सोमवार, 23 अगस्त 2010

रक्षा बंधन

रक्षा बंधन भाई बहन के रिश्ते की अलार्म क्लॉक
रक्षाबंधन का यह पर्व आज पूरी दुनिया में मशहूर है। बाजार भी कई तरह के उपहारों से भरा पड़ा है। राखियां भी कई तरह के रंगबिरंगे रंगों से दुकानों में बंदनवार जैसे सजी हुई हैं। बहनें राखी तलाश रही हैं और भाई उपहार खोज रहे हैं। पर एक महत्वपूर्ण चीज जिसे खोजा जाना चाहिए था वह कोई नहीं खोज रहा जबकि असल में वही ज़रूरी है और वह ज़रूरी चीज़ है विश्वास और प्रेम। हम मंहगी राखियों और कीमती उपहारों से ज्यादा कुछ नहीं सोच रहे क्योंकि यह ही हमारे दिमाग में हावी हैं।

विश्वास और प्रेम होता तो क्या कोई भाई अपनी बहन और उसके जीवनसाथी की जान ले सकता था? इज्जत के नाम पर हत्या का जो खेल लगातार चल रहा है वह थम न गया होता? क्या इन भाइयों की कलाई पर राखी नहीं सजी होगी या फिर इन्होंने कीमती उपहार नहीं दिए? सब कुछ हुआ पर विश्वास और प्रेम का रिश्ता न बन सका। रक्षाबंधन का दिन इसी विश्वास और प्रेम को कायम रखने के लिए मनाया जाता है एक तरह से यह भाई-बहन के रिश्ते की अलार्म क्लॉक है। ताकि रिश्ते हमेशा सजग रहें।

धर्म और जाति से परे है रक्षाबंधन
रक्षा बंधन का पर्व भाई और बहन के रिश्ते की डोर में बंधा सुरक्षा कवच है। यह रिश्ता धर्म की सीमाओं से भी परे है। इतिहास गवाह है कि हिंदू,मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, जैन, पारसी जैसे अलग-अलग धर्मों के बीच भी भाई और बहन के रिश्तों ने जन्म लिया और पूरे जीवनभर निभाया।

दूर-दूर तक फैली है रिश्तों की डोर
यह रिश्ता एक ही कोख से जन्म लेने वाले भाई- बहन के बीच जितना लोकप्रिय है उतना ही लोकप्रिय अंतरजातीय, अंतरदेशीय भाई बहन के बीच भी है। बहुत सारे अंचल ऐसे भी हैं जहां यह रिश्ते परस्पर फूल और मिठाई देकर तय होते हैं और इसे फूल पताना या सहया बनाना कहते हैं फूल माँ, फूल बाबा, फूल भाई, फूल बहन। झारखंड में इस तरह के रिश्तों का रिवाज है और यह रिश्ते हर पीढ़ी को निभाने होते हैं और लोग बहुत प्रेम के साथ यह रिश्ते निभाते हैं। फूल मां और फूल बहन के रिश्ते ऐसे गांवों में ज्यादा हैं,जहां अलग -अलग जातियों के लोग रहते हैं। रक्षाबंधन से लेकर शादी तक में रस्में निभाई जाती हैं। इस तरह से रिश्तों की यह बनावट हमारे समाज को मजबूत करती है और सांस्कृतिक विकास भी करती हैं।

फिल्मों से लेकर सीरियल तक में है रक्षाबंधन का त्योहार
इस थीम पर बनी फिल्में भी सुपरहिट रही। इन फिल्मों के गाने आज भी रक्षाबंधन के दिन एफएम से लेकर टीवी तक में देखे सुने जा सकते हैं। समय के साथ यह गाने अन्य गानों की तरह बासी नहीं हुए बल्कि आज भी इन गानों को सुनकर रिश्तों की मिठास का अनुभव होता है। इसकी वजह साफ हैं क्योंकि भाई-बहन के रिश्ते में किसी तीसरे की घुसपैठ की संभावना नहीं रहती। टीवी सीरियलों में भी भाई -बहन की जोड़ी यह त्योहार मनाती है।

भाई-बहन की जोड़ी आदर्श
परिवार की पूर्णता के लिए अभी भी भाई-बहन की जोड़ी आदर्श मानी जाती है। पहली बेटी है तो अभी भी लोग आर्शीवाद देते समय कहते हैं अब तो भाई आना चाहिए। कहने का अर्थ यह है कि भाई और बहन की जोड़ी समाज में परिवार की संपूर्णता के रूप में देखी जाती है। राखी के दिन बहन भी अपने भाई को उपहार
देती है।

मौन भी हो जाते हैं रिश्ते
आज से कुछ समय पहले रिश्तों में एक अजीब सा ठहराव आ गया था। मन की दूरियां भी बढ़ने लगी थी इसकी वजह यह थी कि आपस में संवाद नहीं हो पाता था। संवाद के साधनों में सिर्फ डाक सेवा थी टेलीफोन भी सबके घरों में नहीं थे। चिट्ठी में कितना लिख सकते हैं और उसके पहुंचने में भी समय लगता था। फिर भी उसका आसरा था। घर से दूर गया भाई एक ही चिट्ठी में सबको लिखता था। पर्सनल स्पेस कम था। पढ़ाई-लिखाई के लिए या फिर नौकरी के लिए निकला भाई काम में इतना व्यस्त हो जाता था कि उसे फुर्सत ही नहीं मिल पाती थी । यही वजह थी कि रिश्तों में दूरियां थी।

तकनीक ने दिए रिश्तों को बोल
उदारीकरण के बाद बदलाव आया। नई तकनीकि का विकास जोर शोर से शुरू हुआ लोगों के पास पैसा भी आया । हर किसी के घर में फोन में घंटियां बजने लगीं। इतना ही नहीं मोबाइल भी लोगों के हाथ में दिखाई देने लगे। शुरू में यह बहुत मंहगे थे पर धीरे-धीरे यह सस्ते हो गए और हर किसी के हाथ में आ गए। इसी के साथ कंप्यूटर की दुनिया में भी सभी का दखल होने लगा। छोटे से लेकर बड़े शहरों में कंप्यूटर सिखाने वाले इंस्टीटय़ूट दिखाई देने लगे और इस तरह संवाद के रास्ते भी खुल गए। रिश्ते मन के और करीब आ गए। फेस बुक, ट्विटर, ई-मेल ने रिश्तों का विकास किया।

बहनें करती हैं भाइयों के सपने पूरे
बहुत बार जिंदगी में ऐसे भी मोड़ आते हैं,जो असहनीय होते हैं रिश्तों की डोर टूट जाती है। काम अधूरे रह जाते हैं। ऐसे में बहनें अपने भाई के द्वारा शुरू किए गए कार्यों को मंजिल तक पहुंचाती हैं। वह डॉक्टर बनती है, आईएएस बनती है। पर हर हाल में भाई का सपना पूरा करती हैं।

बहनें बहनें भी बांधती हैं राखियां
अपने ही बारे में बताती हूं। हम दो बहनें है। भाई की मृत्यु एक्सीडेंट से हो गई। एक्सीडेंट के बाद जब उसे अस्पताल ले जाया गया डॉक्टर ने केस हेंडिल करने में काफी समय लगा दिया। इससे उसका काफी खून बह गया और वह बच नहीं सका। मेरी दीदी तब बहुत ही छोटी थी और उसके लिए यह एक ऐसा घाव था जो कभी नहीं भर सकता था। उसके दिमाग में यह बात बैठ गई कि अगर डॉक्टर ने समय रहते उसे देख लिया होता तो मेरा भाई जिंदा रहता। उस छोटी सी बच्चाी ने उसी दिन खुद से वादा किया कि मैं बड़ी होकर डॉक्टर बनूंगी और मरीजों की सेवा करूंगी। आज वह डॉक्टर है और मरीजो ं की सेवा में जी-जान से जुटी है। मैं अपनी इसी दीदी को राखी बांधती हूं। क्योंकि मेरे लिए तो भाई भी वही है और दीदी भी।

मुनाफा नहीं है रिश्ता
भाई-बहन का रिश्ता मुनाफा नहीं है। रक्षाबंधन का पर्व प्रेम और सद्भावना का है पर हमने इसे मुनाफे से जोड़ दिया है। राखी के गिफ्ट ज्यादा पापुलर हो रहे हैं। और यह गिफ्ट भी काफी मंहगें हैं। रिश्तों में बाजार इस कदर हावी है कि रिश्ते का अर्थ उपहार की कीमत से देखा जा रहा है। बहनों को भी सोसायटी फोबिया है और वह भाई के उपहार को अपना स्टेटस सिंबल बना रही हैं। भाई की कुशल क्षेम पूछने के बजाए दोस्तों को इस बात को जानने की इच्छा होती है कि गिफ्ट क्या मिला? बहन की खुशी गिफ्ट के डिब्बे में कैद हो गई हैं। बाजार महिला के इसी मनोविज्ञान को भुना रहा है और काफी हद तक सफल भी है।

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