बुधवार, 13 नवंबर 2013
'शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे'
'शादी का ये लड्डू होता है कैसा,जरा पूछे कोई मुझसे'
अपनी बीवी पर किसी का हुकुम चलाना – मुझे पसंद नहीं।
किसी का उसकी ओर जरा आंख उठाना – मुझे पसंद नहीं।
क्या बताऊं यारों सब प्यार से मुझे ही बुलाते हैं “किसी”।
इसलिए किसी को भी अपना नाम बताना – मुझे पसंद नहीं...।
बेलन लगता है तो लग जाए बेशक, मगर,
बेगम का यूं निशाना लगाना – मुझे पसंद नहीं
जो चीज़ बनी है जिसके लिए वही करो न इस्तेमाल,
अब झाड़ू का यूं तलवार बनाना - मुझे पसंद नहीं
कभी कभी पूरे परिवार को डिनर पर ले जाता हूं मैं,
क्यूंकि रोज-रोज बीवी संग बर्तन धुलवाना – मुझे पसंद नहीं
कैसे दिए हैं 10-12 क्रेडिट कार्ड बेगम को मैंने,
भैया यूं कैश में हर जगह शोपिंग कराना – मुझे पसंद नहीं
मांगे पूरी कर देता हूं मैं बेगम की हमेशा टाइम पर,
थका-मांदा घर लौंटू, उस फिर पिटना-पिटाना – मुझे पसंद नहीं
सरदर्द बेग़म का मुझे परेशान करता है हरदम,
पहले बाम लगाना फिर सर दबाना – मुझे पसंद नहीं
शादी का ये लड्डू होता है कैसा, जरा पूछे कोई मुझसे,
हलवाई की दूकान के आगे से भी निकल जाना – मुझे पसंद नहीं
झगड़ा बेगम से वो भी सर्दियों में, यह मुमकिन नहीं,
ठिठुर-2 कर बिना कम्बल, रात घर से बाहर बिताना – मुझे पसंद नहीं
के करोड़पति परिवार की इकलोती बेटी है मेरी बेगम,
कैसे कहूं , ससुर जी, कि ये कबाड़खाना – मुझे पसंद नहीं
बताईं हैं मैंने गिनती की बातें ही आपको जनाबे-आली,
अब सभी को यूं हाल-ए-दिल बताना – मुझे पसंद नहीं...
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