क्रिकेट की दुनिया के दबंग
आईपीएल-4 शुरू होने से पहले वीरेन्द्र सहवाग, युवराजसिंह और गौतम गंभीर सहित कई खिलाड़ियों ने दावा किया था कि वे महेन्द्रसिंह धोनी की कप्तानी को अच्छी तरह जानते हैं और टूर्नामेंट में उनकी हर चाल का जवाब देंगे।
लेकिन, धोनी ने आईपीएल में अपनी टीम चेन्नई सुपरकिंग्स को लगातार दूसरी बार चैंपियन बनाकर दिखा दिया है कि क्रिकेट की दुनिया का असली दबंग कौन है। वर्ष 2007 से शुरू हुआ धोनी की सफलता का सिलसिला बदस्तूर जारी है और हर दिन वे नई ऊंचाइयां हासिल कर रहे हैं।
आईपीएल के फाइनल में धोनी के समक्ष चक्रवाती फॉर्म में चल रहे रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु के कैरेबियाई बल्लेबाज क्रिस गेल की चुनौती थी। फाइनल मुकाबले से पहले गेल की मौजूदगी में बेंगलुरु टीम ने 11 में से नौ में जीत हासिल की थी और धोनी अच्छी तरह जानते थे कि गेल चल गए तो उनके गेंदबाजों का तेल निकाल देंगे।
चेन्नई ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 205 रन का मजबूत स्कोर खड़ा किया, लेकिन धोनी के सामने असली चुनौती गेल को सस्ते में निपटाने की थी क्योंकि गेल चलते तो बेंगलुरु के लिए 206 रन का लक्ष्य छोटा पड़ सकता था। आखिर कर्मयुद्ध के इस अंतिम पड़ाव में धोनी ने धुरंधर गेल के लिए ऐसा चक्रब्यूह रचा कि वे इससे निकल नहीं पाए।
धोनी ने पहले ही ओवर में गेंद ऑफ स्पिनर रविचंद्रन अश्विन को थमाई। अश्विन ने ओवर की चौथी गेंद में चतुराई से पेस में परिवर्तन किया और गेल चकमा खा गए। गेंद उनके बल्ले का किनारा लेकर विकेटकीपर धोनी के दस्तानों में समा गई। धोनी की रणनीति काम कर गई और चेन्नई का एक बार फिर चैंपियन बनना उसी समय तय हो गया।
धोनी के बारे में कहा जाता है कि वे मिट्टी को छू लेते हैं तो वह भी सोना बन जाती है। उन्होंने बार-बार इसे साबित भी किया है। उनकी कप्तानी में भारत ने वर्ष 2007 में सभी को चौंकाते हुए ट्वेंटी-20 विश्वकप का खिताब जीता था। उसके बाद तो धोनी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक कई सफलताएं अर्जित करते चले गए।
यह माही की कप्तानी का करिश्मा था कि भारत दिसंबर 2009 में पहली बार आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में शीर्ष पर पहुंचा और तबसे उसने अपना दबदबा बनाए रखा है। इतना ही नहीं कैप्टन कूल धोनी ने भारत को 28 वर्ष बाद वनडे विश्वकप का खिताब जिताकर अपनी कप्तानी का लोहा मनवाया है।
आईपीएल में धोनी की टीम चेन्नई सुपरकिंग्स तीन बार फाइनल में पहुंची है, जिसमें से दो बार उसने खिताब पर कब्जा किया है। धोनी पिछले वर्ष चैंपियंस लीग टवंटी-20 टूर्नामेंट में भी अपनी टीम को चैंपियन बनाने में सफल रहे। इस तरह धोनी ने साबित कर दिया कि खेल के तीनों प्रारूपों में कोई उनका सानी नहीं है।
आईपीएल का चौथा संस्करण शुरू होने से पहले टीम इंडिया में धोनी के साथी खिलाडी सहवाग, युवराज और गंभीर ने दावा किया था कि वे माही की कप्तानी से वाकिफ हैं और उनकी चालों का मुंहतोड़ जवाब देंगे। सहवाग दिल्ली डेयरडेविल्स, युवराज पुणे वारियर्स और गंभीर कोलकाता नाइटराइडर्स के कप्तान थे।
दिल्ली की टीम टूर्नामेंट में सबसे फिसड्डी रही, जबकि युवराज की पुणे वारियर्स दिल्ली से एक स्थान ऊपर नौवें स्थान पर रही। नाइटराइडर्स की टीम भी एलिमिनेटर में बाहर हो गई। धोनी के आगे इन सबकी दबंगई धरी की धरी गई।
क्रिकेट की दुनिया में भगवान का दर्जा पा चुके मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंडुलकर भी धोनी की कप्तानी के कायल हैं। विश्वकप के बाद सचिन ने स्वयं स्वीकार किया था कि वे अब तक जितने भी कप्तानों के अंडर में खेले हैं, उनमें धोनी सर्वश्रेष्ठ हैं। धोनी की कप्तानी के लिए इससे बड़ा प्रमाणपत्र क्या हो सकता है?
बेहतरीन रणनीतिकार होने के साथ-साथ धोनी ने नाजुक मौकों पर शानदार पारियां खेलकर टीम को संकट से उबारा है। विश्वकप के फाइनल में नाबाद 91 रन की पारी इसका सबूत है। धोनी ने आईपीएल-4 में 43.55 के औसत से 392 रन बनाएट वे आईपीएल में खिताब जीतने वाले एकमात्र भारतीय कप्तान हैं।
नाजुक मौकों पर संयम बनाए रखना और साहसिक फैसले लेना धोनी की सबसे बड़ी खूबी है। साथ ही वे अपने खिलाड़ियों का भरपूर साथ देते हैं और उनकी काबिलियत पर भरोसा करते हैं। विश्वकप से पहले जब युवराज बुरे दौर से गुजर रहे थे तब धोनी उनके साथ खड़े थे। आखिर युवराज ने विश्वकप में शानदार प्रदर्शन करते हुए धोनी को सही साबित किया और आलोचकों के मुंह पर ताले जड़ दिए।
धोनी अपने खिलाडियों पर कितना विश्वास करते हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आईपीएल4 के अंतिम छह मैचों में उन्होंने अंतिम एकादश में कोई बदलाव नहीं किया। धोनी की बेमिसाल रणनीति और नेतृत्व क्षमता के आगे आईपीएल में सभी विपक्षी कप्तान पानी भरते नजर आए और कैप्टन कूल को खिताब ले जाने से नहीं रोक सके।
पॉइंट टेबल
Team Played Won Lost Tie NR Pts. NRR
RCB 14 9 4 0 1 19.00 0.33
CSK 14 9 5 0 0 18.00 0.44
MI 14 9 5 0 0 18.00 0.04
KKR 14 8 6 0 0 16.00 0.43
KXIP 14 7 7 0 0 14.00 -0.05
RR 14 6 7 0 1 13.00 -0.69
DC 14 6 8 0 0 12.00 0.22
KTK 14 6 8 0 0 12.00 -0.21
PW 14 4 9 0 1 9.00 -0.13
DD 14 4 9 0 1 9.00 -0.45
रविवार, 29 मई 2011
सोमवार, 9 मई 2011
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
चार कहानियाँ
समर्पित सचिव
महादेव भाई देसाई महात्मा गांधी के पास आए। उस समय वह युवा थे और कुछ नया करने के जोश से भरे हुए थे। उन्होंने गांधी जी से कहा, 'मैंने आपके गुजराती भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। कृपया जांच लंे, यह ठीक है या नहीं? मैं आपकी सेवा में रहना चाहूंगा। अगर आप ठीक समझें तो मुझे अपने साथ कार्य करने का अवसर दें।' गांधी जी ने लेख पढ़ने से पहले ही महादेव को स्वीकृति दे दी। गांधी जी बोले, 'ठीक है, तुम जैसा चाहते हो वैसा ही होगा।'
गांधीजी ने उन्हें अपने सचिव के पद पर रख लिया। गांधी जी के सचिव के रूप में नियुक्ति बहुत बड़ी बात थी। महादेव भाई काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने उत्साहित होकर पूछा, 'कब से काम शुरू करूं?' गांधी जी बोले, 'बस अभी से शुरू कर दो।' इस पर महादेव भाई बोले, 'लेकिन मेरे पास तो कुछ काम है। मुझे जाना होगा। मैं चाहता हूं कि घर पर सूचना दे आऊं।'
गांधी जी ने कहा, 'अब तुम घर नहीं जाओगे। अपने आप को देश की सेवा में समर्पित करने वालों को सब कुछ छोड़ना होता है। अपने अतीत से चिपके रहोगे तो समर्पण कैसे कर पाओगे।' महादेव भाई गांधी जी का आशय समझ गए। उन्होंने उसी समय से अपना काम संभाल लिया। उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने खुद को एक योग्य सचिव साबित किया। गांधी जी अपने निर्णयों में उनकी सलाह लेते रहते थे। इस तरह महादेव भाई ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने तरीके से योगदान किया। उनकी डायरी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
सहनशीलता का पाठ
राजा अपने दरबार में बैठे थे। तभी दरबारियों ने एक संत की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने बताया कि वह संत केवल काले रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनकी सहनशीलता की कोई सीमा नहीं है। वह बड़े - छोटे , अमीर - गरीब सभी के साथ समान व्यवहार करते हैं। राजा ने जब यह सुना तो वह उस ज्ञानी संत से मिलने को उत्सुक हो उठे। वह उनसे मिलने उनके आश्रम में जा पहुंचे। संत ने राजा के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जैसा वह आश्रम में आने वाले अन्य लोगों के साथ कर रहे थे।
राजा ने संत से पूछा , ' आप हमेशा काले वस्त्र ही क्यों धारण करते हैं ?' राजा का प्रश्न सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले , ' पुत्र , मैंने अपने अंतर्मन के मित्रों काम , क्रोध , ईर्ष्या , लोभ , मोह आदि को मार डाला है। इसलिए मैं उन्हीं के शोक में काले वस्त्र धारण करता हूं। ' यह रोचक जवाब सुनकर सब हंस पड़े और संत से अभिभूत भी हुए। राजा की जिज्ञासा थोड़ी और बढ़ी। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस संत की परीक्षा ली जाए। उन्होंने संत को अपने महल में बुलवाया। संत के पहुंचने पर राजा के सेवकों ने उन्हें धक्के मार कर बाहर निकाल दिया।
उसके कुछ देर बाद उन्होंने संत को एक बार फिर वापस बुलवाया लेकिन उन्हें फिर उसी तरह बाहर कर दिया गया। यह क्रम कई बार चला। हर बार संत सहज भाव से फिर आ खड़े होते। उनके चेहरे पर क्रोध की मामूली झलक भी नहीं दिखाई पड़ी। संत की सहनशीलता देखकर राजा उनके पैरों पर गिर पडे़ और उनसे क्षमा मांगते हुए बोले , ' आप सचमुच क्षमावान व सहनशील हैं और आपने वास्तव में मानव के अंतर्मन के मित्रों काम , क्रोध , लोभ , ईर्ष्या , मोह आदि पर विजय प्राप्त कर ली है। कृपया मुझे भी अपनी शरण में लेकर इन सब पर विजय पाने का कोई रास्ता बताइए ताकि मैं अपनी प्रजा का समुचित पालन कर सकूं । ' इसके बाद राजा संत से शिक्षा प्राप्त करने लगे।
बहुमूल्य रत्न
एक बार राजा कृष्णदेव के निमंत्रण पर भक्त पुरंदर दास राजमहल में पधारे। जाते समय राजा ने दो मुट्ठी चावल उनकी झोली में डालते हुए कहा, 'महाराज, इस छोटी सी भेंट को स्वीकार करें।' राजा ने बड़ी चतुराई से इन चावलों में कुछ हीरे मिला दिए थे। पुरंदर दास की पत्नी ने घर पर चावल साफ करते समय देखा कि उनमें कुछ बहुमूल्य रत्न भी हैं, तो उन्होंने उन्हें अलग करके कूड़ेदान में फेंक दिया।
उसके बाद पुरंदर दास को प्राय: रोज ही किसी न किसी कारण से दरबार में आना पड़ा। राजा रोज ही उन्हें दो मुट्ठी चावल के साथ हीरे मिलाकर देते और मन में यही सोचते कि यह ब्राह्मण भी धन के लालच से मुक्त नहीं है। एक दिन राजा ने कहा, 'लालच मनुष्य को आध्यात्मिक उपलब्धियों से दूर कर देता है। आप स्वयं ही अपने विषय में विचार करें।' राजा की यह बात सुनकर पुरंदर दास को बेहद दुख हुआ।
वह अगले दिन राजा को अपना घर दिखाने ले गए। उस समय पुरंदर दास की पत्नी चावल साफ कर रही थीं। राजा ने पूछा, 'देवी, आप क्या कर रही हैं?' वह बोलीं, 'महाराज, कोई व्यक्ति भिक्षा के चावल के साथ कुछ पत्थर मिलाकर हमें देता है। वैसे वे बहुमूल्य रत्न हैं, लेकिन हमारे लिए इनका कोई मूल्य नहीं है। अन्न तो खाना ही है, इसलिए उन्हें निकाल कर अलग कर रही हूं।' राजा ने अपने उन सभी बहुमूल्य रत्नों को कूड़ेदान में पड़े देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। फिर उस भक्त दंपती के चरणों में गिर कर उन्होंने अपने आरोप के लिए क्षमा मांगी। पुरंदर दास और उनकी पत्नी ने उन्हें अपने सहज स्वभाव के अनुसार क्षमा कर दिया।
सबसे बड़ा उपहार
बगदाद का बादशाह बेहद उदार व दयालु था। वह निर्धनों की सहायता में हर समय लगा रहता था। बगदाद से थोड़ी दूर एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था। वह किसी तरह रूखा-सूखा खाकर अपना गुजारा करता था।
एक दिन पत्नी ने पति से कहा, 'तुम देख रहे हो कि हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। तुम्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि कम से कम दोनों समय पेट भर भोजन तो मिल सके।' पति बोला, 'तुम्हारा कहना सही है, पर संसार में किसी की हालत हमेशा एक जैसी नहीं रहती। अमीरी और गरीबी दोनों धूप-छांव की तरह आती-जाती रहती हैं। मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण धन संतोष है। निश्चिंत रहो, समय पर सब कुछ ठीक हो जाएगा।'
पत्नी ने झुंझला कर कहा, 'तुम हमेशा यही बोलते रहते हो। मेरी बात मानो। बगदाद का बादशाह बहुत दानी है। जो उसके पास जाता है, उसे वह खुले हाथों दान देता है। तुम जल्दी ही बगदाद के लिए रवाना हो जाओ।' पति ने कहा, 'बात तो तुम्हारी ठीक है, पर बादशाह के पास खाली हाथ भी नहीं जाया जाता। उसके लिए क्या उपहार ले जाऊं?'
पत्नी ने कहा, 'बादशाह के खजाने में हीरे-मोती हो सकते हैं, पर हमारे यहां का पानी वहां मिलना कठिन है। हमारा पानी मीठा व सुस्वादु है। इसे ही उपहार के रूप में ले जाओ।' पति ने पहले तो मना किया पर पत्नी के जोर देने पर शीतल जल से भरी मशक लेकर बादशाह के पास पहुंचा। बादशाह ने प्रसन्न होकर उसके मशक को उपहार के रूप में स्वीकार किया और उस पानी को बर्तन में खाली करवा कर उसकी मशक अशर्फियों से भरकर उसे वापस दे दी। जब पति घर पहुंचा तो पत्नी बोली, 'महान लोग यह नहीं देखते कि उपहार कितना बड़ा या कीमती है। वे तो सिर्फ भेंट देने वाले का मन पढ़ते हैं। वे देखते हैं उसका मन कितना शुद्ध है। शुद्ध मन ही सबसे बड़ा उपहार है।'
महादेव भाई देसाई महात्मा गांधी के पास आए। उस समय वह युवा थे और कुछ नया करने के जोश से भरे हुए थे। उन्होंने गांधी जी से कहा, 'मैंने आपके गुजराती भाषण का अंग्रेजी में अनुवाद किया है। कृपया जांच लंे, यह ठीक है या नहीं? मैं आपकी सेवा में रहना चाहूंगा। अगर आप ठीक समझें तो मुझे अपने साथ कार्य करने का अवसर दें।' गांधी जी ने लेख पढ़ने से पहले ही महादेव को स्वीकृति दे दी। गांधी जी बोले, 'ठीक है, तुम जैसा चाहते हो वैसा ही होगा।'
गांधीजी ने उन्हें अपने सचिव के पद पर रख लिया। गांधी जी के सचिव के रूप में नियुक्ति बहुत बड़ी बात थी। महादेव भाई काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने उत्साहित होकर पूछा, 'कब से काम शुरू करूं?' गांधी जी बोले, 'बस अभी से शुरू कर दो।' इस पर महादेव भाई बोले, 'लेकिन मेरे पास तो कुछ काम है। मुझे जाना होगा। मैं चाहता हूं कि घर पर सूचना दे आऊं।'
गांधी जी ने कहा, 'अब तुम घर नहीं जाओगे। अपने आप को देश की सेवा में समर्पित करने वालों को सब कुछ छोड़ना होता है। अपने अतीत से चिपके रहोगे तो समर्पण कैसे कर पाओगे।' महादेव भाई गांधी जी का आशय समझ गए। उन्होंने उसी समय से अपना काम संभाल लिया। उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। उन्होंने खुद को एक योग्य सचिव साबित किया। गांधी जी अपने निर्णयों में उनकी सलाह लेते रहते थे। इस तरह महादेव भाई ने स्वतंत्रता संग्राम में अपने तरीके से योगदान किया। उनकी डायरी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है।
सहनशीलता का पाठ
राजा अपने दरबार में बैठे थे। तभी दरबारियों ने एक संत की चर्चा छेड़ दी। उन्होंने बताया कि वह संत केवल काले रंग के वस्त्र धारण करते हैं और उनकी सहनशीलता की कोई सीमा नहीं है। वह बड़े - छोटे , अमीर - गरीब सभी के साथ समान व्यवहार करते हैं। राजा ने जब यह सुना तो वह उस ज्ञानी संत से मिलने को उत्सुक हो उठे। वह उनसे मिलने उनके आश्रम में जा पहुंचे। संत ने राजा के साथ भी वैसा ही व्यवहार किया जैसा वह आश्रम में आने वाले अन्य लोगों के साथ कर रहे थे।
राजा ने संत से पूछा , ' आप हमेशा काले वस्त्र ही क्यों धारण करते हैं ?' राजा का प्रश्न सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले , ' पुत्र , मैंने अपने अंतर्मन के मित्रों काम , क्रोध , ईर्ष्या , लोभ , मोह आदि को मार डाला है। इसलिए मैं उन्हीं के शोक में काले वस्त्र धारण करता हूं। ' यह रोचक जवाब सुनकर सब हंस पड़े और संत से अभिभूत भी हुए। राजा की जिज्ञासा थोड़ी और बढ़ी। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस संत की परीक्षा ली जाए। उन्होंने संत को अपने महल में बुलवाया। संत के पहुंचने पर राजा के सेवकों ने उन्हें धक्के मार कर बाहर निकाल दिया।
उसके कुछ देर बाद उन्होंने संत को एक बार फिर वापस बुलवाया लेकिन उन्हें फिर उसी तरह बाहर कर दिया गया। यह क्रम कई बार चला। हर बार संत सहज भाव से फिर आ खड़े होते। उनके चेहरे पर क्रोध की मामूली झलक भी नहीं दिखाई पड़ी। संत की सहनशीलता देखकर राजा उनके पैरों पर गिर पडे़ और उनसे क्षमा मांगते हुए बोले , ' आप सचमुच क्षमावान व सहनशील हैं और आपने वास्तव में मानव के अंतर्मन के मित्रों काम , क्रोध , लोभ , ईर्ष्या , मोह आदि पर विजय प्राप्त कर ली है। कृपया मुझे भी अपनी शरण में लेकर इन सब पर विजय पाने का कोई रास्ता बताइए ताकि मैं अपनी प्रजा का समुचित पालन कर सकूं । ' इसके बाद राजा संत से शिक्षा प्राप्त करने लगे।
बहुमूल्य रत्न
एक बार राजा कृष्णदेव के निमंत्रण पर भक्त पुरंदर दास राजमहल में पधारे। जाते समय राजा ने दो मुट्ठी चावल उनकी झोली में डालते हुए कहा, 'महाराज, इस छोटी सी भेंट को स्वीकार करें।' राजा ने बड़ी चतुराई से इन चावलों में कुछ हीरे मिला दिए थे। पुरंदर दास की पत्नी ने घर पर चावल साफ करते समय देखा कि उनमें कुछ बहुमूल्य रत्न भी हैं, तो उन्होंने उन्हें अलग करके कूड़ेदान में फेंक दिया।
उसके बाद पुरंदर दास को प्राय: रोज ही किसी न किसी कारण से दरबार में आना पड़ा। राजा रोज ही उन्हें दो मुट्ठी चावल के साथ हीरे मिलाकर देते और मन में यही सोचते कि यह ब्राह्मण भी धन के लालच से मुक्त नहीं है। एक दिन राजा ने कहा, 'लालच मनुष्य को आध्यात्मिक उपलब्धियों से दूर कर देता है। आप स्वयं ही अपने विषय में विचार करें।' राजा की यह बात सुनकर पुरंदर दास को बेहद दुख हुआ।
वह अगले दिन राजा को अपना घर दिखाने ले गए। उस समय पुरंदर दास की पत्नी चावल साफ कर रही थीं। राजा ने पूछा, 'देवी, आप क्या कर रही हैं?' वह बोलीं, 'महाराज, कोई व्यक्ति भिक्षा के चावल के साथ कुछ पत्थर मिलाकर हमें देता है। वैसे वे बहुमूल्य रत्न हैं, लेकिन हमारे लिए इनका कोई मूल्य नहीं है। अन्न तो खाना ही है, इसलिए उन्हें निकाल कर अलग कर रही हूं।' राजा ने अपने उन सभी बहुमूल्य रत्नों को कूड़ेदान में पड़े देखा तो आश्चर्यचकित रह गए। फिर उस भक्त दंपती के चरणों में गिर कर उन्होंने अपने आरोप के लिए क्षमा मांगी। पुरंदर दास और उनकी पत्नी ने उन्हें अपने सहज स्वभाव के अनुसार क्षमा कर दिया।
सबसे बड़ा उपहार
बगदाद का बादशाह बेहद उदार व दयालु था। वह निर्धनों की सहायता में हर समय लगा रहता था। बगदाद से थोड़ी दूर एक गांव में एक गरीब परिवार रहता था। वह किसी तरह रूखा-सूखा खाकर अपना गुजारा करता था।
एक दिन पत्नी ने पति से कहा, 'तुम देख रहे हो कि हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं है। तुम्हें ऐसी कोशिश करनी चाहिए कि कम से कम दोनों समय पेट भर भोजन तो मिल सके।' पति बोला, 'तुम्हारा कहना सही है, पर संसार में किसी की हालत हमेशा एक जैसी नहीं रहती। अमीरी और गरीबी दोनों धूप-छांव की तरह आती-जाती रहती हैं। मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण धन संतोष है। निश्चिंत रहो, समय पर सब कुछ ठीक हो जाएगा।'
पत्नी ने झुंझला कर कहा, 'तुम हमेशा यही बोलते रहते हो। मेरी बात मानो। बगदाद का बादशाह बहुत दानी है। जो उसके पास जाता है, उसे वह खुले हाथों दान देता है। तुम जल्दी ही बगदाद के लिए रवाना हो जाओ।' पति ने कहा, 'बात तो तुम्हारी ठीक है, पर बादशाह के पास खाली हाथ भी नहीं जाया जाता। उसके लिए क्या उपहार ले जाऊं?'
पत्नी ने कहा, 'बादशाह के खजाने में हीरे-मोती हो सकते हैं, पर हमारे यहां का पानी वहां मिलना कठिन है। हमारा पानी मीठा व सुस्वादु है। इसे ही उपहार के रूप में ले जाओ।' पति ने पहले तो मना किया पर पत्नी के जोर देने पर शीतल जल से भरी मशक लेकर बादशाह के पास पहुंचा। बादशाह ने प्रसन्न होकर उसके मशक को उपहार के रूप में स्वीकार किया और उस पानी को बर्तन में खाली करवा कर उसकी मशक अशर्फियों से भरकर उसे वापस दे दी। जब पति घर पहुंचा तो पत्नी बोली, 'महान लोग यह नहीं देखते कि उपहार कितना बड़ा या कीमती है। वे तो सिर्फ भेंट देने वाले का मन पढ़ते हैं। वे देखते हैं उसका मन कितना शुद्ध है। शुद्ध मन ही सबसे बड़ा उपहार है।'
सदस्यता लें
संदेश (Atom)