प्रेम अब भी हमारी कल्पना का सबसे नाजुक, खूबसूरत और अनूठा हिस्सा है। वक्त चाहे कितना भी बदल जाए, हम कितने ही आधुनिक, तेज और मशीनी हो जाएं, लेकिन प्रेम का अहसास एक-सा ही होता है। कहने को तो कहा जा सकता है कि समाज की दूसरी चीजों की तरह की प्रेम या रोमांस भी टाइम बीईंग हो गया है, लेकिन हकीकत ये है कि जीवन में जब प्रेम जैसा प्रेम दस्तक देता है तो अच्छे-अच्छे तीसमार खां इसकी मार से बच नहीं सकते हैं।
हां आजकल के युवा प्रेम के नाम पर डेटिंग-शेटिंग करते हैं, और मान लेते हैं कि वे प्रेम में कमिटमेंट नहीं करते हैं, लेकिन जब हकीकत में प्रेम होता है तो कमिटमेंट करें या न करें का सवाल उठता ही नहीं है। समर्पण अपने आप ही आ जाता है।
इंस्टेंट कॉफी, फास्ट फूड, फेसबुक, ट्विटर और नेट चैट के इस युग में प्रेम का अर्थ बदल गया है, कम-से-कम युवाओं के लिए। हालांकि प्यार और रोमांस के प्रति आकर्षण आज भी मौजूद है, लेकिन आज का युवा कमिटमेंट से डरता है। आज प्रेम और रोमांस का अर्थ युवाओं के लिए सिर्फ इतना ही रह गया है कि अपने-अपने बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड के साथ हैंग आउट करना, फिल्म जाना, पब में बैठकर गप्प लड़ाना, गिफ्ट का आदान-प्रदान करना, कुछ देर के लिए किसी कोने में खो जाना और फिर ब्रेकअप कर दूसरे साथी की तलाश में जुट जाना।
असल में समाज जिस तेजी से बदल रहा है उतनी ही तेजी से युवा संबंध के अर्थ को पुनः परिभाषित कर रहे हैं। उनके लिए बिना किसी जिम्मेदारी वाले संबंध आसान और आरामदायक होते जा रहे हैं। दीर्घकालीन अफेयर उन्हें बोरिंग लगते हैं। उनके लिए संबंध स्वीट और शॉर्ट होने चाहिए। प्यार और रोमांस का युवाओं के लिए बस इतना-सा ही मतलब रह गया है। रोमांस भी शॉर्ट एंड स्वीट और लिव-इन भी।
आज का युवा न चाहता है और न ही उम्मीद करता है कि प्रेम जीवनभर का बोझ बन जाए। कमिटमेंट बदलते हैं, लोग बदल जाते हैं, और किसी को भी इससे शिकायत नहीं होती। दीर्घकालीन संबंध तेजी से इतिहास का हिस्सा बनते जा रहे हैं। युवा कमिटमेंट से बहुत अधिक डरे और सहमे हुए हैं और जब अफेयर गंभीर होने लगे तो उन्हें परेशानी होने लगती है। उन्हें लगता है कि परंपरागत और ओल्ड फैशंड अफेयर का मतलब गुलामी और स्वतंत्रता खो देना है।
आजकल बबलगम रोमांस का दौर है और इसमें लड़के और लड़किया दोनों ही की सोच एक जैसी है। जिस तरह आप बबलगम चबाते रहते हैं और जब मन भर जाता है तब उसे थूक देते हैं, उसी तरह रोमांस का भी यही किस्सा है। इसलिए आज के युग में कमिटमेंट का सिर्फ यही मतलब रह गया है कि फिल्में जाओ, पब और पार्टी में जाओ और अच्छे दोस्तों की तरह चिलआउट करो।
कुछ समय एक-दूसरे के साथ रहने के बाद नए डेट की तलाश पूरे जोश से शुरू हो जाती है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार इस बदलते दृष्टिकोण या व्यवहार का मुख्य कारण व्यक्तिगत स्वतंत्रता है, क्योंकि कोई भी अपनी आजादी नहीं खोना चाहता।
हालांकि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि आज के सारे रिश्ते बबलगम की ही तरह हो गए हैं। आज भी ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो प्रेम और रोमांस को गंभीरता से लेते हैं। उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है सही साथी की तलाश। और तलाश खत्म होने पर जब उनका आपसी तालमेल बैठता जाता है तो फिर पीछे मुड़कर देखने की कोई आवश्यकता नहीं होती।
(webdunia.com)
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