रविवार, 27 जून 2010

ख़ास बातें

बढ़ते बच्चों का रखें खास खयाल
इस आयु वर्ग में वे बच्चे आते हैं जिनकी आयु 10-15 वर्ष के बीच होती है। यह उनके पढ़ने, खाने-पीने, शरीर एवं मस्तिष्क के विकास की उम्र होती है। इस उम्र में बच्चों की हड्डियां, मांसपेशियां, प्रजनन के अंगों का विशेष रूप से विकास होता है। शरीर के साथ आदतें, स्वभाव, विपरीत सेक्स (लिंग) के प्रति आकर्षण होना, लड़कों में दाढ़ी निकलना, लड़कियों में स्तनों का विकास, सेक्स संबंधी विषयों में रुचि होने लगती है। जननांगों का विकास एवं प्रवर्धन उनके आकार में वृद्धि एवं परिवर्तन एक प्राकृतिक घटना है। ऐसी स्थिति में लड़की नारीत्व की ओर और लड़का पुरुषत्व की ओर अग्रसर होता है। यह बचपन से यौवन में पदार्पण का समय होता है। इस काल में पढ़ने-लिखने में बच्चे अधिक व्यस्त रहते हैं, खेल-कूद तथा अन्य प्रकार के व्यवसाय, मौज-मस्ती का माहौल होता है।

संस्कृत में एक श्लोक है जिसका अभिप्राय है कि पांच वर्ष तक बच्चों को खूब लाड़-प्यार, दुलार से पालें। उसके बाद 15 वर्ष तक की आयु तक उन्हें ताड़कर रखें और सोलहवें साल में पांव रखते ही उनके साथ मित्र के समान व्यवहार करें। इस दस साल के समय पर बच्चे का भविष्य निर्भर है। यदि नींव ही कमजोर होगी तो उस पर बनी इमारत, देखने में चाहे कितनी भी सुंदर और आकर्षक लगे, उसमें टिकाऊपन नहीं होगा।

इस आयु में आहार पूर्णतया पौष्टिक और संतुलित होना चाहिए। ज्यादा ध्यान इस पक्ष पर रखा जाना चाहिए कि आहार शरीर, बुद्धि तथा सद्वृत्तियों के विकास में सहायक होना चाहिए। सात से बारह वर्ष की आयु तक 1200 से 1600 कैलोरी का भोजन और 13-15 वर्ष के बीच 3200 कैलोरी (लड़कों के लिए) और 2800 कैलोरी भोजन (लड़कियों के लिए) पर्याप्त होता है। दोनों वर्गो में 400 कैलोरी का अंतर है। हमारे विचार में यदि एक काम एक-सा है और खेल-कूद का स्तर और प्रकार भी एक-सा है तो भोजन में कैलोरी का अंतर नहीं होना चाहिए। कारण कि जब कैलोरी वय एक-सा है तो निम्न और विभिन्न कैलोरी स्तर में कोई औचित्य नहीं दिखता है।

वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति की आयु, स्वास्थ्य और परिश्रम के आधार पर परिवार के सभी लोगों को पौष्टिक आहार दिया जाना चाहिए। युवकों को आहार देते वक्त नीचे लिखी बातों का ध्यान रखें।

भोजन का समय निश्चित कर लें और नियत समय पर ही भोजन दिया करें।

घर का भोजन शुद्ध, ताजा और स्वच्छ होता है, इसलिए बाहर बिकने वाले भोजन को खाने से बचा जाए। ऐसे भोजन में पोषक तत्व प्राय: न के बराबर होते हैं।

भोजन में हरी सब्जियां, साग, गेहूं, सोयाबीन, देशी घी, दूध, मक्खन, पनीर, चने का समावेश होना चाहिए जिसमें प्रोटीन, काबरेहाइड्रेट, वसा, खनिज तथा विटामिन का समुचित मिश्रण होना चाहिए।

बाजार में बिकने वाले ताजे फलों के जूस, ठंडे पेय, धूल से भरे, खुले में रखे हुए कटे फल, गन्ने का रस आदि का सेवन करने से बचें।

चाय, कॉफी आदि का सेवन नियमित मात्र में ही करें, परंतु जहां पर आपको प्यास अधिक लगी हो, उस अवस्था में पानी के स्थान पर इनका उपयोग हानिकारक होता है।

बर्फ का पानी पीने से प्यास और अधिक लगती है। घड़े में रखा हुआ पानी पीने से प्यास शांत होगी और संतुष्टि मिलती है।

ध्यान रखें कि अशुद्ध, अधिक गर्म या अधिक ठंडा पानी कई रोगों को बुलावा देता है। गर्म पानी या कोई भी पेय लेने के बाद ठंडा पेय कभी न लें और न ही ठंडे पेय के बाद कोई गर्म पेय लें। यदि आप ऐसा नहीं करते तो आपको दांतों के कष्ट, मसूढ़ों में सूजन और दर्द होने की पूरी संभावना रहती है।

इसके अतिरिक्त पाचन प्रणाली, गर्म के बाद ठंडा और ठंडे के बाद गर्म आहार लेने के कारण बिगड़ जाएगी। सदा अति की दशा से बचने का प्रयत्न किया जाए तो श्रेयस्कर होगा।

ऋतु एवं प्रकृति के अनुसार अपने भोज्य पदार्थो में बदलाव सदैव करना चाहिए। सभी खाद्य पदार्थ सबके लिए ठीक नहीं करते, इसलिए भोजन का संबंध ऋतु के अनुसार और स्थानीय खाद्य-आदतों के अनुसार रखा जाए तो सदा लाभप्रद रहता है। परंतु इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि कोई भी खाद्य पदार्थ अपनी रुचि के विरुद्ध कभी न लें।

अंकुरित अन्न का प्रयोग करने की भोजन विशेषज्ञ सलाह देते हैं। चना, गेहूं, मूंग की दाल, सोयाबीन, ताजा मटर के दाने, उड़द आदि को अंकुरित हो जाने के बाद खाने से शरीर को पोषक तत्व मिलते हैं।

भोजन के बाद थोड़ा-सा गुड़ (यदि आप मधुमेह से ग्रसित नहीं हैं तो) लिया जाए तो इससे पाचन में मदद मिलती है।

गले,मुंह और अन्न-नली में लगी हुई चिकनाई तथा धूल आदि नष्ट हो जाते हैं।

गुड़ में अम्ल तत्व की बहुतायत होने से सारी गंदगी धुल जाएगी और आपको स्वस्थ डकार आएंगी।

शौच से तुरंत पहले और एकदम बाद नहीं खाना चाहिए। दूसरे जब तक पेट पूरी तरह साफ न हो भोजन न करें।

यदि संभव हो तो शुद्ध गुनगुने जल में नींबू का रस निचोड़ कर लें। इससे दस्त तो साफ होगा ही, पेट तथा पाचन की अन्य बीमारियां भी दूर होंगी।

भोजन के साथ नींबू लेना बहुत लाभ देता है। गर्मी के दिनों में नींबू के रस को जल में मिलाएं, थोड़ी चीनी और काला नमक डालें और दिन में 4-6 बार पीएं। इससे आपके शरीर में जल-चीनी-लवण बना रहेगा और यदि शरीर से पानी (दस्त अधिक हो जाने से) निकल भी जाता है तो उसकी पूर्ति हो जाएगी।

जब कसरत कर चुके हों, पसीना अधिक आया हो, सांस तेज चल रही हो, मन अशांत एवं तनावपूर्ण हो, शरीर पर वस्त्र पहने हों, हाथ धोये न हों, जल्दबाजी हो, मनपसंद भोजन न हो, प्रकृति और ऋतु के अनुकूल भोजन न हो, खाने का समय बीच चुका हो, बहुत रात बीत चुकी हो या बहुत सवेरे इन सभी तथा अन्य अवस्थाओं में भोजन न करें।

बेमौसम के फल, सब्जियां, पेय आदि खाने-पीने से सदा बचें, कारण ऐसी खाद्य वस्तुओं में पौष्टिक तत्वों का अभाव होता है।

शनिवार, 26 जून 2010

क्षमा दिवस

व्यक्तित्व का अद्भुत गुण है क्षमा
क्षमा का जीवन में बहुत बड़ा महत्व है। यदि इंसान कोई गलती करे और उसके लिए माफी माँग ले तो सामने वाले का गुस्सा काफी हद तक दूर हो जाता है। जिस तरह क्षमा माँगना व्यक्तित्व का एक अच्छा गुण है उसी तरह किसी को क्षमा कर देना भी इंसान के व्यक्तित्व में चार चाँद लगाने का काम करता है। माफ करने वाले व्यक्ति की हर कोई तारीफ करता है और उसकी प्रसिद्धि दूर दूर तक फैल जाती है।

कवियों ने क्षमा को अपने-अपने ढंग से परिभाषित किया है। 'क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को उत्पात, कहाँ रहीम हरि को घट्यो जो भृगु मारी लात' जैसी पंक्तियाँ यही संदेश देती हैं कि क्षमा करना बड़ों का दायित्व है। यदि छोटे गलती कर देते हैं तो इसका मतलब यह नहीं कि उन्हें माफ न किया जाए।

वहीं रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है कि क्षमा वीरों को ही सुहाती है। उन्होंने लिखा है ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसका क्या जो दंतहीन विषहीन विनीत सरल हो।' वह लिखते हैं-

सहनशीलता, क्षमा, दया को तभी पूजता जग है बल का दर्प चमकता उसके पीछे जब जगमग है।

क्षमा को सभी धर्मों और संप्रदायों में श्रेष्ठ गुण करार दिया गया है। जैन संप्रदाय में इसके लिए एक विशेष दिन का आयोजन किया जाता है। मनोविज्ञानी भी क्षमा या माफी को मानव व्यवहार का एक अहम हिस्सा मानते हैं।

उनका कहना है कि यह इंसान की जिन्दगी का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है। क्षमा का मनुष्य के व्यक्तित्व में बहुत महत्व होता है। यदि आदमी गलती कर दे और उसके लिए माफी नहीं माँगे तो इसका मतलब यह हुआ कि उसके व्यक्तित्व में अहम संबंधी विकार है।

माफी माँगना और माफ करना दोनों ही इंसानी व्यक्तित्व को परिपूर्ण करने वाले तत्व हैं। लेकिन कुछ लोग जो जानबूझकर, बार-बार लगातार और मूर्खतावश या अहंकारवश गलती करते हैं, उन्हें कभी माफ नहीं करना चाहिए। आज के जमाने में माफ करने वाला बेवकूफ समझा जाता है। अगर कोई आपके व्यक्तित्व को बार-बार अपमानित करने की कोशिश करें तो समय यह कहता है कि ऐसे व्यक्ति का त्याग करना ही मुनासिब है।

गौरैया

मोबाइल की वजह से गायब हो जाएँगी गौरैया
चील, बाज, गिद्ध और गरुड़ ही नहीं, गौरैया भी अब भारत में लुप्त होने के कगार पर पहुँच गई है। जलवायु परिवर्तन नहीं, मोबाइल फोन का चस्का इस चिड़िया की चहचहाहट के चुप हो जाने का प्रमुख कारण बन गया है।

एक समय था, जब भोर होते ही गौरैयों की चहक के साथ शहरों और गाँवों में दिन की चहल-पहल शुरू होती थी। अब वह शुरू होती है मोबाइल फोन प्रेमियों की बातचीत के साथ।

वैसे तो पूरी दुनिया में गौरैयों की संख्या तेजी से घट रही है। इस तेजी से कि पक्षी संरक्षण के लिए ब्रिटेन की रॉयल सोसायटी ने गौरैये को अब उस लाल सूची में शामिल कर लिया है, जो दिखाती है कि पक्षियों की कौन-कौन सी प्रजातियाँ विलुप्त हो जाने के खतरे का सामना कर रही हैं। लेकिन, आश्चर्य की बात यह है कि इस सोसायटी के अनुसार भारत में भी वह विलुप्त हो जाने के भारी खतरे में है।

केरल में कोलम के एसएन कॉलेज में जूलॉजी के प्रोफेसर डॉक्टर सैनुद्दीन पट्टाझी इसकी पुष्टि करते हुए कहते हैं कि नया अध्ययन यही दिखाता है कि भारत के केरल सहित कई हिस्सों में गौरैया की संख्या लगातार घट रही है। शहरी इलाकों में उसने चिंताजनक रूप ले लिया है। कारण कई हैं। सबसे बड़ा कि अवैज्ञानिक कारण है मोबाइल फोन टॉवरों का तेजी से बढ़ना।

डॉक्टर पट्टाझी ने 2009-2010 में केरल में इस समस्या का खुद अध्ययन किया है। उन्होंने पाया कि रेलवे स्टेशनों, अनाज के गोदामों और रिहायशी बस्तियों में गौरैयाँ अब लगभग नहीं मिलतीं। कारण हैं कि कारों के लिए सीसारहित (अनलेडेड) पेट्रोल से पैदा होने वाले मीथाइल नाइट्रेट जैसे यौगिक, जो उन कीड़ों-मकोड़ों के लिए बहुत जहरीले होते हैं, जिन्हें गौरैयाँ चुगती हैं।

खेतों और बगीचों में ऐसे कीटनाशकों का बढ़ता हुआ उपयोग, जो गौरैयों के बच्चों लायक कीड़ों-मकोड़ों को मार डालते हैं। घास के खुले मैदानों का लुप्त होते जाना, आजकल के भवनों और मकानों की पक्षियों के लिए अहितकारी बनावट और जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान का बढ़ना भी।

लेकिन डॉक्टर पट्टाझी की सबसे चौंकाने वाली खोज यह है कि इमारतों की छतों पर मोबाइल फोन कंपनियों के बढ़ते हुए एंटेना और ट्रांसमीटर टॉवर गौरैया चिड़ियों की घटती हुई संख्या का आजकल मुख्य कारण बनते जा रहे हैं। उनका कहना है कि ये टॉवर रात दिन 900 से 1800 मेगाहर्ट्ज फ्रीक्वेंसी का विद्युतचुंबकीय विकिरण (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन) पैदा करते हैं, जो चिड़ियों के शरीर के आर पार चला जाता है। उनके तंत्रिकातंत्र और उनकी दिशाज्ञान प्रणाली को प्रभावित करता है। उन्हें अपने घोंसले और चारे की जगह ढूँढने में दिशाभ्रम होने लगता है। जिन चिड़ियों के घोंसले किसी मोबाइल फोन टॉवर के पास होते हैं, उन्हें एक ही सप्ताह के भीतर अपना घोंसला त्याग देते देखा गया।

पट्टाझी यह भी कहते हैं कि वह समय भी बहुत लंबा हो जाता है, जो अंडों के सेने के लिए चाहिए। उनका कहना है कि एक घोंसले में एक से आठ तक अंडे हो सकते हैं। उन्हें सेने में लिए आम तौर पर 10 से 14 दिन लगते हैं लेकिन जो अंडे किसी मोबाइल फोन टॉवर के पास के किसी घोंसले में होते हैं, वे 30 दिन बाद भी पक नहीं पाते।

डॉक्टर पट्टाझी ने अपनी खोजों के आधार पर 2009 में भारत सरकार और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधन संरक्षण संघ को भी लिख कर अनुरोध किया कि गौरैये को सदा-सदा के लिए लुप्त हो जाने से बचाया जाए। भारत सरकार की प्रतिक्रिया यह रही कि उसने गौरैयों की संख्या में गिरावट का सर्वेक्षण करने के लिए एक तीन वर्षीय परियोजना शुरू करने का आदेश दिया है।

गुरुवार, 24 जून 2010

कहानी

काँच की बरनी

जीवन में सबकुछ एक साथ और जल्दी-जल्दी करने की इच्छा होती है, तब कुछ तेजी से पा लेने की भी इच्छा होती है और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ते हैं। दर्शनशास्त्र के एक प्रोफेसर कक्षा में आए और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज जीवन का एक महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाने वाले हैं। उन्होंने अपने साथ लाई एक काँच की बरनी टेबल पर रखी और उसमें टेबल टेनिस की गेंदें डालने लगे और तब तक डालते रहे जब तक उसमें एक भी गेंद समाने की जगह नहीं बची।

उन्होंने छात्रों से पूछा, "क्या बरनी पूरी भर गई ?" "हाँ," आवाज आई। फिर प्रोफेसर ने कंकर भरने शुरू किए। धीरे-धीरे बरनी को हिलाया तो जहाँ-जहाँ जगह थी वहाँ कंकर समा गए। प्रोफेसर ने फिर पूछा, "क्या अब बरनी भई गई है?" छात्रों ने एक बार फिर हाँ कहा। अब प्रोफेसर ने रेत की थैली से हौले-हौले उस बरनी में रेत डालना शुरू किया। रेत भी उस बरनी में जहाँ संभव था बैठ गई। प्रोफेसर ने फिर पूछा- "क्यों अब तो यह बरनी पूरी भर गई न?" हाँ, अब तो पूरी भर गई है," सभी ने कहा।

प्रोफेसर ने समझाना शुरू किया। इस काँच की बरनी को तुम लोग अपना जीवन समझो। टेबल टेनिस की गेंद को भगवान, परिवार, बच्चे, मित्र, स्वास्थ्य और शौक समझो। छोटे कंकर का मतलब तुम्हारी नौकरी, कार, बड़ा मकान आदि है। रेत का मतलब और भी छोटी-छोटी बेकार-सी बातें, मनमुटाव, झगड़े हैं। अब यदि तुमने काँच की बरनी में सबसे पहले रेत भरी होती तो टेबल टेनिस की गेंदों और कंकरों के लिए जगह ही नहीं बचती या कंकर भर दिए होते तो गेंदें नहीं भर पाते, रेत जरूर आ सकती थी। ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है। यदि तुम छोटी-छोटी बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी ऊर्जा उसमें नष्ट करोगे तो तुम्हारे पास मुख्य बातों के लिए अधिक समय नहीं रहेगा।

कहानी

मुल्ला नसीरूद्दीन और मित्र के कपड़े
मुल्ला नसीरूद्दीन की एक दोस्त से कई वर्षों के बाद मुलाकात हुई। वह उसके गले मिला, पर उसके खराब वस्त्र देख उसके मन में करुणा जागी और उसने अपने लिए सिले कपड़े उसे पहनने को दिए। ये कपड़े उसने अपने लिए सिलाए तो थे, मगर उन्हें कीमती जान वह पहनने में हिचकिचाता था। भोजन करने के बाद नसीरूद्दीन मित्र से बोला, 'चलो, मैं तुम्हें अपने मित्रों से परिचय कराता हूँ।' रास्ते में मित्र के शरीर पर अपने कीमती कपड़े देख नसीरूद्दीन सोचने लगा-यह तो बिलकुल अमीर लगता है और मैं उसका नौकर। मगर कपड़े तो अब वापस लिए नहीं जा सकते।

इतने में उसके एक मित्र का घर दिखाई दिया। वे दोनों अंदर गए। नसीरूद्दीन जब मित्र से उसका परिचय कराने लगा, तो उसका ध्यान वस्त्रों की ओर गया और वह बोला, 'यह मेरा बरसों पुराना दोस्त है। इसने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे ही हैं।' दोस्त ने सुना, तो बुरा लगा। उसने उस समय तो कुछ नहीं कहा, मगर रास्ते में उसने कहा, 'आपको यह नहीं कहना था कि ये आपके कपड़े हैं।'

'ठीक है! अब मैं ऐसा नहीं कहूँगा,' नसीरूद्दीन ने जवाब दिया। मगर रास्ते में जब एक परिचित से मुलाकात हुई, तो अपने दोस्त का परिचय कराते समय कपड़ों की ओर ध्यान गया, और उसके मुँह से निकल पड़ा, 'इन्होंने ये जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे नहीं इन्हीं के हैं।' दोस्त को फिर बुरा लगा और उसने रास्ते में कहा, 'आपको मेरे कपड़े नहीं है-ऐसा नहीं कहना था नसीरूद्दीन ने अफसोस जाहिर करते हुए कहा, 'मेरी जबान धोखा खा गई।'

उसने निश्चय किया कि अब वह कपड़ों का जिक्र ही नहीं करेगा, मगर उसके अंतर्चक्षुओं को तो वे कपड़े ही दिखाई दे रहे थे, इसलिए तीसरे मित्र से मुलाकात होने पर उसके मुँह से निकल पड़ा, 'ये मेरे गहरे दोस्त हैं। बड़े अच्छे हैं, मगर मैं यह नहीं बताऊँगा कि इन्होंने जो कपड़े पहने हैं, वे मेरे हैं या इनके।' अब दोस्त से न रहा गया। वह वापस चल दिया। और उसने घर लौटकर गुस्सा जताते हुए कपड़े वापस कर दिए और दोस्त को छोड़कर वहाँ से चलता बना। नसीरूद्दीन को बड़ा पश्चाताप हुआ, किंतु अब कोई उपाय नहीं था।

चिट्ठी-पत्री

अपने आप से समझौता न करें
अच्छा जॉब पाना और उसके लिए लगातार मेहनत करना किसी प्रतियोगी परीक्षा के लिए वह भी पूर्ण लगन के साथ। आपने लगन के साथ मेहनत की है पर परिणाम नकारात्मक आ रहा है। आप क्या करेंगे? मेहनत करना छोड़ देंगे या अपना लक्ष्य बदल देंगे? यह स्थिति प्रत्येक युवा के सामने आती है। सफलता प्राप्ति का दबाव एक असफलता के बाद जरा ज्यादा ही हो जाता है। व्यक्ति स्वयं से प्रश्न पूछने लगता है कि आखिर कहाँ गड़बड़ हो गई?

दरअसल व्यक्ति कई बार इस प्रकार की स्थिति होने पर पलायनवादी मानसिकता अपना लेता है। वह असफलता से इतना डर जाता है कि पुन: उस रास्ते पर जाने की वह हिम्मत नहीं जुटा पाता। वह अपने आप से समझौता करने लगता है कि शायद पेपर ही कठिन था या जॉब इंटरव्यू में उससे ज्यादा काबिल लोग आए थे। इतनी मेहनत करना मेरे बस की बात नहीं आदि। वह अपने आपको ही तर्क देने लगता है और मेहनत से जी चुराने के लिए प्रेरित करने लगता है। जबकि यही समय होता है आत्मविश्लेषण करने का, अपनी कमियों को स्वयं के सामने रखने का और सफलता से पुन: प्रेम करने का।

* असफलता अंत नहीं
परीक्षा या जॉब न पाने की असफलता का मतलब अंत नहीं है। असफलता का मतलब होता है कि बस अब आप सफलता के लिए तैयार हो रहे हैं। रोजाना की जिंदगी में हमें कई ऐसे लोग मिलते हैं जिन्होंने आरंभिक रूप से असफलता पाई परंतु समय के साथ उन्होंने तर्कों की कसौटी पर सफलता को ऊँचा ही रखा और पुन: अपने आपको प्रेरित कर मेहनत करने लगते हैं। वे असफलता को अपने आप पर हावी नहीं होने देते।

* एक ही लक्ष्य
असफलताओं से होता हुआ रास्ता ही सफलता के नजदीक पहुँचाता है। असफलता आपको बताती है कि कहाँ गड़बड़ हो गई और अगले प्रयास में कहाँ ज्यादा मेहनत करना है। इससे आपको अपने लक्ष्य की प्राप्ति में काफी आसानी हो जाती है। क्योंकि लक्ष्य और भी सटीक और सामने नजर आने लगता है ऐसा लक्ष्य जो पहले से ज्यादा नजदीक है।

लक्ष्य की निकटता आपको ‍और ‍अधिक मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है।

* असफलता भी सभी के साथ बाँटें
अक्सर हम असफलता को दुनिया से छिपाते हैं। इसके परिणाम काफी घातक सिद्ध होते हैं। जब सफलता को हम सभी को बताना चाहते हैं तब असफलता को छुपाने से हम स्वयं ही ऐसे विचारों के द्वंद्व में खो जाते हैं जहाँ से केवल असफलता ही नजर आने लगती है। असफलता मिलने का मतलब है कि आपने प्रयास किया और क्या प्रयास करने को भी आप दुनिया के सामने नहीं लाना चाहेंगे।

असफलता को अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ बाँटें, हो सकता है कि आपको वे ऐसी राय दें जिसके बारे में आपने कभी कल्पना ही न की हो। इससे मन भी नकारात्मक विचारों से हल्का हो जाएगा जिससे ताजे और सकारात्मक विचारों के लिए आपके मन में जगह बन पाएगी और आप पुन: सफलता के लिए अपने प्रयास तेज कर देंगे।

मिर्च-मसाला

हैकर ने मेघना नायडू को बनाया ‘प्रेगनेंट’!
बॉलीवुड एक्ट्रेस मेघना नायडू ने मुंबई स्थित साइबर क्राइम इनवेस्टिगेशन सेल पर शिकायत दर्ज करवाई है कि एक अज्ञात हैकर ने उनके जी-मेल अकाउंट को हैक किया और उन्हें प्रेगनेंट बताया।

इस हैकर ने मेघना के दोस्तों के साथ मेघना बन चैट की और कहा मैं प्रेगनेंट हूँ और मुझे उस शख्स का नाम भी याद नहीं है जिसने यह काम किया है। मैं आपकी इस बारे में सलाह चाहती हूँ।
जब इस अज्ञात व्यक्ति ने मेघना के एक्स पब्लिसिस्ट डेल भगवागर से चैट की तो डेल को दाल में कुछ काला नजर आया। डेल ने कई कलाकारों के लिए काम किया है और वे सभी के हाव-भाव, आदतों से अच्छी तरह परिचित हैं।
वे कहते हैं ‘वह व्यक्ति चैट के दौरान कुछ ज्यादा ही आक्रामक हो रहा था जबकि मेघना बेहद कूल हैं। इसलिए चैट के तुरंत बाद मैंने मेघना के घर फोन यह जानने के लिए लगाया कि कि क्या वे ही चैट कर रही थी। मुझे उनके पैरेंट्‍स ने बताया कि वे तो योगा क्लास गई हुई हैं।‘
एक घंटे बाद मेघना वापस आईं और और उन्होंने डेल से बात की। मेघना ने बाद में कहा ‘मैंने अपने गूगल चैट्स चेक किए और पाया कि उस व्यक्ति ने मेरे कई दोस्तों से बात की और मेरे प्रेगनेंट होने की जानकारी उन्हें दी। साथ ही उसने यह भी कहा कि मैं उस व्यक्ति का नाम भूल गई हूँ जिसने मुझे प्रेगनेंट किया है। यह सब बाते झूठी हैं।‘
घबराकर मेघना ने क्राइम ब्रांच की शरण लेते हुए शिकायत दर्ज कराई। मेघना को उम्मीद है कि वह हैकर जल्दी ही सामने होगा, लेकिन साइबर क्रइम इनवेस्टिगेशन सेल की ओर से मेघना को ठंडा रिस्पांस मिला है।
मेघना ने सीनियर इंस्पेक्टर मुकुंद पवार से भी संपर्क किया, लेकिन उन्होंने भी इस मामले में कोई रूचि नहीं ली। वे कहती हैं ‘मैंने दो आईपी एड्रेसेस भी उन्हें दिए ताकि वे ट्रेक कर सकें, इसके बावजूद वे इस केस में रूचि नहीं ले रहे हैं। वे इस छोटे से काम के लिए एक सप्ताह का समय चाहते हैं।‘