरी लगाने का समय नहीं होता है, या आप इस ओर ध्यान नहीं दे पाती हैं, तो बेहतर होगा कि आप हमेशा लाइट शेड वाली नेल पॉलिश चुनें। ताकि उखडने पर लोगों का ध्यान उस तरफ न जाए।
सफेद बाल
अगर आपके बाल सफेद होना शुरू हो गए हैं और आप अपने बालों में नियमित रूप से हेयर कलर का प्रयोग करती हैं, तो यह बहुत जरूरी है कि हेयर कलर आपके बालों की जडों के पास जरूर लगा हो। वरना सिर की त्वचा के पास दिखने वाले सफेद बाल आपके लुक को खराब कर देते हैं। इसलिए इस बात का भी ध्यान रखें कि बालों की जडों के पास हमेशा गहरा काला रंग न लगाएं। ताकि अगर कभी हेयर कलर कराने में देर हो जाए तो वहां आए सफेद बाल बहुत अधिक खराब न लगें। बेहतर होगा कि आप दो शेड के हेयर कलर चुनें। ताकि यह स्ट्रीक्ड इफेक्ट दे। यह विकल्प अपने बालों के प्राकृतिक रंग से मेल खाता जेट ब्लैक कलर चुनने से अधिक बेहतर होगा। बाजार में तमाम शेड्स के हेयर कलर उपलब्ध हैं, अपनी स्किन टोन से मेल खाता कोई भी कलर आप चुन सकती हैं। यह सफेद बाल नजर आने से बेहतर होगा। ब्राउन और माहोगनी शेड्स आसानी से चुनें जा सकते हैं। कभी माहोगनी और कभी ब्राउन कलर कराएं। ताकि ग्रे हेयर लोगों को नजर न आएं।
रूखे, बिखरे बाल
रूखे, बेजान व बिखरे बालों की देखभाल के तमाम उपाय बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन आप तब भी उन्हें नहीं अपनाती तो यह आपकी गलती है। बाल हर स्त्री की क्राउनिंग ग्लोरी होते हैं। कम से कम इन्हें सही तो रखें। ऐसे बालों को कभी भी खोलकर न रखें। अत्यधिक रूखे बालों को सही अवस्था में करने के लिए थोडे से पानी में 3-4 बूंद तेल मिलाकर बालों में लगाएं और फिर पोनी बांध लें। इससे वे संवरे और साफ नजर आएंगे। इसी तरह अगर आपके बाल लंबे, घुंघराले व नीचे से पतले हैं तो सिरों को बिना कर्ल किए उन्हें खुला न छोडें। यह बालों को सिरे से एक सपोर्ट देता है।
फैली हुई लिपस्टिक
फैली हुई लिपस्टिक आपके लुक को खराब तो करती ही है, आप कितनी लापरवाह हैं, यह भी दर्शाती है। अगर आपके होंठों में लिपस्टिक अधिक देर तक नहीं टिक पाती, या आप लिपस्टिक खा जाती हैं तो हमेशा क्रीमी मैट वाली लाइट शेड की लिपस्टिक चुनें। लगाने से पहले होंठों पर हलका सा फाउंडेशन लगाएं। मैट लिप लाइनर से आउटलाइन बनाएं फिर होंठों को भरें।
बिगडी हुई आइब्रोज
शार्प आईब्रोज का असर जबरदस्त होता है। अगर आपकी ग्रोथ अच्छी है तो नियमित रूप से बनवाना बेहद आवश्यक है। आप कितना ही अच्छा मेकअप कर लें, अगर आइब्रो सही शेप में नहीं हैं तो अच्छा नहीं लगेगा।
अपर लिप
अगर आपके अपर लिप पर काफी बाल हैं और थ्रेडिंग कराने के बाद उस भाग पर हरापन या लाली रहती है तो कंसीलर से उसे छिपाना न भूलें। अगर आपके बाल अत्यधिक हैं तो अपर लिप एरिया में थ्रेडिंग, वैक्स या ब्लीच जरूर कराएं। आप चाहें तो इसे लेजर के जरिये पर्मानेंट हटा सकती हैं। छोटी-छोटी गलतियों से आपका सौंदर्य प्रभावित हो सकता है, इस बात का हमेशा ध्यान रखें। खुद में सुंदरता का एहसास करें और अपने सौंदर्य को संवारने का प्रयास करें।
सुशीला परगनिहा
खूबसूरत दिखना हर किसी की प्राथमिकता नहीं हो सकती। अगर आपके पास हर दिन अच्छी तरह तैयार होने का समय नहीं होता है तो कम से कम इतना तो आप तय कर सकती हैं, कोई ऐसी कमी न रह जाए जो आपके पूरे रूप को खराब कर दे। मसलन जिस दिन आप तैयार हों, मेकअप तो कर लें लेकिन नाखूनों पर लगी उखडी हुई नेलपॉलिश हटाना भूल जाएं। ऐसी ही छोटी-छोटी गलतियां हम जाने-अनजाने कर जाते हैं जो हमारे सौंदर्य पर ग्रहण लगा देती हैं। सौंदर्य विशेषज्ञा विद्या टिकारी के अनुसार मेकअप का बेसिक तरीका हर किसी के लिए जानना जरूरी है। यहां वह आपको ऐसी ही कुछ छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें बता रही हैं जिन्हें अपनाकर आप हमेशा स्मार्ट और सुंदर दिख सकती हैं।
उखडी हुई नेलपॉलिश
नाखून पर लगी उखडी हुई नेलपॉलिश यह दर्शाती है, कि आप अपने सौंदर्य के प्रति जरा भी सचेत नहीं है। या तो आप नई नेल पॉलिश लगाएं या फिर रिमूवर से नाखून साफ करके यूं ही छोड दें। लेकिन आधी-अधूरी उखडी हुई नेलपॉलिश आपकी छवि को खराब कर देती है। अगर आपका नेल रिमूवर खत्म हो गया है, तो कोई भी डार्क शेड्स की नेलपॉलिश लगाने से पहले रिमूवर की बॉटल जरूर खरीद लें। लगभग 3-4 दिन में आपकी नेलपॉलिश उखडने लगती है। ऐसे में या तो आप नेलपॉलिश का दूसरा कोट उसके ऊपर लगाएं या रिमूवर से साफ करके नई नेल पॉलिश लगाएं। अगर आपके पास बार-बार नेलपॉलिश हटाकर दूसरी लगाने का समय नहीं होता है, या आप इस ओर ध्यान नहीं दे पाती हैं, तो बेहतर होगा कि आप हमेशा लाइट शेड वाली नेल पॉलिश चुनें। ताकि उखडने पर लोगों का ध्यान उस तरफ न जाए।
सफेद बाल
अगर आपके बाल सफेद होना शुरू हो गए हैं और आप अपने बालों में नियमित रूप से हेयर कलर का प्रयोग करती हैं, तो यह बहुत जरूरी है कि हेयर कलर आपके बालों की जडों के पास जरूर लगा हो। वरना सिर की त्वचा के पास दिखने वाले सफेद बाल आपके लुक को खराब कर देते हैं। इसलिए इस बात का भी ध्यान रखें कि बालों की जडों के पास हमेशा गहरा काला रंग न लगाएं। ताकि अगर कभी हेयर कलर कराने में देर हो जाए तो वहां आए सफेद बाल बहुत अधिक खराब न लगें। बेहतर होगा कि आप दो शेड के हेयर कलर चुनें। ताकि यह स्ट्रीक्ड इफेक्ट दे। यह विकल्प अपने बालों के प्राकृतिक रंग से मेल खाता जेट ब्लैक कलर चुनने से अधिक बेहतर होगा। बाजार में तमाम शेड्स के हेयर कलर उपलब्ध हैं, अपनी स्किन टोन से मेल खाता कोई भी कलर आप चुन सकती हैं। यह सफेद बाल नजर आने से बेहतर होगा। ब्राउन और माहोगनी शेड्स आसानी से चुनें जा सकते हैं। कभी माहोगनी और कभी ब्राउन कलर कराएं। ताकि ग्रे हेयर लोगों को नजर न आएं।
रूखे, बिखरे बाल
रूखे, बेजान व बिखरे बालों की देखभाल के तमाम उपाय बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन आप तब भी उन्हें नहीं अपनाती तो यह आपकी गलती है। बाल हर स्त्री की क्राउनिंग ग्लोरी होते हैं। कम से कम इन्हें सही तो रखें। ऐसे बालों को कभी भी खोलकर न रखें। अत्यधिक रूखे बालों को सही अवस्था में करने के लिए थोडे से पानी में 3-4 बूंद तेल मिलाकर बालों में लगाएं और फिर पोनी बांध लें। इससे वे संवरे और साफ नजर आएंगे। इसी तरह अगर आपके बाल लंबे, घुंघराले व नीचे से पतले हैं तो सिरों को बिना कर्ल किए उन्हें खुला न छोडें। यह बालों को सिरे से एक सपोर्ट देता है।
फैली हुई लिपस्टिक
फैली हुई लिपस्टिक आपके लुक को खराब तो करती ही है, आप कितनी लापरवाह हैं, यह भी दर्शाती है। अगर आपके होंठों में लिपस्टिक अधिक देर तक नहीं टिक पाती, या आप लिपस्टिक खा जाती हैं तो हमेशा क्रीमी मैट वाली लाइट शेड की लिपस्टिक चुनें। लगाने से पहले होंठों पर हलका सा फाउंडेशन लगाएं। मैट लिप लाइनर से आउटलाइन बनाएं फिर होंठों को भरें।
बिगडी हुई आइब्रोज
शार्प आईब्रोज का असर जबरदस्त होता है। अगर आपकी ग्रोथ अच्छी है तो नियमित रूप से बनवाना बेहद आवश्यक है। आप कितना ही अच्छा मेकअप कर लें, अगर आइब्रो सही शेप में नहीं हैं तो अच्छा नहीं लगेगा।
अपर लिप
अगर आपके अपर लिप पर काफी बाल हैं और थ्रेडिंग कराने के बाद उस भाग पर हरापन या लाली रहती है तो कंसीलर से उसे छिपाना न भूलें। अगर आपके बाल अत्यधिक हैं तो अपर लिप एरिया में थ्रेडिंग, वैक्स या ब्लीच जरूर कराएं। आप चाहें तो इसे लेजर के जरिये पर्मानेंट हटा सकती हैं। छोटी-छोटी गलतियों से आपका सौंदर्य प्रभावित हो सकता है, इस बात का हमेशा ध्यान रखें। खुद में सुंदरता का एहसास करें और अपने सौंदर्य को संवारने का प्रयास करें।
साहित्यिक कृतियां
वापसी
लखनऊ से मन खिन्न हो गया था। उसी दिन मैंने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं में जाने की तैयारी कर रहे मित्र उन्मेष को कॉल किया, अपनी जरूरी किताबें पैक की और एक ब्रीफकेस में कपडे रखकर स्टेशन आ गया। ट्रेन दो घंटा लेट थी। समय-सीमा से दो घंटे विलम्ब से छूटने की घोषणा हुई।
कमरे पर वापस जाने की इच्छा न थी। आदतन एक बुक स्टाल से हिन्दी मासिक पत्रिका लेकर पढने लगा। पढते-पढते एक कविता पर आकर ठहर गया। एक बार पढी, दो बार पढी और..! कवयित्री कुसुमांजलि, हां यही नाम था जिन्होंने वह कविता लिखी थी। भाव मुझे आज भी याद हैं- कि शहर बदलने से केवल शहर बदलता है, उससे जुडी स्मृतियां, वफाएं या कुछेक गिनी-चुनी सूरतें नहीं।
जीवन अनवरत् प्रवाहमान है। गतिमान होने के लिए जिंदा रहना होता है और जिंदा रहने के लिए किसी का साथ होना। साथ होने का मतलब है कि किसी का अपना होना। कविता यहीं पूरी होती थी। पता और मोबाइल नंबर भी था। कॉल करने न करने के अन्तर्द्वन्द्व से उबरते हुए आखिर में मैंने उनका नम्बर मिलाया और हेलो कहते ही उनकी बिना सुने, कविता में मुझे क्या अच्छा लगा, क्या बहुत अच्छा लगा, सब कुछ एक ही सांस में कहता चला गया।
बाद में हुई बातचीत में वह बहुत खुश और रोमांचित लगी। विचारों से स्वच्छ और उन्मुक्त भी। मुझे याद है बातचीत का क्रम टूटते-टूटते धीरे से हंसते हुए उन्होंने कहा था- आपकी प्रतिक्रिया और भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया आपकी बातें तो मुग्धकारी हैं। उस दिन की बातचीत का सिलसिला बहुत लम्बा होता गया। गाडी जाने कब आई और निकल गई, लेकिन जाने क्यों उस दिन ट्रेन छूटने का कोई अफसोस नहीं हुआ। हां इतना जरूर महसूस किया कि जिन कारणों से शहर छूट रहा था, उन्हीं कारणों से मैं शहर की ओर लौट रहा था..।
ससुराल की इज्जत
विदाई के समय मां ने दीक्षा को समझाया- बेटी अपने ससुराल वालों का ख्याल रखना। आज से वही तेरा घर है। हर सुख-दु:ख में उनका साथ देना। उनकी इज्जत ही तेरी इज्जत है। मां के बताए संस्कारों और अपने मधुर स्वभाव से दीक्षा ने ससुराल में सभी का दिल जीत लिया।
हंसते-गाते कब एक वर्ष बीत गया पता ही न चला। लेकिन अब उसके ससुराल वाले घोर चिंता में थे। उसकी ननद की शादी होनी थी। रुपयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। दीक्षा भी बहुत परेशान थी।
इसी बीच वह अपने मायके आई और वहां रखे हुए अपने गहने ले जाने लगी तो उसकी मां ने कहा- बेटी दीक्षा, ननद की शादी के लिए तू अपने गहने ले जा रही है यह तू क्या कर रही है? अपने पैरों पर खुद कुल्हाडी..।
मां की बात बीच में ही रोकते हुए वह बोली- मां यह आप क्या कह रही हो! आप ही ने तो मुझे बताया है कि ससुराल की इज्जत ही मेरी इज्जत है। मां, यह गहने मेरी ननद से बढकर नहीं हैं। अपनी ननद की शादी के लिए मैं हर संभव प्रयत्न करूंगी। और वह गहने लेकर ससुराल आ गई।
बच्चे
माँ -आखिर इसका क्या कारण है??
चिंटू- जी, कारण तो पापा ही बता सकते है।
चिंटू (मां से)- मां मेरी क्या कीमत है।
मां (चिंटू से)- बेटा तू तो लाखों का है।
चिंटू- तो लाखों में से 5 रुपये देना, मुझे आइसक्रीम खानी है।
चिंटू स्कूल आता है एक काला और एक सफेद जूता पहनकर।
टीचर (चिंटू से)- घर जाओ और जूते बदलकर आओ...
चिंटू- टीचर कोई फायदा नही वहा भी एक काला और एक सफेद जूता ही रखा है...
मां (चिंटू से)- तुम बल्ब पर अपने पापा का नाम क्यों लिख रहे हो?
चिंटू (मां से)- मैं पापा का नाम रोशन करना चाहता हूं।
अध्यापक (चिंटू से)- दो ऐसी चीजों के नाम बताओ जिन्हें नाश्ते में नही खा सकते।
चिंटू- जी लंच और डिनर।
मम्मी- पिंकी क्यों रो रही हो?
पिंकी- टीचर ने मारा।
मम्मी- क्यों?
पिंकी- मैंने उनको मुर्गी कहा क्योंकि उन्होंने मुझे टेस्ट में अंडा दिया था।
एक दस साल का बच्चा बहुत ध्यान से एक किताब पढ़ रहा था, जिसका शीर्षक था बच्चों का पालन पोषण कैसे करें।
मां - तुम ये किताब क्यों पढ़ रहे हो।
बच्चा- मैं ये देखना चाहता हूं कि मेरा पालन पोषण ठीक तरह से हो रहा है या नही।
चिंटू - मम्मी इस बार हम सारे पटाखे इस दुकान से ही लेंगे।
मम्मी- लेकिन बेटा ये तो गर्ल्स हॉस्टल है।
चिंटू-लेकिन पापा तो कहते हैं कि सारी फुलझडि़या यही रहती है।
अध्यापक (छात्र से)- तुम स्कूल क्यों आते हो?
छात्र (अध्यापक से)- विद्या के लिए सर!
अध्यापक- फिर तुम कक्षा में सो क्यों रहे हो?
छात्र- आज विद्या नही आयी है इसलिए सर!
एक छोटा बच्चा बहुत देर से घर के बाहर खड़ा दरवाजे की घंटी बजाने की कोशिश कर रहा था। तो एक वृद्ध व्यक्ति आया और बोला- क्या कर रहे हो बेटा?
बच्चा- अंकल, ये घंटी बजाना चाहता हूं।
वृद्ध व्यक्ति (घंटी बजाकर)- ये तो बज गयी अब क्या है।
बच्चा- अब भागो!
लखनऊ से मन खिन्न हो गया था। उसी दिन मैंने दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं में जाने की तैयारी कर रहे मित्र उन्मेष को कॉल किया, अपनी जरूरी किताबें पैक की और एक ब्रीफकेस में कपडे रखकर स्टेशन आ गया। ट्रेन दो घंटा लेट थी। समय-सीमा से दो घंटे विलम्ब से छूटने की घोषणा हुई।
कमरे पर वापस जाने की इच्छा न थी। आदतन एक बुक स्टाल से हिन्दी मासिक पत्रिका लेकर पढने लगा। पढते-पढते एक कविता पर आकर ठहर गया। एक बार पढी, दो बार पढी और..! कवयित्री कुसुमांजलि, हां यही नाम था जिन्होंने वह कविता लिखी थी। भाव मुझे आज भी याद हैं- कि शहर बदलने से केवल शहर बदलता है, उससे जुडी स्मृतियां, वफाएं या कुछेक गिनी-चुनी सूरतें नहीं।
जीवन अनवरत् प्रवाहमान है। गतिमान होने के लिए जिंदा रहना होता है और जिंदा रहने के लिए किसी का साथ होना। साथ होने का मतलब है कि किसी का अपना होना। कविता यहीं पूरी होती थी। पता और मोबाइल नंबर भी था। कॉल करने न करने के अन्तर्द्वन्द्व से उबरते हुए आखिर में मैंने उनका नम्बर मिलाया और हेलो कहते ही उनकी बिना सुने, कविता में मुझे क्या अच्छा लगा, क्या बहुत अच्छा लगा, सब कुछ एक ही सांस में कहता चला गया।
बाद में हुई बातचीत में वह बहुत खुश और रोमांचित लगी। विचारों से स्वच्छ और उन्मुक्त भी। मुझे याद है बातचीत का क्रम टूटते-टूटते धीरे से हंसते हुए उन्होंने कहा था- आपकी प्रतिक्रिया और भावना ने मुझे बहुत प्रभावित किया आपकी बातें तो मुग्धकारी हैं। उस दिन की बातचीत का सिलसिला बहुत लम्बा होता गया। गाडी जाने कब आई और निकल गई, लेकिन जाने क्यों उस दिन ट्रेन छूटने का कोई अफसोस नहीं हुआ। हां इतना जरूर महसूस किया कि जिन कारणों से शहर छूट रहा था, उन्हीं कारणों से मैं शहर की ओर लौट रहा था..।
ससुराल की इज्जत
विदाई के समय मां ने दीक्षा को समझाया- बेटी अपने ससुराल वालों का ख्याल रखना। आज से वही तेरा घर है। हर सुख-दु:ख में उनका साथ देना। उनकी इज्जत ही तेरी इज्जत है। मां के बताए संस्कारों और अपने मधुर स्वभाव से दीक्षा ने ससुराल में सभी का दिल जीत लिया।
हंसते-गाते कब एक वर्ष बीत गया पता ही न चला। लेकिन अब उसके ससुराल वाले घोर चिंता में थे। उसकी ननद की शादी होनी थी। रुपयों का इंतजाम नहीं हो पा रहा था। दीक्षा भी बहुत परेशान थी।
इसी बीच वह अपने मायके आई और वहां रखे हुए अपने गहने ले जाने लगी तो उसकी मां ने कहा- बेटी दीक्षा, ननद की शादी के लिए तू अपने गहने ले जा रही है यह तू क्या कर रही है? अपने पैरों पर खुद कुल्हाडी..।
मां की बात बीच में ही रोकते हुए वह बोली- मां यह आप क्या कह रही हो! आप ही ने तो मुझे बताया है कि ससुराल की इज्जत ही मेरी इज्जत है। मां, यह गहने मेरी ननद से बढकर नहीं हैं। अपनी ननद की शादी के लिए मैं हर संभव प्रयत्न करूंगी। और वह गहने लेकर ससुराल आ गई।
बच्चे
माँ -आखिर इसका क्या कारण है??
चिंटू- जी, कारण तो पापा ही बता सकते है।
चिंटू (मां से)- मां मेरी क्या कीमत है।
मां (चिंटू से)- बेटा तू तो लाखों का है।
चिंटू- तो लाखों में से 5 रुपये देना, मुझे आइसक्रीम खानी है।
चिंटू स्कूल आता है एक काला और एक सफेद जूता पहनकर।
टीचर (चिंटू से)- घर जाओ और जूते बदलकर आओ...
चिंटू- टीचर कोई फायदा नही वहा भी एक काला और एक सफेद जूता ही रखा है...
मां (चिंटू से)- तुम बल्ब पर अपने पापा का नाम क्यों लिख रहे हो?
चिंटू (मां से)- मैं पापा का नाम रोशन करना चाहता हूं।
अध्यापक (चिंटू से)- दो ऐसी चीजों के नाम बताओ जिन्हें नाश्ते में नही खा सकते।
चिंटू- जी लंच और डिनर।
मम्मी- पिंकी क्यों रो रही हो?
पिंकी- टीचर ने मारा।
मम्मी- क्यों?
पिंकी- मैंने उनको मुर्गी कहा क्योंकि उन्होंने मुझे टेस्ट में अंडा दिया था।
एक दस साल का बच्चा बहुत ध्यान से एक किताब पढ़ रहा था, जिसका शीर्षक था बच्चों का पालन पोषण कैसे करें।
मां - तुम ये किताब क्यों पढ़ रहे हो।
बच्चा- मैं ये देखना चाहता हूं कि मेरा पालन पोषण ठीक तरह से हो रहा है या नही।
चिंटू - मम्मी इस बार हम सारे पटाखे इस दुकान से ही लेंगे।
मम्मी- लेकिन बेटा ये तो गर्ल्स हॉस्टल है।
चिंटू-लेकिन पापा तो कहते हैं कि सारी फुलझडि़या यही रहती है।
अध्यापक (छात्र से)- तुम स्कूल क्यों आते हो?
छात्र (अध्यापक से)- विद्या के लिए सर!
अध्यापक- फिर तुम कक्षा में सो क्यों रहे हो?
छात्र- आज विद्या नही आयी है इसलिए सर!
एक छोटा बच्चा बहुत देर से घर के बाहर खड़ा दरवाजे की घंटी बजाने की कोशिश कर रहा था। तो एक वृद्ध व्यक्ति आया और बोला- क्या कर रहे हो बेटा?
बच्चा- अंकल, ये घंटी बजाना चाहता हूं।
वृद्ध व्यक्ति (घंटी बजाकर)- ये तो बज गयी अब क्या है।
बच्चा- अब भागो!
सोमवार, 25 जनवरी 2010
साहित्यिक कृतियां
चिंटू - मां, पापा बहुत शरीफ हैं।
मां- वो कैसे बेटा।
चिंटू - पापा जब भी किसी लड़की को देखते हैं तो अपनी एक आंख बंद कर लेते हैं।
पिंटू (चिंटू से)- ये कैसे पता चलेगा कि सामने जो जानवर है वह बकरा है या बकरी।
चिंटू (पिंटू से)- सिंपल है, उसको पत्थर मारना यदि वह भागा तो बकरा और भागी तो बकरी।
बच्चा अपनी दादी से, दादी आपने कौन-कौन से मुल्क घूमे हैं?
दी- बेटा पाकिस्तान, हिन्दुस्तान और अफगानिस्तान
बच्चा- अब कौन सा घूमेंगी..
पीछे से दादा बोले- कब्रिस्तान
साहित्यिक कृतियां
चिंटू - मां एक गिलास पानी देना।
मां- खुद ले लो..
चिंटू- प्लीज दे दो..
मां- अब मांगा तो थप्पड़ दूंगी।
चिंटू- जब थप्पड़ देने आओगी तो पानी लेते आना।
अध्यापक (चिंटू से)- बिजली कहां से आती है?
चिंटू (अध्यापक से)- मामा के घर से
अध्यापक- वो कैसे?
चिंटू- क्योंकि जब भी बिजली जाती है पापा कहते है सालों ने फिर काट दी!
प्रस्तुतकर्ता अरुण बंछोर पर ८:२४ AM 0 टिप्पणियाँ
सबसे महान कौन?
एक बार देवर्षि नारद के मन में यह जानने की इच्छा हुई कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे महान कौन है? वे वैकुंठ लोक गए। उन्होंने वहां प्रभु से प्रश्न किया, हे प्रभु! इस पृथ्वी पर सबसे महान कौन हैं? प्रभु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, नारदजी! सबसे बडी तो यह पृथ्वी दिखती है। इसलिए हम पृथ्वी को इसकी संज्ञा दे सकते हैं। दूसरी ओर, उसे समुद्र ने घेर रखा है। इस कारण समुद्र उससे भी बडा सिद्ध हुआ। एक बार इस समुद्र को भी अगस्त मुनि ने पी लिया था। इस कारण समुद्र कैसे बडा हो सकता है? ऐसी स्थिति में अगस्त्य मुनि सबसे बडे हुए। लेकिन उनका वास कहां है? अनंत आकाश के एक सीमित भाग में, मात्र बिंदु के समान वे एक जुगनू की तरह चमक रहे हैं। इस प्रकार आकाश उनसे बडा साबित हुआ। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने इस आकाश को भी एक पग में ही नाप लिया था। इस तरह विष्णु ही सबसे महान सिद्ध होते हैं। फिर भी नारद विष्णु भी सर्वाधिक महान नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि वे हमेशा आपके हृदय में अंगुठे इतनी जगह में ही विराजते हैं। इसलिए सबसे महान आप सिद्ध हुए।
जी सर
साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- कल जो नया बाबू आया है, उसे मेरे पास भेजो। जी सर। थोडी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। क्या नाम है? संदीप। घर कहां है? प्रतापगढ। क्यों आज मंगलवार है? नहीं सर, आज बुधवार है। साहब अभी तक फाइल में ही नजरें गडाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। तुम मुझसे ज्यादा जानते हो? नहीं सर। मैंने आज सुबह अखबार में पढा था। अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते हैं। लेकिन सर, मेरी कलाई घडी में भी आज बुधवार है। गेट आउट फ्राम हियर। संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बडे बाबू मनोहरलाल को बुलवाया। बडे बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- क्यों बडे बाबू, आज मंगलवार है? जी सर। गुड, नाउ यू कैन गो।
अपना घर
इस क्षमा को अचानक क्या हो गया.. चेहरे पर उदासी क्यों? थोडी देर पहले तो बडी खुश थी अपने नये घर में आकर। सात वर्षीया बेटी को उदास देखकर मि. शर्मा पत्नी से बोले- पूछो तो जरा..।
अपने पुराने पडोसी दोस्तों को याद करके दु:खी हो रही है शायद। मिसेज शर्मा मुस्कराई। यहां भी कुछ दिनों में नये दोस्त बन जायेंगे। बन्टी ने तो आज ही दो दोस्त बना लिये। देखो- लॉन में कैसे उछल-कूद रहा है उनके साथ। इसे भी लॉन में भेज दो।
मिसेज शर्मा ने बेटी को पुकार कर कहा- अकेली क्यों बैठी हो बेटी बाहर बन्टी भइया के साथ खेलो न। बेटी बाहर न गयी। गुमसुम-सी पास आकर बोली- एक बात पूछूं मम्मी?
हां-हां, पूछो बेटी। यह घर किसका है? अपना है बेटी.. अपना नया घर।
मेरा भी? हां, हम सब का घर। मि. शर्मा सहर्ष बीच में बोल पडे।
बेटी कुछ पल उनका मुख ताकती रही। फिर पूछा- तो फिर पापा, गेट पर लगे पत्थर में मेरा नाम क्यों नहीं? बेटी के इस प्रश्न का जवाब किसी के पास न था। मि. शर्मा की आंखों में गेट पर लगा पत्थर नाच उठा।
काले चमचमाते पत्थर पर सबसे ऊपर उनका स्वयं का नाम अंकित था, फिर पत्नी का और अन्त में बेटे बन्टी का।
मां- वो कैसे बेटा।
चिंटू - पापा जब भी किसी लड़की को देखते हैं तो अपनी एक आंख बंद कर लेते हैं।
पिंटू (चिंटू से)- ये कैसे पता चलेगा कि सामने जो जानवर है वह बकरा है या बकरी।
चिंटू (पिंटू से)- सिंपल है, उसको पत्थर मारना यदि वह भागा तो बकरा और भागी तो बकरी।
बच्चा अपनी दादी से, दादी आपने कौन-कौन से मुल्क घूमे हैं?
दी- बेटा पाकिस्तान, हिन्दुस्तान और अफगानिस्तान
बच्चा- अब कौन सा घूमेंगी..
पीछे से दादा बोले- कब्रिस्तान
साहित्यिक कृतियां
चिंटू - मां एक गिलास पानी देना।
मां- खुद ले लो..
चिंटू- प्लीज दे दो..
मां- अब मांगा तो थप्पड़ दूंगी।
चिंटू- जब थप्पड़ देने आओगी तो पानी लेते आना।
अध्यापक (चिंटू से)- बिजली कहां से आती है?
चिंटू (अध्यापक से)- मामा के घर से
अध्यापक- वो कैसे?
चिंटू- क्योंकि जब भी बिजली जाती है पापा कहते है सालों ने फिर काट दी!
प्रस्तुतकर्ता अरुण बंछोर पर ८:२४ AM 0 टिप्पणियाँ
सबसे महान कौन?
एक बार देवर्षि नारद के मन में यह जानने की इच्छा हुई कि पूरे ब्रह्मांड में सबसे महान कौन है? वे वैकुंठ लोक गए। उन्होंने वहां प्रभु से प्रश्न किया, हे प्रभु! इस पृथ्वी पर सबसे महान कौन हैं? प्रभु ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, नारदजी! सबसे बडी तो यह पृथ्वी दिखती है। इसलिए हम पृथ्वी को इसकी संज्ञा दे सकते हैं। दूसरी ओर, उसे समुद्र ने घेर रखा है। इस कारण समुद्र उससे भी बडा सिद्ध हुआ। एक बार इस समुद्र को भी अगस्त मुनि ने पी लिया था। इस कारण समुद्र कैसे बडा हो सकता है? ऐसी स्थिति में अगस्त्य मुनि सबसे बडे हुए। लेकिन उनका वास कहां है? अनंत आकाश के एक सीमित भाग में, मात्र बिंदु के समान वे एक जुगनू की तरह चमक रहे हैं। इस प्रकार आकाश उनसे बडा साबित हुआ। वामन अवतार में भगवान विष्णु ने इस आकाश को भी एक पग में ही नाप लिया था। इस तरह विष्णु ही सबसे महान सिद्ध होते हैं। फिर भी नारद विष्णु भी सर्वाधिक महान नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि वे हमेशा आपके हृदय में अंगुठे इतनी जगह में ही विराजते हैं। इसलिए सबसे महान आप सिद्ध हुए।
जी सर
साहब ने आफिस में घुसते ही अपने पी.ए. से कहा- कल जो नया बाबू आया है, उसे मेरे पास भेजो। जी सर। थोडी देर में नवनियुक्त बाबू डरता-कांपता साहब के कमरे में हाजिर हुआ। क्या नाम है? संदीप। घर कहां है? प्रतापगढ। क्यों आज मंगलवार है? नहीं सर, आज बुधवार है। साहब अभी तक फाइल में ही नजरें गडाये थे। लेकिन जब एक बाबू ने उनकी बात काटी, तो उनका अहंकार जाग गया। उन्होंने घूरती नजरों से संदीप को देखा। संदीप कांप गया। तुम मुझसे ज्यादा जानते हो? नहीं सर। मैंने आज सुबह अखबार में पढा था। अखबार भी तुम जैसे नाकारा ही छापते हैं। लेकिन सर, मेरी कलाई घडी में भी आज बुधवार है। गेट आउट फ्राम हियर। संदीप के बाहर जाते ही साहब ने बडे बाबू मनोहरलाल को बुलवाया। बडे बाबू के आते ही उन्होंने पूछा- क्यों बडे बाबू, आज मंगलवार है? जी सर। गुड, नाउ यू कैन गो।
अपना घर
इस क्षमा को अचानक क्या हो गया.. चेहरे पर उदासी क्यों? थोडी देर पहले तो बडी खुश थी अपने नये घर में आकर। सात वर्षीया बेटी को उदास देखकर मि. शर्मा पत्नी से बोले- पूछो तो जरा..।
अपने पुराने पडोसी दोस्तों को याद करके दु:खी हो रही है शायद। मिसेज शर्मा मुस्कराई। यहां भी कुछ दिनों में नये दोस्त बन जायेंगे। बन्टी ने तो आज ही दो दोस्त बना लिये। देखो- लॉन में कैसे उछल-कूद रहा है उनके साथ। इसे भी लॉन में भेज दो।
मिसेज शर्मा ने बेटी को पुकार कर कहा- अकेली क्यों बैठी हो बेटी बाहर बन्टी भइया के साथ खेलो न। बेटी बाहर न गयी। गुमसुम-सी पास आकर बोली- एक बात पूछूं मम्मी?
हां-हां, पूछो बेटी। यह घर किसका है? अपना है बेटी.. अपना नया घर।
मेरा भी? हां, हम सब का घर। मि. शर्मा सहर्ष बीच में बोल पडे।
बेटी कुछ पल उनका मुख ताकती रही। फिर पूछा- तो फिर पापा, गेट पर लगे पत्थर में मेरा नाम क्यों नहीं? बेटी के इस प्रश्न का जवाब किसी के पास न था। मि. शर्मा की आंखों में गेट पर लगा पत्थर नाच उठा।
काले चमचमाते पत्थर पर सबसे ऊपर उनका स्वयं का नाम अंकित था, फिर पत्नी का और अन्त में बेटे बन्टी का।
रविवार, 24 जनवरी 2010
संता और बंता
युवा दोस्त
शिब्बू बंछोर
रमन- देख यार! जब मैं रोता हूँ, हँसता हूँ, दुःखी होता हूँ, गुस्सा करता हूँ तो किसी को दिखाई नहीं देता। लेकिन अगर...
चमन- अगर क्या? बोल न मेरे यार....।
रमन- लेकिन अगर किसी लड़की के साथ घूमने जाऊँ तो सारी दुनिया देख लेती है।
बॉस (संता से)- एक अच्छा शीशा लेकर आओ जिसमें मेरा चेहरा दिखायी दे।
संता- मैं सब दुकानों पर देख आया सब में मेरा चेहरा ही दिख रहा था।
बंता (संता से)- आओ जी चैस खेलें।
संता (बंता से)- तू चल मैं स्पोर्टस शूज पहनकर आता हूं।
संता (बंता से)- यार एक लड़की मुझे हंस कर देख रही है।
बंता (संता से)- अबे ध्यान से देख, हंस के देख रही है या देख कर हंस रही है।
संता बाइक से जा रहा था, लड़की को देख कर बाइक से गिर गया..
लड़की- ओह माई गॉड लगी तो नही?
संता- ओह सोणयों हम तो ऐसे ही बाइक से उतरते हैं।
संता [बंता से]- बंता ये बताओ कि एप्पल और ऑरेंज में क्या अंतर होता है।
बंता [संता से]- आसान है, ऑरेंज का कलर ऑरेंज होता है जबकि एप्पल का कलर एप्पल नहीं होता।
संता का गधा खो गया तो संता भगवान की प्रार्थना कर शुक्रिया अदा करने लगा।
बंता ने पूछा- तुम्हारा गधा खो गया और तुम भगवान को धन्यवाद दे रहे हो।
संता- मैं धन्यवाद इसलिए दे रहा हूं की अच्छा हुआ मैं उस पर नही बैठा हुआ था नही तो मैं भी खो जाता।
संता पेड़ के ऊपर उलटा लटका हुआ था।
बंता- तू पेड़ पर क्यों लटका है।
संता- सर दर्द की गोली खायी थी, कहीं पेट में न चली जाये, इसलिये..
संता (बंता से)- ओए बंते, तू दरवाजे पर इतनी हड़बड़ी में पेंट क्यों पोत रहा है?
बंता (संता से)- वो क्या है न कि पेंट कम है और मुझे डर है कि कही खत्म न हो जाए।
एक सरदार रेल की पटरी पर सो गया, एक आदमी ने कहा क्या कर रहे हो? ट्रेन आएगी तो मर जाओगे!
संता- मेरे ऊपर से जहाज गुजर गया तो कुछ नही हुआ, ट्रेन क्या चीज है?
संता (बंता से)- ओए अगर नींद न आये तो क्या किया जाये?
बंता (संता से)- नींद का इंतजार करने से अच्छा है कि बंदा सो ही जाये।
शिब्बू बंछोर
रमन- देख यार! जब मैं रोता हूँ, हँसता हूँ, दुःखी होता हूँ, गुस्सा करता हूँ तो किसी को दिखाई नहीं देता। लेकिन अगर...
चमन- अगर क्या? बोल न मेरे यार....।
रमन- लेकिन अगर किसी लड़की के साथ घूमने जाऊँ तो सारी दुनिया देख लेती है।
बॉस (संता से)- एक अच्छा शीशा लेकर आओ जिसमें मेरा चेहरा दिखायी दे।
संता- मैं सब दुकानों पर देख आया सब में मेरा चेहरा ही दिख रहा था।
बंता (संता से)- आओ जी चैस खेलें।
संता (बंता से)- तू चल मैं स्पोर्टस शूज पहनकर आता हूं।
संता (बंता से)- यार एक लड़की मुझे हंस कर देख रही है।
बंता (संता से)- अबे ध्यान से देख, हंस के देख रही है या देख कर हंस रही है।
संता बाइक से जा रहा था, लड़की को देख कर बाइक से गिर गया..
लड़की- ओह माई गॉड लगी तो नही?
संता- ओह सोणयों हम तो ऐसे ही बाइक से उतरते हैं।
संता [बंता से]- बंता ये बताओ कि एप्पल और ऑरेंज में क्या अंतर होता है।
बंता [संता से]- आसान है, ऑरेंज का कलर ऑरेंज होता है जबकि एप्पल का कलर एप्पल नहीं होता।
संता का गधा खो गया तो संता भगवान की प्रार्थना कर शुक्रिया अदा करने लगा।
बंता ने पूछा- तुम्हारा गधा खो गया और तुम भगवान को धन्यवाद दे रहे हो।
संता- मैं धन्यवाद इसलिए दे रहा हूं की अच्छा हुआ मैं उस पर नही बैठा हुआ था नही तो मैं भी खो जाता।
संता पेड़ के ऊपर उलटा लटका हुआ था।
बंता- तू पेड़ पर क्यों लटका है।
संता- सर दर्द की गोली खायी थी, कहीं पेट में न चली जाये, इसलिये..
संता (बंता से)- ओए बंते, तू दरवाजे पर इतनी हड़बड़ी में पेंट क्यों पोत रहा है?
बंता (संता से)- वो क्या है न कि पेंट कम है और मुझे डर है कि कही खत्म न हो जाए।
एक सरदार रेल की पटरी पर सो गया, एक आदमी ने कहा क्या कर रहे हो? ट्रेन आएगी तो मर जाओगे!
संता- मेरे ऊपर से जहाज गुजर गया तो कुछ नही हुआ, ट्रेन क्या चीज है?
संता (बंता से)- ओए अगर नींद न आये तो क्या किया जाये?
बंता (संता से)- नींद का इंतजार करने से अच्छा है कि बंदा सो ही जाये।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)