मंगलवार, 7 सितंबर 2010

भगवान गणेश

क्या दो देवता हैं गणेश और गणपति?
हिन्दू धर्म ग्रंथों में प्रसंग है कि भगवान शिव के विवाह में सबसे पहले गणपति की पूजा हुई थी। यह सुनकर मन में यह जानने कि उत्सुकता होती है कि जब भगवान गणेश शिव-पार्वती के पुत्र हैं तो उनके विवाह के पहले ही उनकी पूजा कैसे की गई। लोक मान्यताओं में भी गणेश और गणपति को एक देवता के रुप में जाना जाता है। किंतु धर्म ग्रंथ में गणेश और गणपति को अलग-अलग रुप के बारे में बताया गया हैं। जानते हैं अंतर को -

शास्त्रों के अनुसार गणेश का अर्थ है - जगत के सभी प्राणियों का ईश्वर या स्वामी। इसी तरह गणपति का मतलब होता है - गणों यानि देवताओं का मुखिया या रक्षक।
गणपति को शिव, विष्णु की तरह ही स्वयंभु, अजन्मा, अनादि और अनंत यानि जिनका न जन्म हुआ न ही अंत है, माना गया है।
श्री गणेश इन गणपति का ही अवतार हैं। जैसे पुराणों में विष्णु का अवतार राम, कृष्ण, नृसिंह का अवतार बताया गया है। वैसे ही गणपति, गणेश रुप में जन्में और अलग-अलग युगों में अलग-अलग रुपों में पूजित हुए। विनायक, मोरेश्वर, धूम्रकेतु, गजानन कृतयुग, त्रेतायुग में पूजित गणपति के ही रुप है। यही कारण है कि काल अन्तर से श्रीगणेश जन्म की भी अनेक कथाएं हैं।
सनातन धर्म में वैदिक काल से ही पांच देवों की पूजा लोकप्रिय है। इनमें गणपति पंच देवों में प्रमुख माने गए हैं। इन सब बातों में एक बात साफ है कि गणपति हो या गणेश वास्तव मे दोनों ही शक्ति का नाम है जो हर कार्य मे सिद्ध यानि कुशल और सफल बनाती है।

ऐसा रुप क्यों है गणेश का?

हर धार्मिक कर्म, पूजा, उपासना या शुभ और मंगल कार्यों में स्वस्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। लोक भाषा में यह मंगल का प्रतीक है। लेकिन यहां जानते हैं कि वास्तव में शुभ कार्यों में स्वस्तिक बनाने का क्या कारण है -
दरअसल धार्मिक नजरिए से स्वस्तिक भगवान श्री गणेश का साकार रुप है। इसमें बाएं भाग में गं बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्री गणेश का स्थान माना जाता है। इसकी आकृति में चार बिन्दियां भी बनाई जाती है। जिसमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानि कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है।

स्वस्तिक के भगवान गणेश का रुप होने का प्रमाण दुनिया के सबसे पुराने ग्रंथ माने जाने वाले वेदों में आए शांति पाठ से भी होती है, जो हर हिन्दू धार्मिक रीति-रिवाजों में बोला जाता है। यह मंत्र है -
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:
स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु
इस मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है। जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ध्यान और आवाहन किया गया है।
इसमें व्यावहारिक जीवन का पक्ष खोजें तो पाते हैं कि जहां शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं स्वस्तिक का वास होता है सरल शब्दों में जहां परिवार, समाज या रिश्तों में प्यार, सुख, श्री, उमंग, उल्लास, सद्भाव, सुंदरता और विश्वास का भाव हो। वहीं सुख और सौभाग्य होता है। इसे ही जीवन पर श्री गणेश की कृपा माना जाता है यानि श्री गणेश वहीं बसते हैं। इसलिए श्रीगणेश को मंगलकारी देवता माना गया है।

लाईफ बना दे ऐसी गणेश पूजा
भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (इस बार 11 सितंबर) श्री गणेश का जन्मदिन होने से गणपति उपासना का विशेष महत्व है। इस विनायकी चतुर्थी पर भगवान श्री गणेश की प्रसन्नता के पूरी आस्था और श्रद्धा से व्रत, उपवास, पूजा-अर्चना की जाती है। जानते हैं इसी गणेश पूजा की सरल विधि -

- प्रात:काल स्नान एवं नित्यकर्म करें।
- मध्यान्ह के समय शुभ मुहूर्त देखकर अपनी शक्ति के सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान गणेश की प्रतिमा घर, कार्यालय या देवालय में स्थापित करें।
- श्रीगणेश पूजा स्वयं या फिर किसी विद्वान ब्राह्मण से कराएं। जिसमें संकल्प मंत्र के बाद षोड़शोपचार पूजन-आरती करें। इस पूजन में भगवान श्री गणेश को सोलह प्रकार की पूजन सामग्री अर्पित की जाती है। इनमें धूप, दीप, गंध, पुष्प, अक्षत के साथ विशेष रुप से सिंदूर, दूर्वा, लाल चंदन जरुर चढ़ाना चाहिए।
- पूजा में तुलसी दल भगवान श्री गणेश को नहीं चढ़ाना चाहिए। यह शास्त्रों में वर्जित बताया गया है।
- गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। गणेश मंत्र बोलते हुए 21 दुर्वा-दल चढ़ाएं।
ऊँ गणाधिपायनम:। ऊँ उमापुत्रायनम:।
ऊँ विघ्ननाशायनम:। ऊँ विनायकायनम:।
ऊँ ईशपुत्रायनम:। ऊँ सर्वसिद्धिप्रदायनम:।
ऊँ एकदन्तायनम:। ऊँ इभवक्त्रायनम:।
ऊँ मूषकवाहनायनम:। ऊँ कुमारगुरवेनम:।
- भगवान गणेश का मंत्र ओम गं गणपतये नम: बोलकर भी दुर्वा चढाएं। इस मंत्र का 108 बार जप भी करें।
- गुड़ या बूंदी के 21 लड्डुओं का ही भोग लगाना चाहिए। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास चढ़ाएं और 5 ब्राह्मण को दें। बाकी लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें।
- पूजा में भगवान श्री गणेश स्त्रोत, अथर्वशीर्ष, संकटनाशक स्त्रोत आदि का पाठ करें। यह स्त्रोत इस साईट पर उपलब्ध है।
- ब्राह्मण भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा भेंट करने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन ग्रहण कर सकते हैं। जहां तक संभव हो उपवास करें।
श्री गणेश की पूजा और आरती अगले दस दिनों तक पूरी श्रद्धा, भाव से करें। धार्मिक दृष्टि से श्री गणेश की ऐसी पूजा सभी भौतिक सुख, सफलता देने वाली होती है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर , लाजवाब .


    पोला की बधाई भी स्वीकार करें .

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  2. स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:
    स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु

    ---श्री जन जी, मेरे विचार से -- उपरोक्त श्लोक में ’स्वस्ति न” का अर्थ है हमारा मंगल करें----बज्र्श्रवा इन्द्र,पूषा, समस्त नक्षत्र गण व ब्रहस्पति---वेदों में मूलतः गणेश का कोई वर्णन नहीं है। गणेश वैदिक देवता नहीं हैं ।

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