हर्ष
हर्ष मेरी अभिव्यक्ति है इसमे लिखी बातें मेरा अपना विचार होगा|
बुधवार, 28 जनवरी 2015
तीन मछलियां
एक बड़ा जलाशय था। जलाशय में पानी गहरा होता है, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी बहुत-सी मछलियां आकर रहती थी। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थी। वह जलाशय आसानी से नजर नहीं आता था।
उसी में तीन मछलियों का झुंड रहता था। उनके स्वभाव भिन्न थे। पिया नामक मछली संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी। रिया कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो। चिया का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार हैं करने कराने से कुछ नहीं होता जो किस्मत में लिखा है, वह होकर रहेगा।
एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियां पकड़ कर घर जा रहे थे। बहुत कम मछलियां उनके जालों में फंसी थी। अतः उनके चेहरे उदास थे। तभी उन्हें झाडियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिखाई दिया। सबकी चोंच में मछलियां दबी थी। वे चौंके।
एक ने अनुमान लगाया दोस्तों! लगता हैं झाडियों के पीछे नदी से जुड़ा जलाशय हैं, जहां इतनी सारी मछलियां पल रही हैं।
मछुआरे पुलकित होकर झाडियों में से होकर जलाशय के तट पर आ निकले और ललचाई नजर से मछलियों को देखने लगे।
एक मछुआरा बोला अहा! इस जलाशय में तो मछलियां भरी पड़ी हैं। आज तक हमें इसका पता ही नहीं लगा।
यहां हमें ढेर सारी मछलियां मिलेंगी। दूसरा बोला।
तीसरे ने कहा आज तो शाम घिरने वाली हैं। कल सुबह ही आकर यहां जाल डालेंगे।
बुधवार, 13 नवंबर 2013
'शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे'
'शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे'
अपनी बीवी पर किसी का हुकुम चलाना – मुझे पसंद नहीं।
किसी का उसकी ओर जरा आंख उठाना – मुझे पसंद नहीं।
क्या बताऊं यारों सब प्यार से मुझे ही बुलाते हैं “किसी”।
इसलिए किसी को भी अपना नाम बताना – मुझे पसंद नहीं...।
बेलन लगता है तो लग जाए बेशक, मगर,
बेगम का यूं निशाना लगाना – मुझे पसंद नहीं
जो चीज़ बनी है जिसके लिए वही करो न इस्तेमाल,
अब झाड़ू का यूं तलवार बनाना - मुझे पसंद नहीं
कभी कभी पूरे परिवार को डिनर पर ले जाता हूं मैं,
क्यूंकि रोज-रोज बीवी संग बर्तन धुलवाना – मुझे पसंद नहीं
कैसे दिए हैं 10-12 क्रेडिट कार्ड बेगम को मैंने,
भैया यूं कैश में हर जगह शोपिंग कराना – मुझे पसंद नहीं
मांगे पूरी कर देता हूं मैं बेगम की हमेशा टाइम पर,
थका-मांदा घर लौंटू, उस फिर पिटना-पिटाना – मुझे पसंद नहीं
सरदर्द बेग़म का मुझे परेशान करता है हरदम,
पहले बाम लगाना फिर सर दबाना – मुझे पसंद नहीं
शादी का ये लड्डू होता है कैसा, जरा पूछे कोई मुझसे,
हलवाई की दूकान के आगे से भी निकल जाना – मुझे पसंद नहीं
झगड़ा बेगम से वो भी सर्दियों में, यह मुमकिन नहीं,
ठिठुर-2 कर बिना कम्बल, रात घर से बाहर बिताना – मुझे पसंद नहीं
के करोड़पति परिवार की इकलोती बेटी है मेरी बेगम,
कैसे कहूं , ससुर जी, कि ये कबाड़खाना – मुझे पसंद नहीं
बताईं हैं मैंने गिनती की बातें ही आपको जनाबे-आली,
अब सभी को यूं हाल-ए-दिल बताना – मुझे पसंद नहीं...
बुधवार, 25 सितंबर 2013
पीड़ितों की सेवा में जीवन लगाने वाली माँ
पीडि़त मानवता की सेवा को अपना सर्वोपरि धर्म मानने वाली मदर टेरेसा दुनिया के गरीब मुल्कों से भी ज्यादा पश्चिमी देशों को गरीब मानती थी और उनके अनुसार इन संपन्न देशों की गरीबी हटाना ज्यादा मुश्किल है। मदर टेरेसा के अनुसार भूखे को भरपेट भोजन, वस्त्र और आवास देकर संतुष्ट किया जा सकता है लेकिन उपेक्षा, अकेलापन, असहाय जैसी भावनाओं से रूबरू होने वाले पश्चिम के संपन्न समाज की गरीबी दूर करना बेहद कठिन काम है।
अकेलेपन और उपेक्षित होने की भावना को अत्यंत भयानक गरीबी मानने वाली मदर टेरेसा धर्म से कैथोलिक थीं और एक सच्ची ईसाई की तरह उन्होंने मनुष्य सेवा को ही प्रभु सेवा बना लिया था। उनका जन्म 26 अगस्त 1910 को मकदूनिया में हुआ और उनका परिवार अल्बानिया मूल का था। बचपन से ही एगनेस गोनक्शा बोजाशियो (मदर टेरेसा का मूल नाम) ईसाई मिशनरियों के जीवनगाथाओं से प्रभावित थीं। सपने बुनने वाली किशोरावस्था के दौर में मदर टेरेसा के मन में कुछ अलग ही सपना पल रहा था और 12 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपना जीवन धर्म के नाम करने का संकल्प कर लिया। धर्म की राह पर चलने का उनका यह संकल्प आने वाले सालों में और सुदृढ़ होता गया तथा आखिरकार 18 साल की उम्र में वह सिस्टर्स आफ लारेटो में मिशनरी के रूप में शामिल हो गईं।
सिस्टर्स आफ लारेटो में आने के बाद मदर टेरेसा को अंग्रेजी भाषा सीखने के लिए आयरलैंड जाना पड़ा। मदर टेरेसा ने अपनी कर्म भूमि भारत में 1929 में कदम रखा और शुरू में वह दार्जीलिंग में बच्चों को पढ़ाने का काम करती रहीं। उन्होंने 24 मई 1931 को नन के रूप में धार्मिक शपथ ली। मदर टेरेसा ने 1931 से 1948 के बीच कोलकाता के सेंट मैरी स्कूल में शिक्षण का काम किया। लेकिन उनका भावुक मन इस दौरान विद्यालय परिसर के बाहर हो रही घटनाओं को लेकर बुरी तरह पीडि़त होता रहा जिनमें 1943 का अकाल और 1946 के सांप्रदायिक दंगे शामिल हैं। पीडि़त मानवता की पुकार को मदर टेरेसा अधिक देर तक अनसुनी नहीं कर पाईं और आखिरकार 1948 से उन्होंने समाज सेवा और मलिन बस्तियों के बच्चों और बेसहारा लोगों की सेवा का काम शुरू कर दिया। इस संबंध में उन्होंने अपनी डायरी में लिखा− आपको केवल दुनिया से कहना भर है सब चीजें फिर से आपकी हो जायेंगी। प्रलोभन लगातार आवाज दे रहे थे, मुक्त निर्णय से मेरे प्रभु और आपके (मनुष्य प्रेम) प्यार के कारण मैं सिर्फ वही आकांक्षा करूंगी और वही काम करूंगी जो इस संबंध में परम पवित्र की इच्छा हो। मैं एक भी आंसू गिरने नहीं दूंगी। मदर टेरेसा को सात अक्तूबर 1950 को वेटिकन से मिशनरीज आफ चैरिटी नामक अपनी संगत शुरू करने की इजाजत मिल गई। कलकत्ता में मात्र 13 सदस्यों के साथ शुरू की गई इस संस्था के आज दुनिया भर में करीब दस लाख से अधिक कार्यकर्ता हैं।
मदर टेरेसा ने 1952 में मृत्यु के कगार पर खड़े रोगियों की देखभाल और मृत्यु के बाद उनका सम्मानजनक ढंग से अंतिम संस्कार करने के लिए निर्मल हृदय नामक केन्द्र खोला। इसी प्रकार 1955 में उन्होंने बेसहारा और अनाथ बच्चों के लिए निर्मल शिशु सदन खोला। उन्हें पीडि़त मानवता की सेवा के लिए 1979 में नोबेल पुरस्कार तथा 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न प्रदान किया गया। मदर टेरेसा की स्वास्थ्य की खराबी का दौर 1983 से ही शुरू हो गया था जब रोम में पहली बार उन्हें दिल का दौरा पड़ा था। लेकिन उन्होंने पीडि़त मानवता की सेवा में कभी भी अपने स्वास्थ्य को बाधा नहीं बनने दिया। उन्होंने 13 मार्च 1997 को मिशनरीज आफ चैरिटी के प्रमुख पद को त्यागा और इसके कुछ ही महीनों बाद पांच सितंबर 1997 को संक्षिप्त बीमारी के बाद उनकी देह शांत हो गई।
निधन के बाद 19 अक्तूबर 2003 में रोम के कैथोलिक चर्च ने उन्हें धन्य घोषित करके मदर ब्लेस्ड की उपाधि दी। वर्ष 2002 में पश्चिम बंगाल की महिला मोनिका बेसरा ने दावा किया था कि मदर टेरेसा के चित्र वाला लाकेट पहनने के कारण उसका ट्यूमर दूर हो गया। चमत्कार की इसी घटना के कारण उन्हें धन्य घोषित किया गया। कैथोलिक चर्च के नियमों के अनुसार मदर टेरेसा को संत घोषित करने के लिए इसी प्रकार के एक और चमत्कार की घटना की जरूरत है। चर्च अपने रीति रिवाजों के कारण भले ही मदर टेरेसा को चाहे जब संत घोषित करे ले
मंगलवार, 17 अप्रैल 2012
चुटकुले
हैंडसम भिखारी ने लड़की को बताई अपनी ख्वाहिश
फकीर - एक रूपया दे दो मैडम।
लड़की - शर्म नहीं आती, इतने हैंडसम नौजवान होकर भीख मांगते हो !
फकीर - अच्छा मैडम, फिर एक पप्पी ही दे दो।
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लड़की की समस्या सुनकर बाबा की बांछें खिलीं !
लड़की, निरा मल बाबा से - बाबा को प्रणाम। बाबा मेरे पति रोज आधी रात को घर से बाहर चले जाते हैं।
निरा मल बाबा - बेटी, ये समस्या है या आमंत्रण ?
फकीर - एक रूपया दे दो मैडम।
लड़की - शर्म नहीं आती, इतने हैंडसम नौजवान होकर भीख मांगते हो !
फकीर - अच्छा मैडम, फिर एक पप्पी ही दे दो।
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लड़की की समस्या सुनकर बाबा की बांछें खिलीं !
लड़की, निरा मल बाबा से - बाबा को प्रणाम। बाबा मेरे पति रोज आधी रात को घर से बाहर चले जाते हैं।
निरा मल बाबा - बेटी, ये समस्या है या आमंत्रण ?
गुरुवार, 29 मार्च 2012
आईपीएल की माया
टीम इंडिया ट्वेंटी-20 मैच खेलने दक्षिण अफ्रीका पहुंच गई है। गुरुवार को होने जा रहे इस मुकाबले के लिए टीम इंडिया का ऐलान एशिया कप के साथ ही कर दिया गया था। फिटनेस की वजह से पूर्व उप-कप्तान वीरेंद्र सहवाग को टीम के बाहर रखा गया था। लेकिन कुछ दिन बाद ही सहवाग ने खुद को आईपीएल खेलने के लिए फिट घोषित कर दिया। इलाज के लिए लंदन गए सचिन भी इस मैच में नहीं खेल रहे हैं। ये दोनों आईपीएल में खेलेंगे। महेंद्र सिंह धोनी ने भी आईपीएल के मद्देनजर थकान का मुद्दा परे रख दिया है। ऐसे में कई सवाल उठ रहे हैं।
टीम के सबसे विस्फोटक बल्लेबाज सहवाग दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक मात्र टी-20 मैच खेलने के लिए तो अनफिट हैं, लेकिन आईपीएल खेलने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। चयनकर्ताओं के इस फैसले ने बीसीसीआई को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि बोर्ड को इस बारे में सवालों के जवाब देने चाहिए।
सवाल है कि क्या सहवाग को कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ हुए झगड़े का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, या फिर यह आईपीएल के प्रायोजकों का दबाव है, जो कि सितारा खिलाड़ियों के बाहर होना सहन नहीं कर सकते। सवाल और भी हैं। वक्त-बेवक्त थकान की बात करने वाले धोनी भी कह रहे हैं कि आईपीएल से थकान नहीं होगी।
धोनी नहीं चाहते वीरू का साथ?
चयनकर्ताओं ने एशिया कप की टीम का ऐलान करने के साथ ही इस एकमात्र टी-20 के लिए टीम घोषित कर दी। तब बोर्ड ने यह तर्क दिया था कि सहवाग पीठ की जकड़न से जूझ रहे हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं। वनडे मैचों में लगातार फ्लॉप होने के बाद सहवाग को आराम देने के नाम पर टीम से बाहर बैठा दिया गया।
जब बोर्ड के इस फैसले पर सवाल उठाए गए तो खुद सहवाग ने आकर यह सफाई दी कि उन्होंने ही बोर्ड से आराम मांगा है। लेकिन इसके पीछे एक कारण ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रोटेशन पॉलिसी को लेकर सहवाग और कप्तान धोनी के बीच विवाद भी रहा।
अब फिट हैं सहवाग, बनेंगे ऑलराउंडर
वीरेंद्र सहवाग अब हर बयान में एक बात कह रहे हैं, वो पूरी तरह फिट हैं और आईपीएल में अपनी टीम को नई बुलंदियों पर ले जाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सहवाग ने कहा है, मैं अब फ्रेश महसूस कर रहा हूं। यह कुछ दिनों का आराम मेरे लिए अच्छा रहा। अब मैं बल्ले के साथ-साथ गेंद से भी अपनी टीम की मदद करने को तैयार हूं। इस आईपीएल सीजन में आप मेरी गेंदबाजी का जलवा भी देखेंगे।
31 के लिए अनफिट, 5 तारीख के लिए फिट
हैरत की बात यह है कि बोर्ड ने फिटनेस के आधार पर सहवाग को एशिया कप और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 मुकाबले से बाहर रखा था। यदि सहवाग 30 मार्च को होने वाले मैच के लिए अनफिट हैं, तो वो महज 6 दिन में कैसे पूरी तरह फिट हो जाएंगे? दिल्ली डेयरडेविल्स को अपना पहला मुकाबला 5 तारीख को कोलकाता नाइटराइडर्स के खिलाफ खेलना है। और सहवाग आईपीएल के लिए जमकर अभ्यास भी कर रहे हैं। (तस्वीरें देखें)
आईपीएल की माया
आईपीएल क्रिकेट का एक ग्लैमरस रूप है। इसमें स्टार खिलाड़ियों की मौजूदगी जरूरी है। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू ने सहवाग के आईपीएल खेलने और अंतर्राष्ट्रीय मैच से दूर रहने के पीछे आईपीएल के प्रायोजकों के दबाव को वजह बताया है।
सिद्धू ने बीसीसीआई पर निशाना साधते हुए कहा, "बीसीसीआई ने अपने खिलाड़ियों का सौदा स्पॉन्सर्स के साथ कर दिया है। मैदान पर सहवाग, सचिन तेंडुलकर जैसे बड़े नामों को दिखाने के लिए प्रायोजकों ने मोटी रकम बीसीसीआई को दी है। अब ऐसे में खिलाड़ी फिट हो या अनफिट, उसे तो खेलना ही होगा। इसलिए सिर्फ क्रिकेटर को दोषी ठहराना सही नहीं। इसके लिए बोर्ड भी जिम्मेदार है।"
सचिन का भी है यही हाल
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर पर भी आईपीएल का दबाव है। अपने पैर की उंगली का इलाज करवाने लंदन गए सचिन आईपीएल खेलने के लिए फिट बताए जा रहे हैं। सचिन को अपनी इस चोट के इलाज के लिए सर्जरी भी करवानी पड़ सकती है। सर्जरी के बाद एक खिलाड़ी को फिटनेस दोबारा हासिल करने में 2 से 3 हफ्तों का समय लगता है। लेकिन सचिन 4 अप्रैल को होने वाले आईपीएल के उद्घाटन मैच और बाकी दूसरे मैचों में खेलेंगे। यह बयान बीसीसीआई और उनकी टीम मुंबई इंडियंस ने दिया है। मुंबई इंडियंस ने बुधवार को यह घोषित कर दिया कि सचिन पूरे आईपीएल-5 में खेलेंगे।
टीम के सबसे विस्फोटक बल्लेबाज सहवाग दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ एक मात्र टी-20 मैच खेलने के लिए तो अनफिट हैं, लेकिन आईपीएल खेलने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। चयनकर्ताओं के इस फैसले ने बीसीसीआई को सवालों के कटघरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने कहा है कि बोर्ड को इस बारे में सवालों के जवाब देने चाहिए।
सवाल है कि क्या सहवाग को कप्तान महेंद्र सिंह धोनी के साथ हुए झगड़े का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, या फिर यह आईपीएल के प्रायोजकों का दबाव है, जो कि सितारा खिलाड़ियों के बाहर होना सहन नहीं कर सकते। सवाल और भी हैं। वक्त-बेवक्त थकान की बात करने वाले धोनी भी कह रहे हैं कि आईपीएल से थकान नहीं होगी।
धोनी नहीं चाहते वीरू का साथ?
चयनकर्ताओं ने एशिया कप की टीम का ऐलान करने के साथ ही इस एकमात्र टी-20 के लिए टीम घोषित कर दी। तब बोर्ड ने यह तर्क दिया था कि सहवाग पीठ की जकड़न से जूझ रहे हैं और थोड़ा आराम चाहते हैं। वनडे मैचों में लगातार फ्लॉप होने के बाद सहवाग को आराम देने के नाम पर टीम से बाहर बैठा दिया गया।
जब बोर्ड के इस फैसले पर सवाल उठाए गए तो खुद सहवाग ने आकर यह सफाई दी कि उन्होंने ही बोर्ड से आराम मांगा है। लेकिन इसके पीछे एक कारण ऑस्ट्रेलिया दौरे पर रोटेशन पॉलिसी को लेकर सहवाग और कप्तान धोनी के बीच विवाद भी रहा।
अब फिट हैं सहवाग, बनेंगे ऑलराउंडर
वीरेंद्र सहवाग अब हर बयान में एक बात कह रहे हैं, वो पूरी तरह फिट हैं और आईपीएल में अपनी टीम को नई बुलंदियों पर ले जाने के लिए मशक्कत कर रहे हैं। सहवाग ने कहा है, मैं अब फ्रेश महसूस कर रहा हूं। यह कुछ दिनों का आराम मेरे लिए अच्छा रहा। अब मैं बल्ले के साथ-साथ गेंद से भी अपनी टीम की मदद करने को तैयार हूं। इस आईपीएल सीजन में आप मेरी गेंदबाजी का जलवा भी देखेंगे।
31 के लिए अनफिट, 5 तारीख के लिए फिट
हैरत की बात यह है कि बोर्ड ने फिटनेस के आधार पर सहवाग को एशिया कप और दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी-20 मुकाबले से बाहर रखा था। यदि सहवाग 30 मार्च को होने वाले मैच के लिए अनफिट हैं, तो वो महज 6 दिन में कैसे पूरी तरह फिट हो जाएंगे? दिल्ली डेयरडेविल्स को अपना पहला मुकाबला 5 तारीख को कोलकाता नाइटराइडर्स के खिलाफ खेलना है। और सहवाग आईपीएल के लिए जमकर अभ्यास भी कर रहे हैं। (तस्वीरें देखें)
आईपीएल की माया
आईपीएल क्रिकेट का एक ग्लैमरस रूप है। इसमें स्टार खिलाड़ियों की मौजूदगी जरूरी है। टीम इंडिया के पूर्व बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू ने सहवाग के आईपीएल खेलने और अंतर्राष्ट्रीय मैच से दूर रहने के पीछे आईपीएल के प्रायोजकों के दबाव को वजह बताया है।
सिद्धू ने बीसीसीआई पर निशाना साधते हुए कहा, "बीसीसीआई ने अपने खिलाड़ियों का सौदा स्पॉन्सर्स के साथ कर दिया है। मैदान पर सहवाग, सचिन तेंडुलकर जैसे बड़े नामों को दिखाने के लिए प्रायोजकों ने मोटी रकम बीसीसीआई को दी है। अब ऐसे में खिलाड़ी फिट हो या अनफिट, उसे तो खेलना ही होगा। इसलिए सिर्फ क्रिकेटर को दोषी ठहराना सही नहीं। इसके लिए बोर्ड भी जिम्मेदार है।"
सचिन का भी है यही हाल
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर पर भी आईपीएल का दबाव है। अपने पैर की उंगली का इलाज करवाने लंदन गए सचिन आईपीएल खेलने के लिए फिट बताए जा रहे हैं। सचिन को अपनी इस चोट के इलाज के लिए सर्जरी भी करवानी पड़ सकती है। सर्जरी के बाद एक खिलाड़ी को फिटनेस दोबारा हासिल करने में 2 से 3 हफ्तों का समय लगता है। लेकिन सचिन 4 अप्रैल को होने वाले आईपीएल के उद्घाटन मैच और बाकी दूसरे मैचों में खेलेंगे। यह बयान बीसीसीआई और उनकी टीम मुंबई इंडियंस ने दिया है। मुंबई इंडियंस ने बुधवार को यह घोषित कर दिया कि सचिन पूरे आईपीएल-5 में खेलेंगे।
बुधवार, 21 मार्च 2012
यह कैसा प्यार है...
प्रेम अब भी हमारी कल्पना का सबसे नाजुक, खूबसूरत और अनूठा हिस्सा है। वक्त चाहे कितना भी बदल जाए, हम कितने ही आधुनिक, तेज और मशीनी हो जाएं, लेकिन प्रेम का अहसास एक-सा ही होता है। कहने को तो कहा जा सकता है कि समाज की दूसरी चीजों की तरह की प्रेम या रोमांस भी टाइम बीईंग हो गया है, लेकिन हकीकत ये है कि जीवन में जब प्रेम जैसा प्रेम दस्तक देता है तो अच्छे-अच्छे तीसमार खां इसकी मार से बच नहीं सकते हैं।
हां आजकल के युवा प्रेम के नाम पर डेटिंग-शेटिंग करते हैं, और मान लेते हैं कि वे प्रेम में कमिटमेंट नहीं करते हैं, लेकिन जब हकीकत में प्रेम होता है तो कमिटमेंट करें या न करें का सवाल उठता ही नहीं है। समर्पण अपने आप ही आ जाता है।
इंस्टेंट कॉफी, फास्ट फूड, फेसबुक, ट्विटर और नेट चैट के इस युग में प्रेम का अर्थ बदल गया है, कम-से-कम युवाओं के लिए। हालांकि प्यार और रोमांस के प्रति आकर्षण आज भी मौजूद है, लेकिन आज का युवा कमिटमेंट से डरता है। आज प्रेम और रोमांस का अर्थ युवाओं के लिए सिर्फ इतना ही रह गया है कि अपने-अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के साथ हैंग आउट करना, फिल्म जाना, पब में बैठकर गप्प लड़ाना, गिफ्ट का आदान-प्रदान करना, कुछ देर के लिए किसी कोने में खो जाना और फिर ब्रेकअप कर दूसरे साथी की तलाश में जुट जाना।
असल में समाज जिस तेजी से बदल रहा है उतनी ही तेजी से युवा संबंध के अर्थ को पुनः परिभाषित कर रहे हैं। उनके लिए बिना किसी जिम्मेदारी वाले संबंध आसान और आरामदायक होते जा रहे हैं। दीर्घकालीन अफेयर उन्हें बोरिंग लगते हैं। उनके लिए संबंध स्वीट और शॉर्ट होने चाहिए। प्यार और रोमांस का युवाओं के लिए बस इतना-सा ही मतलब रह गया है। रोमांस भी शॉर्ट एंड स्वीट और लिव-इन भी।
आज का युवा न चाहता है और न ही उम्मीद करता है कि प्रेम जीवनभर का बोझ बन जाए। कमिटमेंट बदलते हैं, लोग बदल जाते हैं, और किसी को भी इससे शिकायत नहीं होती। दीर्घकालीन संबंध तेजी से इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे हैं। युवा कमिटमेंट से बहुत अधिक डरे और सहमे हुए हैं और जब अफेयर गंभीर होने लगे तो उन्हें परेशानी होने लगती है। उन्हें लगता है कि परंपरागत और ओल्ड फैशंड अफेयर का मतलब गुलामी और स्वतंत्रता खो देना है।
आजकल बबलगम रोमांस का दौर है और इसमें लड़के और लड़किया दोनों ही की सोच एक जैसी है। जिस तरह आप बबलगम चबाते रहते हैं और जब मन भर जाता है तब उसे थूक देते हैं, उसी तरह रोमांस का भी यही किस्सा है। इसलिए आज के युग में कमिटमेंट का सिर्फ यही मतलब रह गया है कि फिल्में जाओ, पब और पार्टी में जाओ और अच्छे दोस्तों की तरह चिलआउट करो।
कुछ समय एक-दूसरे के साथ रहने के बाद नए डेट की तलाश पूरे जोश से शुरू हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस बदलते दृष्टिकोण या व्यवहार का मुख्य कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, क्योंकि कोई भी अपनी आजादी नहीं खोना चाहता।
हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आज के सारे रिश्ते बबलगम की ही तरह हो गए हैं। आज भी ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो प्रेम और रोमांस को गंभीरता से लेते हैं। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है सही साथी की तलाश। और तलाश खत्म होने पर जब उनका आपसी तालमेल बैठता जाता है तो फिर पीछे मुड़कर देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
(webdunia.com)
हां आजकल के युवा प्रेम के नाम पर डेटिंग-शेटिंग करते हैं, और मान लेते हैं कि वे प्रेम में कमिटमेंट नहीं करते हैं, लेकिन जब हकीकत में प्रेम होता है तो कमिटमेंट करें या न करें का सवाल उठता ही नहीं है। समर्पण अपने आप ही आ जाता है।
इंस्टेंट कॉफी, फास्ट फूड, फेसबुक, ट्विटर और नेट चैट के इस युग में प्रेम का अर्थ बदल गया है, कम-से-कम युवाओं के लिए। हालांकि प्यार और रोमांस के प्रति आकर्षण आज भी मौजूद है, लेकिन आज का युवा कमिटमेंट से डरता है। आज प्रेम और रोमांस का अर्थ युवाओं के लिए सिर्फ इतना ही रह गया है कि अपने-अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के साथ हैंग आउट करना, फिल्म जाना, पब में बैठकर गप्प लड़ाना, गिफ्ट का आदान-प्रदान करना, कुछ देर के लिए किसी कोने में खो जाना और फिर ब्रेकअप कर दूसरे साथी की तलाश में जुट जाना।
असल में समाज जिस तेजी से बदल रहा है उतनी ही तेजी से युवा संबंध के अर्थ को पुनः परिभाषित कर रहे हैं। उनके लिए बिना किसी जिम्मेदारी वाले संबंध आसान और आरामदायक होते जा रहे हैं। दीर्घकालीन अफेयर उन्हें बोरिंग लगते हैं। उनके लिए संबंध स्वीट और शॉर्ट होने चाहिए। प्यार और रोमांस का युवाओं के लिए बस इतना-सा ही मतलब रह गया है। रोमांस भी शॉर्ट एंड स्वीट और लिव-इन भी।
आज का युवा न चाहता है और न ही उम्मीद करता है कि प्रेम जीवनभर का बोझ बन जाए। कमिटमेंट बदलते हैं, लोग बदल जाते हैं, और किसी को भी इससे शिकायत नहीं होती। दीर्घकालीन संबंध तेजी से इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे हैं। युवा कमिटमेंट से बहुत अधिक डरे और सहमे हुए हैं और जब अफेयर गंभीर होने लगे तो उन्हें परेशानी होने लगती है। उन्हें लगता है कि परंपरागत और ओल्ड फैशंड अफेयर का मतलब गुलामी और स्वतंत्रता खो देना है।
आजकल बबलगम रोमांस का दौर है और इसमें लड़के और लड़किया दोनों ही की सोच एक जैसी है। जिस तरह आप बबलगम चबाते रहते हैं और जब मन भर जाता है तब उसे थूक देते हैं, उसी तरह रोमांस का भी यही किस्सा है। इसलिए आज के युग में कमिटमेंट का सिर्फ यही मतलब रह गया है कि फिल्में जाओ, पब और पार्टी में जाओ और अच्छे दोस्तों की तरह चिलआउट करो।
कुछ समय एक-दूसरे के साथ रहने के बाद नए डेट की तलाश पूरे जोश से शुरू हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस बदलते दृष्टिकोण या व्यवहार का मुख्य कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, क्योंकि कोई भी अपनी आजादी नहीं खोना चाहता।
हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आज के सारे रिश्ते बबलगम की ही तरह हो गए हैं। आज भी ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो प्रेम और रोमांस को गंभीरता से लेते हैं। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है सही साथी की तलाश। और तलाश खत्म होने पर जब उनका आपसी तालमेल बैठता जाता है तो फिर पीछे मुड़कर देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
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