शनिवार, 30 जनवरी 2010

कविता

यही अंदाज है मेरे जीने का
शशीन्द्र जलधारी
ये दिल सदा ढूँढता है हर इक पल खुशी का
अंदाज यही है मेरा अपना जीवन जीने का।
इस जहाँ में कौन‍ किसी का दुख हरता है,
मुझे सुकूँ मिलता है अपना सुख बाँटने का।
बच्चों में भगवान बसते-यह सब कहते हैं,
मैं कोशिश करता हूँ, रोते बच्चे को हँसाने का।

स्पर्धा में हर कोई अव्वल रहना चाहता है।
दुख है मुझको काबिलियत के पिछड़ने का।
बस्ती में जब धर्म के नाम पर आग लगाई जाती,
कोफ्त होता है मुझे उनके इंसान होने का।

दिल किसी का टूटने पर दर्द मुझे होता है।
अच्छा नहीं लगता है मिलकर बिछड़ने का
सब जानते हैं खुदा एक है, रास्ते अलग-अलग
बंदों में नफरत देख, दिल रोता है भगवान का।

स्वार्थ की खातिर भूल जाए जो अपने ईमान को,
क्या फायदा है उनकी इस ऊँची पढ़ाई का।
गरीबों और यतीमों की करते नहीं हैं खिदमत,
कोई अर्थ नहीं है उनका रोज मंदिर जाने का।
सत्य, चरित्र और नैतिकता का पाठ भुला बैठे हैं,
क्या मतलब है निस दिन घंटों पोथी पढ़ने का।

झूठी शानो-शौकत के उजाले नहीं मुझे पसंद,
खूब रोशनी करता है घर में दीपक मिट्‍टी का।
झूठ फरेब के पकवानों में स्वाद नहीं आता,
भोजन मुझे सुहाता मेहनत की कमाई का।

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